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मापन के प्रकार (Types of Measurement)
मापन के मुख्यतः तीन भेद होते हैं जो निम्नलिखित हैं-
- मानसिक या सामान्यीकृत मापन (Mental or Normative Measurement)
- भौतिक या निरपेक्ष मापन (Physical or Absolute Measurement)
- इप्सेटिव मापन (Ipsative Measurement)
1) मानसिक या सामान्यीकृत मापन (Mental or Normative Measurement)- मानसिक या सामान्यीकृत मापन से तात्पर्य उस मापन से होता है जिसके द्वारा व्यक्ति के मानसिक गुणों, आदतों तथा मनोवृत्ति का मापन किया जाता है। सामान्यतः शिक्षा व मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रयोग किए जाने वाले परीक्षणों में इसका प्रयोग होता है क्योंकि उससे प्राप्त मान प्रायः मानकीय होते हैं। अतः इसे मानकीय मान भी कहा जाता है। इस तरह के मापन में मापन की इकाई निश्चित नहीं होती है। इसमें कोई परम शून्य (Absolute Zero) नहीं होता है इसलिए इसके परिणामों की व्याख्या गणितीय आधार पर नहीं की जा सकती है लेकिन इस तरह के मापों की व्याख्या में सांख्यिकीय गणनाओं (केन्द्रीय प्रवृत्ति तथा विचलन मान) की सहायता ली जा सकती है। इसकी प्रकृति परोक्ष (Indirect) होती है।
उदाहरण के लिए-
यदि हम कहें कि मोहन को गणित में 30 अंक प्राप्त हुए तो हमें इसके द्वारा किसी वास्तविक तथ्य की सूचना नहीं मिल पाती है लेकिन किसी उपलब्धि परीक्षण के एक पद पर 0,1,2,3,4,5 या 6 अंक प्रदान किए जा सकते हैं। अब यह परीक्षण कुछ छात्रों को दिया जाए तो प्रत्येक छात्र के प्राप्त अंकों का औसत (Mean) तथा मानक विचलन (Standard Deviation) अलग-अलग होगा। इस तरह के मापन में प्रायः अन्तराल स्तर का प्रयोग किया जाता है।
2) भौतिक या निरपेक्ष मापन (Physical or Absolute Measurement)-भौतिक मापन से तात्पर्य उस मापन से होता है जिसमें ऐसी वस्तुओं का मापन किया जाता है जो वातावरण में भौतिक रूप से उपस्थित होती हैं। इसमें मापन की इकाई निश्चित होती है तथा इसमें परम शून्य (Absolute Zero) की स्थिति विद्यमान होती है जिसका पैमाना शून्य से प्रारम्भ होता है। शून्य से अधिक होने पर धनात्मक (+) एवं शून्य से कम होने पर ऋणात्मक (-) मापन होता है। इसमें विभिन्न प्रकार के भौतिक गुणों का अध्ययन किया जाता है, जैसे- लम्बाई, दूरी, ऊँचाई आदि। इस मापन की प्रकृति प्रत्यक्ष (Direct) होती है। इस तरह के मापन में परिशुद्धता अधिक होती है। इसके द्वारा किसी वस्तु का पूर्णतः मापन सम्भव है। इस तरह के मापन में आनुपातिक स्तर का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण के लिए-
किसी स्थान के तापमान को लीजिए वह भी शून्य हो सकता है। शून्य से अधिक भी हो सकता है तथा शून्य से कम भी हो सकता है। इस प्रकार का मापन मात्र भौतिकचरों में ही सम्भव होता है। शैक्षिक तथा मनोवैज्ञानिक चारों में नहीं। इसका कारण यह है कि शैक्षिक तथा मनोवैज्ञानिक चारों में परम शुन्य की सम्भावना नहीं होती।
उदाहरण के लिए-
यदि किसी बालक का उपलब्धि परीक्षण करने पर शून्य अंक प्राप्त होता है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि उस विषय में छात्र की योग्यता शून्य है। इसका अर्थ मात्र इतना है कि छात्र उपलब्धि परीक्षण में किसी भी प्रश्न को हल करने में असमर्थ रहा है।
3) इप्सेटिव मापन (Ipsative Measurement) – इस शब्द का प्रयोग परीक्षण के क्षेत्र में सर्वप्रथम रेमण्ड कैटेल (Raymond Cattle) ने किया था। ये मानसिक मापन के विपरीत होता है। कई बार व्यक्ति को बाध्य चयन (Forced Choice) करना पड़ता है। इसे ही कैटेल महोदय ने इप्सेटिव मापन की संज्ञा दी। इस तरह के मापन में व्यक्ति के समक्ष कुछ प्रश्न, कथन या समस्याएँ दी जाती हैं व व्यक्ति को उसको वरीयता क्रम (1, 2, 3, 4, 5) प्रदान करने को कहा जाता हैं। यदि वह किसी एक कथन को प्रथम वरीयता क्रम (1) दे देता है तो वह अन्य को यह क्रम नहीं प्रदान कर सकता है। इस प्रकार प्रश्नों के चयन को बाध्य चयन प्रश्न (Forced Choice Item) कहा जाता है तथा इसके द्वारा मापन को इप्सेटिव मापन कहा जाता है।
उदाहरण के लिए-
एक मूल्य परीक्षण में मूल्यों सत्य, ईमानदारी, मैत्रीभाव व सहयोग का छात्रों द्वारा वरीयता क्रम (1, 2, 3, 4) देने के लिए कहा जाता है। जिसमें छात्र ने सत्य को 1 अंक दे दिया है तो वह यह अंक किसी दूसरे मूल्य को नहीं दे सकता एवं इसी प्रकार यदि अंक 2 ईमानदारी को देता है तो यह अंक भी शेष दो मूल्यों को नहीं दे सकता एवं यदि अंक 3 मैत्री भाव को देता है तो फिर सहयोग को अंक 4 देना पड़ेगा। इसे ही बाध्य चयन कहते हैं। इसमें प्राप्तांक एक दूसरे से प्रभावित होते हैं।
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