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राजकीय एवं स्थानीय स्तर पर शिक्षा-प्रशासन | EDUCATIONAL ADMINISTRATION AT STATE AND LOCAL LEVEL

राजकीय एवं स्थानीय स्तर पर शिक्षा-प्रशासन | EDUCATIONAL ADMINISTRATION AT STATE AND LOCAL LEVEL
राजकीय एवं स्थानीय स्तर पर शिक्षा-प्रशासन | EDUCATIONAL ADMINISTRATION AT STATE AND LOCAL LEVEL

राजकीय एवं स्थानीय स्तर पर शिक्षा-प्रशासन | EDUCATIONAL ADMINISTRATION AT STATE AND LOCAL LEVEL

जिस समय अंग्रेज भारत को छोड़कर गये, उस समय वह लगभग 560 देशी रियासतों तथा बहुत-से प्रान्तों में विभक्त था स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमन्त्री सरदार पटेल के सद्प्रयासों से भारत के मानचित्र में परिवर्तन हुआ और भारतीय संघ में कुल 29 प्रशासकीय इकाइयाँ स्थापित की गई। नवम्बर, 1956 में पुनः राज्यों को संगठित किया गया। इस पुनर्संगठन के अनुसार भारत के मानचित्र में 14 राज्य तथा 6 संघ द्वारा प्रशासित क्षेत्र स्थापित किये गये। इसके बाद भारत के मानचित्र में फिर परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों के अनुसार बम्बई (मुम्बई) तथा पंजाब को भाषा के आधार पर विभक्त किया गया। बम्बई (मुम्बई) को गुजरात तथा महाराष्ट्र और पंजाब को पंजाब तथा हरियाणा में विभक्त किया गया। 2 अप्रैल, 1970 को आसाम (असोम) राज्य में एक स्वायत्तता प्राप्त इकाई की स्थापना की गई, जो मेघालय के नाम से प्रसिद्ध है। अब भारतीय संघ में 25 राज्य तथा 7 संघीय क्षेत्र हैं।

राज्यपाल राज्य का सांवैधानिक अध्यक्ष होता है। उसको शासन कार्यों में परामर्श देने के लिए प्रत्येक राज्य में एक मन्त्रिपरिषद् होती है। मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष मुख्यमन्त्री होता है। मन्त्रिपरिषद् के मन्त्रियों में एक शिक्षामन्त्री होता है। शिक्षामन्त्री शिक्षा से सम्बन्धित नीतियों एवं मामलों के लिए उत्तरदायी होता है। शिक्षामन्त्री राज्य में सभी प्रकार की शिक्षा के लिए उत्तरदायी नहीं होता है। राज्य में अन्य मन्त्री भी अपने मन्त्रालयों से सम्बन्धित शैक्षिक मामलों के लिए उत्तरदायी होते हैं; उदाहरणार्थ- कृषिमन्त्री, कृषि शिक्षा से सम्बन्धित होता है। बहुत से राज्यों में शिक्षा की सहायता के लिए एक या दो उपमन्त्री होते हैं।

प्रत्येक राज्य में शिक्षा निदेशक (Director of Education) या सार्वजनिक शिक्षा निदेशक (Director of Public Instruction) राज्य के शिक्षा विभाग का प्रशासकीय अध्यक्ष होता है। परन्तु वह शिक्षामन्त्री के नियन्त्रण में कार्य करता है।

शिक्षा-प्रशासन के प्रतिदिन के मामलों में शिक्षामन्त्री की सहायता के लिए प्रत्येक राज्य में एक शिक्षा सचिव (Education Secretary) होता है। सचिवालय निदेशालय के कार्यकारक मामलों तथा विधान-मण्डल के नीति-निर्धारण सम्बन्धी कार्यों में कड़ी के रूप में कार्य करता है।

शिक्षा विभाग के अधिकारी तीन स्तरों पर कार्य करते हैं। ये स्तर हैं-(1) निदेशालय स्तर (2) क्षेत्रीय स्तर तथा (3) जिला स्तर। कुछ राज्यों में एक और स्तर है जो कि ब्लॉक स्तर (Block level) के नाम से जाना जाता है।

इन विभिन्न स्तरों के प्रशासकीय संगठन एवं उनके अधिकारियों का पृथक्-पृथक् विवेचन नीचे दिया जा रहा है-

शिक्षा मन्त्रालय- राज्य स्तर पर शिक्षा मन्त्रालय का प्रमुख अधिकारी शिक्षामन्त्री होता है। इसकी सहायता के लिए एक या दो उपमन्त्री भी हो सकते हैं, जैसे-महाराष्ट्र, मैसूर, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, जम्मू-कश्मीर में शिक्षामन्त्री जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है तथा राज्य के विधान मण्डल के प्रति उत्तरदायी होता है। वह शिक्षा की नीति का निर्धारण एवं उसको क्रियान्वित भी करता है। परन्तु शिक्षामन्त्री सम्पूर्ण शिक्षा के लिए उत्तरदायी नहीं होता है। राज्यों में कुछ ऐसे विभाग एवं मन्त्रालय हैं जो अपने विशेष क्षेत्रों की शिक्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं। कृषि, इंजीनियरिंग, वाणिज्य एवं उद्योग, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पशु-चिकित्सा, आदि सरकारी विभाग अपने नियन्त्रण में विभिन्न विद्यालयों व कॉलेजों को रखते हैं। प्राय: ये विभाग एक-दूसरे की क्रियाओं से कोई सम्बन्ध नहीं रखते और न ही शिक्षा विभाग इनकी क्रियाओं में कोई समन्वय स्थापित कर पाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि इनकी गतिविधियों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाय। इस सम्बन्ध में ‘कोठारी कमीशन’ का सुझाव है कि प्रत्येक राज्य में एक शिक्षा परिषद् (Council of Education) की स्थापना की जाये। इसका चेयरमैन शिक्षामन्त्री हो तथा उसमें राज्य के विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों, शिक्षा की विभिन्न शाखाओं के संचालकों (Directors) तथा कुछ शिक्षा मर्मज्ञों को सदस्यता प्रदान की जाये। इसका कार्य क्षेत्र विद्यालय शिक्षा तक सीमित रहे। यह विद्यालय शिक्षा से सम्बन्धित मामलों में राज्य सरकार को परामर्श दे। इसके अतिरिक्त यह विभिन्न साधनों के माध्यम से विद्यालय शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के संचालित कार्यक्रमों का मूल्यांकन तथा राज्य में शिक्षा के विकास का पुनरीक्षण करे। इस परिषद् को प्रमुख सलाहकार समिति का स्थान प्रदान किया जाय। यह अपने कार्यों को पूर्ण करने के लिए विभिन्न समितियों का निर्माण कर सकती है। इस परिषद् के वार्षिक प्रतिवेदनों को इसकी सिफारिशों के साथ राज्य के विधान मण्डल के समक्ष प्रस्तुत किया जाये।

शिक्षामन्त्री के कार्य- इसके महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं-

1. शिक्षा नीति का निर्धारण तथा राज्य की शिक्षा पद्धति के लिए नेतृत्व प्रदान करना।

2. शिक्षा से सम्बन्धित विषयों पर पूछे गये प्रश्नों का विधान-मण्डल के समक्ष उत्तर देना तथा शिक्षा सम्बन्धी विधायन में विधान-मण्डल को परामर्श देना।।

3. निजी प्रबन्धकों तथा स्थानीय संस्थाओं को स्कूलों के संचालन में सहायता देना।

4. शैक्षिक समस्याओं के समाधान के लिए अनुसन्धान कार्य को प्रोत्साहन देना एवं राज्य की शैक्षिक क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करना तथा विभिन्न कार्यक्रमों के परिणामों की जाँच करना।

उपर्युक्त कार्यों को पूर्ण करने के लिए राज्य के शिक्षा विभाग के दो अंग होते हैं—शिक्षा सचिवालय (Secretariate of Education) तथा शिक्षा निदेशालय (Directorate of Education)।

शिक्षा सचिवालय- सचिवालय प्रत्यक्ष रूप से शिक्षामन्त्री तथा उपमन्त्री से सम्बन्धित है। शिक्षा से सम्बन्धित सभी नीतियाँ शिक्षा सचिवालय में निर्णीत की जाती हैं। सचिवालय का अध्यक्ष शिक्षा सचिव होता है और उसकी सहायता के लिए उपसचिव तथा अधीन सचिव, आदि भी नियुक्त किये जाते हैं। यह ‘अखिल भारतीय सेवा’ (Indian Administrative Service) का सदस्य होता है। पश्चिमी बंगाल के सिवाय प्रत्येक राज्य में शिक्षा सचिव का पद शिक्षा संचालक (Director of Education) के पद से पृथक होता है। प्रतिदिन के मामलों को शिक्षा सचिव द्वारा पूरा किया जाता है और सरकार के सभी आदेश उसी के नाम से निकलते हैं। शिक्षा संचालक द्वारा जो नीतियाँ एवं प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाते हैं, वे पहले सचिवालय के अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा अध्ययन किये जाने के पश्चात् शिक्षा सचिव के पास जाते हैं और तब वह उन्हें शिक्षामन्त्री के समक्ष प्रस्तुत करता है।

शिक्षा निदेशालय– यह एक कार्यपालक (Executive) संस्था है। वस्तुत: यह सरकार तथा राज्य में फैली हुई सैकड़ों शिक्षा संस्थाओं के बीच एक जोड़ने वाली कड़ी है। यह सरकार को शिक्षा की विभिन्न शाखाओं की दशाओं से पूर्णतया परिचित कराता है तथा सरकार की शिक्षा नीति के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया, उनकी आवश्यकताओं एवं शिक्षा की प्रगति से भी परिचित कराता है।

इसका सबसे बड़ा अधिकारी शिक्षा निदेशक है जो शिक्षा सम्बन्धी मामलों में शिक्षामन्त्री का विशेषज्ञ परामर्शदाता होता है। वह शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोच्च कार्यपालिका शक्ति है और सम्पूर्ण राज्य की शिक्षा के रशासन के लिए उत्तरदायी है। उसका विभिन्न जिलों के सरकारी एवं गैर-सरकारी विद्यालयों एवं कॉलेजों से सम्बन्ध है। उसको प्राथमिक तथा माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए भी व्यवस्था करनी पड़ती है। इसके लिए ही उसे स्थानीय संस्थाओं से भी सम्बन्ध रखना होता है जो प्राथमिक शिक्षा के लिए उत्तरदायी हैं। शिक्षा संचालक लड़कियों की शिक्षा के लिए भी उत्तरदायी है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि राज्य की सम्पूर्ण शिक्षा पद्धति का उत्तरदायित्व उस पर है। इसलिए वह राज्य के विश्वविद्यालय के सिण्डीकेट या कार्यकारिणी परिषद् लोक सेवा आयोग, माध्यमिक शिक्षा परिषद्, आदि का पदेन सदस्य होता है।

परन्तु यह स्पष्ट है कि अकेले ही शिक्षा संचालक सम्पूर्ण कार्य को नहीं कर सकता है। वस्तुतः उसकी सहायता के लिए विभिन्न शिक्षा अधिकारी उपशिक्षा संचालक, सहायक शिक्षा संचालक, आदि होते हैं। इन संचालकों के अधीन विद्यालय निरीक्षक, विद्यालय निरीक्षिका, उप विद्यालय निरीक्षक, उप-विद्यालय निरीक्षिका, सहायक उप-विद्यालय निरीक्षक, आदि होते हैं।

क्षेत्रीय या सर्किल स्तर- सामान्यतः प्रत्येक राज्य को शिक्षा प्रशासन की दृष्टि से कई क्षेत्रों या सर्किलों या डिवीजनों में विभाजित कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश में ये क्षेत्र या रीजन उपशिक्षा निदेशक के अधीन हैं। पंजाब में ये क्षेत्र सर्किल शिक्षा अधिकारी के अधीन हैं। कुछ राज्यों में डिवीजन इन्स्पेक्टर या सुपरिण्टेडेण्ट के अधीन हैं। क्षेत्रीय व्यवस्था इस कारण की गयी है जिससे उसके क्षेत्र में आने वाले जिला अधिकारियों के कार्यों में समन्वय एवं सुव्यवस्था स्थापित की जा सके।

जिला-स्तर- शिक्षा – प्रशासन में यह स्तर सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस स्तर के कार्य संचालन पर ही विद्यालय शिक्षा के किसी कार्यक्रम की सफलता या असफलता निर्भर है। जिला स्तर पर शिक्षा का प्रमुख अधिकारी जिला विद्यालय निरीक्षक या जिला शिक्षा अधिकारी होता है। उसकी सहायता के लिए अन्य बहुत-से अधिकारी रहते हैं।

ब्लॉक स्तर- कुछ राज्यों में शिक्षा प्रशासन का एक स्तर ‘ब्लॉक’ या ‘तालुका स्तर है। पंजाब तथा हरियाणा में प्राइमरी शिक्षा प्रशासन के लिए इस स्तर का प्रशासन बहुत ही महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। जिन राज्यों में प्राथमिक शिक्षा राज्य के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में है, वहाँ स्थानीय बोडों का इस सम्बन्ध में कोई उत्तरदायित्व नहीं है। कुछ राज्यों में ब्लॉक शिक्षा अधिकारों का कार्य उपविद्यालय निरीक्षक द्वारा किया जाता है परन्तु इन अधिकारियों को जिला स्तर से सम्बन्धित करके उन्हें प्राइमरी विद्यालयों के निरीक्षण का कार्य सौंप दिया गया है। साथ ही ये अधिकारी प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क बनाने के लिए कार्य करते हैं।

राज्य शिक्षा परामर्शदाता मण्डल (State Advisory Board of Education) सरकार को शिक्षा सम्बन्धी मामलों में परामर्श देने के लिए लगभग सभी राज्यों में शिक्षा परामर्शदाता मण्डलों की व्यवस्था है। परन्तु इनके संगठनों में विभिन्नता पायी जाती है। कुछ राज्यों में शिक्षा की विभिन्न शाखाओं से सम्बन्ध रखने वाला एक ही शिक्षा परामर्शदाता मण्डल है और कुछ में प्रत्येक से सम्बन्धित पृथक्-पृथक् मण्डल हैं। कुछ राज्य सामान्य परामर्शदाता मण्डल के साथ-साथ विशेष मण्डलों को भी बनाते हैं। इस सम्बन्ध में माध्यमिक शिक्षा आयोग ने सुझाव दिया है—”राज्य का शिक्षा परामर्शदाता मण्डल, केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की भाँति ही कार्य करे और उसका संगठन शिक्षण व्यवसाय, विश्वविद्यालय, हाई स्कूल एवं उच्चतर माध्यमिक स्कूलों की प्रबन्धक समितियों, शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्ध रखने वाले विभागों के अध्यक्षों, उद्योग, व्यापार तथा विधानमण्डल एवं जनता के प्रतिनिधियों द्वारा होना चाहिए। शिक्षामन्त्री इस बोर्ड का चेयरमैन तथा शिक्षा संचालक या शिक्षा सचिव इसका सचिव होना चाहिए।” माध्यमिक शिक्षा आयोग द्वारा प्रस्तावित रूपरेखा के अनुसार बिहार तथा केरल में ऐसे ही शिक्षा परामर्शदाता मण्डल स्थापित किये गये हैं। सन् 1986 की शिक्षा नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि राज्य सरकारें केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की भाँति राज्य शिक्षा सलाहकार बोर्ड स्थापित करेंगी।

राज्य स्तर पर शिक्षा प्रबन्ध नियन्त्रण की समस्याएँ (PROBLEMS OF STATE EDUCATION OF COUNCIL MANAGEMENT)

शैक्षिक प्रशासन की राज्य स्तर पर अनेक समस्याएँ हैं। इन समस्याओं को हम निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं….

1. शिक्षा प्रशासन की संरचना में भिन्नता- शिक्षा प्रशासन का स्वरूप सभी राज्यों में समान नहीं है, तब इसके ढाँचे में विभिन्नता है। इस प्रकार के स्वरूप में समन्वय की समस्या होना स्वाभाविक है। अतः शिक्षा प्रबन्ध को नियन्त्रित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

2. श्रेष्ठ विधियों एवं प्रक्रियाओं का अभाव- शैक्षिक कार्यक्रम और योजनाओं की क्रियान्विति और उन्हें विकास की ओर ले जाने के लिए श्रेष्ठ विधियों का होना आवश्यक है। श्रेष्ठ विधियों और प्रक्रियाओं के अभवा में शिक्षा को विकास के उच्च स्तर पर ले जाना कठिन कार्य है। राज्य स्तर पर प्रबन्ध नियन्त्रण में यह समस्या बनी रहती है जिससे विकास प्रभावित होता है।

3. शैक्षिक नीतियों एवं नियमों के निर्धारण की समस्या- राज्य शिक्षा प्रशासन के अन्तर्गत परामर्श समितियों और प्रकाशकों के मध्य वांछित समायोजन न होने से शैक्षिक स्तर को उठाने के लिए नीति व नियम निर्धारण करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

4. शिक्षा विशेषज्ञों और सामान्य जनता का सहयोग न होना- शिक्षा की समस्याओं को दूर करने के लिए शिक्षा विशेषज्ञ और समस्त जनता का सहयोग मिलना आवश्यक है, इनके सहयोग के अभाव में विकास कठिन कार्य है।

5. राज्य प्रशासन का हस्तक्षेप- शिक्षा प्रसार हेतु वैयक्तिक प्रयासों में राज्य का हस्तक्षेप होने से प्रबन्धक समितियों, शिक्षा संगठनों, आदि के मध्य समायोजन की समस्या बनी रहती है। अतः विभिन्न संगठनों और समितियों के हितों की रक्षा करना कठिन हो जाता है।

6. उत्तरदायित्वों को समुचित रूप में न निभाना– शिक्षण संस्थाएँ खोलने और नियमानुसार उनकी स्थापना के पश्चात् भी राज्य प्रशासन उनके प्रति साधनों की पूर्ति नहीं कर पाता और साधनों के अभाव में अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह समुचित रूप में नहीं कर पाने की समस्या बनी रहती है।

7. समान अवसर प्रदान करना- राज्य के सभी बालक-बालिकाओं को समान अवसर नहीं मिल पाता है। इसका कारण विद्यालयों का अभाव है। इस अभाव के कारण सभी समान अवसर प्रदान करना कठिन कार्य है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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