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राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के मार्गदर्शक सिद्धान्त (Guiding Principles of National Curriculum Framework)
वर्ष 2000 में पाठ्यचर्या की रूपरेखा की समीक्षा के बाद भी पाठ्यचर्या एवं परीक्षाओं के विवादास्पद मुद्दे हल नहीं हो सके। प्राथमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या बोझ बनने लगी। शिक्षा मात्र रटन्त प्रणाली पर ही केन्द्रित हो गई। बालक मात्र पुस्तकीय ज्ञान एवं विद्यालय तक ही सीमित हो गए। अतः 2005 की पाठ्यचर्या रूपरेखा में शिक्षा के लक्ष्य, बालकों के सामाजिक परिप्रेक्ष्य ज्ञान की प्रकृति मानव विकास की प्रवृत्ति बालकों की सीखने की प्रक्रिया पर विशेष ध्यान दिया गया। इस प्रकार राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 के सिद्धान्त इस प्रकार है-
1) ज्ञान को विद्यालय के बाहरी जीवन से जोड़ना।
2) रटन्त प्रणाली से शिक्षा को मुक्त करना।
3) परीक्षा प्रणाली को अधिक लचीला बनाकर उसे कक्षागत गतिविधियों से जोड़ना।
4) पाठ्यचर्या को इस प्रकार सम्बन्धित करना जिससे बालकों को चहुँमुखी विकास के अवसर प्रदान करे।
5) पाठ्यचर्या के बोझ को “शिक्षा बिना बोझ के” के आधार पर कम करना।
6) पाठ्यचर्या सुधार के माध्यम से सुसंगत व्यवस्थागत परिवर्तन लाना।
7) गुणवत्तापूर्ण शिक्षा समस्त बालकों हेतु सुनिश्चित करना।
8) कला, संगीत, शिल्प आदि के द्वारा संस्कृति का संरक्षण एवं विकास करना।
9) सभी बालकों के लिए कक्षा में समावेशी वातावरण उत्पन्न करना।
10) बालकों में तर्क, विचार एवं अमूर्त चिन्तन की क्षमता का विकास करना।
11) विद्यालयी शिक्षा के दौरान उपयुक्त गतिविधियों के द्वारा समस्त विषयों में शान्ति के मूल्यों का विकास करना।
12) लोकतान्त्रिक व्यवहारों एवं मूल्यों के प्रति कटिबद्ध नागरिकों का निर्माण करना।
13) स्वास्थ्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा के द्वारा विद्यालय में नामांकन, उपस्थिति एवं ठहराव को बरकरार रखना।
14) बालकों के विकास तथा अधिगम के सम्बन्ध में सर्वांगीण दृष्टिकोण उत्पन्न करना।
15) प्रयोगात्मक कार्यों के द्वारा सक्रियता एवं रचनात्मकता का विकास करना।
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