शिक्षाशास्त्र / Education

वर्धा शिक्षा योजना के विषय में आप क्या जानते हैं? वर्धा शिक्षा योजना के मूल सिद्धान्त

वर्धा शिक्षा योजना के विषय में आप क्या जानते हैं? वर्धा शिक्षा योजना के मूल सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए। 

महात्मा गांधी ने 31 जुलाई 1937 को हरिजन में अपनी शिक्षा सम्बन्धी मत को प्रकट करते हुए लिखा है- “शिक्षा आत्म निर्भर होनी चाहिए।” शिक्षा से मेरा अभिप्राय है- “बच्चे एवं मनुष्य की सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों का सर्वांगीण विकास साक्षरता न तो शिक्षा का अन्त है और न आरम्भ। यह तो केवल अनेक साधनों में से एक साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य या स्त्री को शिक्षित किया जाता है। साक्षरता स्वयं शिक्षा नहीं है। अतः बच्चे की शिक्षा उसे एक उपयोगी हस्त शिल्प सिखाकर और जिस समय वह अपनी शिक्षा आरम्भ करता है, उसी समय से उसे उत्पादन करने के योग्य बनाकर आरम्भ करना चाहता हूँ। इस प्रकार यदि राज्य स्कूलों में निर्मित की जाने वाली वस्तुओं को खरीद लें, तो प्रत्येक स्कूल को आत्म निर्भर बनाया जा सकता है।”

वर्धा शिक्षा योजना का जन्म

गांधी जी की शिक्षा सम्बन्धी विचारधारा ने सम्पूर्ण देश में हलचल मचा दी। 1937 ई० में गांधी जी स्वयं वर्धा में उपस्थित थे। वहाँ के मारवाड़ी हाई स्कूल की रजत जयन्ती 22 और 23 अक्टूबर, 1937 को मनाई जाने वाली थी। इस समारोह में शिक्षाशास्त्रिया, राष्ट्रीय नेताओं एवं समाज सुधारकों को आमंत्रित किया गया था। कांग्रेस मंत्रिमंडलों के शिक्षा मंत्रियों को भी बुलाया गया था। सम्मेलन के अध्यक्ष गांधी जी थे। “अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन को वर्धा शिक्षा सम्मेलन भी कहा. जाता था, सम्मेलन में उपस्थित लोगों के समक्ष, गांधी जी ने “बुनियादी शिक्षा’ की नयी योजना प्रस्तुत करते हुए कहा- “देश की वर्तमान शिक्षा पद्धति किसी भी तरह देश की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती है। इस शिक्षा द्वारा जो भी लाभ होता है, उससे देश का कर देने वाला प्रमुख वर्ग वंचित रह जाता है। अतः प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम कम से कम सात साल का हो, जिसके द्वारा मैट्रिक तक का ज्ञान दिया जा सके, पर इनमें अंग्रेजी के स्थान पर कोई अच्छा उद्योग जोड़ दिया जाये। सर्वतोमुखी विकास के उद्देश्य से सारी शिक्षा जहाँ एक हो सके, किसी उद्योग के द्वारा दी जाये, जिससे पढ़ाई का खर्च भी अदा हो सके। जरूरी यह है कि सरकार उन बनी हुई चीजों को राज्य द्वारा निश्चित की गयी कीमत पर खरीद लें।”

इस सम्मेलन में विचार विमर्श के पश्चात् पूर्ण योजना बनाने के लिए डॉ० जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में एक समिति बनायी गयी। समिति ने दिसम्बर सन् 1937 और अप्रैल 1938 में अपनी दो रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्हीं को हम वर्धा शिक्षा योजना कहते हैं जो कि बेसिक शिक्षा या बुनियादी शिक्षा के नाम से जानी जाती है। इस योजना की जांच के लिए बम्बई के मुख्यमंत्री श्री बी०जी० खरे की अध्यक्षता में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की ओर से समितियों का गठन किया गया। खरे समिति ने बेसिक शिक्षा योजना के सम्बन्ध में रिपोर्ट देते हुए कहा कि इस योजना को ग्रामीण क्षेत्रों में आरम्भ किया जाये तथा निम्न बातें शामिल हों-

(अ) 6 वर्ष से 11 वर्ष के बालकों को जूनियर स्तर का पाठ्यक्रम ।

(ब) 12 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के बालकों के लिए सीनियर स्तर का पाठ्यक्रम ।

(स) शिक्षा की भाषा मातृभाषा ।

वर्धा बुनियादी शिक्षा के सिद्धान्त

वर्धा बुनियादी शिक्षा के मुख्य सिद्धान्त निम्नांकित है-

1. जनसाधारण की शिक्षा- भारत की अधिकांश साधारण जनता, अज्ञानता के अन्धकार से आवृत्त है। यही कारण है कि बुनियादी शिक्षा का सर्वप्रथम सिद्धान्त-जनसाधारण को शिक्षित बनाना निर्धारित किया गया है। इस प्रकार, गाँधीजी के निम्नांकित कथन के अनुसार कार्य किया जा रहा है “जनसाधारण की अशिक्षा भारत का पाप और कलंक है। अतः उसका अन्त किया जाना अनिवार्य है।”

2. निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा– गाँधीजी ने भारत के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की।

3. स्वावलम्बी शिक्षा – गाँधीजी ने बुनियादी शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त की ओर संकेत करते हुए कहा- “सच्ची शिक्षा स्वावलम्बी होनी चाहिए। इसका अभिप्राय यह है कि शिक्षा से पूँजी के अतिरिक्त वह सब धन मिल जाना चाहिए, जो उसे प्राप्त करने में व्यय किया जाये।”

बुनियादी शिक्षा के इस स्वावलम्बी पहलू के प्रति विशेष ध्यान देकर उसे स्वावलम्बी बनाया गया है। डॉ० एम० एस० पटेल के अनुसार बुनियादी शिक्षा दो प्रकार से स्वावलम्बी है-

(1) बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने वाला बालक किसी हस्तशिल्प को सीखकर, उसे अपने भावी जीवन के निर्वाह का साधन बनाए और

(2) विद्यालय के बालकों द्वारा बनायी जाने वाली वस्तुओं को बेचकर, अध्यापकों को वेतन दिया जाये। इस प्रकार, बालक अपने विद्यालय-जीवन और भावी जीवन-दोनों में अपने ऊपर निर्भर होकर स्वावलम्बी बन सकता है।

4. सामाजिक शिक्षा- बुनियादी शिक्षा के द्वारा एक ऐसे समाज का नव-निर्माण करने का प्रयत्न किया जा रहा है, जो स्वार्थ एवं शोषण विहीन हो, जो प्रेम एवं न्याय पर आधारित हों, और जिसके मूलमन्त्र-सत्य एवं अहिंसा हों। यही कारण है कि बुनियादी विद्यालयों में बालकों को इसी प्रकार के समाज में रहने का प्रशिक्षण दिया जाता है। रायबर्न का कथन है- “बुनियादी विद्यालय एक वास्तविक सामाजिक इकाई बन जाता है और बच्चों को साथ-साथ रहने की कला का वास्तविक प्रशिक्षण मिलता है”

5. शिक्षा का माध्यम, “मातृभाषा’- बुनियादी शिक्षा का माध्यम-मातृभाषा है। इतिहास हमें बताता है कि किसी देश की संस्कृति का विनाश करने के लिए, उसके साहित्य का विनाश किया जाता है। इसी सिद्धान्त का अनुगमन करके, अंग्रेजों ने हमारे देश में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया। बुनियादी शिक्षा में अंग्रेजी को कोई स्थान नहीं दिया गया है और मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया है।

6. हस्तशिल्प की शिक्षा- बुनियादी शिक्षा में हस्तशिल्प का केन्द्रीय स्थान है और सब विषयों की शिक्षा उसी के माध्यम से दी जाती है। हस्तशिल्प को केन्द्रीय स्थान प्रदान करने का कारण गाँधीजी के अग्रांकित शब्दों में विदित हो जाता है- “साक्षरता स्वयं शिक्षा नहीं है अतः मैं बच्चे की शिक्षा उसे एक उपयोगी हस्तशिल्प सिखाकर और जिस समय से वह अपनी शिक्षा आरम्भ करता है, उसी समय से उत्पादन करने के योग्य बनाकर आरम्भ करना चाहता हूँ।

7. शारीरिक श्रम- बुनियादी शिक्षा में हस्तशिल्प के माध्यम से शारीरिक श्रम को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। इससे अग्रांकित चार लाभ होते हैं-

(1) इससे बालकों की शिक्षा का व्यय निकल आता है।

(2) इससे उनको किसी व्यवसाय का प्रशिक्षण प्राप्त हो जाता है,

(3) इससे उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न होता है और उनमें शारीरिक श्रम के प्रति घृणा नहीं रह जाती है, और

(4) गाँधीजी के शब्दों में- “बालक के शरीर के अंगों का विवेकपूर्ण प्रयोग- उसके मस्तिष्क को विकसित करने की सर्वोत्तम और शीघ्रतम् विधि है।”

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment