वाटसन के व्यवहारवाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
व्यवहारवाद का प्रारम्भ जे० बी० वाटसन के प्रयासों के फलस्वरूप हुआ। इस सम्प्रदाय का प्रारम्भ मुख्यतः संरचनावाद और प्रकार्यवाद के विरोध के फलस्वरूप हुआ।
व्यवहारवाद में अध्ययन पद्धति के रूप में अंतदर्शन विधि का परित्याग किया गया है। इसके अन्तर्गत प्रयोगात्मक विधि में मनोविज्ञान की समस्याओं का अध्ययन करने पर बल दिया गया है। मनोविज्ञान को व्यवहारवाद की सबसे बड़ी देन यह है कि मनोविज्ञान की विषय सामग्री में वस्तुनिष्ठता का गुण आया है। इस प्रकार से व्यवहावादियों ने मनोविज्ञान की विभिन्न समस्याओं के अध्ययन के लिए प्रयोगात्मक विधि को उपयुक्त बनाया है। व्यवहारवाद का अगला महत्वपूर्ण योगदान यह है कि इस सम्प्रदाय के प्रयत्नों के फलस्वरूप मनोविज्ञान के क्षेत्र से आत्मा और चेतना जैसे सम्प्रत्यों से सम्बन्धित, अध्ययन को हटा दिया गया। अतः व्यवहारवाद के अनुयायियों ने शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर अधिक महत्व दिया जिसके फलस्वरूप मनोविज्ञान, जीव विज्ञान और शरीर विज्ञान की विषय सामग्री का एक सम्मिश्रण तैयार हो गया जिसने मनोविज्ञान को एक वस्तुनिष्ठ और वैज्ञानिक आधार प्रदान किया।
इस उपचार पद्धति का मुख्य आधार यह है कि व्यक्ति के असामान्य व्यवहार का मुख्य कारण कुसमायोजन से सम्बन्धित होता है। इसलिए यदि व्यक्ति के असामान्य व्यवहार के कुसमायोजन के मुख्य कारणों का निवारण कर दिया जाये तो व्यक्ति का व्यवहार समायोजित होकर सामान्यता की तरफ अग्रसर होने लगता है। व्यवहार चिकित्सा पद्धति के अनुसार कुसमायोजित व्यवहार के दो मुख्य कारण होते हैं-
- दोषपूर्ण अनुबन्धन प्रतिक्रियाएँ और
- अधिशेष अनुबन्धन प्रतिक्रियाएँ।
व्यवहार चिकित्सा पद्धति की प्रमुख तकनीकें निम्न प्रकार से प्रयुक्त की जाती हैं-
1. सरल विलोप- व्यवहारवाद की यह सामान्य अवधारणा है कि यदि अधिगमित व्यवहार को पुनर्बलित न किया जाये तो जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जाता है उसके वे व्यवहार दुर्बल होते जाते हैं। इस प्रकार से पुर्बलन को हटाकर कुसमायोजित व्यवहार को न्यून किया जा सकता है।
2. व्यवस्थित सुग्राहीकरण- व्यवस्थित सुग्राहीकरण से तात्पर्य व्यवहार प्रतिमानों के • धनात्मक पुनर्बलन से होता है। इस पद्धति के अन्तर्गत चिकित्सक सर्वप्रथम रोगी को एक स्थान पर बैठाकर शान्त और शिथिल करता है। इसके पश्चात् वह उन परिस्थितियों को सूचीबद्ध करता है जो रोगी में चिन्ता उत्पन्न करने वाली होती है। यह सूची परिस्थितियों की प्रबलता के आधार पर तैयार की जाती है अर्थात् सर्वप्रथम निम्नकोटि की तथा उसके पश्चात क्रमशः उच्च स्तर की ओर जाते हुए अन्त में उच्च स्तर की चिन्ता उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों को रखा जाता है। इसके पश्चात चिकित्सक उन परिस्थितियों के आधार पर रोगी की चिकित्सा प्रारम्भ करता है।
3. इम्पलोसिव उपचार पद्धति- इसके अन्तर्गत प्रारम्भ के कुछ सूत्रों में इन उद्दीपकों की प्रकृति को निश्चित किया जाता है जो चिन्ता उत्पन्न करने वाले होते हैं तत्पश्चात् इन उद्दीपकों का अनुबन्धित परिहार किया जाता है।
4. विमुखी उपचार पद्धति- यह उपचार पद्धति प्रमुख रूप से सिगरेट पीने की आदत, जुए की लत, मद्यपान की लत, यौन विचलन और अधिक खाने की लत को छुड़ाने के लिए उपयोग में लायी जाती है। इस उपचार पद्धति द्वारा चिकित्सक रोगी के अवांछनीय व्यवहारों को तो हटा सकता है परन्तु वांछित व्यवहारों को उत्पन्न करने में असमर्थ होता है।
5. धनात्मक पुनर्बलन का क्रम-बद्ध उपयोग- जैसा कि उपरोक्त विवेचन में बताया गया है कि इसके द्वारा रोगी के अवांछित व्यवहारों को तो छुड़ाया जा सकता है किन्तु उपरोक्त पद्धति में वांछित व्यवहार को उत्पन्न नहीं किया जा सकता है। परन्तु धनात्मक पुनर्बलन पद्धति के अन्तर्गत वांछित व्यवहार को अपनाने के लिए पुरस्कार का सहारा लिया जाता है। उदाहरणस्वरूप एक बच्चे की आंखें खराब थीं इसलिए उसको चश्मा पहनना आवश्यक था। किन्तु वह बच्चा चश्मा नहीं लगाता था। इसलिए उसको चश्मा देकर उसके साथ उसकी मनपसन्द मिठाई भी दी जाती थी। इसके पश्चात् बालक को चश्मा साथ रखने पर मिठाई दी जाने लगी तथा कुछ दिनों बाद चश्मा लगाकर दिखने पर मिठाई दी जाने लगी। ऐसा करते-करते बालक ने चश्मा लगाना प्रारम्भ कर दिया।
मूल्यांकन- अन्य उपचार पद्धतियों की भाँति ही इस उपचार में भी जहाँ अनेक विशेषताएँ हैं, वहीं अनके कमियाँ भी हैं-
- इसके अन्तर्गत उपचार उपागम सूक्ष्म है।
- इसके अन्तर्गत समय की बचत होती है।
- यह अधिगम के सिद्धान्तों पर आधारित है।
इसके अतिरिक्त इस उपचार पद्धति का उपयोग मात्र कुसमायोजित व्यवहार के उपचार हेतु ही किया जा सकता है। कुल मिलाकर वाटसन द्वारा प्रतिपादित किये गये व्यवहारवाद के सिद्धान्त को सम्पूर्ण विश्व के मनोवैज्ञानिक जगत ने मान्यता प्रदान की है और यह मनोवैज्ञानिक शिक्षा की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सक्षम है।
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