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विद्यालय भवन [THE SCHOOL BUILDING]
‘विद्यालय भवन’ एक व्यापक शब्द है, जिसके अन्तर्गत स्थिति, इमारत, खेल के मैदान, फर्नीचर, यन्त्र, पुस्तकालय, छात्रावास और अन्य साज-सज्जा आती हैं। जब तक विद्यालय की स्थिति का चुनाव उपयुक्त ढंग से नहीं किया जायेगा तब तक विद्यालय की इमारत को उपयुक्त ढंग से नियोजित एवं निर्मित करके भी उससे पूर्ण लाभ नहीं उठाया जा सकता है, क्योंकि विद्यालय की स्थिति का प्रभाव विद्यालय की पूर्ण शैक्षिक व्यवस्था एवं छात्रों के शारीरिक एवं मानसिक विकास पर पड़ता है। विद्यालय के लिए उपयुक्त भूमि, उचित पास-पड़ौस, शुद्ध जल, वायु एवं प्रकाश, आदि का होना अनिवार्य है। अच्छी स्थिति के साथ-साथ भवन का भी उपयुक्त ढंग से निर्माण हो तो शैक्षिक वातावरण अधिक उत्तम होगा। आज की शैक्षिक आवश्यकताएँ प्राचीन युग से बहुत अधिक भिन्न हैं। पहले तो गुरुजन पेड़ के नीचे अपने थोड़े-से शिष्यों को चटाई पर बैठाकर मौखिक रूप से विद्या प्रदान करते थे। आज के जटिल युग में विज्ञान एवं मनोविज्ञान की उन्नति के साथ सीखने व सिखाने की विधियाँ उतनी सरल नहीं हैं। अब विद्यालय में प्रत्येक विषय एवं क्रिया के लिए विशेष प्रकार के उपकरण व साज-सज्जा की आवश्यकता है। अतः विद्यालय अपने उद्देश्यों की प्राप्ति एवं कर्तव्यों का पूर्ण निर्वाह तभी कर सकता है, जब समस्त विद्यालय भवन अर्थात् उसकी स्थिति, इमारत एवं साज-सज्जा, आदि सभी उपयुक्त हों।
विद्यालय का भौतिक वातावरण (PHYSICAL ENVIRONMENT OF SCHOOL)
हमारे देश में हजारों विद्यालय सुविधाजनक तथा सौन्दर्यपूर्ण वातावरण में स्थित होने के बजाय ऐसे स्थानों में स्थापित हैं, जहाँ उनका पास-पड़ौस अत्यन्त दूषित एवं अस्वस्थ पाया जाता है। बहुत से विद्यालय भवन ऐसे स्थानों पर बने हुए हैं, जहाँ का वातावरण न तो शोरगुल से मुक्त है और न ही कूड़े के ढेरों, सीलन व कीचड़, आदि से। इस गन्दगी के कारण वहाँ मक्खी, मच्छरों तथा बीमारियों का प्रकोप निरन्तर बना रहता है। देश के लाखों बालक तंग, अँधेरी गलियों में स्थित अस्वच्छ एवं अस्वस्थ विद्यालय भवनों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। बहुत-से विद्यालय टूटे-फूटे भवनों में स्थित होने के कारण असुरक्षित हैं। कई विद्यालय ऐसी सड़कों के किनारे पर हैं, जहाँ पर मोटर गाड़ियों, बसों, घोड़ा-गाड़ियों, साइकिलों आदि का बराबर आना जाना लगा रहता है और मनुष्यों के जमघट लगे रहते हैं। विद्यालय की स्थापना के लिए ऐसे स्थान कदापि उपयुक्त नहीं हैं। बालकों की सुरक्षा के विचार से विद्यालय, नदी, झील, तालाब, आदि के निकट भी न हों तो अच्छा है। लाखों छात्र किराये के ऐसे भवनों में शिक्षा प्राप्त करते हैं जो शैक्षिक दृष्टिकोण से बिल्कुल उपयुक्त नहीं हैं। इसमें कक्षा-कक्ष अत्यधिक छोटे हैं तथा उनमें प्राकृतिक वायु-प्रसरण एवं प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं है, जिससे छात्रों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इन सब बातों के अतिरिक्त बहुत-से विद्यालयों में आज की शिक्षा की परिवर्तित एवं बढ़ी हुई आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए उचित ढंग से विस्तार करना भी सम्भव नहीं है।
विद्यालय केवल वह स्थान नहीं है जहाँ परम्परागत विषयों का शिक्षण परम्परागत ढंग से किया जाता है वरन् यह बालक का घर जैसा होना चाहिए जहाँ वह अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्षों को सुविधापूर्वक व्यतीत कर सके तथा अपने को भविष्य में सफल व सुखी जीवन के लिए तैयार कर सके। विद्यालय में प्रयोगशालाओं का महत्त्व है। इनके द्वारा बालक क्रिया करके व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करते हैं। आज के मनोवैज्ञानिक एवं तकनीकी युग में ऐसे ज्ञान की अत्यधिक माँग है। अतएव विद्यालयों में प्रयोगशालाओं की व्यवस्था होने से ही छात्र शिक्षा से लाभ उठा सकते हैं। शारीरिक एवं सांस्कृतिक उन्नति का महत्त्व मानसिक या बौद्धिक विकास से कम नहीं है। इसलिए खेलों के मैदान और सांस्कृतिक एवं सामाजिक क्रियाओं के लिए हॉल की भी व्यवस्था विद्यालय-योजना के अन्तर्गत करना अनिवार्य है।
विद्यालय भवन के नियोजन एवं निर्माण में ध्यान रखने योग्य बातें (PRECAUTIONS FOR THE PLANNING AND CONSTRUCTION OF A SCHOOL BUILDING)
किसी विद्वान् ने ठीक ही कहा है कि विद्यालय भवन के नियोजन एवं निर्माण में शिक्षाशास्त्री, समाजशास्त्री, स्थापत्य कलाकार, इंजीनियर, स्वास्थ्य विज्ञान विशेषज्ञ एवं अर्थशास्त्री की मिश्रित प्रतिभाओं की आवश्यकता है। शिक्षाशास्त्री व समाजशास्त्री समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शैक्षिक उद्देश्यों का ज्ञान प्रदान करते हैं, जिनकी पूर्ति के लिए विद्यालय भवन का निर्माण किया जाना है। स्थापत्य कलाकार विद्यालय भवन का प्लान (Plan) प्रस्तुत करने में सहायता देता है। इंजीनियर उपर्युक्त व्यक्तियों के विचारों को व्यावहारिक रूप देने में सहायता करता है। स्वास्थ्य विज्ञान विशेषज्ञ स्वास्थ्य रक्षा के दृष्टिकोण से विद्यालय भवन के निर्माण में अपना योगदान करता है। अर्थशास्त्री यह देखता है कि उपलब्ध धनराशि से किस प्रकार अधिकाधिक उपयुक्तता प्राप्त की जा सकती है। यदि इसके नियोजन एवं निर्माण में ये सब लोग मिलकर कार्य नहीं करेंगे तो शैक्षिक आवश्यकताओं एवं उद्देश्यों की पूर्ति करना कठिन होगा तथा धन एवं श्रम का भी अपव्यय हो सकता है। इनके ज्ञान के आधार पर उस क्षेत्र में शैक्षिक व्यवस्था की जानी चाहिए।
एक अच्छे शिक्षालय भवन की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF A GOOD SCHOOL BUILDING)
साधारण तथा सुन्दर ढंग से बना हुआ शिक्षालय का भवन छात्रों के स्वास्थ्य, काम करने की शक्ति तथा चरित्र पर अपूर्व प्रभाव डालता है। भद्दा अथवा ठीक प्रकार का न बना हुआ भवन छात्रों के मन पर बुरा प्रभाव डालता है। एक अच्छे भवन की आवश्यकताएँ निम्नलिखित भागों में बाँटी जा सकती हैं-
1. विद्यालय के लिए पर्याप्त स्थान का होना।
2. स्थान का स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण में होना।
3. वैज्ञानिक ढंग से बनावट।
4. सामर्थ्य तथा उपयोगिता।
5. कम लागत तथा लचीलापन।
6. विद्यालय क्षेत्र की सुरक्षा
7. विद्यालय भवन को दुर्घटनाओं से बचाना।
8. विद्यालय भवन की सजावट।
1. विद्यालय भवन के लिए कितना स्थान होना चाहिए ?
विद्यालय के लिए कितना स्थान होना चाहिए, यह निम्नलिखित बातों पर निर्भर है-
1. विद्यालय में छात्रों की संख्या- प्रत्येक छात्र को 14 वर्ग फुट भूमि मिलनी चाहिए। इसलिए जिन शिक्षालयों में अधिक संख्या में छात्र पढ़ते हैं उनके लिए अधिक स्थान चाहिए।
2. विद्यालय किस प्रकार का है ?- Residential विद्यालय के लिए अधिक स्थान चाहिए क्योंकि वहाँ पर छात्रावास भी होगा और अध्यापक वर्ग तथा अन्य कर्मचारियों के लिए क्वार्टर भी होंगे।
3. कौन-से विषय पढ़ाये जाते हैं ?– जो शिक्षालय कृषि की शिक्षा देते हैं उनके लिए अधिक भूमि चाहिए। इसी प्रकार बहुमुखी स्कूलों के लिए भी अधिक भूमि चाहिए।
4. पाठ्यान्तर क्रियाएँ- पब्लिक स्कूलों में अनेक प्रकार की कई पाठ्यान्तर क्रियाओं की सुविधा होती है। इसलिए ऐसे स्कूल अधिक स्थान ही घेरेंगे।
खाली भूमि को लेने का कानून- बड़े-बड़े नगरों में विद्यालयों के लिए अच्छा स्थान मिलना बहुत कठिन हो गया है। सेकेण्डरी एजूकेशन कमीशन ने इस बात पर विशेष बल दिया है कि राज्य तथा केन्द्रीय सरकारें शीघ्र ही खाली स्थानों की देखभाल करें, उनसे सम्बन्धित आँकड़े इकट्ठे करें और ऐसे कानून बनाएँ जिनके द्वारा खाली स्थानों पर औद्योगिक तथा व्यापारिक केन्द्र अथवा मकान सरकार की अनुमति से ही बनें और यदि सरकार चाहे तो छात्रों की शिक्षा के लिए खाली स्थानों पर शिक्षालय खोल दे। ऐसे कानून बनाने से ही बड़े-बड़े नगरों में शिक्षालयों की समस्या सुलझेगी।
II. स्वास्थ्यवर्धक स्थान
निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
1. शान्त व मुक्त वातावरण हो।
2. विद्यालय भवन ऐसे स्थान पर हो जहाँ छात्रों को शुद्ध वायु तथा प्रकाश मिल सके।
3. यथासम्भव किसी सड़क के पास, किन्तु हटकर होना चाहिए।
4. ऐसे स्थान पर हो जिसके समीप खेल का मैदान उपलब्ध हो सके।
5. विद्यालय का स्थान समतल हो।
6. ऐसे स्थान पर हो जहाँ पर सुगमता से आने-जाने के साधन उपलब्ध हो सकें।
7. विद्यालय भवन की भूमि विकसित होनी चाहिए और उसे नालियों, पानी के निकास का प्रबन्ध, बिजली की व्यवस्था तथा अन्य जनसामान्य सेवाओं की सुविधा प्राप्त हो।
8. ऐसा स्थान पर हो जहाँ पर बाग लगाया जा सके।
विद्यालय भवन का स्थान कहाँ न हो ?
1. स्कूल भवन सघन आबादी वाले क्षेत्र से दूर होना चाहिए क्योंकि वहाँ अधिक शोर रहता है।
2. स्कूल औद्योगिक क्षेत्र से बाहर होना चाहिए क्योंकि ऐसे क्षेत्र में गन्दगी ज्यादा रहती है।
3. स्कूल का अनाज मण्डी, बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन, श्मशान-भूमि, अदालत अथवा किसी कार्यालय के पास होना हानिकारक है।
4. स्कूल के परिवेश में लोगों की भीड़, गन्दी नालियों का पानी, गन्दे तालाब, कीचड़ से भरा पड़ोस तथा पशु क्षेत्र जैसी अस्वास्थ्यप्रद बातें नहीं होनी चाहिए।
5. स्कूल क्षेत्र में बाढ़ अथवा किसी नहर के टूट जाने का भय होना चाहिए।
6. स्कूल का स्थान ऊँचा-नीचा नहीं होना चाहिए।
7. स्कूल के आस-पास जल का इकट्ठा होना (Waterlogging) अच्छा वातावरण उत्पन्न करने में बाधक होगा।
8. अव-भूमि (Sub-soil) लवणमय न हो ताकि खेल के मैदान में घास अच्छी प्रकार लगाई जा सके।
III. वैज्ञानिक ढंग से बनावट
School Buildings Committee ने इस सम्बन्ध में निम्न लिखे हुए सुझाव दिये हैं-
1. सौन्दर्य पर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अन्तर्गत स्कूल की बनावट, आकार तथा रंग, आदि बातों का समावेश है। ऐसा होने से छात्रों के सम्मुख सदा अच्छे दृश्य रहेंगे।
2. दोहरे भवन में आने-जाने की सुविधा हो। बरामदा चौड़ा होना चाहिए। सीढ़ियाँ इस प्रकार से बनाई जाएँ कि अधिक भीड़ न हो जबकि छात्र एक क्लास से दूसरी क्लास में जाएँ।
3. मूत्रालय और शौचालय ऐसे स्थान पर होने चाहिए जहाँ स्कूल के सारे भागों से सुगमतापूर्वक जाया जा सके और वे इस प्रकार से बनाये जाएँ कि भद्दा दृश्य उपस्थित न करें।
4. स्थान इतना विस्तृत हो कि भवन के बढ़ने के लिए गुंजायश हो ।
5. बरामदा अवश्य होना चाहिए।
6. छोटे बच्चों के लिए हमेशा नीचे के कमरे होने चाहिए।
7. जहाँ अधिक भूमि उपलब्ध हो वहाँ पर भवन एक ही मंजिल का बनाया जाए। एक मंजिल का भवन उत्तम है।
8. कक्षा के कमरों तथा बरामदों, आदि की बनावट स्थानीय बातों पर निर्भर है।
9. भारत के अधिकांश भागों में भवन का मुख दक्षिण की ओर होना चाहिए।
10. कक्षा में केवल एक ही द्वार होना चाहिए और कमरे एक-दूसरे में नहीं खुलने चाहिए।
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