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विद्यालय में पुस्तकालय की आवश्यकता एवं महत्त्व (NEED AND IMPORTANCE OF SCHOOL LIBRARY)
विद्यालय में पुस्तकालय का बहुत उपयोगी और महत्त्वपूर्ण स्थान है। पुस्तकालय का भण्डार है और सीखने का कोष है। माध्यमिक शिक्षा आयोग, 1952-53 ने एक सुसंगठित पुस्तकालय के महत्त्व पर इस प्रकार प्रकाश डाला है, “विज्ञान सम्बन्धी विषयों का पढ़ाने के लिए जो स्थान प्रयोगशाला का है, तकनीकी विषयों के लिए जो स्थान कार्यशाला का है, पुनर्गठित स्कूल में बौद्धिक एवं साहित्यिक ज्ञान-अभिवृद्धि के लिए वही स्थान पुस्तकालय का है क्योंकि यही किसी भी संस्था का मुख्य स्थान अथवा केन्द्र तथा धुरी माना जाता है। व्यक्तिगत शैक्षिक कार्य, सामूहिक प्रोजेक्ट या प्रयोजन, अनेकानेक व्यक्तिगत रुचियों तथा विविध सहायक कार्यक्रमों की सफलता के लिए समृद्ध तथा सुव्यवस्थित पुस्तकालय की नितान्त आवश्यकता है।”
पुस्तकालय विज्ञान के महान् लेखक एस. आर. रंगनाथन का लिखना है, “जिस विद्यालय में छात्रों को परिवर्तनशील संसार के लिए शिक्षा दी जा रही है, उसके लिए पुस्तकालय एक सजीव वर्कशॉप के रूप में होता है।”
मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन, ब्रिटेन के पैम्पलेट The School Library में इस विषय पर एक बहुत ही स्पष्ट तथा लाभदायक वक्तव्य प्रस्तुत किया गया है, “अध्यापक के कार्य तथा प्रभाव के अतिरिक्त भी पुस्तकालय, शिक्षा का एक मुख्य साधन है। के पास जो शिक्षा के अन्यान्य साधन हैं, उनमें पुस्तकालय असंदिग्ध रूप से मुख्य है और यदि किसी बच्चे में पुस्तकों के अध्ययन के प्रति रुचि तथा प्यार उत्पन्न कर दिया जाये तो बच्चे के लिए ऐसे असंख्य मार्ग खुल जाते हैं जिन पर चलकर वह मानवीय ज्ञान तथा अनुभवों की एक समृद्ध निधि प्राप्त कर सकता है। ऐसे वातावरण में जहाँ पुस्तकों को उचित स्थान दिया जाता है, वहाँ बच्चे अन्य बच्चों से निश्चय ही अधिक ज्ञानवान होंगे, क्योंकि बच्चों को आरम्भ से ही ऐसे वातावरण की आवश्यकता रहती है जो कि आकर्षक तथा मनोरंजन पुस्तकमय हो और शिक्षालयों का यह सर्वप्रथम कर्तव्य है कि वे बच्चे की इस आवश्यकता को पूर्ण करें तथा उन्हें ऐसे वातावरण जुटाएँ।
बच्चा जब विद्यालय में प्रवेश करता है तो उसे उस समय पुस्तकों का ऐसा संग्रह चाहिए जिसकी ओर वह निरन्तर रूप से आकर्षित होता रहे पुस्तकें बच्चे की रुचि तथा आयु के अनुकूल हों, जिन्हें देख व पढ़कर वह प्रसन्न हो सके तथा अपने आस-पास के वातावरण से परिचित हो सके। वह ज्यों-ज्यों बड़ा होता जायेगा, त्यों-त्यों पुस्तकें उसके ज्ञान के क्षेत्र को विकसित तो करेंगी ही; पर साथ ही उसकी रुचि का परिष्कार करने में भी बहुत अधिक सहायक होंगी पुस्तकें बच्चे का ऐसी पथ-प्रदर्शक हैं जो कि उसे संसार के प्रति उचित दृष्टिकोण रखना सिखाती हैं। पुस्तकें बच्चे और संसार के मध्य का ऐसा माध्यम हैं, जो कि बच्चे को संसार का ठीक रूप से ज्ञान करवाती हैं। पुस्तकें एक ऐसा शिक्षक हैं, जिसकी बच्चे को निरन्तर आवश्यकता है और जो उसके निरन्तर पास रहती हैं।
पुस्तकालय कक्ष एवं साज-सज्जा (LIBRARY AND ITS EQUIPMENT)
एक उत्तम पुस्तकालय का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व यह है कि उसके पास आवश्यकतानुसार पर्याप्त स्थान हो। जिस समय विद्यालय भवन का निर्माण किया जा रहा हो, उस समय पुस्तकालय के लिए सबसे उपयुक्त स्थान प्राप्त किया जा सकता है। यदि उस समय पुस्तकालय का ध्यान न किया गया हो, तो इसको ऐसे कक्षा कक्ष में व्यवस्थित किया जाये जहाँ उसके अधिक विस्तार के लिए स्थान प्राप्त होने में कठिनाई न हो। पुस्तकालय जहाँ तक सम्भव हो सके, केन्द्र में स्थित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त इसके चारों ओर का वातावरण शान्त होना चाहिए अर्थात पुस्तकालय ऐसी जगह स्थापित किया जाये जहाँ कम-से-कम शोरगुल हो एवं अन्य बाधाएँ उपस्थित न हो। पुस्तकालय कक्ष साथ ही एक अध्ययन-कक्ष (Reading Room) हो जिसका एक दरवाजा पुस्तकालय कक्ष में जाने के लिए हो। इसके अतिरिक्त पुस्तकालयाध्यक्ष का पृथक कमरा भी होना चाहिए।
पुस्तकालय कक्ष तथा सहायक कक्षों में प्राकृतिक रोशनी आने की पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त कृत्रिम प्रकाश की भी समुचित रूप से व्यवस्था की जाये। इन कक्षों में दीवारों की अल्मारियों की व्यवस्था पर्याप्त मात्रा में की जानी चाहिए। इन कक्षों के फर्श ध्वनिरोधक (Sound proof) हों तो अच्छा है। इन बातों के अतिरिक्त पुस्तकालय को विद्यालय में सबसे आकर्षक बनाया जाना चाहिए। इसके लिए पुस्तकालय को ऐसे ढंग से सजाया जाये कि इसकी सुन्दरता व स्वच्छता बालकों को आमन्त्रित करे। इसके सजाने में बालकों का सहयोग लेना चाहिए। यदि उनके सहयोग को प्राप्त किया गया तो उनमें स्वतः ही यह भावना उत्पन्न हो सकेगी कि यह हमारा पुस्तकालय है।
एक उत्तम पुस्तकालय में पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं, आदि के अतिरिक्त निम्नलिखित साज-सज्जा का होना आवश्यक है-
(1) पढ़ने के लिए मेजें (Reading Tables)-इनका आकार 3′ x 5′ होना चाहिए। इनकी ऊँचाई का निर्धारण उत बालकों के आकार के अनुसार होना चाहिए जो कि इनका प्रयोग करेंगे।
(2) कुर्सियाँ- इनकी ऊँचाई मेजों की ऊँचाई के अनुपात में हो जहाँ तक सम्भव हो सके, ये हल्की हों।
(3) मैगजीन (Magazine), समाचार पत्र (Newspaper) और एटलस स्टैण्ड (Atlas Stand) |
(4) पुस्तकालयाध्यक्ष की मेज।
(5) कार्ड तालिका बक्स (Card Catalogue Case)।
(6) काउण्टर (Counter)।
(7) घड़ी।
(8) सूचना पट (Bulletin Board) (9) पुस्तकों के लिए अल्मारियाँ।
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