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समुदाय का अर्थ | विद्यालय व समुदाय का सम्बन्ध | School and Community in Hindi

विद्यालय व समुदाय
विद्यालय व समुदाय

विद्यालय व समुदाय [ SCHOOL AND COMMUNITY]

समुदाय का अर्थ (MEANING OF COMMUNITY)

साधारण बोलचाल की भाषा में ‘समुदाय’ व्यक्तियों का एक ऐसा साधन है जो मिलकर सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति तथा सामान्य जीवन व्यतीत करने के लिए एक निश्चित भू-भाग में रहते हैं। अतः समुदाय के निर्माण के लिए सामान्य हित निश्चित भू-भाग, सामान्य जीवन स्तर तथा एकता की भावना का होना अनिवार्य है। वस्तुतः ‘समुदाय’ अति विस्तृत और व्यापक शब्द है। इसमें विभिन्न प्रकार के सामाजिक समूहों का समावेश होता है: उदाहरणार्थ- परिवार, धार्मिक संघ, जाति, पड़ोस, नगर, राज्य एवं राष्ट्र-समुदाय के विभिन्न रूप हैं। सभ्यता एवं विज्ञान की प्रगति ने विश्व के लोगों को एक-दूसरे के अधिक निकट ला दिया है। इस कारण आज समुदाय की धारणा विस्तृत हो गई है। आज हम विश्व समुदाय की धारणा को व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए प्रयत्नशील हैं। अत: समुदाय में एक वर्ग मील से कम का क्षेत्र भी हो सकता है इसका घेरा विश्व भी हो सकता है। यह क्षेत्र या घेरा इस बात पर निर्भर करता है कि इसके सदस्यों में आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक समानताएँ हों। समुदाय के अर्थ को स्पष्ट करते हुए ब्राउनैल ने लिखा है—”समुदाय से मेरा अभिप्राय उस छोटे समूह से है, जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यक्ति युवक और वृद्ध पुरुष और स्त्री–विभिन्न कुशलताओं और योग्यताओं से युक्त, सजातीय पड़ोसियों के समान एक साथ मिलकर रहते हैं। यह एक प्राथमिक समूह है जिसमें जीवन के अनेक मुख्य कार्य समूह में ही एक-दूसरे के सहयोग से किए जाते हैं।”

विद्यालय व समुदाय का सम्बन्ध (RELATIONSHIP BETWEEN SCHOOL AND COMMUNITY)

विद्यालय तथा समुदाय के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। ये दोनों अपनी-अपनी उन्नति एवं स्थायित्व के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं। विद्यालय एक सामाजिक संस्था है। समाज स्वयं को जीवित रखने के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करता है जिनके द्वारा समाज के विचारों, मान्यताओं, आदर्शों, क्रिया कलापों, मानदण्डों तथा परम्पराओं को आने वाली सन्तति को प्रदान किया जा सके। विद्यालय, समुदाय के जीवन एवं उसकी प्रगति पर बहुत प्रभाव डालता है। विद्यालय अपने विचारों एवं कार्यों द्वारा समुदाय का पथ-प्रदर्शन करके उसे प्रगति की ओर ले जाता है। समुदाय विद्यालय को जीवन की वास्तविक परिस्थितियों का प्राथमिक ज्ञान प्रदान करता है। इस प्रकार दोनों एक-दूसरे को सहायता प्रदान करते रहते हैं। इन दोनों की घनिष्ठता को स्पष्ट करते हुए हुमायूँ कबीर ने लिखा है—”विद्यालय, समुदाय के जीवन का प्रतिबिम्ब है और उसे ऐसा होना ही चाहिए। अतः भारत में सार्वजनिक विद्यालयों को भारतीय जीवन के ढाँचे के अधिक निकट लाया जाना चाहिए।”

विद्यालय : सामुदायिक केन्द्र के रूप में (SCHOOL AS A COMMUNITY CENTRE)

वस्तुतः शिक्षा एक सामाजिक समस्या है और समाज विद्यालय को यह कार्य सौंपता है कि वह युवकों का प्रशिक्षण तथा उनका पालन-पोषण इस ढंग से करे कि समाज के जिस समुदाय से वे सम्बन्ध रखते हैं उनके जीवन में वे प्रभावी ढंग से भाग ले सकें। स्वतः ही यह प्रश्न उठता है कि विद्यालय को ही यह कार्य क्यों सौंपा जाता है। इसके उत्तर में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं-

(1) बालकों को सामाजिक परम्पराएँ उसी प्रकार उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं हैं, जैसे उन्हें अपने पिता की सम्पत्ति तथा जन्मजात क्षमताएँ मिल जाती हैं।

(2) बालकों को समाज की सांस्कृतिक विरासत जन्म के साथ नहीं मिलती वरन् उसे सीखना पड़ता है।

उपर्युक्त कारणों की वजह से उनको पुस्तकों, कार्य तथा सामाजिक सम्पर्कों से इस सामाजिक विरासत को सीखना पड़ता है। यदि बालकों को सामाजिक विरासत एवं सामाजिक निधि से अलग रखा गया तो उनके समस्त प्रयास निष्फल होंगे। साथ ही वे अन्धकार में भटकते रहेंगे। इस कारण मानव के संचित अनुभवों का ज्ञान प्रदान करने का कार्य विद्यालय को सौंपा गया।

विद्यालय अपने उक्त कर्तव्य का निर्वाह तभी कर सकता है जब उसका बाह्य समाज के जीवन से सजीव सम्बन्ध हो। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि विद्यालय के बाहर के जीवन के साथ स्कूल का सजीव सम्बन्ध होना आवश्यक है। साथ ही वह वर्तमान वास्तविकताओं से बालकों को अवगत कराये। परन्तु भारतीय विद्यालय जीवन से पूर्णत: पृथक् रहकर शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। आज भारतीय विद्यालय का जीवन की ठोस परिस्थितियों से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस कारण भारतीय विद्यालय सामुदायिक जीवन की प्रगति एवं सुधार के लिए कोई कार्य नहीं कर रहे हैं। यदि विद्यालय को अपने इस कार्य को पूर्ण करना है तो उसे वृहत् समुदाय में एक छोटा समुदाय बनना होगा। विद्यालय को एक छोटा समुदाय बनाने के लिए स्वयं को सामुदायिक जीवन के केन्द्र के रूप में कार्य करना पड़ेगा। विद्यालय को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाने के लिए निम्नांकित उपायों को काम में लाया जा सकता है-

(अ) समुदाय को विद्यालय के निकट लाना।

(ब) विद्यालय को समुदाय के निकट ले जाना।

(अ) समुदाय को विद्यालय के निकट लाना– समुदाय को विद्यालय के निकट निम्नलिखित उपायों को अपनाकर लाया जा सकता है—

(1) समुदाय के सदस्यों को आमन्त्रित करना- विद्यालय, सामुदायिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों को आमन्त्रित करे; उदाहरणार्थ-वह सामाजिक कार्यकर्ता, डॉक्टर, किसान, वकील, सम्पादक, सौदागर, व्यापारी, आदि को आमन्त्रित करे। ये लोग अपने व्यवसायों तथा अन्य सामाजिक तथ्यों पर प्रकाश डालकर छात्रों को सामुदायिक जीवन की ठोस परिस्थितियों के बारे में प्राथमिक ज्ञान प्रदान कर सकते हैं। किसान ग्रामीण जीवन की समस्याओं को समझाने में सहायता प्रदान कर सकता है। डॉक्टर अपने व्यवसाय से सम्बन्धित तथ्यों एवं उनकी समस्याओं से अवगत करा सकता है। इसी प्रकार विभिन्न पेशों से सम्बन्धित व्यक्ति अपने-अपने व्यवसायों के बारे में छात्रों को वास्तविक एवं प्रत्यक्ष ज्ञान से अवगत करा सकते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता छात्रों की नागरिक समस्याओं में रुचि जाग्रत कर सकते हैं। औद्योगिक क्षेत्रों से आने वाले व्यक्ति छात्रों को औद्योगिक समस्याओं का ज्ञान प्रदान कर सकते हैं। इस प्रकार सामुदायिक जीवन के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला जा सकता है।

(2) अभिभावक शिक्षक संघ- समुदाय को विद्यालय में लाने के लिए अभिभावक शिक्षक संघ महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। छात्रों के माता-पिता को शिक्षण कार्य में निम्नलिखित प्रकार से सम्बद्ध किया जा सकता है-

(i) जो प्रकरण या इकाई स्थानीय समुदाय से सम्बन्धित हों, उनके प्रतिपादन के समय अभिभावकों को विद्यालय में बुलाया जाय। अभिभावक छात्रों के समक्ष प्रकरण से सम्बन्धित स्थानीय तथ्यों को प्रस्तुत करें।

(ii) विद्यालय किसी प्रकरण के सम्बन्ध में अभिभावकों से प्रश्नावली (Questionnaire) के माध्यम से सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है।

(3) फिल्म-शो व प्रदर्शनियाँ- फिल्मों के माध्यम से समुदाय को विद्यालय के निकट लाया जा सकता है। विभिन्न कार्यों में संलग्न व्यक्तियों की फिल्मों के माध्यम से समुदाय के सम्बन्ध में उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। विद्यालय विभिन्न प्रदर्शनियों का आयोजन करके समुदाय को अपनी ओर आकृष्ट कर सकता है और उसका सहयोग प्राप्त कर सकता है।

(4) मेलों, उत्सवों, आदि का मनाना– विद्यालय में विभिन्न स्थानीय मेलों, उत्सवों एवं त्यौहारों को मनाकर समुदाय को विद्यालय के निकट लाया जा सकता है। इनमें भाग लेने तथा देखने के लिए स्थानीय समुदाय को आमन्त्रित किया जाय। इससे विद्यालय तथा समुदाय एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आ सकेंगे।

(5) सामुदायिक जीवन की विभिन्न क्रियाओं का संगठन– समुदाय को विद्यालय के निकट लाने के लिए विद्यालय में सामुदायिक जीवन की विभिन्न क्रियाओं का आयोजन किया जाय। इनके आयोजन से छात्र सामुदायिक जीवन के विभिन्न पक्षों के विषय में ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे। इनके आयोजन एवं संचालन में समुदाय के लोगों का सहयोग प्राप्त किया जाय। इस प्रकार समुदाय और विद्यालय के बीच निकट सम्पर्क स्थापित हो सकेगा।

(6) सामुदायिक समस्याओं का समाधान- विद्यालय जिस समुदाय में स्थित है उसे उस समुदाय की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए कार्य करना चाहिए। इन सामुदायिक समस्याओं के समाधान से छात्र सामुदायिक जीवन की ठोस परिस्थितियों का ज्ञान प्रदान करने में समर्थ हो सकेंगे, उदाहरणार्थ- यदि विद्यालय ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है तो उसे उसकी अमुक समस्याओं की ओर ध्यान देना चाहिए-सफाई की समस्या, स्वास्थ्य की समस्या, कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए ?, लघु उद्योगों की स्थिति को किस प्रकार सुधारा जा सकता है ?, बाजार की समस्या को किस प्रकार सुलझाया जा सकता है ?, आदि।

(7) प्रौढ़ शिक्षा का केन्द्र- विद्यालय जिस समुदाय में स्थित है, उसके अशिक्षित प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के लिए विद्यालय को प्रौढ़ शिक्षा का केन्द्र बनाया जाय। वह विद्यालय समय के उपरान्त प्रौढ़ों को शिक्षित करने की व्यवस्था करे। इस व्यवस्था से एक तो वे साक्षर हो जायेंगे दूसरे वे अपने अनुभवों से छात्रों को अवगत कराने में समर्थ होंगे। इस प्रकार से विद्यालय तथा समुदाय एक-दूसरे के निकट आ सकेंगे।

(ब) विद्यालय को समुदाय के निकट ले जाना- विद्यालय को समुदाय के निकट ले जाने के लिए निम्नांकित उपायों को काम में लाया जा सकता है-

(1) साक्षात्कार- प्रत्यक्ष ज्ञान की प्राप्ति के लिए साक्षात्कार आधार का कार्य करते हैं। छात्र समुदाय के विभिन्न लोगों से साक्षात्कार करके समुदाय के बारे में विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही समुदाय के बहुत से लोग उनको प्रकाशित साहित्य तथा श्रव्य-दृश्य सामग्री प्रदान करके महत्त्वपूर्ण -से सूचनाएँ प्रदान कर सकते हैं।

(2) सामाजिक सर्वेक्षण-क्लबों का संगठन-सैयदेन के अनुसार, विद्यालय को सामाजिक सर्वेक्षण-क्लबों का संगठन करना चाहिए, जो अपने आस-पास के सामुदायिक जीवन की कुछ तात्कालिक आवश्यकताओं तथा समस्याओं के बारे में छानबीन करने का काम करे; उदाहरणार्थ सड़कों की दशा, नगर या ग्राम में गन्दे पानी की नालियों की व्यवस्था, आस-पास के क्षेत्रों में स्वास्थ्य तथा सफाई से सम्बन्धित परिस्थितियाँ, रोग फैलने के स्रोत, उस क्षेत्र के मुख्य उद्योग एवं व्यवसाय, आदि। इस प्रकार की प्रत्येक छानबीन का कार्य ऐसे छात्रों की एक छोटी टोली को, जो उस समस्या में रुचि रखते हों, सौंपा जाय। इस दल को शिक्षक के निर्देशन में कार्य करना चाहिए। अन्त में दल को एक रिपोर्ट भी तैयार करनी चाहिए जिसमें उनके द्वारा दिये जाने वाले सुझाव भी शामिल हों। इस प्रतिवेदन को प्रधानाचार्य के माध्यम से स्थानीय स्वशासन की संस्था के प्रधान के पास भेजा जाय। इस प्रकार के सर्वेक्षण-क्लबों के छात्रों को अपने स्थानीय समुदाय का प्रत्यक्ष एवं मौलिक ज्ञान प्राप्त हो जायेगा।

(3) समाज सेवा संघों का निर्माण-सैयदेन के अनुसार, हमें यह जान लेना ही काफी नहीं है कि हमारे चारों ओर के वातावरण में क्या दोष है ? हमें दोषों को दूर करने में अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए। अतः विद्यालयों में समाज सेवा संघों का निर्माण करना चाहिए जिससे वे आवश्यकता पड़ने पर अपनी सेवाएँ समुदाय के लिए अर्पित कर सकें। ये संघ बाढ़ के समय, महामारी फैल जाने पर या किसी उत्सव या जुलूस के अवसर या इसी प्रकार के किसी अन्य अवसर पर, जहाँ अनुशासित ढंग से कार्य करने की आवश्यकता हो, आस-पास के लोगों की सहायता करेंगे। ये संघ पुस्तकें तथा छात्रवृत्तियाँ देकर गरीब और जरूरतमन्द छात्रों की सहायता करने का भी काम कर सकते हैं।

(4) समाज सेवा सप्ताहों का आयोजन- विद्यालय को समुदाय में जाने के लिए समाज सेवा सप्ताहों का आयोजन करना चाहिए; उदाहरणार्थ- श्रमदान सप्ताह, ग्रामोद्धार सप्ताह, स्वच्छता सप्ताह, साक्षरता सप्ताह, आदि। इन अवसरों पर शिक्षकों तथा छात्रों को शहर तथा ग्रामों में जाकर श्रमदान, ग्रामीणों की उन्नति, सफाई तथा निरक्षरों को साक्षर बनाने के लिए कार्य करना चाहिए।

(5) सामाजिक शिक्षा की व्यवस्था- विद्यालय को नगरों या ग्रामों में जाकर शिक्षाप्रद सांस्कृतिक कार्यक्रमों, नाटक, भजन, कीर्तन, आदि की व्यवस्था करनी चाहिए। इससे विद्यालय समुदाय को संस्कृति से अवगत हो सकेगा।

(6) क्षेत्र-पर्यटन- क्षेत्र पर्यटनों (Field Trips) के माध्यम से छात्रों को समुदाय में ले जाया जा सकता है। पर्यटन का उद्देश्य मन-बहलाव के लिए विद्यालय के बाहर जाना नहीं होना चाहिए, वरन् विषय का स्पष्टीकरण या समस्या का समाधान खोजना होना चाहिए। पर्यटनों के माध्यम से छात्र स्थानीय परिस्थितियों का प्रत्यक्ष रूप से निरीक्षण कर सकेंगे।

उपर्युक्त उपायों को काम में लाकर विद्यालय को सामुदायिक जीवन के केन्द्र में परिवर्तित किया जा सकता है जहाँ से ज्ञान की ज्योति प्रसारित होगी और सुधार का आन्दोलन फैलेगा। अन्त में हम एम. पी. मुफात के शब्दों में कह सकते हैं-“माध्यमिक विद्यालय एक प्रमुख सामाजिक साधन है और वह समुदाय के भविष्य के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण कार्य करेगा सुविज्ञ एवं क्रियाशील जनता विद्यालय तथा समुदाय दोनों की आवश्यकताओं एवं समस्याओं को हल करने में सहायता दे सकती है।”

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Anjali Yadav

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