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विपणन (मार्केटिंग) क्या है (Meaning of Marketing )
विपणन का व्यावसायिक क्रियाओं में प्रथम स्थान है। आधुनिक विपणन विचार के अनुसार विपणन क्रिया वस्तु विचार से प्रारम्भ होकर ग्राहक संतुष्ट होने पर समाप्त होती है अर्थात् विपणन के अन्तर्गत उत्पादन से पूर्व और ग्राहक संतुष्टि तक की जाने वाली सभी क्रियाएँ सम्मिलित) होती है। विलियम जे० स्टेण्टन के अनुसार, “विपणन का आशय उन अर्न्तसम्बन्धित व्यावसायिक क्रियाओं की सम्पूर्ण प्रणाली से है जिसका उद्देश्य वर्तमान एवं भावी ग्राहकों की आवश्यकता संतुष्टि करने वाली वस्तुओं और सेवाओं का नियोजन, कीमत निर्धारण, संवर्द्धन एवं वितरण करना है।” अतः स्पष्ट है कि विपणन के अन्तर्गत सर्वप्रथम ग्राहकों की आवश्यकता का अनुमान लगाया जाता है, उसके अनुसार वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करके ग्राहकों तक पहुँचाया जाता है और ग्राहकों की संतुष्टि के लिए हर सम्भव प्रयास किये जाते हैं।
विपणन (मार्केटिंग) के आधारभूत अंग (Basic Components of Marketing)
विपणन क्रिया के आधारभूत अंगों में निम्नांकित को सम्मिलित किया जा सकता है-
1.विपणन अनुसंधान (Marketing Research)
2. उत्पादन नियोजन (Product Planning)
3. ब्राण्डिंग (Branding)
4.कीमत निर्धारण (Pricing)
5. वितरण वाहिकाएँ (Distribution Channels )
6. विक्रयण (Selling)
7.पैकेजिंग (Packaging)
8. वाणिज्ययन (Merchandising)
9. माल को गोदाम में रखना (Warehousing)
10. विक्रयोपरान्त सेवाएँ देना (After Sales Servicing)
11. विक्रय संवर्द्धन (Sales Promotion) एवं
12. विज्ञापन (Advertising)
विपणन क्रिया के इन विभिन्न अंगों का विस्तृत वर्णन इस पुस्तक में विभिन्न अध्यायों एवं शीर्षकों के अन्तर्गत यथास्थान किया गया है। वास्तव में, पुस्तक की विषय-वस्तु विपणन के ये विभिन्न अंग हैं, अतः यहाँ इनका केवल नाम देना ही पर्याप्त है।
आधुनिक विपणन (मार्केटिंग) में विचारधारा का महत्व (Importance of Modern Concept of Marketing)
1. वस्तु विकास में सहायक (Helpful in Product Development)- आधुनिक विपणन विचार नयी-नयी वस्तुओं की खोज और उनकी विकास दर को बढ़ावा देता है क्योंकि इस विचारधारा के अनुसार व्यवसायी सदैव ग्राहकों की बदलती हुई इच्छाओं, रूचियों और फैशन आदि के प्रति जागरूक रहता है।
2. अधिक सामाजिक उत्तरदायित्व (More Social Responsibility)- आधुनिक विपणन विचार प्रबन्धों का ध्यान सामाजिक उत्तरदायित्वों की तरफ आकर्षित करता है। प्रबन्धक सदैव इस बात के लिए प्रयत्नशील रहते हैं कि ग्राहकों को उचित किस्म की वस्तुयें, पर्याप्त मात्रा में, उचित मूल्यों पर, उचित समय पर समुचित माध्यम से उपलब्ध हों। अतः इस विचारधारा के अनुसार वस्तु के विक्रय की अपेक्षा ग्राहक संतुष्टि को अधिक महत्व दिया जाता है और साथ ही विक्रयोपरान्त सेवायें भी प्रदान की जाती हैं।
3. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को लाभ (Gains to National Economy)- इस विचार को अपनाने से उत्पादन कार्य में मितव्ययिता और प्रभावशीलता आ जाती है क्योंकि सुग्रन्थित विपणन से आवश्यकतानुसार उत्पादन, क्षय में कमी, साधनों का अनुकूलतम विदोहन, नियोजन एवं निर्णय में प्रभावशीलता आ जाती है। इसके परिणामस्वरूप वस्तुओं की कीमतों में कमी होती है जिससे वस्तुओं का देश में उपभोग बढ़ने लगता है, समाज का जीवन स्तर ऊँचा होता है, रोजगार के सुअवसर बढ़ते हैं और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सुधार होने लगता है।
विपणन (मार्केटिंग) की प्रकृति एवं क्षेत्र (Nature and Scope of Marketing)
विपणन की प्रकृति एवं क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है –
1. उपभोक्ता अनुसंधान (Consumer Research) – वर्तमान समय में विपणन क्रियाओं की शुरूआत उपभोक्ता अनुसंधान से होती है, क्योंकि आज उपभोक्ता को विपणन का राजा माना जाता है। इसलिए विपणन क्रियाओं में सर्वप्रथम उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं, रूचियों, स्वभावों, आदतों, देय क्षमताओं एवं उनके रहने के स्थानों का पता लगाया जाता है जिससे कि वस्तु को उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप बनाकर और उनके स्थान पर पहुँचाकर उन्हें अधिकाधिक संतुष्टि दी जा सके और लाभ कमाया जा सके।
2. वस्तु नीतियों एवं मूल्य नीतियों का निर्धारण ( Determination of Product and Price Policies) – आधुनिक विपणन क्रियाओं में वस्तु से सम्बन्धित नीतियाँ वस्तु के वास्तविक उत्पादन से पूर्व ही निर्धारित कर ली जाती है। इसमें वस्तु का रंग, रूप, डिजाइन, आकार, ब्राण्ड, ट्रेडमार्क, लेबिल, पैकिंग आदि बातें आती हैं। इसके साथ-साथ वस्तु की मूल्य नीति भी पहले से निश्चित कर विक्रय मूल्य निर्धारित कर दिया जाता है। यह मूल्य वस्तु की मांग, बाजार की स्थिति, प्रतिस्पर्द्धा का स्तर, वस्तु की श्रेणी आदि बातों को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाता है।
3. वितरण माध्यम का निर्धारण (Determination of Distribution Channel) – वस्तु के निर्मित होने के बाद उसके वितरण की व्यवस्था की जाती है। वस्तु का वितरण विभिन्न माध्यमों के द्वारा किया जा सकता है। इन माध्यमों को निर्धारित करना भी विपणन की प्रकृति एवं क्षेत्र का एक अंग है। इसमें फुटकर विक्रेता, थोक विक्रेता, एकमात्र वितरण प्रतिनिधि, पाली विक्रेता आदि की नियुक्ति तथा पारिश्रमिक के बारे में निर्णय लिये जाते हैं।
4. विपणन वित्त प्रबन्धन (Marketing Finance)- उत्पादन केन्द्रों से उपभोक्ताओं के हाथों तक माल पहुँचाने के लिए आवश्यक वित्त की व्यवस्था करना ही विपणन वित्त प्रबन्धन कहलाता है। इसमें कब कितने वित्त की आवश्यकता होगी, वित्त की व्यवस्था किन-किन स्रोतों से की जा सकती है आदि बातों के सम्बन्ध में विचार करते हैं। विपणन संस्थाएँ सामान्यतः व्यापार साख और बैंक साख के जरिये वित्त प्रबन्धन का कार्य सम्पन्न करती है।
5. विपणन सूचनाओं की प्राप्ति एवं विश्लेषण (Analysis of Marketing Informations)- वर्तमान में विपणन संस्था की सफलता बाजारों, उत्पादों, मांग- पूर्ति, प्रतिस्पर्धी दशाओं, ग्राहकों के व्यवहार आदि से सम्बन्धित विविध पर्याप्त, परिशुद्ध एवं समयानुकूल सूचनाओं की प्राप्ति और उनके उपयोग पर निर्भर करती है। ये विपणन सूचनाएँ ही संस्था के विपणन क्रिया-कलापों, साधनों एवं लक्ष्यों में परिवर्तन का आधार बनती है। इन सूचनाओं की प्राप्ति समाचार पत्रों, व्यापार जर्नलों, पेशेवर पत्रिकाओं, सरकारी विभागों, बाजार अनुसंधानों, पूर्वानुमान तकनीकों आदि के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। मध्यस्थ श्रृंखलाएं भी विपणन सम्बन्धी सूचनाओं की उपलब्धि के प्रमुख स्रोत हैं। ये सब क्रियाएँ भी विपणन के क्षेत्र में शामिल की जाती है।
16. संवर्द्धन सम्बन्धी निर्णय (Promotion Decisions)- आधुनिक विपणन की परम आवश्यकता संवर्द्धन है, जिसके बिना वस्तु को पर्याप्त मात्रा में बेचना कठिन है। इसके लिए विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन के विभिन्न साधनों का सहारा लिया जाता है तथा उनके प्रभाव को मूल्यांकित किया जाता है। विक्रेताओं को प्रशिक्षण दिया जाता है और इन सबके बारे में उचित निर्णय लिये जाते हैं। ये सब कार्य भी विक्रय विपणन की प्रकृति एवं क्षेत्र में आते हैं।
7. विक्रय के बाद सेवा (After Sale Service)- वर्तमान समय में विपणन क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को संतुष्ट रखना है जिसके लिए उनको विक्रय के बाद सेवा प्रदान की जाती है जिसमें मुफ्त मरम्मत, वस्तु की मुफ्त सफाई या समय से पूर्व वस्तु के खराब होने पर उसको बदलने या मूल्य वापस करने की सुविधा शामिल है। ये सब क्रियाएं भी विपणन क्षेत्र के अन्तर्गत ही आती हैं।
इस प्रकार विपणन की प्रकृति एवं क्षेत्र के अन्तर्गत वस्तु के बनाने से पूर्व की क्रियाएँ, वस्तु के बनाने एवं बेचने के बाद की क्रियाएं शामिल की जाती हैं और उपभोक्ताओं को अच्छी किस्म की सस्ती वस्तु को उपलब्ध कराकर उनके रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाना भी विपणन की प्रकृति एवं क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।
विक्रयण का आशय (Meaning of Selling)
विक्रयण विपणन कार्यों में एक प्रमुख कार्य है। साधारण अर्थ में विक्रेता की वस्तु को धन में परिवर्तित करने की कला को विक्रयण कहते हैं। वास्तव में, विक्रयण का अभिप्राय किसी क्रेताओं की खोज करने, उनको वस्तु विशेष के सम्बन्ध में जानकारी देने और क्रेताओं को वस्तु वस्तु खरीदने के लिए तैयार करके उन्हें बेच देना है। सार रूप में, निर्मित वस्तुओं को उपभोक्ता तक को पहुँचाना ही विक्रयण है। विक्रयण के अन्तर्गत ग्राहकों का पता लगाना, विक्रय योजना बनाना, वितरण श्रृंखला का चयन करना, विज्ञापन, विक्रय की शर्तों का निर्धारण, ब्रान्डिंग, पैकिंग आदि कार्य सम्मिलित किये जाते हैं।
विपणन (मार्केटिंग) की मुख्य विशेषताएँ (Main Characteristics of Marketing)
विपणन की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
1. एक मानवीय क्रिया ( A Human Activity) – विपणन एक मानवीय क्रिया है। यह मनुष्यों द्वारा मनुष्यों के लिए ही सम्पन्न की जाने वाली क्रिया है। इस कार्य में यंत्रों का उपयोग अवश्य किया जाने लगा है, किन्तु इसकी सफलता मानवीय प्रयासों पर ही निर्भर करती है।
2. गतिशील एवं अविच्छिन्न प्रक्रिया (Dynamic and continuous process)- विपणन एक गतिशील एवं अविच्छिन्न प्रक्रिया है, जो इस गतिशील वातावरण में निरन्तर रूप से चलती रहती है। विपणन का सम्पूर्ण वातावरण गतिशील है। यह प्रक्रिया इसी गतिशील वातावरण में निरन्तर रूप में चलती रहती है।
3. विभिन्न कार्यों की प्रक्रिया (A process of various functions) – विपणन विभिन्न कार्यों की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में माल, सेवाओं तथा विचारों की संकल्पना, मूल्य निर्धारण, संवर्द्धन या प्रचार प्रसार तथा वितरण के कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। अधिक स्पष्ट रूप में, इस प्रक्रिया में विपणन अनुसंधान, उत्पाद विकास एवं नियोजन, मूल्य निर्धारण, विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन, वैयक्तिक विक्रय, माल के भण्डारण एवं वितरण आदि कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।
4. विनिमय विपणन का आधार ( Exchange is the basis of marketing) विनियम विपणन का आधार है। बिना विनिमय के विपणन का अस्तित्व ही संभव नहीं है। कोटलर के अनुसार, विपणन का अस्तित्व तब उत्पन्न होता है जबकि लोग विनिमय द्वारा अपनी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को संतुष्ट करने का निर्णय लेते है।
5. सामाजिक-आर्थिक क्रिया (Socio-economic activity)- विपणन केवल आर्थिक क्रिया नहीं है, बल्कि एक सामाजिक आर्थिक क्रिया है। इसका उद्देश्य लाभ कमाना है किन्तु समाज या सामाजिक प्राणियों की संतुष्टि के माध्यम से यह एक ऐसी किया है जो समाज के लोगों द्वारा समाज के लिए की जाती है, किन्तु इसके पीछे आर्थिक उद्देश्य भी होता है।
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