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व्याख्यान विधि के लिए सुझाव, गुण एंव दोष | Suggestions, merits and demerits for lecture method in Hindi

व्याख्यान विधि के लिए सुझाव, गुण एंव दोष | Suggestions, merits and demerits for lecture method in Hindi
व्याख्यान विधि के लिए सुझाव, गुण एंव दोष | Suggestions, merits and demerits for lecture method in Hindi

शिक्षण की व्याख्यान विधि का वर्णन कीजिए। इसके गुण-दोष भी बताइए।

व्याख्यान विधि (Lecture Method)

उच्चतर माध्यमिक स्तर पर व्याख्यान पद्धति में अध्यापक का विशेष स्थान होता है और वह यह मानकर विद्यार्थियों के समक्ष शिक्षण करता है कि विद्यार्थियों में उसके द्वारा प्रदत्त अनुभवों को ग्रहण करने की क्षमता है। इस पद्धति में अध्यापक द्वारा प्रस्तुत विभिन्न अनुभव, निर्धारित उद्देश्यों तथा लक्ष्यों से सम्बन्धित होते हैं। अध्यापक को व्याख्या पद्धति में निपुण होने के लिए पर्याप्त तैयारी की आवश्यकता होती है।

रिस्क के अनुसार, “व्याख्यान उन तथ्यों, सिद्धान्तों अथवा अन्य सम्बन्धों का स्पष्टीकरण है जिनको शिक्षक चाहता है कि उनको सुनने वाले समझे ।”

जोसेक लैंडन के अनुसार, “कुछ सीमा तक प्रत्येक पाठ में इसकी आवश्यकता होती है तथा पाठ्य मुख्य रूप से इसको निर्मित करते हैं।”

जेम्स एम. ली. के अनुसार, “व्याख्यान एक शिक्षणशास्त्रीय पद्धति है, जिसमें शिक्षक औपचारिक रूप से नियोजित रूप में, किसी प्रकरण अथवा समस्या पर भाषण देता है।

व्याख्यान विधि के लिए सुझाव (Suggestion for Lecture Method)

व्याख्यान प्रविधि हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-

  1. व्याख्यान पद्धति के मध्य प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों की जाँच भी करते रहना चाहिए।
  2. इस पद्धति में विद्यार्थियों की रुचि तथा ध्यान के लिए प्रस्तुतीकरण की शैली रोचकपूर्ण होनी चाहिए।
  3. इस पद्धति की भाषा सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए।
  4. यह पद्धति पूर्व नियोजित होनी चाहिए तथा अध्यापक को शिक्षण से पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए।
  5. व्याख्यान के समय यथा आवश्यक हाव-भाव के प्रदर्शन पर ध्यान देना चाहिए।
  6. केवल इसी पद्धति पर निर्भर न रहकर अन्य पद्धतियों का भी समुचित प्रयोग किया जाना चाहिए।
  7. विषय अथवा प्रकरण से असम्बद्ध, क्रमहीन, निरर्थक तथा उद्देश्यविहीन तथ्यों के प्रस्तुतीकरण के कारण व्याख्यान प्रभावहीन, उद्देश्यविहीन तथा हास्यपद हो जाता है।
  8. निम्न स्तरीय कक्षाओं में व्याख्यान पद्धति का प्रयोग केवल आवश्यक परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए।
  9. व्याख्यान का स्तर छात्रों की आयु, क्षमता, योग्यता आदि के अनुरूप ही होना चाहिए।
  10. समस्त व्याख्यान एक ही स्वर में न होना चाहिए बल्कि उसमें तथ्यों की महत्ता के अनुसार स्वर के उतार-चढ़ाव का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
  11. व्याख्यान के प्रस्तुतीकरण में विचारों की क्रमबद्धता तथा सुसम्बद्धता बहुत ही आवश्यक है।
  12. स्पष्टीकरण के लिए आवश्यक उदाहरणों, दृष्टान्तों तथा सहायक सामग्रियों का उचित प्रयोग किया जाना चाहिए।
  13. मध्यम गति से प्रस्तुत किया गया व्याख्यान ही विद्यार्थियों के लिए अवबोधनीय हो सकता है।
  14. व्याख्यान से पूर्व अध्यापक को व्याख्यान से सम्बन्धित उद्देश्यों की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए।

व्याख्यान विधि के गुण (Merits of Lecture Method)

व्याख्यान विधि के गुण निम्न हैं-

  1. इस पद्धति के द्वारा कम समय में पाठ्यपुस्तक का शिक्षण सम्भव होता है।
  2. इस पद्धति के द्वारा पाठ्यवस्तु को समन्वित तथा क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  3. इस पद्धति का प्रभावपूर्ण प्रयोग विद्यार्थियों में विषय के प्रति रुचि जाग्रत करता है।
  4. इस पद्धति के द्वारा पाठ्यवस्तु की पुनरावृत्ति भी सम्भव होती है।
  5. व्याख्यान पद्धति उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मुख्य रूप से सहायक है।
  6. इसके द्वारा श्रवण के माध्यम से अनुभवों की प्राप्ति, आवश्यक तथ्यों का चयन  करने, मानसिक रूप से तथ्यों को व्यवस्थित करने आदि अनेक क्षमताओं का विकास सम्भव होता है।
  7. इस पद्धति के द्वारा विद्यार्थी विभिन्न अनुभवों से सम्बन्ध स्थापित करना सीखते हैं।
  8. इस पद्धति का प्रयोग अन्य विधियों की सहायक पद्धति के रूप में किया जा सकता है।

व्याख्यान विधि के दोष (Demerits of Lecture Method)

व्याख्यान विधि के दोष या सीमाएँ इस प्रकार हैं-

  1. इस पद्धति के प्रयोग से विद्यार्थियों में निष्क्रियता उत्पन्न हो जाती है।
  2. यह पद्धति अनेक मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों की अवहेलना करती है।
  3. अयोग्य अध्यापकों की दशा में यह विधि छात्रों में अनुशासनहीनता उत्पन्न करती है।
  4. इस पद्धति के द्वारा प्रस्तुत ज्ञान की समझ विद्यार्थियों के पूर्वज्ञान पर निर्भर करती है। इसलिए छोटी कक्षाओं में इसका सफल प्रयोग असम्भव है।
  5. इस पद्धति के द्वारा विद्यार्थियों की विचार शक्ति का विशेष विकास नहीं होता है।
  6. इस पद्धति के अन्तर्गत समय तथा धन का भी पर्याप्त अपव्यय होता है।

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Anjali Yadav

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