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व्यापारिक स्कन्ध की हानि | दावे की राशि ज्ञात करने की प्रक्रिय | औसत वाक्य का प्रयोग किस प्रकार किया जाता है?

व्यापारिक स्कन्ध की हानि | दावे की राशि ज्ञात करने की प्रक्रिय | औसत वाक्य का प्रयोग किस प्रकार किया जाता है?
व्यापारिक स्कन्ध की हानि | दावे की राशि ज्ञात करने की प्रक्रिय | औसत वाक्य का प्रयोग किस प्रकार किया जाता है?

आग लगने पर व्यापाहरिक स्कन्ध की हानि के लिए बीमा दावे की राशि किस प्रकार ज्ञात की जाती है? इस सम्बन्ध में औसत वाक्य का प्रयोग किस प्रकार किया जाता है?

व्यापारिक स्कन्ध की हानि (Loss of Stock in Trade)

अग्नि बीमा पॉलिसी लेने का सबसे प्रमुख उद्देश्य व्यापारिक स्कन्ध की हानि को पूरा कराना होता है। यदि पॉलिसी की अवधि में व्यवसायी के भवन में आग लग जाती है तो व्यापारिक स्कन्ध की हानि होना स्वभाविक ही है। व्यवसायी ऐसी हानि की गणना करके बीमा कम्पनी के समक्ष एक दावा प्रस्तुत करता है और इससे सम्बन्धित सभी प्रमाण भी प्रस्तुत करता है। बीमा कम्पनी इस दावे की जाँच करती है और इसके लिए अपने सर्वेक्षकों (Surveyors) एवमं मूल्यांकको (Valuers) की सहायता लेती है। यदि बीमा कम्पनी इस दावे से संतुष्ट हो जाती है तो इसकी राशि का भुगतान व्यवसायी को कर देती है। इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण है कि बीमा कम्पनी का दायित्व बीमा पॉलिसी की राशि या वास्तविक हानि, दोनों में से जो भी कम हो, तक ही सीमित होता है।

दावे की राशि ज्ञात करने की प्रक्रिया (Procedure for the Determination of Insurance Claim) 

व्यापारिक स्कन्ध में तीन प्रकार का स्टॉक शामिल किया जाता है :

  1. कच्चे माल का रहतिया,
  2. अर्द्ध-निर्मित माल का रहतिया, तथा
  3. तैयार माल का रहतिया।

अग्नि बीमा के दृष्टिकोण से इन तीनों को ही व्यापारिक स्कन्ध माना जाता है। बीमा दावे की राशि निम्न प्रकार ज्ञात की जाती है-

(1) आग लगने की तिथि पर स्कन्ध के मूल्य का निर्धारण (Determination of Value of Stock on the Date of Fire)- यदि वित्तीय वर्ष की पहली तिथि को ही आग लग जाती है तो गत वर्ष का जो अन्तिम स्कन्ध था, उसे ही आग लगने की तिथि का स्कन्ध मान लिया जाता है। यदि आग वित्तीय वर्ष के बीच में लगती है तो यह ज्ञात करना आवश्यक हो जाता है कि जिस समय आग लगी, उस समय कितना व्यापारिक स्कन्ध था। बीमा दावे की गणना करने के लिए इसे सबसे महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। इसे ज्ञात करने की दो विधियाँ हैं : स्कन्ध विवरण (Stock Statement) बनाकर अथवा स्मारक व्यापारिक खाता (Memorandum Trading Account) बनाकर। इन दोनों विधियों से स्टॉक का मूल्य समान ही आता है। अतः इनमें से किसी भी विधि का प्रयोग किया जा सकता है।

(2) सकल लाभ की दर का निर्धारण (Determination of Rate of Gross Profit) – आग लगने के समय के व्यापारिक स्कन्ध का मूल्य निर्धारित करते समय सकल लाभ की दर की आवश्यकता होती है। क्योंकि इस दर के आधार पर ही बेचे गए माल की लागत ज्ञात की जाती है। अतः बीमा दावे की राश निर्धारित करने के लिए सकल लाभ की दर निर्धारित करना आवश्यक हो जाता है। प्रायः सकल लाभ की दर प्रश्न में दी होती है। यदि यह दर प्रश्न में न दी गई हो तो गत वर्ष का या गत कुछ वर्षों के व्यापारिक खाते बनाकर यह दर ज्ञात कर ली जाती है। यदि केवल गत वर्ष का ही व्यापारिक खाता बनाया गया है तो उसके सकल लाभ की दर को ही इस वर्ष का आधार मान लिया जाता है। यदि गत दो या तीन या अधिक वर्षों के व्यापारिक खाते बनाए गए हैं तो उनके सकल लाभ की दरों का साधारण औसत (Simple Average) या भरित औसत (Weighted Average) या औसत प्रवृत्ति (Average Trend) ज्ञात करके सकल लाभ की दर ली जाती है। सकल लाभ की दर निम्न प्रकार ज्ञात की जाती है-

Rate of Gross Profit = (Gross Profit / Sales x 100)

सकल लाभ की दर ज्ञात करते समय रखी जाने वाली सावधानियाँ- जिस अवधि के आधार पर सकल लाभ की दर ज्ञात की जा रही है यदि उस अवधि में कुछ असाधारण व्यवहार किए गए हैं तो उनके प्रभाव को समाप्त करके ही सकल लाभ की दर ज्ञात की जानी चाहिए। इस दृष्टि से निम्न मदों को असाधारण माना जाता है-

  1. कुछ माल को वास्तविक मूल्य से कम या अधिक मूल्य पर विक्रय करना ।
  2. खराब माल को अपलिखित करना
  3. स्टॉक के असाधारण मदों को शामिल करना
  4. स्टॉक के मूल्यांकन की विधि में परिवर्तन करना
  5. किसी प्रत्यक्ष व्यय को अप्रत्यक्ष मानना या किसी अप्रत्यक्ष व्यय को प्रत्यक्ष मानना ।

(3) बचाए गए माल के मूल्य का निर्धारण (Determination of Salvaged Stock) – प्रायः यह देखा गया है कि जब आग लगती है तो कुछ माल तो आग से जलकर नष्ट हो जाता है। परन्तु कुछ माल बचा लिया जाता है। बचे हुए माल का मूल्य अलग से ज्ञात करके उसे स्कन्ध के मूल्य में से घटा देना चाहिए। ऐसे स्टॉक का मूल्यांकन भी उन सिद्धान्तों के आधार पर ही किया जाता है जिन पर व्यापारिक स्कन्ध का मूल्यांकन किया जाता है।

(4) वास्तविक हानि की गणना (Calculation of Actual Loss) – आग के समय व्यापार में जो स्टॉक था उसके मूल्य में से बचे हुए स्टॉक का मूल्य घटा दिया जाता है। इससे आग से होने वाली वास्तविक हानि की राशि ज्ञात हो जाती है। इस प्रकार,

Actual Cost = Estimated Value of Stock on the Date of Fire – Salvaged Stock

(5) दावे की राशि का निर्धारण (Determination of Amount of Claim) – बीमा दावे की राशि निर्धारित करने के लिए आग लगने की तिथि पर स्टॉक की कुल राशि की तुलना बीमा पॉलिसी की राशि के साथ की जाती है। यदि स्टॉक की कुल राशि बीमा पॉलिसी की राशि से कम है या बराबर है तो स्टॉक की वास्तविक हानि को ही दावे की राशि के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। यदि स्टॉक की कुल राशि, बीमा पॉलिसी से अधिक है तो दावे की राशि ‘औसत वाक्य’ (Average Clause) के आधार पर ज्ञात की जाती है। इसे निम्न प्रकार ज्ञात किया जाता है-

Amount of Claim = ( Actual Loss x Policy Amount / Total Value of Stock on the Date of Fire)

औसत वाक्य (Average Clause)

बीमा अनुबंध पारस्परिक विश्वास एवं सद्भावना पर आधारित होता है। इसके अन्तर्गत बीमा कराने वाले व्यवसायी का यह कर्तव्य होता है कि वह बीमा कम्पनी को सभी तथ्य स्पष्ट रूप से बता दे। बीमा पॉलिसी की राशि स्कन्ध के कुल मूल्य से कम नहीं होनी चाहिए। कुछ व्यापारी यह सोचकर कि सारा स्टॉक तो नष्ट होने की कोई सम्भावना ही नहीं है, स्टॉक से कम मूल्य की बीमा पॉलिसी लेते हैं। ताकि उन्हें कम प्रीमियम देना पड़े। इसे ‘न्यून बीमा’ (Under Insurance) कहा जाता है। इस प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने के लिए प्रायः सभी बीमा अनुबन्धों में औसत वाक्य की व्यवस्था की जाती है। इसके अन्तर्गत, यदि कोई व्यापारी स्टॉक के कुल मूल्य से कम राशि का बीमा कराता है तो बीमा कम्पनी औसत वाक्य के आधार पर ही दावे की राशि का भुगतान करती है। इस प्रकार, व्यापारी को वास्तविक हानि से कुछ कम राशि ही दावे के रूप में प्राप्त हो पाती है और शेष हानि उसे स्वयं वहन करनी पड़ती है। इस प्रकार, कुछ हानि बीमा कम्पनी वहन करती है और कुछ हानि स्वयं व्यापारी द्वारा वहन की जाती है। इसी कारण औसत वाक्य को ‘सह बीमा वाक्य’ (Co-Insurance Clause) भी कहा जाता है।

बीमा दावे की राशि ज्ञात करते समय महत्वपूर्ण बिन्दु (Important Points while Calculating Insurance Claim)

बीमा दावे की राशि निर्धारित करने की प्रक्रिया में कुछ बिन्दु ऐसे आते हैं जिनका समाधान किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। ये बिन्दु निम्न प्रकार हैं-

(1) यदि आग से बचे हुए माल का मूल्य न दिया हो- यदि प्रश्न में आग से बचे हुए माल का मूल्य नहीं दिया गया है तो यह मान लिया जाता है कि शायद आग से कोई माल बचा ही नहीं होगा। इस स्थिति में आग लगने की तिथि पर स्टॉक का जो मूल्य था, उसे ही वास्तविक हानि मान लिया जाता है।

(2) यदि बीमा पॉलिसी की राशि न दी गई हो- यदि प्रश्न में बीमा पॉलिसी की राशि नहीं दी गई है तो स्टॉक की वास्तविक हानि को ही बीमा दावा मान लिया जाता है। इस स्थिति में औसत वाक्य लागू ही नहीं होगा।

(3) यदि सकल लाभ की दर न दी गई हो- प्रायः सकल लाभ की दर प्रश्न में दी होती है और उसके आधार पर ही बीमा दावे की राशि ज्ञात की जाती है। जिन प्रश्नों में यह दर नहीं दी होती है, उनमें गत एक या दो या दो से अधिक वर्षों के विवरण दिए होते हैं। जितने वर्षों के लिए ये विवरण दिए गए हैं. उन सभी की सकल लाभ की दर ज्ञात कर ली जाती है और उनका औसत लेकर (साधारण औसत या भारित औसत या औसत प्रवृत्ति) वह दर निर्धारित की जाती है। जिसके आधार पर बीमा दावे की राशि ज्ञात की जाती है।

(4) यदि स्टॉक को लागत से कम या अधिक मूल्य पर दिखाया जाता है- कुछ व्यापारी अपने स्टॉक का मूल्यांकन लागत से कम या अधिक मूल्य पर करते हैं। इस स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि प्रश्न में प्रारम्भिक और अन्तिम रहतिया की जो भी राशियाँ दी गई हैं, उन्हें इस सन्दर्भ में समायोजित किया जाए। उदाहरण:

  1. यदि स्टॉक का मूल्य 10% कम पर किया गया है तो उसका सही मूल्य निम्न प्रकार ज्ञात किया जाएगा : (Value of Stock x 100/90 )
  2. यदि स्टॉक का मूल्यांकन 10% अधिक पर किया गया है तो उसका सही मूल्य निम्न प्रकार ज्ञात किया जाएगा। (Value of Stock x 100/110)

(5) यदि चालू वर्ष के क्रय या विक्रय की राशि नहीं दी गई है- बीमा दावे की राशि ज्ञात करने के लिए यह आवश्यक है कि चालू वर्ष के क्रम एवं विक्रय की सूचना प्रश्न में दी गई हो। यदि यह सूचना नहीं दी गई है तो क्रय की राशि ज्ञात करने के लिए लेनदार खाता (Creditors Account) तथा विक्रय की राशि ज्ञात करने के लिए देनदार खाता (Debtors Account) तैयार करना चाहिए। इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण है कि क्रय वापसी और विक्रय वापसी को क्रमशः लेनदार खाते व देनदार खाते में भी दिखाया जाएगा और स्मरण व्यापार खाते में भी।

(6) दो या अधिक कम्पनियों से बीमा कराना- कुछ व्यापारी अपने सम्पूर्ण स्टॉक का बीमा एक ही कम्पनी से नहीं कराते वरन् दो या अधिक कम्पनियों से कराते हैं। इस स्थिति में बीमा दावे की राशि तो पूर्व की भाँति ही ज्ञात की जाएगी और भुगतान की राशि को सभी कम्पनियों से ली गई पॉलिसी की राशि के अनुपात में बाँट दिया जाएगा।

(7) आग से लेखा पुस्तकों का नष्ट हो जाना- कभी-कभी आग इतना विकराल रूप धारण कर लेती है कि अधिकांश लेखा पुस्तकें एवम रिकार्ड भी नष्ट हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में यह समस्या हो जाती है कि बीमा दावे की राशि किस प्रकार ज्ञात की जाए। इसके लिए निम्न विधि अपनाई जा सकती है-

  1. माल के आपूर्तिकर्त्ताओं से सूचनायें एकत्र करके क्रय की राशि ज्ञात की जा सकती है।
  2. ग्राहकों एवम देनदारों से सूचनायें एकत्रित करके विक्रय की राशि ज्ञात की जा सकती है।
  3. गत अवधि का बैंक विवरण लेकर भी क्रय विक्रय एवम व्ययों की राशि निर्धारित की जा सकती है।
  4. अधूरी सूचनाओं के आधार पर कुछ सूचनायें संकलित की जा सकती हैं।
  5. इसके पश्चात् भी यदि कोई सूचना बच जाती है तो उसके लिए गत वर्ष के लेखों एवम प्रगति की सहायता ली जा सकती है।

(8) सामान्य एवम् असामान्य स्टॉक- यदि अग्नि वाली अवधि में व्यापारी ने सामान्य एवम असामान्य, दोनों प्रकार के स्टॉक में व्यवहार किया है तो सम्पूर्ण व्यापारिक खाता बनाते समय दोनों पक्षों में तीन-तीन खाने बनाए जाने चाहिए: सामान्य माल, असामान्य माल तथा दोनों का योग । वैकल्पिक रूप में केवल एक-एक खाना ही बनाया जा सकता है और उसी में असामान्य माल के लाभ या हानि को अलग से दिखाया जा सकता है।

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Anjali Yadav

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