Contents
शिक्षक [TEACHER]
शिक्षक ही विद्यालय तथा शिक्षा पद्धति की वास्तविक गत्यात्मक (Dynamic) शक्ति है। यह सत्य है कि विद्यालय भवन, पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ, निर्देशन कार्यक्रम, पाठ्य पुस्तकें, आदि सभी वस्तुएँ शैक्षिक कार्यक्रम में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं, परन्तु जब तक उनमें अच्छे शिक्षकों द्वारा जीवन-शक्ति प्रदान नहीं की जाएगी, तब तक वे निरर्थक रहेंगी। शिक्षक ही वह शक्ति है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आने वाली सन्ततियों पर अपना प्रभाव डालती है। शिक्षक ही राष्ट्रीय एवं भौगोलिक सीमाओं को लाँघकर विश्व-व्यवस्था तथा मानव जाति को उन्नति के पथ पर अग्रसर करता है। अतः यह कहा जा सकता है कि मानव समाज एवं देश की उन्नति उत्तम शिक्षकों पर निर्भर है।
शिक्षा प्रणाली में शिक्षक की स्थिति (PLACE OF TEACHER IN EDUCATIONAL SYSTEM)
हुमायूँ कबीर का कथन है-“वे (शिक्षक) राष्ट्र के भाग्य निर्णायक हैं। यह कथन प्रत्यक्ष रूप से सत्य प्रतीत होता है परन्तु अब इस बात पर अधिक बल देने की आवश्यकता है कि शिक्षक ही शिक्षा के पुनर्निर्माण की महत्त्वपूर्ण कुंजी है। यह शिक्षक वर्ग की योग्यता ही है जो कि निर्णायक है।”
हुमायूँ कबीर का मत है— “शिक्षा पद्धति की कुशलता शिक्षकों की योग्यता पर निर्भर है। अच्छे शिक्षकों के अभाव में सर्वोत्तम शिक्षा पद्धति का भी असफल होना अवश्यम्भावी है। अच्छे शिक्षकों द्वारा शिक्षा पद्धति के दोषों को भी अधिकांशतः दूर किया जा सकता है।”
माध्यमिक शिक्षा आयोग ने अपने प्रतिवेदन में लिखा है-“अपेक्षित शिक्षा के पुनर्निर्माण में सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व शिक्षक- उसके व्यक्तिगत गुण, उसकी शैक्षिक योग्यताएँ, उसका व्यावसायिक प्रशिक्षण और उसकी स्थिति जो वह विद्यालय तथा समाज में ग्रहण करता है, ही हैं। विद्यालय की प्रतिष्ठा तथा समाज के जीवन पर उसका प्रभाव निस्सन्देह रूप से उन शिक्षकों पर निर्भर है जो कि उस विद्यालय में कार्य कर रहे हैं। “
इस प्रकार शिक्षक का महत्त्व समाज तथा शिक्षा पद्धति दोनों में ही स्पष्ट है। वस्तुत: शिक्षक उन भावी नागरिकों का निर्माण करता है, जिनके ऊपर राष्ट्र के उत्थान एवं पतन का भार है।
आदर्श अध्यापक के गुण (QUALITIES OF AN IDEAL TEACHER)
आदर्श शिक्षक को मनुष्यों का निर्माता, राष्ट्र निर्माता, शिक्षा पद्धति की आधारशिला समाज को गति प्रदान करने वाला, आदि सब कुछ माना गया है।
साधारणतः ऐसे शिक्षक में बालकों को समझने की शक्ति, उनके साथ उचित रूप से कार्य करने की क्षमता, शिक्षण योग्यता, कार्य करने की इच्छा शक्ति और सहकारिता, आदि गुणों की अपेक्षा की जाती है। ऐसे गुण सामान्यत: न तो प्रत्येक शिक्षक में मिलते हैं और न शिक्षण प्रत्येक व्यक्ति का कार्य ही है। वस्तुतः यह कार्य वह व्यक्ति कर सकता है, जिसमें कुछ विशिष्ट शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक, नैतिक एवं संवेगात्मक गुण हों। शिक्षण जगत की एक मानसिक प्रक्रिया है, जिसमें मस्तिष्क का मस्तिष्क से सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। इस सम्बन्ध की उपयुक्तता एवं अनुपयुक्तता बहुत कुछ शिक्षक के व्यक्तित्व पर निर्भर होती है। इस सम्बन्ध में समय-समय पर अध्ययन किये गये हैं। संयुक्त राष्ट्र अमरीका में डॉ. एफ. एल. क्लैप ने सन् 1913 में एक अध्ययन किया जिसके आधार पर उन्होंने अच्छे शिक्षक के व्यक्तित्व के निम्नलिखित दस गुणों का उल्लेख किया है.–
1. सम्बोधन, 2. वैयक्तिक आकृति, 3. आशावादिता, 4. संयम, 5. उत्साह, 6. मानसिक निष्पक्षता, 7. शुभचिन्तन, 8. सहानुभूति, 9. जीवन-शक्ति, 10. विद्वता।
अमरीका में बागले तथा कीथ के अध्ययन के फलस्वरूप उपर्युक्त में चातुर्य, नेतृत्व की क्षमता तथा अच्छा स्वर नामक गुण और जोड़े गये।
इन सूचियों को तैयार करने में विद्वानों ने विद्यालयों के प्रधानाचार्यों, निरीक्षकों तथा अधीक्षकों की ही सम्मतियाँ ली थीं। इनके निर्माण में उन्होंने छात्रों की सम्मतियों का कोई उपयोग नहीं किया बासिंग ने बालकों की राय को भी अपने अध्ययन का विषय बनाया और उसके आधार पर शिक्षक के व्यक्तित्व के गुणों की सूची में दो अन्य गुणों का योगदान किया विनोदप्रियता तथा छात्रों के प्रति मैत्रीपूर्ण दृष्टिकोण।
रेमॉण्ट (Raymont) का मत है कि अध्यापक को उन सभी बातों का त्याग करना चाहिए जो तुच्छ एवं हीन हों क्योंकि उसी पर समस्त छात्रों की दृष्टि लगी रहती है। शिक्षक स्वयं को अपने छात्रों पर अपना प्रभाव डालने से नहीं बचा सकता। इसलिए यह आवश्यक है कि वह सदैव उच्च आदर्शों एवं विचारों को मन, वचन तथा कर्म से व्यवहार में लाये जिनका बालकों पर सर्वोत्तम प्रभाव पड़ सके। राष्ट्रपिता गाँधीजी ने भी खेद के साथ कहा था कि शिक्षकों के आदर्श एवं व्यवहार में प्राय: सामंजस्य नहीं हो पाता; वे कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर शिक्षक के प्रमुख गुणों का विवेचन- (अ) ‘वैयक्तिक गुण’ तथा (ब) ‘व्यावसायिक गुण’ नामक शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा रहा है-
(अ) वैयक्तिक गुण (Personal Qualities)
वैयक्तिक गुण निम्न प्रकार हैं-
(i) उत्तम स्वास्थ्य एवं जीवन- शक्ति शिक्षक का एक गुण यह भी है कि उसका स्वास्थ्य उत्तम हो। परीक्षणों के आधार पर यह देखा गया है कि स्वस्थ शरीर का स्वस्थ मस्तिष्क से उच्च प्रकार का सह-सम्बन्ध होता है। हरबर्ट स्पेन्सर का मत है ” जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अच्छा प्राणी होना आवश्यक है।” यदि शिक्षक का स्वास्थ्य खराब है तो वह सफलतापूर्वक अध्यापन कार्य नहीं कर सकता क्योंकि शक्ति एवं स्फूर्ति शिक्षक के कार्य में आशावादिता, उत्साह एवं जीवन-शक्ति लाती हैं।
शिक्षक को केवल शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट होना ही आवश्यक नहीं है, वरन् उसमें चेतनता का होना भी आवश्यक है। आर्थर बी. मौलमैन का कथन है “सफल शिक्षक के लिए जीवन-शक्ति का होना आवश्यक है। यह केवल इसलिए ही आवश्यक नहीं है कि इसका प्रभाव बालकों पर प्रतिबिम्बात्मक रूप में पड़ेगा परन्तु थकान से उत्पन्न हुई बाधाओं को कम करने के लिए भी यह आवश्यक है।”
(II) संवेगात्मक सन्तुलन- शिक्षक में संवेगात्मक सन्तुलन का होना परमावश्यक है। इसके अभाव में वह अपने छात्रों का भावात्मक विकास करने में असफल रहेगा। यदि शिक्षक स्वयं संवेगात्मक रूप में असन्तुलित है तो इससे छात्रों को हानि ही नहीं, वरन् विद्यालय संगठन में भी बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न होंगी।
(iii) सामाजिक गुण- सामाजिक समझदारी मुख्यतः सामाजिक सम्बन्धों द्वारा अनुप्राणित विश्वास के माध्यम से प्राप्त की जाती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति में सामाजिक गुणों का होना आवश्यक है, क्योंकि असामाजिक व्यक्ति इस विश्वास (सामाजिक सम्बन्धों द्वारा अनुप्राणित) का निर्माण करने में असफल रहता है। शिक्षक को उन सामाजिक गुणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए, जो कि उसे कक्षा-कक्ष तथा समुदाय दोनों में सहायता प्रदान करेंगे। इनमें से कुछ गुणों को वह सम्पर्क द्वारा तथा कुछ को प्रशिक्षण द्वारा प्राप्त कर सकता है; उदाहरणार्थ- सामाजिक चातुर्य, उत्तम निर्णय-शक्ति, जीवन के आशावादी दृष्टिकोण, परिस्थितियों का सामना करने का साहस, अपनी कमियों को स्वीकार करने की तत्परता, मिल-जुलकर कार्य करने की क्षमता, आदि।
(iv) उच्च चरित्र एवं दृढ़-संकल्प– एक राष्ट्र निर्माता होने के नाते शिक्षक से अपेक्षा की जाती है कि उसका चरित्र निर्मल हो और उसमें मिशनरियों की भाँति अपने कार्य के लिए उत्साह हो। यदि शिक्षक में सच्चरित्रता का अभाव है तो वह अपने छात्रों एवं समाज का उपयुक्त ढंग से पथ-प्रदर्शन नहीं कर सकता है।
(v) नेतृत्व की क्षमता- शिक्षक में नेतृत्व की क्षमता होना भी आवश्यक है। परन्तु शिक्षक को जिस प्रकार की नेतृत्व क्षमता की आवश्यकता है वह अन्य प्रकार के नेतृत्व से भिन्न है। शिक्षक का नेतृत्व उसके चरित्र, शक्ति, प्रभावकारिता तथा दूसरों से प्राप्त आदर पर निर्भर है, अर्थात् शिक्षक का नेतृत्व उसके व्यक्तित्व पर आधारित है। इस प्रकार का नेतृत्व पथ-प्रदर्शन करने, समूह के साथ कार्य करने के तथा उसे सहायता देने एवं समूह को सामान्य ध्येय की प्राप्ति हेतु अग्रसर करने के लिए प्रोत्साहित करने की क्षमता पर निर्भर है। परन्तु यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि अति दृढ़ व्यक्तित्व नेतृत्व के लिए उसी प्रकार की अयोग्यता है, जिस प्रकार कि निर्बल व्यक्तित्व इस तथ्य पर बल देते हुए डॉ. बैलार्ड ने कहा है-“भावी शिक्षक अपने छात्रों पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालने से बहुत कम सम्बन्ध रखेगा। इसके विपरीत, यह अपने छात्रों के व्यक्तित्व को समझने तथा प्रत्येक में उस दीपशिखा को खोजने का प्रयत्न करेगा जो कि उनके व्यक्तित्व को दैदीप्यमान बनाती है तथा उस शक्ति लोत को खोजेगा, जो उनको प्रेरित करता है। “
(vi) मित्रता एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार– उपर्युक्त गुणों के अतिरिक्त शिक्षक में यह गुण होना चाहिए कि वह अपने छात्रों तथा सहयोगी शिक्षकों के साथ मैत्रीपूर्ण एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करे। यदि शिक्षक इस प्रकार का व्यवहार अपने छात्रों के साथ करेगा तो वह उनके विश्वास को शीघ्र ही प्राप्त कर लेगा। इसके अतिरिक्त वह उनके चरित्र का निर्माण करने में भी समर्थ होगा। उनको अपने सहयोगियों के साथ भी सहृदयतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। विद्यालय शिक्षण एक सहयोगी कार्य है। इसको सफलतापूर्वक तभी किया जा सकता है जब समस्त शिक्षक शिक्षालय व्यवस्था तथा शिक्षण के संचालन में परस्पर सहयोग के साथ कार्य करेंगे। शिक्षक को सदैव अपने उच्चाधिकारियों, प्रधानाध्यापक, निरीक्षक, आदि को मित्र तथा पथ-प्रदर्शक के रूप में देखना चाहिए।
(ब) व्यावसायिक गुण (Professional Qualities)
ये गुण निम्न प्रकार अपेक्षित हैं-
(1) विषय का पूर्ण ज्ञान- कोई भी व्यक्ति विषय के ज्ञान के अभाव में शिक्षक नहीं हो सकता है। अतः शिक्षक के लिए यह अति आवश्यक है कि वह विद्यालय में जिस विषय का शिक्षण करे, उसका उसे पूर्ण ज्ञान हो। यदि उसका विषय सम्बन्धी ज्ञान अधूरा या छिछला होगा तो वह अपने छात्रों का विश्वासपात्र नहीं बन सकेगा। इस सम्बन्ध में एक विद्वान् का मत है “एक अयोग्य चिकित्सक मरीज के शारीरिक हित के लिए खतरनाक है। परन्तु एक अयोग्य शिक्षक राष्ट्र के लिए इससे भी अधिक घातक है, क्योंकि वह न केवल अपने छात्रों के मस्तिष्कों को विकृत बनाता तथा हानि पहुंचाता है, वरन् उनके विकास को अवरुद्ध करता है तथा उनकी आत्मा को मरोड़ देता है।” इसलिए एक अच्छे शिक्षक से यह आशा की जाती है कि वह अपने विषय का सदैव विद्यार्थी बना रहे।
के. जी. सैयदैन ने सत्य ही कहा है. ‘आप एक बर्तन में से कोई वस्तु तब तक उड़ेलकर नहीं निकाल सकते; जब तक कि आपने वह वस्तु उसमें रख न दी हो। यदि शिक्षक ज्ञान एवं बुद्धि की दृष्टि से होन एवं खोखला है, यदि उसमें ज्योति प्रदान करने वाली शक्ति नहीं है, तो वह अपने बालकों के मस्तिष्क को प्रखर या उनकी भावनाओं को मानवीय रूप प्रदान नहीं कर सकता। यदि वह स्वयं प्रदीप्त दीप नहीं है तो वह दूसरों में ज्ञान के प्रकाश को प्रसारित करने में सदैव असमर्थ रहेगा।”
(ii) व्यावसायिक प्रशिक्षण- शिक्षक के लिए यहाँ आवश्यक नहीं है कि वह यह जाने कि ‘उन्हें क्या पढ़ाना है’ वरन् उनको यह भी जानना है कि “किस प्रकार पढ़ाना है तथा किसको पढ़ाना है।” इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए उसको व्यावसायिक प्रशिक्षण (Professional Training) प्राप्त करना आवश्यक है। आज विश्व की कोई भी शिक्षा पद्धति ऐसी नहीं है जो विद्यालयों के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता का अनुभव न करती हो। अतः प्रत्येक शिक्षा पद्धति में प्रशिक्षण विद्यालयों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। यहाँ होने वाले शिक्षक को बालक की प्रकृति को समझने तथा शिक्षण प्रदान करने के ढंगों से परिचित कराया जाता है। इन प्रशिक्षण विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में मनोविज्ञान, विद्यालय प्रशासन एवं संगठन, स्वास्थ्य शिक्षा, शिक्षण-सिद्धान्त, आदि विषयों को स्थान दिया जाता है। इसके अतिरिक्त छात्राध्यापकों को व्यावहारिक प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है। जब वे शिक्षक का पद ग्रहण कर लेते हैं तो उनके व्यावसायिक ज्ञान को नवीन बनाए रखने के लिए विभिन्न गोष्ठियों, विचार सम्मेलनों, अभिनव कोर्स, सेमीनारों, आदि का आयोजन किया जाता है। अतः शिक्षक का प्रशिक्षित होना और शिक्षा सम्बन्धी गोष्ठियों, आदि में भाग लेते रहना आवश्यक गुण है।
(iii) व्यावसायिक निष्ठा- शिक्षक को अपने विषय तथा व्यवसाय में निष्ठा रखना आवश्यक है। निष्ठा ही उसे कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यदि उसे अपने विषय तथा व्यवसाय में निष्ठा नहीं होगी तो वह अपना तथा अपने छात्रों का विकास अवरुद्ध कर देगा। मार्क पैटिसन का कथन है “एक अच्छे शिक्षक का प्रथम गुण यह है कि वह एक अध्यापक हो और कुछ नहीं, और उसको एक शिक्षक के रूप में प्रशिक्षित किया जाय।” उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि जब उसने इस व्यवसाय को ग्रहण किया है, तब उसे इसमें पूर्ण निष्ठा के साथ कार्य करना चाहिए।
(iv) पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में रुचि- आजकल शिक्षण कार्य कक्षा-कक्ष में दिये जाने वाले निर्देशों तक ही सीमित नहीं, वरन् इससे कहीं अधिक माना जाता है। आधुनिक विद्यालय शिक्षकों से इस बात की अपेक्षा करते हैं कि वे विषयों का ज्ञान प्रदान करने के अतिरिक्त कक्षा-कक्ष के बाहर की क्रियाओं के संगठन एवं संचालन का भी कार्य करें। जब खेल-कूद स्काउटिंग, नाटक, वाद-विवाद, भ्रमण, रेडक्रास, छात्र संघ, संगीत क्लब, आदि क्रियाओं को पाठ्यक्रम तथा विद्यालय के नियमित कार्य से सम्बन्धित कर दिया है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि शिक्षक को इन क्रियाओं में भाग लेने के लिए स्वयं को तत्पर बनाना चाहिए।
(v) प्रयोग एवं अनुसन्धान में रुचि- आधुनिक युग शिक्षकों से यह भी माँग करता है कि उनको अपने कार्य क्षेत्र में अनुसन्धानकर्ता होना चाहिए। शिक्षा में अनुसन्धान का महत्त्व प्रतिदिन अपना आधार निर्मित करता जा रहा है। शिक्षकों को कक्षा-कक्ष समस्याओं के निराकरण के लिए वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके शिक्षा की प्रगति में सहयोग देना चाहिए। ‘उनको क्या पढ़ाना है ?’ ‘क्यों पढ़ाना है ? ‘ किस प्रकार पढ़ाना है ?’, आदि मूलभूत शैक्षिक समस्याओं का समाधान करने के लिए अनुसन्धान एवं प्रयोग करने चाहिए।
जिन गुणों का ऊपर विवेचन किया जा चुका है, उनमें बहुत से गुणों को शिक्षक प्रकृति से प्राप्त करता है। इसलिए यह कहा जाता है कि अच्छे शिक्षक पैदा होते हैं, बनाये नहीं जाते। परन्तु प्रशिक्षण एवं अनुभव का भी उनके निर्माण में बहुत महत्त्वपूर्ण भाग होता है। प्रशिक्षण विद्यालयों के पाठ्यक्रम का उद्देश्य अनुभवहीन शिक्षक को शिक्षा के विषय में चिन्तन करने के लिए सहायता देना तथा उनसे कुशल व्यक्तियों की देखरेख में कुछ समय के लिए शिक्षण कार्य कराना है। इन विद्यालयों में नवयुवक शिक्षक के समक्ष शिक्षण के उत्तम ढंगों एवं साधनों को प्रस्तुत किया जाता है जो उसकी कक्षा-कक्ष में सहायता कर सकें। परन्तु ये ढंग अन्तिम ढंगों एवं साधनों के रूप में प्रदान नहीं किये जाते हैं, वरन् उन मानदण्डों के रूप में दिये जाते हैं जिनके द्वारा वह अपने प्रयासों का मूल्यांकन कर सके।
सार रूप में हम कह सकते हैं कि शिक्षक का व्यक्तित्व तीखे नाक-नक्ख वाला या तराशा हुआ होना चाहिए। उसे निम्नलिखित के विषय में विशेषत: सतर्क रहना चाहिए-
1. वह वक्त का पाबन्द होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, वह समयनिष्ठ होना चाहिए।
2. वह अपने प्रत्येक कार्य में निष्पक्ष होना चाहिए।
3. वह सभी के प्रति सहृदय होना चाहिए।
4. वह छात्रों की सम्मतियों का आदर करने वाला होना चाहिए और उनको स्वतन्त्र रूप से विचार से विमर्श करने के लिए आमन्त्रित करे।
5. वह सम्मान प्राप्त करने के योग्य होना चाहिए।
6. वह अपने व्यवहार तथा भाषण में विवेकी होना चाहिए।
7. वह दयालु तथा सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।
8. वह प्रत्येक स्थिति में ईमानदार होना चाहिए।
9. वह बाल-अध्ययन, अपने विषय एवं शिक्षण शास्त्र, आदि का उत्साही छात्र होना चाहिए।
10. उसको स्वयं को जानना चाहिए।
IMPORTANT LINK
- हिन्दी भाषा का शिक्षण सिद्धान्त एवं शिक्षण सूत्र
- त्रि-भाषा सूत्र किसे कहते हैं? What is called the three-language formula?
- माध्यमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम में हिन्दी का क्या स्थान होना चाहिए ?
- मातृभाषा का पाठ्यक्रम में क्या स्थान है ? What is the place of mother tongue in the curriculum?
- मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्य | विद्यालयों के विभिन्न स्तरों के अनुसार उद्देश्य | उद्देश्यों की प्राप्ति के माध्यम
- माध्यमिक कक्षाओं के लिए हिन्दी शिक्षण का उद्देश्य एवं आवश्यकता
- विभिन्न स्तरों पर हिन्दी शिक्षण (मातृभाषा शिक्षण) के उद्देश्य
- मातृभाषा का अर्थ | हिन्दी शिक्षण के सामान्य उद्देश्य | उद्देश्यों का वर्गीकरण | सद्वृत्तियों का विकास करने के अर्थ
- हिन्दी शिक्षक के गुण, विशेषताएँ एवं व्यक्तित्व
- भाषा का अर्थ एवं परिभाषा | भाषा की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- भाषा अथवा भाषाविज्ञान का अन्य विषयों से सह-सम्बन्ध
- मातृभाषा का उद्भव एवं विकास | हिन्दी- भाषा के इतिहास का काल-विभाजन
- भाषा के विविध रूप क्या हैं ?
- भाषा विकास की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता | Unity in Diversity of Indian Culture in Hindi
Disclaimer