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शैक्षिक निहितार्थ (Educational Implication)
गार्डनर के बुद्धि सिद्धान्त को विद्यालय में लागू करने का प्रयास किया गया। जो दो 1 बिन्दुओं पर हमारा ध्यान केन्द्रित करता है। पाठ्यचर्या एवं निर्देश पाठ्यचर्या बनाने वाले इस सिद्धान्त के मूल मन्त्र के अनुरूप अब उस क्षेत्र में अधिक ध्यान देने लगे हैं जिस पर अब तक तुलनात्मक रूप से कम बल डाला जाता था। जैसे कल्पनात्मक लेखन, दृष्टि कला एवं स्वरलिपि आदि जैसे क्षेत्रों को भी पाठ्यचर्या में सम्मिलित करने पर बल डालने लगे हैं।
निर्देश को नियोजित करने में अध्यापकों को इस बात के लिए सिद्धान्त विशेष रूप से प्रेरित करता है कि विभिन्न प्रकार की बुद्धि (9 प्रकार) के अनुरूप ज्ञान विकसित करने के लिए विशेष निर्देश दिया जाना चाहिए। जैसे अन्तर्वैयक्तिक बुद्धि से सम्बद्ध ज्ञान विकसित करने के लिए निर्देश बिन्दु पर केन्द्रित होना चाहिए, किस प्रकार के संगी साथी, क्रास आयु या सहयोगी अधिगम का उपयोग करके छात्रों के अन्तर सक्रिय कौशल को विकसित किया जा सकता है।”
गार्डनर ने कहा है कि अधिकांशतः प्रत्येक सामान्य व्यक्ति में उपर्युक्त तरह की बुद्धि पाई जाती है परन्तु कभी-कभी वंशानुक्रम या वातावरण के कारण कोई बुद्धि अधिक विकसित हो जाती है लेकिन उसका प्रभाव अन्य तरह की बुद्धि पर नहीं पड़ता। ये सातों बुद्धियाँ स्वतंत्र होकर एक दूसरे के साथ अन्तः क्रिया करती हैं तथा प्रत्येक बुद्धि अपने कार्य करने की विधियों द्वारा संचालित होती हैं।
गार्डनर ने अपने सिद्धान्त का प्रयोग दो तरह के व्यक्तियों पर किया एक वे जिनका शैक्षिक रिकार्ड काफी कमजोर था। बाद की जिन्दगी में उन्हें काफी सफलता मिली तथा दूसरे तरह के व्यक्ति वे हैं जिनका शैक्षिक रिकार्ड काफी अच्छा था लेकिन बाद में उन्हें सफलता नहीं मिली। गार्डनर महोदय का कहना है कि ऐसा व्यक्तिगत बुद्धि के कारण हुआ। जिनमें व्यक्तिगत बुद्धि की कमी थी। वे असफल तथा जिनमें व्यक्तिगत बुद्धि की अधिकता थी वे सफल हुए। लेकिन इस सिद्धान्त के आधार पर हम कह सकते हैं कि बुद्धि को सिर्फ शाब्दिक कौशलों के आधार पर ही नहीं वरन् अशाब्दिक कौशलों के आधार पर भी इसकी व्याख्या करना उचित है। अर्थात् दोनों तरह के कौशलों के आधार पर इसकी व्याख्या की जानी चाहिए।
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