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शैक्षिक प्रशासन के प्रकार अधिकारिक एवं प्रजातान्त्रिक | TYPES OF EDUCATIONAL ADMINISTRATION
विद्यालयीय प्रधानाध्यापक, प्रशासक और प्रबन्धक निर्विवाद रूप से नेता भी होता है। नेता वह है जो नेतृत्व करता है। विद्यालय के सन्दर्भ में प्रधानाध्यापक निश्चित रूप से एक नेता होता है जो उन शिक्षकों की टीम का नेतृत्व करता है जो उसके आधीन कार्य करते हैं और इस प्रकार विद्यालय प्रबन्धन के लक्ष्यों को प्राप्त करता है।
अच्छा विद्यालय प्रबन्धक और प्रशासक एक औपचारिक योजना के आधार पर नियमों के अन्तर्गत संगठनात्मक संरचना के आधार पर योजान के अनुरूप परिणामों पर ध्यान केन्द्रित करता है, वहीं दूसरी ओर नेतृत्व दूरदृष्टि के आधार पर भविष्य का लक्ष्य और दिशा निर्धारित करता है और इसके साथ ही वह लक्ष्य प्राप्ति के लिए व्यक्तियों को प्रेरित करता है एवं उन्हें लक्ष्य प्राप्ति हेतु जुड़ने के लिए आमन्त्रित करता है।
इस प्रकार शैक्षिक प्रशासन का नेतृत्व की दृष्टि से वर्गीकरण अनेक प्रकार से मिलता है; जैसे—कार्यों के आधार पर, पद/प्रस्थिति के आधार पर और गतिशीलता के आधार पर। अतः शैक्षिक प्रशासन को नेतृत्व शैलियों की दृष्टि से तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
1. अधिकारिक शैली (Autocratic style )
2. जनतन्त्रीय शैली (Democratic style)
3. अहस्तक्षेपीय शैली (Laissez Faire style)
(1) अधिकारिक शैली (Autocratic Style)-यह शैली व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करती है अर्थात् नेतृत्व करने वाला व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कार्य करता है। इस नेतृत्व में निरंकुशता होती है। इस सन्दर्भ में चार्ल्स आगिरिस (Charls Argiris) का मत है. “यदि प्रशासक कार्य की पहल स्वयं करता है, नीतियों पर नियन्त्रण रखता है, कार्य की प्रणाली स्वयं ही निर्दिष्ट करता है, भविष्य को नियन्त्रित करता है, प्रोत्साहन तथा विश्लेषण करता है तथा सहायकों को नियन्त्रित एवं मूल्यांकित करता है तब उसे अधिकारिक प्रकार का नेता कहा जाता है।”
(If an executive initiates action, dominates policies, dictates the work techniques and activities, controls the future, rewards and analyses, controls and evaluates the subordinates, he may be said to be a directive or autocratic leader.-Charls Argiris)
यह शैली अंग्रेजी शासन काल में प्रचरित थी। आज भी भारत में इसकी झलक देखने को मिल जाती है। इसमें प्रशासक द्वारा दबाव से कार्य कराना सम्मिलित है। यह नेतृत्व पद पर बैठे व्यक्तियों तक ही सीमित है। इसमें अन्तिम निर्णय सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति का होता है और नियुक्ति-वियुक्ति एवं मूल्यांकन का अधिकार अधिकृति को ही होता है।
अधिकारिक शैली की मान्यताएँ (ASSUMPTIONS)
1. यह शैली उन लोगों तक सीमित है जो किसी पद या प्रस्थिति के कारण शक्ति सम्पन्न हैं।
2. इस शैली में शक्ति विकेन्द्रित हो सकती है दायित्व नहीं।
3. अन्तिम रूप से दायित्व उसी का होता है जो उच्च पद पर बैठा है।
4. इस शैली में अच्छे परिणाम दबाव जन्य नियन्त्रित पर्यावरण में ही सम्भव हैं।
5. व्यक्ति संगठन से ऊपर नहीं होता उसे संगठन के हित में त्यागा जा सकता है।
6. नियुक्ति-वियुक्ति का अधिकार अधिकृति (उच्च पदस्थ) को होता है।
7. मूल्यांकन का दायित्व पद/प्रस्थिति नेतृत्व का ही है।
8. इसमें अधिकृति (उच्च पदस्थ) ही सही होता है।
9. उद्देश्य प्रभावी ढंग से तभी प्राप्त हो सकते हैं, जब सहयोगियों में एक जुटता होती है।
(2) जनतन्त्रीय शैली (Democratic Style)- प्रजातान्त्रिक देशों में इस शैली के आधार पर कार्य सम्पन्न होता है। इस शैली में अधिकांशतः मिल-जुलकर आम राय से कार्य सम्पन्न किया जाता है। नीति निर्धारण, प्रबन्धन प्रक्रिया से सम्बन्धित घटक, आयोजन, कार्य विभाजन, मूल्यांकन, आदि सभी कार्य परस्पर सहयोग से किये जाते हैं और नेता शिक्षक एवं संगठन दोनों के हितों को ध्यान में रखकर कार्य करता है। संगठन के उद्देश्यों को ध्यान में रखा जाता है और समूह की भावना का आदर किया जाता है। इसमें नेतृत्व परिवर्तनशील होता है, अधिकार और कर्तव्यों का विकेन्द्रीकरण होता है अर्थात् शक्ति किसी एक के हाथ में न होकर समूह के हाथ में होती है। व्यक्ति के कार्य का मूल्यांकन समूह का दायित्व होता है। वर्तमान में जनतन्त्रीय नेतृत्व को अधिक महत्त्व दिया जाता है। नेता को समूह के नियमों के अनुरूप कार्य करना होता है। समूह के लक्ष्यों को आम सहमति से प्राप्त किया जाता है। अतः श्रेष्ठ परिणामों के लिए समूह के साथ अच्छे सम्बन्ध होना आवश्यक है और इस प्रकार के भय से मुक्त वातावरण में अधिक उपलब्धि की सम्भावना रहती है।
जनतन्त्रीय नेतृत्व परिस्थिति जन्य होता है। आधुनिक युग में यह सबसे प्रशासनिक मान्य नेतृत्व शैली है। नेतृत्व उतना ही सफल माना जाता है, जितना वह अनुकरणकर्ताओं का सहयोग प्राप्त कर पाता है।
जनतन्त्रीय शैली की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF DEMOCRATIC STYLE)
अनुसन्धानों के आधार पर इस शैली की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. इसमें नेतृत्व केवल उन लोगों तक सीमित नहीं है जो पद/प्रस्थिति में है अपितु यह परिस्थिति जन्य होता है। बदली परिस्थिति में दूसरा नेता हो सकता है।
2. इस शैली में अधिकार और कर्तव्य दोनों का विकेन्द्रीकरण होता है।
3. श्रेष्ठ परिणामों के लिए संगठन में कार्य करने वालों की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं की सन्तुष्टि आवश्यक है।
4. जो व्यक्ति निर्णयों और नीतियों से प्रभावित हों, उनका निर्णय प्रक्रिया में भाग लेना आवश्यक है।
5. व्यक्ति गतिशील पर्यावरण में अधिक सुरक्षित रहता है।
6. समूह के लक्ष्यों को आम सहमति व निष्ठा से प्राप्त किया जा सकता है।
7. भय रहित पर्यावरण में अधिकाधिक उपलब्धि सम्भव होती है।
8. व्यक्ति संगठन के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है, वह त्याज्य नहीं है।
9. व्यक्ति के कार्य का मूल्यांकन, समूह का दायित्व होता है।
(3) अहस्तक्षेपीय शैली (Laissez Faire Style)—यह वास्तव की कोई शैली नहीं है क्योंकि इसमें नेतृत्व का स्वयं पर भरोसा नहीं होता है। वह स्वयं अधिक से अधिक कागजी कार्यवाही में अपने को व्यस्त रखता है। वह अधिकांश कार्य को अपने सहयोगियों पर डाल देता है और अपने कार्य को समाप्त मान लेता है। इसमें एक ऐसी स्थिति जन्म लेती है जब ऐसा लगने लगता है कि संगठन नेतृत्व विहीन हो गया है। इस स्थिति में हर व्यक्ति स्वेच्छाचारी हो जाता है। अत: अहस्तक्षेपीय शैली वस्तुत: कोई नेतृत्व शैली नहीं है।
अतः हम देख-समझ सकते हैं कि शैली का निर्धारण समाज की रचना और शासन प्रणाली पर निर्भर करता है। प्रकृति के अनुसार शैलियों को कई भागों में विभाजित किया जा सकता है। अतः दो ही प्रकार की नेतृत्व शैलियों से प्रशासक, प्रबन्धक और प्रधानाचार्य को एक का चयन करना होता है। यद्यपि आजकल एक और शैली व्यवहारी शैली (Transactional Style) काफी प्रचलित है। इसमें प्रशासक/प्रधानाध्यापक मध्यम मार्ग का अनुसरण करता है। नेतृत्व शैलियों का ज्ञान किसी भी प्रभावी प्रधानाध्यापक, प्रशासक के लिए आवश्यक है क्योंकि इनके द्वारा ही वह प्रभावी प्रबन्ध की योग्यता अर्जित कर सकता है। उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह उस नेतृत्व को अपनाए जिससे संगठन व समूह की अपेक्षाओं को पूरा किया जा सके। अधिकारिक व जनतन्त्रीय शैली के गुण और दोषों के आधार पर वह चाहे तो मध्यम वर्गीय शैली विद्यालय प्रबन्धन के लिए चुन सकता है।
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