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श्रम शक्ति पूर्ति के साधन या स्रोत (Sources of Manpower Supply)
श्रम शक्ति की पूर्ति के स्रोतों को सामान्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है- (i) आन्तरिक स्रोत, (ii) बाह्य स्रोत ।
(i) आन्तरिक स्रोत (Internal Sources) –
सामान्यतः यह स्रोत संस्था में मध्य-स्तरीय एवं उच्च-स्तरीय रिक्त पदों की पूर्ति हेतु प्रयोग में लाया जाता है। संस्था के वर्तमान कर्मचारियों की पदोन्नति द्वारा ही रिक्त पदों को भरा जाता है। संस्था अपने विकास के लिए इस नीति को अपनाती है। वास्तव में, यह पद्धति नैतिकता को प्रोत्साहित करती है तथा वेतन सूची में वृद्धि को रोकती है। भर्ती की इस नीति द्वारा एक ओर तो संस्था के वर्तमान कर्मचारियों को पदोन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं एवं उनका मनोबल ऊँचा उठता है तथा दूसरी ओर उनके प्रशिक्षण व्यय में भी कमी आती है।
(ii) बाह्य स्रोत (External Sources) –
संस्था की सम्पूर्ण मानवीय आवश्यकताएँ स्रोतों द्वारा पूरी नहीं की जा सकतीं। यदि पदोन्नति के द्वारा मध्य-स्तरीय एवं उच्च-स्तरीय रिक्त पदों को भी भर लिया जाये तब भी निम्न-स्तरीय पदों की पूर्ति बाह्य स्रोतों से ही करनी होगी। इसलिए भर्ती कार्यक्रम में बाह्य स्रोतों को भुलाया नहीं जा सकता । बाह्य स्रोतों में प्रमुख निम्नलिखित हैं-
(1) वर्तमान कर्मचारियों के मित्र एवं रिश्तेदार- भर्ती के बाह्य स्रोतों में वर्तमान कर्मचारियों के मित्र एवं रिश्तेदार भी सम्मिलित होते हैं। इनकी भर्ती वर्तमान कर्मचारियों के माध्यम से की जाती है। तथा इन पर अपेक्षाकृत नये कर्मचारियों से अधिक विश्वास किया जा सकता है तथा वर्तमान कर्मचारियों को भी सन्तुष्टि रहती है कि उनके मित्र एवं रिश्तेदारों को भी संस्था में काम मिल सकता है।
(2) भूतपूर्व कर्मचारी- भूतपूर्व कर्मचारी जो किन्हीं व्यक्तिगत कारणों (जैसे- बीमारी आदि) से सर्विस छोड़कर चले जाते हैं और वे पुनः काम पर वापस आने के लिए उत्सुक हों तो यह भी श्रम पूर्ति का एक अच्छा साधन है। यह पद्धति मितव्ययी भी हैं और विश्वसनीय भी। जिन कर्मचारियों का पहला रिकार्ड अच्छा हो, जो कुशल और प्रशिक्षित हों तो उन्हें तुरन्त ही ले लिया जाना चाहिए।
(3) विद्यालय एवं प्रशिक्षण संस्थाएँ – रिक्त स्थानों की पूर्ति हेतु विद्यालयों एवं तकनीकी संस्थाओं से भी सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है। अच्छी कम्पनियाँ विद्यालयों एवं तकनीकी संस्थाओं से योग्य एवं कुशल विद्यार्थियों को खोजकर अपने यहाँ रिक्त स्थानों की पूर्ति करती हैं।
(4) श्रम संघ – जिन उद्योगों में श्रम शक्ति पर श्रम संघों का एकाधिकार होता है वहाँ कर्मचारियों की पूर्ति श्रम संघों के माध्यम से की जाती हैं। श्रम संघ के अभिकर्ता से सम्पर्क स्थापित कर आवश्यक मात्रा में कर्मचारियों को नियुक्त किया जाता है।
(5) कारखाने के मुख्य द्वार पर सूचना प्रदर्शित करना- यह तरीका वहाँ उचित रहता है जहाँ आकस्मिक रूप से स्थान खाली होते रहते हैं या श्रमिकों के प्रति स्थानापन्न अस्थायी श्रमिकों की आवश्यकता होती रहती है। इससे पूछताछ का झंझट मिट जाता है।’
(6) पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो आदि में विज्ञापन – कर्मचारियों की भर्ती के लिए इस साधन का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। व्यावसायिक योग्यता वाले व्यक्तियों की भर्ती के लिए प्रायः व्यावसायिक पत्रिकाओं में विज्ञापन दिये जाते हैं, जैसे-इंजीनियरों की नियुक्ति के लिए इंजीनियरिंग-पत्रिकाओं में विज्ञापन दिये जाते हैं, एकाउन्टेण्ट की भर्ती के लिए एकाउन्टेन्सी की पत्रिकाओं जैसे Chartered Accountant आदि में विज्ञापन दिया जा सकता है। सामान्य भर्ती के लिए दैनिक पत्रों जैसे- Hindustan Times, Times of India, Indian Express आदि में विज्ञापन दिये जा सकते हैं।
(7) रोजगार कार्यालय – रोजगार कार्यालय भी श्रम आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण साधन हैं। जिस मात्रा में श्रमिकों की आवश्यकता होती है, रोजगार दफ्तर को लिखकर भेज दिया जाता है। रोजगाकर कार्यालय रजिस्टर्ड नामों में से आवश्यक योग्यता वाले प्रत्यार्शियों द्वारा भर्ती में सहायता प्रदान करता है।
(8) अन्य रोजगार संस्थाएँ – प्राइवेट रोजगार संस्थाएँ भी नये कर्मचारियों की पूर्ति में सहायक होती हैं। ये संस्थाएँ अपनी सेवाओं के लिए कुछ शुल्क लेती है। प्राइवेट रोजगार संस्थाओं का विकास सर्वप्रथम अपनी सेवाओं के लिए कुछ शुल्क लेती हैं। प्राइवेट रोजगार संस्थाओं का विकास सर्वप्रथम अमेरिका में हुआ। अब भारत के बड़े नगरों में इनका विकास हुआ है। ये वास्तव में नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनों के लिए हितकर सिद्ध हुई है।
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