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संगठन के प्रकार (Types of organization)
संगठनों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है-
(i) उद्देश्यों के आधार पर (On the basis of objectives) – उद्देश्यों के आधार पर संगठन (i) व्यावसायिक (ii) सरकारी (iii) सुरक्षा (iv) सेवार्थ, (v) धार्मिक या (vi) सामाजिक हो सकते हैं। व्यावसायिक संगठनों का प्रमुख लक्ष्य लाभोपार्जन होता है अतः उनकी कुशलता का मापदण्ड लाभों का अधिकीकरण होता है। उन्हें एकाकी, साझेदारी, सहकारी तथा समामेलित संगठनों में उपविभाजित किया जा सकता है। सराकरी संगठनों की स्थापना जन-आवश्यकता की वस्तुओं एवं सेवाओं की बिना लाभ के पूर्ति सुरक्षा प्रतिरक्षा प्रशासन एवं न्याय व्ययस्था के उद्देश्यों से की जाती है। उन्हें केन्द्रीय प्रान्तीय या स्थानीय सत्ता, अथवा अन्य सरकारी संगठनों में भी उपविभाजित किया जा सकता है। उनका स्वभाव सार्वजनिक होता है तथा उन्हें सरकार की ओर से कुछ विशेष इंटे प्राप्त होती है। इन पर सरकार तथा जनता का कड़ा नियंत्रण भी रहता है। इनकी सफलता का मापदण्ड की इनकी सेवा की गुणवत्ता में निहित होता है, लाभोपार्जन में नहीं।
सुरक्षार्थ संगठनों की स्थापना जन एवं सम्पत्ति की विभिन्न जोखिमों एवं विपत्तियों से सुरक्षा के उद्देश्यों के की जाती है, जैसे पुलिस सेना या अग्नि शमन संगठन। धार्मिक संगठनों के पीछे किसी धर्म के उपदेशों की शिक्षा एवं उसके प्रचार के उद्देश्य होते हैं। ये अनेकानेक धर्मावलम्बियों की श्रद्धा और विश्वास को बनाए रखने में सहायक सिद्ध होते हैं। जैसे चर्च, मंदिर, मस्जिद या गुरद्वारे तथा सामाजिक संगठन लोगों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं। जैसे मित्र मण्डलियां क्लब, संगीत एवं खेलकूद के संगठन या अन्य सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन। इनका उद्देश्य कला, संगीत खेलकूद की आवश्यकताओं की पूर्ति या सामाजिक कल्याण या संतोष में वृद्धि करना होता है।
(2) अधिकार प्रतिनिधायन के आधार पर (On the basis of Delegation of Authority) – अधिकार हस्तांतरण के आधार पर संगठन (ⅰ) केन्द्रित (centralised) या (ii) विकेन्द्रित (decentralised) हो सकते हैं। व्यवहार में, कोई संगठन न तो पूर्णरूप से केन्द्रित और न ही पूर्णरूप से विकेन्द्रित होता है। पूर्ण केन्द्रित संगठन वही हो सकता है जिसमें किसी को कोई अधिकार हस्तांतरित न किया गया हो, और यदि अधीनस्थ होंगे अधिकार एवं दायित्वों का हस्तांतरण आवश्यक हो जाएगा। और यदि अधीनस्थ नहीं होंगे तो वह संगठन ही नहीं होगा। अतः पूर्ण केन्द्रित संगठन का निर्माण असम्भव है। इसी प्रकार पूर्ण विकेन्द्रीकृत संगठन नहीं हो सकता, क्योंकि इससे अधिकारी और कर्मचारी दोनों स्वतंत्र हो जाएंगे, और जब तक उनमें अधिकार सम्बद्धता और उत्तरदेयता का सम्बन्ध नहीं है वह संगठन हो ही नहीं सकता। अतः केन्द्रीकृत या विकेन्द्रीकृत संगठन एक सापेक्षिक बात है। जहाँ अधिकार अधिक प्रबन्धक में केन्द्रित होते हैं संगठन केन्द्रीकृत और यदि अधिकतर अधिकार व्यक्तियों में बंटे होते हैं तो वह विकेन्द्रीकृत संगठन कहलाता है।
यदि अधिकांश और अधिक महत्वपूर्ण निर्णय जो अधिकांश कार्यों को प्रभावित करते हैं निम्न-स्तरीय अधिकारियों द्वारा लिए जाते हैं, उच्चाधिकारियों द्वारा कम से कम निरीक्षण और हस्तक्षेप किया जाता है, निम्न स्तरीय अधिकारियों को उच्चाधिकारियों से निर्णय लेने के लिए कम से कम परामर्श और आदेश प्राप्त करने होते हैं, उच्चाधिकारियों को कम से कम रिपोर्ट और सूचनाएं प्रेषित करनी होती है, और निम्न स्तरीय निर्णयों की पुष्टि प्रायः उच्चाधिकारियों द्वारा कर दी जाती है, तो यह स्थिति विकेन्द्रीकरण की कही जायेंगी। और यदि इसके विपरीत निम्न-स्तरीय अधिकारियों को स्वतंत्र निर्णय लेने के अधिकार से वंचित रखा गया है, उनको हर छोटी बात के लिए परामर्श और आदेश प्राप्त करना आवश्यक होता है, उच्चाधिकारियों का प्रायः हस्तक्षेप होता है और निम्न- स्तरीय अधिकारियों के निर्णयों की पुष्टि प्रायः नहीं की जाती है, तो यह स्थिति केन्द्रीकरण की कही जायेगी।
कभी-कभी केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण शब्दों का प्रयोग कार्यनिष्पादन के संदर्भ में भी होता है। इस संदर्भ में यह समस्या क्रियाओं के क्षेत्रीय बिखराव और भौगोलिक केन्द्रीकरण की है, और संगठन भौगोलिक दृष्टि से केन्द्रित या विकेन्द्रित कहे जाते हैं। यदि किसी उपक्रम की सारी क्रियाएं एक ही स्थान पर एक ही छत के नीचे सम्पन्न होती हैं तो इस उपक्रम को कार्य- निष्पादन की दृष्टि से केन्द्रीकृत कहा जा सकता है। और इस संदर्भ में उपक्रम् विकेन्द्रीकृत तब कहा जायेगा जब कि उसकी क्रियाएं विभिन्न स्थानों, विभिन्न विभागों में भौगोलिक आधार पर बिखरी हुई है। रेल, तार, बैंक आदि संगठन प्रायः भौगोलिक दृष्टि से विकेन्द्रित होते हैं जबकि कारखाने प्रायः केन्द्रित होते हैं।
(3) अधिकार-सम्बन्धों के आधार पर (On the basis of Authority Relation-ships) – अधिकार-सम्बन्धों के आधार पर संगठन (ⅰ) रेखा संगठन या (ii) रेखा और स्टाफ संगठन हो सकते हैं।
(i) रेखा संगठन (Line Organisation) – एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा अपने अधीनस्थों पर प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया जाने वाला अधिकार रेखाधिकार होता है। इसका प्रवाह सदैव लम्बवत अर्थात ऊपर से नीचे की ओर होता है। रेखीय (Line) या ऊर्ध्वगामी (Vertical) संगठन का प्रमुख लक्षण अधिकारी-अधीनस्थ के सम्बन्ध की स्थापना है अर्थात् एक उच्चाधिकारी अपने अधीनस्थ को कुछ अधिकार सौंपता है, और वह अधीनस्थ अधिकारी, अपनी बारी में, उसमें से कुछ अधिकार अपने अधीनस्थों को सौंपता है, और इसी प्रकार अधिकारों के प्रतिनिधायन या सौंपने का क्रम नीचे तक चलता रहता है, जब तक कि सभी कर्मचारी उस आदेश श्रृंखला में सम्बद्ध नहीं हो जाते। इस क्रमिक अधिकार प्रतिनिधायन से संगठन में एक रेखा या श्रृंखला बन जाती है जो अधिकार सम्बन्धों के स्तर और स्वभाव को प्रदर्शित करती है।
(ii) रेखा और स्टाफ संगठन (Line and Staff Organization) – संगठन में स्टाफ अधिकार का निर्माण रेखाधिकारियों की सेवा, सहायता एवं उन्हें उचित परामर्श देने के लिए किया जाता है जिससे कि रेखाधिकारी कुशलता एवं सुलभता से कार्य कर सकें। स्टाफ अधिकारियों को न तो आदेश देने का अधिकार होता है ना है और न ही कार्य-सम्पन्नता का उत्तरदायित्व उनके ऊपर होता है। यह आदेश श्रृंखला से प्रायः बाहर होते हैं तथा इनका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता। यही कारण है कि कोई संगठन केवल स्टाफ अधिकारों के ऊपर आधारित नहीं हो सकता। संगठन निर्माण के लिए कुछ न कुछ रेखाधिकार की आवश्यकता अवश्य होती है। आज के व्यावसायिक या गैर व्यावसायिक संगठन प्रायः रेखा और स्टाफ संगठन ही होते हैं। आज के विषम संगठनों में रेखाधिकारियों को स्टाफ की सहायता विभिन्न रूपों में आवश्यक होती है।
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