संचार प्रक्रिया की विवेचना कीजिए।
किसी कार्य को जिस क्रम में सम्पादित किया जाता है उसे प्रक्रिया कहते हैं। संचार प्रक्रिया से आशय सूचनाओं, भावनाओं, तथ्यों व दृष्टिकोण को एक पक्ष दूसरे पक्ष को जिस तरीके से आदान प्रदान करता है, उसे सम्प्रेषण प्रक्रिया कहते हैं। सरल शब्दों में, सम्प्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषणकर्त्ता द्वारा दिये गये सन्देश को उपयुक्त माध्यम द्वारा सन्देशग्राही तक पहुँचाया जाता है।
संचार प्रक्रिया में कितने मुख्य अंग होते हैं ?
संचार प्रक्रिया के मुख्य अंग (Main Components of Communication Process)
सम्प्रेषण प्रक्रिया के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-
(1) विचार – विचार किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में उत्पन्न वास्तविकता का संक्षिप्त एवं सरल रूप है। प्रत्येक संवाद चाहे वह लिखित हो अथवा मौखिक, विचार से ही प्रारम्भ होता है। यह विचार किसी बाह्य तथा आन्तरिक घटनाओं के संदर्भ में होते हैं। रेन्डाल के शब्दों में “प्रत्येक सन्देशवाहन (संचार) का प्रारम्भ विचारों से होता है।” विचार स्पष्ट होने चाहिएँ तभी सम्प्रेषण प्रभावशाली व सही होगा।
(2) प्रेषक- प्रेषक संचार प्रक्रिया को आरम्भ करता है यह वह व्यक्ति अथवा संस्था है जो सन्देश प्रदान करता है अर्थात् जिसके उत्तरदायित्व पर सम्प्रेषण होता है। यदि सन्देश उपकरणों के माध्यम से प्रेषित किया जा रहा है तो सन्देश देने वाले को सम्प्रेषक तथा उपकरण के प्रयोगकर्ता को सहायक (Operator) कहते हैं।
(3) प्राप्तकर्त्ता — प्रत्येक सम्प्रेषण में प्राप्तकर्त्ता दूसरा महत्वपूर्ण पक्षकार होता है, जो सन्देश प्राप्तकर्त्ता है। यह सन्देशों को समझने योग्य संकेतों एवं भाषा में परिवर्तित करता है। यही कारण है कि प्राप्तकर्त्ता सम्प्रेषण प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग है, जो न केवल सन्देश प्राप्त करता है बल्कि संदेशों की विवेचना व निहित अर्थ को समझता है और उसे क्रियान्वित करता है।
(4) सन्देश- सम्प्रेषण प्रक्रिया की मूलभूत विषय वस्तु सन्देश है। चूँकि सन्देश में कोई सर्वमान्य शब्द निहित नहीं होते अतः इसे परिभाषित करना अत्यन्त कठिन है फिर भी सन्देश वह है, जिसका सृजन प्रेषक करता है । सन्देश में सूचना, विचार, संकेत, दृष्टिकोण, निर्देश, आदेश, परिवेदना, सुझाव, सलाह आदि शामिल हैं। यह लिखित, मौखिक, शाब्दिक अथवा सांकेतिक होता है।
(5) माध्यम — सम्प्रेषण माध्यम से आशय उस साधन से है, जिसके द्वारा संदेश प्रेषित किया जाता है। सन्देश लिखित, मौखिक एवं सांकेतिक हो सकता है। लिखित सन्देश में पत्र व्यवहार, इण्टरनेट, ई-मेल, जर्नल, पुस्तकें, पत्रिकाएँ, सेमिनार, कैलेन्डर, डायरी आदि का प्रयोग करते हैं जबकि मौखिक सन्देश में टेलीफोन, सेमिनार, विचारगोष्ठी आदि को सम्मिलित करते हैं और सांकेतिक सन्देश में बोर्ड चिह्नों आदि का प्रयोग किया जाता है।
(6) प्रतिपुष्टि – यह सम्प्रेषण प्रक्रिया की अन्तिम क्रिया है जिसमें यह जानना आवश्यक होता है कि प्रेषक द्वारा दिये गये सन्देश को प्राप्तकर्ता ने उसे मौलिक रुप में ग्रहण किया है अथवा नहीं। इस बात को स्पष्ट करने के लिए प्राप्तकर्ता द्वारा की गयी प्रतिक्रियाओं को प्रेषक प्राप्त कर यह अनुमान लगाता है कि सन्देश मौलिक रुप से प्राप्त किया गया है या नहीं। प्रतिपुष्टि संचार का मुख्य तत्व है क्योंकि इससे ही संचार की प्रभाविकता का पता चलता है।
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