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 समन्वय का अर्थ एवं महत्व | Meaning and Importance of Co-ordination in Hindi

 समन्वय का अर्थ एवं महत्व | Meaning and Importance of Co-ordination in Hindi
 समन्वय का अर्थ एवं महत्व | Meaning and Importance of Co-ordination in Hindi

प्रबन्ध की प्रक्रिया में समन्वय के अर्थ एवं महत्व को समझाइये। Explain the meaning and importance of coordination in the management process.

 समन्वय का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Co-ordination)

समन्वय से आशय है निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिये की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं में एकता अथवा तालमेल बनाये रखना समन्व्य की आवश्यकता केवल व्यवसाय में ही नहीं, अपितु सभी स्थानों पर होती है। समन्वय प्रबन्ध का केवलल एक कार्य मात्र ही नहीं अपितु सार भी है।

समन्वय की कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

मैकफरलैण्ड के अनुसार, “समन्वय एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक कार्यकारी अधिकारी अपने अधीनस्थों में सामूहिक प्रयास का एक सुव्यवस्थित स्वरूप विकसित करता है तथा सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु क्रिया सम्बन्धी एकता स्थापित करता है।” तथा रेल के अनुसार, “किसी सामान्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु ली जाने वाली विभिन्न क्रियाओं के मध्य एकता बनाये रखने के उद्देश्य से सामूहिक प्रयत्नों में सुव्यवस्थित करने को समन्वय कहते हैं।”

कूट्ज ओ’डोनेल के अनुसार “समन्वय प्रबन्ध का सार है, जो निर्धारित सामूहिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए व्यक्तिगत प्रयत्नों में सामंजस्य स्थापित करता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समन्वय किसी उपक्रम द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं में सामंजस्य एवं एकता स्थापित करने की प्रक्रिया है ।

समन्वय की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Co-ordination)

समन्वय का महत्व व्यवसाय के साथ-साथ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है। समन्वय के महत्व के कुछ प्रमुख बिन्दु निम्न हैं-

(1) कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि- समन्व्य के कारण कर्मचारियों को कार्य से सन्तुष्टि प्राप्त होती है, जिसके परिणामस्वरूप उनका मनोबल ऊँचा उठता है। इसी कारण वह अधिक लगन, निष्ठा एवं परिश्रम से कार्य करने के लिए प्रेरित हो उठते हैं।

(2) प्रबन्ध के अन्य कार्यों की कुंजी— समन्वय प्रबन्ध के अन्य कार्यों, जैसे नियोजन, संगठन तथा नियन्त्रण आदि की कुंजी है। उदाहरणस्वरूप, व्यावसायिक नियोजन को अर्थपूर्ण बनाने के लिए, उसके विभिन्न तत्वों में प्रभावी समन्वय स्थापित करना बहुत आवश्यक होता है।

(3) विभिन्न योग्यताओं एवं क्षमताओं वाले व्यक्तियों के कार्यों के बीच सन्तुलन स्थापित करना- एक संस्था में विभिन्न योग्यताओं तथा क्षमताओं वाले व्यक्ति कार्य करते हैं, जैसे कुछ अधिक कुशल एवं योग्य होते हैं तो कुछ कम कुशल एवं योग्य होते हैं। समन्वय के द्वारा विभिन्न योग्यताओं एवं क्षमताओं वाले व्यक्तियों के कार्यों के बीच सन्तुलन स्थापित किया जाता है।

(4) आदेशों की एकता के सिद्धान्त का पालन करने के लिये- आदेशों की एकता के सिद्धान्त का पालन तभी किया जा सकता है जबकि उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं में समन्वय स्थापित किया जाय ।

(5) सामूहिक प्रयासों को लाभप्रद वस्तुओं एवं सेवाओं का रूप देना— समन्वय एक ऐसी शक्ति है, जिसके द्वारा व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रयासों का उपयोग करके नवीनतम एवं लाभोपयोगी वस्तुओं एवं सेवाओं का सृजन किया जाता है।

(6) संस्था के साधनों के दुरुपयोग को रोकना- समन्वय संस्था के साधनों के दुरुपयोग को भी रोकता है।

(7) मानवीय सम्बन्धों के महत्व पर बल – किसी कार्य को करने का एक कुशल तरीका मालूम करना अपेक्षाकृत सरल होता है, किन्तु कार्य को विभिन्न व्यक्तियों द्वारा मिल-जुलकर एक समिति के रूप में समन्वित ढंग से कराना ठीक रहता है। आपसी समझ की कमी, अंतिम लक्ष्यों की जानकारी न होना, हठ आदि ऐसी बाधाएँ हैं, जो पूर्व निर्धारित लक्ष्यों के प्राप्त करने के सामूहिक प्रयत्नों के मार्ग में प्रायः आती रहती हैं। इन्हें समन्वय की तकनीकी द्वारा दूर किया जा सकता है। इस प्रकार समन्वय मानवीय सम्बन्धों के महत्व पर बल देता है।

(8) सामूहिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये – किसी भी उपक्रम के निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिये यह आवश्यक है कि विभिन्न व्यक्तियों की क्रियाओं को एक सूत्र में पिरोया जाय अर्थात् समन्वय स्थापित किया जाय।

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Anjali Yadav

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