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समन्वित पाठ्यचर्या (Core Curriculum) : अर्थ, विशेषताएँ एंव सीमाएँ

समन्वित पाठ्यचर्या (Core Curriculum) : अर्थ, विशेषताएँ एंव सीमाएँ
समन्वित पाठ्यचर्या (Core Curriculum) : अर्थ, विशेषताएँ एंव सीमाएँ

समन्वित पाठ्यचर्या (Core Curriculum)

कोर पाठ्यचर्या, एक ऐसी पाठ्यचर्या है जिसमें कुछ विषय तो अनिवार्य होते हैं एवं अन्य विषय ऐच्छिक होते हैं अनिवार्य विषय प्रत्येक छात्र के लिए अनिवार्य होते हैं जबकि ऐच्छिक विषयों के चुनाव के लिए बालक अपनी व्यक्तिगत रुचियों एवं क्षमताओं के आधार पर निर्णय लेने हेतु स्वतन्त्र होता है। यह पाठ्यचर्या अमेरिका की देन है। कोर पाठ्यचर्या विषय-केन्द्रित एवं बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या के विरुद्ध प्रतिक्रिया के फलस्वरूप विकसित हुआ। इसके प्रचलन का मुख्य कारण आधुनिक समय की सामाजिक अव्यवस्था है। यह पाठ्यचर्या इस बात पर अत्यधिक बल देती है कि विद्यालय अधिकाधिक सामाजिक दायित्वों को ग्रहण करें और सामाजिक रूप से योग्य एवं कुशल व्यक्तियों का निर्माण करें।

 अतः समन्वित (कोर) पाठ्यचर्या का उद्देश्य मानव एवं समाज दोनों का विकास करना है साथ ही साथ बालक को व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्याओं से सम्बन्धित ऐसे अनुभव प्रदान करना जिसकी सहायता से वे वर्तमान एवं भावी समस्याओं को समाधान कर सकें। उपर्युक्त उद्देश्य की पूर्ति हेतु समन्वित पाठ्यक्रम में आने वाले अनिवार्य विषय निम्नांकित हैं-

  1. विज्ञान,
  2. कला, संगीत व प्रायोगिक कार्य,
  3. स्वास्थ्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा,
  4. गणित,
  5. भाषा एवं
  6. मानविकी एवं सामाजिक विषय।

1) स्वास्थ्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा- बालकों में (विशेषकर किशोरावस्था में) शारीरिक परिवर्तन एवं विकास तीव्र गति से होता है। ऐसी स्थिति में उन्हें स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा देना अति आवश्यक होता है। स्वास्थ्य विधि एवं स्वास्थ्य विज्ञान पढ़ाने के साथ-साथ बालकों के लिए व्यायाम, सामूहिक खेल, कुश्ती, तैराकी आदि क्रियाओं का भी अध्ययन कराया जाना चाहिए।

2) कला, संगीत एवं प्रयोगात्मक कार्य- किशोर प्रायः भावना एवं कल्पना लोक में विचरण करते रहते हैं। अतः उनके लिए कला, संगीत एवं प्रयोगात्मक कार्यों की परम आवश्यकता होती है। इसलिए विषयों में साहित्य, संगीत, चित्रकला, मॉडलिंग, साज-सज्जा तथा कुछ प्रयोगात्मक क्रियाओं, जैसे- मिट्टी, कागज, लकड़ी, धातु, जिल्दसाजी, कताई-बुनाई से सम्बन्धित क्रियाओं को स्थान दिया जाना चाहिए।

3) विज्ञान- प्रकृति के रहस्यों को जानने कार्यकारण सम्बन्धों को स्थापित करने तथा प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने की क्षमता विकसित करने की दृष्टि से बालकों के विषयों में विज्ञान का समावेश करना अति आवश्यक है। अतः भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, शरीर विज्ञान, वनस्पतिशास्त्र आदि विषयों को पाठ्यचर्या में समाविष्ट किया जाना चाहिए।

4) मानविकी एवं सामाजिक विषय- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः प्रत्येक बालक को मानवीय एवं सामाजिक विषयों को पढ़ने का अवसर दिया जाना आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र, समाजशास्त्र आदि विषयों को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाना चाहिए।

5) गणित- संख्यात्मक ज्ञान, तर्कशक्ति एवं अमूर्त विचारों के विकास तथा दैनिक जीवन की गणितीय आवश्यकताओं की पूर्ति के उद्देश्य से बालकों को अनिवार्य रूप से गणित विषय को पढ़ाने की आवश्यकता है।

6) भाषा- भाषा का ज्ञान एवं प्रयोग मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता है। बालकों के लिए तो भाषा की शिक्षा और भी अधिक महत्त्व रखती है। बालकों को केवल बोलना ही नहीं सीखना होता है वरन् अच्छे तथा सही ढंग से बोलना सीखना होता है। अतः बालकों को भाषा की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। इसके लिए साहित्यिक पुस्तकों, समाचार पत्रों, कहानी की पुस्तकों, कविता-संग्रह आदि का प्रबन्ध करने के साथ-साथ नाटक खेलने, अभिनय करने, वाद-विवाद करने तथा अन्त्याक्षरी करने आदि की भी व्यवस्था होनी चाहिए। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मूल पाठ्यचर्या बाल केन्द्रित होते हुए भी बालकों को जीवन के अनुभव प्रदान करती है तथा यह अत्यन्त व्यावहारिक एवं जीवनोपयोगी है।

समन्वित पाठ्यचर्या की विशेषताएँ (Characteristics of Core Curriculum)

समन्वित पाठ्यचर्या की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1) कोर पाठ्यचर्या चूँकि समस्या सुलझाने पर बल देता है इसलिए इसमें विषय एक-दूसरे 2 से पृथक करके नहीं पढ़ाए जाते बल्कि कई विषय एक साथ ही पढ़ाए जाते हैं।

2) किसी भी विषय को पढ़ाने के लिए निश्चित समय विभाग नहीं होता जैसे- यह आवश्यक नहीं कि कोई विषय मात्र 40 मिनट के समय में समाप्त हो जाना चाहिए। इस विषय का शिक्षण 40 मिनट के घण्टे से कहीं अधिक समय तक भी चल सकता है।

3 ) यह पाठ्यचर्या बाल केन्द्रित होती है क्योंकि यह मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित होती है।

4) यह कार्यों द्वारा समस्याओं को हल करने का अनुभव प्रदान करती है।

5) इस पाठ्यचर्या के द्वारा शिक्षक-शिक्षार्थी के सम्बन्ध अत्यन्त घनिष्ट हो जाते हैं तथा अध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ परामर्श भी चलता है।

6) समन्वित पाठ्यचर्या के द्वारा समस्त बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। 7) बालकों को विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त होता है।

8) इसमें समय-विभाग चक्र लचीला होता है एवं कालांश बड़े होते हैं।

9) समन्वित पाठ्यचर्या सर्वाधिक प्रचलित पाठ्यचर्या के रूप में जानी जाती है।

10) इसमें अधिकतर शैक्षिक कार्यक्रम छात्र एवं शिक्षक मिलकर आयोजित करते हैं।

समन्वित पाठ्यचर्या की सीमाएँ (Limitations of Core Curriculum)

समन्वित पाठ्यचर्या की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

1) दो या दो से अधिक विषयों का सम्मिश्रण होने से शिक्षक पर शिक्षण का भार बढ़ता है।

2) उच्च माध्यमिक स्तर पर जहाँ पाठ्यवस्तु का स्तर एवं परिमाण बढ़ जाता है वहाँ इस पाठ्यचर्या के कार्यान्वयन में विशेष कठिनाई आती है।

3) यह पाठ्यचर्या प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर तक ही उपयुक्त है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अनुपयोगी है।

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Anjali Yadav

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