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समय तालिका का महत्त्व (IMPORTANCE OF TIME TABLE)

समय तालिका का महत्त्व (IMPORTANCE OF TIME TABLE)
समय तालिका का महत्त्व (IMPORTANCE OF TIME TABLE)

समय तालिका का महत्त्व (IMPORTANCE OF TIME TABLE)

विद्यालय में समय तालिका का स्थान महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह वह दर्पण है जिसमें विद्यालय का समस्त शैक्षिक कार्यक्रम प्रतिबिम्बित होता है। वह शिक्षकों के कार्य को व्यवस्थित करती है तथा उन्हें अपने सन्तुलन को बनाये रखने में भी सहायता प्रदान करती है। इसके साथ ही समय तालिका विद्यालय के कार्यक्रम को सुव्यवस्था प्रदान करके समय का सदुपयोग करती है। इसके द्वारा विभिन्न विषयों, क्रियाओं, आदि पर उनके महत्त्व के अनुसार निर्धारित समय का विभाजन करके विद्यालय के निर्धारित समय को अधिकाधिक उपयोगी बनाया जाता है। यदि विद्यालय में समय तालिका का अभाव है या निर्माण उपयुक्त ढंग से नहीं किया गया तो समय एवं शक्ति का दुरुपयोग होना स्वाभाविक है।

समय तालिका का नैतिक दृष्टि से भी बहुत महत्व है। इसके अनुसार कार्य करने से बालकों में विभिन्न आदतों एवं गुणों का विकास होता है। उदाहरणार्थ-समय के महत्त्व को समझने की शक्ति, नियमितता, विधिवत् दृष्टिकोण, कर्तव्यपराणता, आदि। इसका शिक्षकों के लिए भी बहुत महत्व है। यह उनमें भी कार्य के प्रति विधिवत् दृष्टिकोण उत्पन्न करने में सहायता प्रदान करती है।

इसका मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्व है, क्योंकि इसका निर्माण बालकों की रुचियों एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। एक उत्तम समय तालिका का सीखने की प्रक्रिया को सरल बनाने में बहुत महत्त्वपूर्ण हाथ है, जिसमें बालकों की रुन्ति, खाने-पीने, उनके विभिन्न पक्षों के विकास के लिए विभिन्न क्रियाओं के नियोजन, आदि के लिए उचित समय प्रदान किया जाता है।

समय तालिका अनुशासन स्थापित करने का उत्तम साधन है। इसके द्वारा विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन व्यवस्थित रूप से चलाया जाता है। इसके अनुसार कार्य करने से सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। इसके साथ ही समय तालिका द्वारा विद्यालय को कुशलता एवं निश्चितता प्रदान की जाती है।

समय विभाग-चक्र का विरोध (Opposition to Time Table)

आजकल के शिक्षा तथा मनोविज्ञान के पण्डितों का विचार है कि पाठ्यक्रम को विषयों का समूह न मानकर इसको कार्यों का समूह मानना चाहिए। उनका मत है कि बच्चे को समय-विभाग-चक्र के बन्धनों से मुक्त किया जाए। उनके मत में स्कूल में ऐसे कार्य होने चाहिए, जिनके द्वारा बहुत से विषय पढ़ाये जा सकें।

आधुनिक मनोविज्ञान के विशेषज्ञों के मतानुसार प्रत्येक छात्र बहुत-सी बातों में दूसरों से भिन्न हैं। हर एक छात्र की अपनी रुचियाँ तथा मन के झुकाव हैं। हर एक छात्र अपनी गति से कार्य करता है। यदि हर एक को अपने पर छोड़ दिया जाए तो प्रत्येक छात्र यह कार्य करता जायेगा जिसमें उसकी रूचि है। यदि रुचि है तो वह काम को लगन के साथ करेगा। इससे उसे आनन्द भी प्राप्त होगा। परन्तु यदि उसे बन्धन में बाँधकर काम करने के लिए दिया जाए तो वह ध्यान से काम नहीं कर पायेगा। मान लो काम में उसकी रुचि है और घण्टा बज जाता है तो उसका सारा उत्साह मन्द पड़ जाता है। यदि उसकी उस कार्य में रुचि नहीं है तब भी उसे कक्षा में निरुत्साह घण्टे में बैठना ही पड़ता है। यही कारण है कि कुछ शिक्षाशास्त्री समय विभाग-चक्र को खत्म करना चाहते हैं। उनका विचार है कि सारे शिक्षालय के लिए एक जैसा टाइम-टेबिल नहीं होना चाहिए। शिक्षा प्रत्येक छात्र की आवश्यकतानुसार होनी चाहिए। अतः शिक्षण पद्धति भी अलग-अलग होगी।

डाल्टन प्लान– आधुनिक विचारधारा के अनुसार ‘डाल्टन प्लान’ तथा प्रोजेक्ट मैथड का प्रयोग स्कूलों में होना चाहिए। Contract तो Dalton Plan की एक विशेषता है। कक्षा संगठन के रूप में तो रहती है, परन्तु शिक्षण के रूप में समाप्त हो जाती है। इस पद्धति के अनुसार बच्चा किसी विशेष कार्य को विशेष समय में करने का प्रण करता है और अपनी बुद्धि के अनुसार कार्य करता है। ऐसी पद्धति में सम्मिलित समय विभाग-चक्र नहीं होता। इस अवधि में छात्र अपनी सुविधा तथा रुचि के अनुसार जिस विषय को पढ़ना चाहे, पढ़ता है। उस पर केवल एक बन्धन है कि वह निश्चित कार्य को निश्चित समय, जो प्रायः 15 दिन का होता है, में पूरा करे। इस प्रकार छात्र अपनी गति के अनुसार कार्य करता है।

प्रगतिशील शिक्षालयों में निम्नलिखित कार्य सम्बन्धी विशेषताएँ हैं-

(1) पढ़ाने की सामग्री बच्चों की रुचि तथा आवश्यकतानुसार होती है।

(2) क्रियात्मक तथा रचनात्मक कामों के लिए लम्बे घण्टों का प्रबन्ध किया जाता है।

(3) कुछ ऐसे Unassigned’ घण्टे होते हैं जिनमें बच्चे जो कार्य करना चाहें, करें।

(4) शिक्षक स्थिति के अनुसार दैनिक कार्य में परिवर्तन लाने में स्वतन्त्र है।

समय विभाग-चक्र बनाने में कठिनाइयाँ (Difficulties in Framing Time Table)

आदर्श समय-विभाग-चक्र बनाना अति कठिन है। इसके बनाने में अपूर्व दक्षता तथा योग्यता होनी चाहिए। टाइम टेबिल बनाना एक जटिल काम होता है। इसे बनाने में कभी भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। जहाँ तक हो सके, दोषों को दूर करने का यत्न करते रहना चाहिए और ऊपर बताये हुए नियमों का पालन करना चाहिए।

कोई भी टाइम टेबिल प्रत्येक छात्र तथा शिक्षक को सन्तोष नहीं दे सकता। इसका कारण स्पष्ट है। कुछ छात्र बहुत शीघ्र थक जाते हैं और कुछ देर तक कार्य कर सकते हैं। कुछ छात्र एक ही विषय में रुचि रखकर बहुत देर तक पढ़ना चाहते हैं और कोई उस विषय को पढ़ने में जरा भी दिलचस्पी नहीं लेना चाहते। कक्षा में तेज व कमजोर दोनों प्रकार के बालक होते हैं।

जहाँ तक सम्भव हो सके, प्राय: समय विभाग- चक्र ऐसा होना चाहिए जो हमारे छात्रों की मौलिक तथा. रचनात्मक प्रवृत्तियों के विकास में सहायक सिद्ध हो।

प्राय: निम्नलिखित कठिनाइयाँ टाइम टेबिल बनाने में उपस्थित होती हैं-

1. कई स्कूलों में धनाभाव के कारण शिक्षकों की कमी होती है। इसलिए कई शिक्षकों को ऐसे विषय पढ़ाने के लिए दिये जाते हैं, जिनमें उनका ज्ञान काफी नहीं होता है।

2. प्राइमरी स्तर पर कई बार एक अध्यापक को एक ही घण्टे में दो कक्षाएँ पढ़ानी पड़ती हैं, अतः सारे सिद्धान्त धरे के धरे रह जाते हैं।

3. अंशकालिक अध्यापकों की नियुक्ति भी कई बार की जाती है, अतः वे अपने अवकाश के समय में ही स्कूल आ सकते हैं।

4. जब अध्यापक कम हों तो थकान, आदि का विचार छोड़ना पड़ता है। प्रत्येक अध्यापक को अधिक घण्टे पढ़ाने के लिए दिये जाते हैं।

5. भवन की कठिनाई के कारण एक ही कमरे में कई बार कुछ विषयों की पढ़ाई के लिए दो कक्षाओं को इकट्ठे बैठना पड़ता है।

6. गणित का अथवा किसी और विषय का यदि एक ही अध्यापक है तो भी थकावट के के अनुसार समय विभाग-चक्र बनाना कठिन हो जाता है।

मुख्याध्यापक तथा समय-सारणी- टाइम-टेबिल मुख्याध्यापक की अनेक प्रकार से सहायता करता है-

1. स्वीकृत पाठ्यक्रम योजना के अनुसार नियत समय के अन्दर समाप्त हो जाता है। प्रत्येक विषय को उसके महत्त्व के अनुसार तथा कठिनाई के अनुसार स्कूल में समय मिल जाता है।

2. मुख्याध्यापक लाभदायक पाठ्यान्तर विषयों के लिए भी समय-विभाग-चक्र में समय देता है।

3. मुख्याध्यापक इसकी सहायता से शिक्षकों को उनकी योग्यता के अनुसार कक्षाएँ पढ़ाने के लिए देता है।

4. सभी छात्रों को कार्य में लगाये रखा जाता है।

5. छात्रों की शारीरिक तथा मानसिक स्थिति को ध्यान में रखकर कार्य का बँटवारा किया जाता है।

6. मुख्याध्यापक एक ही दृष्टि से जान सकता है कि स्कूल में किस कक्षा में, किस समय, कौन-सा कार्य हो रहा है तथा कौन-सा शिक्षक क्या कार्य कर रहा है ? यदि वह देखता है कि किसी समय कोई कक्षा खाली है तो वह झट उस कक्षा का उचित प्रबन्ध करता है। जिस दिन कोई शिक्षक पाठशाला में नहीं आता तो उसके घण्टे दूसरे शिक्षकों में बाँट दिये जाते हैं, अत: कोई भी कक्षा खाली नहीं रहती। शिक्षक तथा छात्र जानते हैं कि समय-विभाजन-चक्र पर न चलने से प्रधानाध्यापक नाराज होंगे, इसलिए वे ठीक समय पर अपनी कक्षाओं में जाते हैं। कोई भी छात्र कक्षा से बाहर नहीं रह सकता। टाइम-टेबिल सभी के सामने लक्ष्य निर्धारित करता है और शिक्षक तथा छात्र इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए यत्न करते हैं। कार्य निश्चित होने पर वे सारा वर्ष व्यस्त रहते हैं।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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