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समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ | Meaning and Definitions of Sociology in Hindi

समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ | Meaning and Definitions of Sociology in Hindi
समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ | Meaning and Definitions of Sociology in Hindi

समाजशास्त्र का अर्थ और उसकी परिभाषाओं की विवेचना कीजिए।

समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है। यह एक ऐसा विषय है, जिसमें समाज एवं इसके विभिन्न पहलुओं का वस्तुनिष्ठ एवं क्रमबद्ध रूप से अध्ययन किया जाता है। यह राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान तथा मानवशास्त्र की तरह एक सामाजिक विज्ञान है। यह अन्य विषयों की तरह सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक रूप से परिपक्व व स्वतन्त्र विषय है। समाज का विज्ञान होने के नाते इस विषय की उत्पत्ति तभी से मानी जानी चाहिए जब से कि स्वयं समाज का निर्माण हुआ है और मनुष्य ने समाज के विभिन्न पहलुओं के बारे में चिन्तन प्रारम्भ किया है, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। यह एक नवीन विषय है तथा एक संस्थागत विषय के रूप में इसका इतिहास 150 वर्षों से कुछ ही ज्यादा है। अमेरिका में यह एक पृथक् विज्ञान के रूप में सन् 1876 में, फ्रांस में सन् 1889 में और इंग्लैण्ड में सन् 1907 में प्रारम्भ हुआ। बाकी सभी देशों में यह विषय प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् आरम्भ हुआ।

समाजशास्त्र आधुनिक विज्ञान की एक शाखा है। इसके अन्तर्गत मानव समाज के विभिन्न स्वरूपों, उसकी विविध संरचनाओं, प्रक्रियाओं इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। टी० बी० बॉटोमोर ने अपनी पुस्तक समाजशास्त्र का प्रारम्भ इन पंक्तियों से किया है, “हजारों वर्षों से लोगों ने उन समाजों तथा समूहों का अवलोकन एवं चिन्तन किया है, जिसमें कि वे रहते हैं। फिर भी, समाजशास्त्र एक आधुनिक विज्ञान है तथा एक शताब्दी से अधिक पुराना नहीं है।” इनके इस कथन से, इस तर्क की पुष्टि हो जाती है कि समाजशास्त्र एक नवीन विषय है। साथ ही, इससे यह भी पता चल जाता है कि समाज में रहना, इसके बारे में चिन्तन करना तथा समाज का अध्ययन करना दो भिन्न बातें हैं। समाज में रहना ही अगर समाज का अध्ययन करना होता, तो समाजशास्त्र विषय एक अति प्राचीन विषय होता, जोकि वास्तव में नहीं है।

समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Sociology)

समाजशास्त्र समाज का क्रमवृद्ध अध्ययन करने वाला विज्ञान है। ऑगस्त कॉप्ट (Auguste Comte) इसके जन्मदाता माने जाते हैं। इन्होंने ही सर्वप्रथम इस शब्द का प्रयोग सन् 1838 में किया था। यद्यपि पहले इन्होंने इसे सोशल फिजिक्स (Social Physics) कहा, किन्तु यह विषय समाजशास्त्र के नाम से ही स्वीकार किया गया है। समाजशास्त्र शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘सोशियोलोजी’ (Sociology) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है, जिसे दो भार्गो ‘सोशियो’ (Socio) तथा ‘लोजी’ (Logy) में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम शब्द अर्थात् Socio लैटिन भाषा के शब्द Socius तथा दूसरा शब्द अर्थात् Logy ग्रीक भाषा के Logos शब्द से बना है, जिनका अर्थ क्रमशः समाज तथा विज्ञान या अध्ययन है। अतः समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ समाज का विज्ञान अथवा समाज का अध्ययन है।

समाजशास्त्र की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा देना एक कठिन कार्य है। विभिन्न विद्वानों ने इसकी परिभाषा भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों द्वारा दी है। समाजशास्त्रियों द्वारा दी गई परिभाषाओं को हम पाँच प्रमुख श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं-

(1) समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है (Sociology is the Study of Society)

अधिकांश विद्वान् (यथा ओडम, वार्ड, जिसबर्ट तथा गिडिग्स आदि) समाजशास्त्र को समाज के अध्ययन या समाज के विज्ञान के रूप में परिभाषित करते हैं। यही दृष्टिकोण अधिकांश प्रारम्भिक समाजशास्त्रियों का भी रहा है, जिन्होंने समाज का समग्र के रूप में (अर्थात् इसे एक सम्पूर्ण इकाई मानकर) अध्ययन करने पर बल दिया है।

1. वार्ड (Ward) के अनुसार- “समाजशास्त्र, समाज का विज्ञान है।”

2. ओडम (Odum) के अनुसार- “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता है।”

3. जिसबर्ट (Gisbert) के अनुसार- “समाजशास्त्र सामान्यतः समाज के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जाता है।”

4. गिडिग्स (Giddings) के अनुसार- “समाजशास्त्र समम रूप से समाज का क्रमबद्ध वर्णन तथा व्याख्या है।”

समाज के अध्ययन के रूप में दी गई समाजशास्त्र की इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि केवल समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ ही समाज का अध्ययन या समाज का विज्ञान नहीं है, अपितु ओडम, वार्ड, जिसबर्ट तथा गिर्डिग्स आदि विद्वानों ने इसकी परिभाषा देते समय भी समाज को इस विषय का मुख्य अध्ययन विन्दु बताया है। समाज का अर्थ सामाजिक सम्बन्धों की एक व्यवस्था, जाल अथवा ताने-बाने से है। इससे किसी समूह के सदस्यों के बीच पाए जाने वाले पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धों की जटिलता का बोध होता है। दूसरे शब्दों में, जब सामाजिक सम्बन्धों की एक व्यवस्था पनपती है, तभी हम उसे समाज कहते हैं।

विज्ञान क्रमबद्ध ज्ञान अथवा किसी तथ्य अथवा घटना से सम्बन्धित वस्तुनिष्ठ रूप से जानकारी प्राप्त करने का एक तरीका है। इसमें अवलोकन, परीक्षा, प्रयोग, वर्गीकरण तथा विश्लेषण द्वारा वास्तविकता को समझने का प्रयास किया जाता है। यह प्रघटना के पीछे छिपे तथ्य या वास्तविकता को प्राप्त करने का एक मार्ग है। इस प्रकार, जब हम समाजशास्त्र को समाज का विज्ञान कहते हैं तो हमारा तात्पर्य ऐसे विषय से है, जो समाज तथा इसके विभिन्न पहलुओं का क्रमबद्ध अध्ययन करता है।

गिडिग्स समाजशास्त्र को समाज के समग्र स्वरूप का क्रमबद्ध अध्ययन तथा व्याख्या करने वाला विज्ञान मानते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि समाजशास्त्र समाज में होने वाली प्रत्येक घटना और उसके विकास एवं विषय-क्षेत्र के प्रत्येक पहलू का समूल रूप से अध्ययन करने वाला विज्ञान है। इसमें विभिन्न घटनाओं में पाए जाने वाले कार्य-कारण सम्बन्धों का पता लगाने का प्रयास किया जाता है। साथ ही, उनके परिणामों की व्याख्या करने का भी प्रयास किया जाता है। अतः गिडिग्स की परिभाषा इसका यथार्थ अर्थ व्यक्त करने में सफल रही है।

(2) समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन है (Sociology is the Study of Social Relationships)

कुछ विद्वानों जैसे मैकाइवर तथा पेज, क्यूबर, रोज, सिमेल तथा ग्रीन आदि ने समाजशास्त्र को सामाजिक सम्बन्धों के क्रमबद्ध अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है। सामाजिक सम्बन्धों से हमारा अभिप्राय दो या दो से अधिक ऐसे व्यक्तियों के सम्बन्धों से है, जिन्हें एक-दूसरे का आभास है तथा जो एक-दूसरे के लिए कुछ न कुछ कार्य कर रहे हैं। यह जरूरी नहीं है कि सम्बन्ध मधुर तथा सहयोगात्मक ही हों, यह संघर्षात्मक अथवा तनावपूर्ण भी हो सकते हैं। समाजशास्त्री इन दोनों तरह के सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं। सामाजिक सम्बन्ध उस परिस्थिति में पाए जाते हैं, जिसमें कि दो या अधिक व्यक्ति, अथवा दो या अधिक समूह परस्पर अन्तर्क्रिया में भाग लें। सामाजिक सम्बन्ध तीन प्रकार के हो सकते हैं–(i) व्यक्ति तथा व्यक्ति के बीच, (ii), व्यक्ति तथा समूह के बीच, तथा (ii) एक समूह और दूसरे समूह के बीच। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र के सम्बन्ध पहली श्रेणी के उदाहरण हैं। छात्रों का शिक्षक के साथ सम्बन्ध दूसरी श्रेणी का उदाहरण । एक टीम का दूसरी टीम अथवा एक राजनीतिक दल का दूसरे राजनीतिक दल से सम्बन्ध तीसरी श्रेणी का उदाहरण है।

1. क्यूबर (Cuber) के अनुसार- “समाजशास्त्र को मानव सम्बन्धों के वैज्ञानिक ज्ञान के ढाँचे के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

2. सिमेल (Simmal) के अनुसार “समाजशास्त्र मानवीय अन्तःसम्बन्धों के स्वरूपों का विज्ञान है।”

3. मैकाइवर तथा पेजे (Maclver and Page) के अनुसार-“समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है। सम्बन्धों के इस जाल को हम ‘ससाज’ कहते हैं। “

4. ग्रीन (Green) के अनुसार- “इस प्रकार समाजशास्त्र मनुष्य का उसके समस्त सामाजिक सम्बन्धों के रूप में समन्वय करने वाला और सामान्य अनुमान निकालने वाला विज्ञान है।”

5. रोज (Rose) के अनुसार- “समाजशास्त्र मानव सम्बन्धों का विज्ञान है।”

सामाजिक सम्बन्धों के अध्ययन के रूप में समाजशास्त्र को परिभाषित करने वाली उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट पता चल जाता है कि समाजशास्त्र की मुख्य विषय-वस्तु व्यक्तियों में पाए जाने वाले सामाजिक सम्बन्ध हैं। इनके आधार पर ही समाज का निर्माण होता है। मैकाइवर तथा पेज का इस सन्दर्भ में यह कथन उचित ही लगता है कि समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों की श्रृंखला का अध्ययन करने वाला विषय है। ये सामाजिक सम्बन्ध विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं। इनमें जटिलताएँ भी हो सकती हैं और नवीन सामाजिक परिवेश के अनुसार इनके विभिन्न रूप भी हो सकते हैं। सामाजिक सम्बन्ध छिछले, अल्प-जीवी अन्तर्क्रियाओं वाले भी होते हैं और स्थायी अन्तर्क्रिया की प्रणालियों वाले (जैसे परिवार या घनिष्ठ मैत्री) भी। सामाजिक सम्बन्ध में भाग ले रहे लोग मैत्रीपूर्ण भी हो सकते हैं और अमैत्रीपूर्ण भी। वे एक-दूसरे के साथ सहकार भी कर सकते हैं या एक-दूसरे का संहार करने की कामना भी विरोधी सेनाओं के बीच के सम्बन्ध भी सामाजिक सम्बन्ध ही हैं। अतः हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों की जटिल व्यवस्था का क्रमबद्ध और व्यवस्थित तरीके से अध्ययन करने वाला सामाजिक विज्ञान है।

(3) समाजशास्त्र सामाजिक जीवन, घटनाओं, व्यवहार एवं कार्यों का अध्ययन है। is the Study of Social Life, Events, Behaviour and Functions)

कुछ विद्वानों जैसे ऑगबर्ननिमकॉफ, बेनेट व ट्यूमिन, किम्बल यंग तथा सोरोकिन आदि ने समाजशास्त्र को सामाजिक जीवन, व्यक्तियों के व्यवहार एवं उनके कार्यों तथा सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है।

1. बेनेट तथा ट्यूमिन (Beanet and Tumin) के अनुसार- “समाजशास्त्र सामाजिक जीवन के ढाँचे और का विज्ञान है। “

2. सोरोकिन (Sorokin) के अनुसार- “समाजशास्त्र सामाजिक-सांस्कृतिक घटनाओं के सामान्य स्वरूपों, प्ररूपों और विभिन्न प्रकार के अन्तः सम्बन्धों का सामान्य विज्ञान है।”

3. ऑगबर्न तथा निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार- “समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन है।”

4. यंग (Young) के अनुसार- “समाजशास्त्र समूहों में मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन करता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से हमें यह ज्ञात होता है कि समाज का विज्ञान होने के नाते समाजशास्त्र, समाज के अन्य विज्ञानों (यथा राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, मानवशास्त्र आदि) से भिन्न है। इसमें हम सामाजिक जीवन का ही अध्ययन करते हैं। इसके साथ ही साथ, सामाजिक व्यवहार एवं सामाजिक कार्यों का अध्ययन भी इस विषय को अन्य सामाजिक विज्ञानों से पृथक् करता है। सामाजिक व्यवहार का अर्थ ऐसा व्यवहार है, जो अन्य व्यक्तियों के व्यवहार या उनकी प्रत्याशित अनुक्रिया को ध्यान में रखकर किया जाता है।

(4) समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का अध्ययन है (Sociology is the Study of Social Groups) व्यक्ति समाज में अकेला नहीं रहता, बल्कि अन्य व्यक्तियों के साथ रहता है। वास्तव में, व्यक्ति का जीवन विभिन्न सामाजिक समूहों का सदस्य होने के कारण ही संगठित जीवन है। इसी बात को आधार मानकर कुछ विद्वानों (यथा जॉनसन) ने समाजशास्त्र की परिभाषा ही सामाजिक समूहों के अध्ययन के रूप में दी है।

जॉनसन (Johnson) के शब्दों में- “समाजशास्त्र सामाजिक समूहों, उनके आन्तरिक स्वरूपों या संगठन के स्वरूपों, उन प्रक्रियाओं जो उस संगठन को बनाए रखती हैं या परिवर्तित करती हैं और समूहों के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।”

 जॉनसन की उपर्युक्त परिभाषा से हमें यह पता चलता है कि समाजशास्त्र सामाजिक समूहों, इनमें पाए जाने वाले संगठनों तथा इनसे सम्बन्धित प्रक्रियाओं का अध्ययन है। जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी लक्ष्य या उद्देश्य को पाने के लिए एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं अथवा अन्तर्क्रिया करते हैं और इसके परिणामस्वरूप उनके मध्य सामाजिक सम्बन्ध स्थापित होते हैं, तभी उन व्यक्तियों के संग्रह को समूह कहा जा सकता है। इस प्रकार समूह के तीन तत्त्व हो सकते हैं— (1) दो या दो से अधिक व्यक्तियों का संग्रह, (2) उनमें प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सम्बन्धों का होना, तथा (3) उनकी क्रियाओं का आधार सामान्य हित या उद्देश्य का होना।

सभी समूह सामाजिक सम्बन्धों के संकाय होते हैं। इस अर्थ में किसी भी समूह में उसके सदस्यों के बीच कुछ लक्ष्यों की प्राप्तियों के लिए आंशिक सहकार निहित रहता है। समूह के सहकारिता पक्ष का यह अर्थ नहीं कि इसके सदस्यों के बीच बैर हो ही नहीं सकता। एक समूह में प्रतिद्वन्द्विता और स्थायी घृणा का बाजार गर्म हो सकता है, जैसे कि कुछ परिवार होते हैं, लेकिन वह फिर भी समूह बना रहता है। उसके सदस्य भी कभी-कभी अपनी अन्तर्क्रियाओं में कतिपय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सहकार करते रहते हैं। समाजशास्त्र व्यक्ति-व्यक्ति के परस्पर सम्बन्धों की अपेक्षा समूह-समूह के परस्पर सम्बन्धों को अधिक महत्त्व देता है।

समाजशास्त्र अन्तर्क्रियाओं का अध्ययन है (Sociology is the Study of Interactions)

मानव एक सामाजिक प्राणी है। वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर निर्भर है, अतः यह स्वाभाविक ही है कि इन आवश्यकताओं की पूर्ति के दौरान उनमें आपसी सम्बन्ध, सहयोग तथा अन्तर्क्रियाएँ हों। व्यक्तियों की सामाजिक क्रियाओं एवं अन्तर्क्रियाओं का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता है। सभी क्रियाएँ सामाजिक नहीं होतीं। वही क्रियाएँ ‘सामाजिक होती हैं, जो सामाजिक नियमों द्वारा प्रभावित होती हैं और जिनका निर्धारण समाज द्वारा किया जाता है। मैक्स वेबर गिलिन तथा गिलिन और जिन्सबर्ग इत्यादि विद्वानों ने समाजशास्त्र की परिभाषा इन्हीं क्रियाओं तथा अन्तर्क्रियाओं को आधार मानकर देने का प्रयास किया है।

1. गिलिन तथा गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार-  “समाजशास्त्र को विस्तृत अर्थ में जीवित प्राणियों के एक-दूसरे के सम्पर्क में आने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली अन्तर्क्रियाओं का अध्ययन कहा जा सकता है। “

2. वेबर (Weber) के अनुसार- “समाजशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है, जो सामाजिक क्रिया का निर्वचनात्मक अर्थ व्यक्त करने का प्रयत्न करता है ताकि इसकी गतिविधि तथा परिणामों की कारण सहित विवेचना की जा सके।”

3. जिन्सबर्ग (Ginsberg) के अनुसार – “समाजशास्त्र मानवीय अन्तर्क्रियाओं, अन्तःसम्बन्धों, उनकी दशाओं और परिणामों का अध्ययन है।”

सामाजिक अन्तर्क्रियाएँ (Social interactions) ही समाज की मूलाधार हैं। लूमले (Lumley) के अनुसार, “और सम्पर्क तथा अन्तर्क्रियाएँ हमारे जीवन की आधारशिला हैं; वास्तव में, यही वे चीजें हैं, जिन्हें हम सामाजिक अर्थ में समझते हैं; ये समाज के लिए उसी प्रकार से हैं, जिस प्रकार इमारतों के लिए ईंट और चूना होते हैं।” बीसेन्ज तथा बीसेन्ज (Bicsanz and Biesanz) ने भी इसी अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, “समाज की जड़ें सामाजिक अन्तर्क्रियाओं में ही हैं। ” समाज का जन्म ही अन्तर्क्रियाओं के माध्यम से होता है।

सामाजिक अन्तर्क्रिया दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों के बीच होने वाली अर्थपूर्ण क्रिया को कहते हैं। स्पष्ट है कि सामाजिक अन्तर्क्रिया का विश्लेषण करते समय हम क्रिया के कर्ता (Subject) और कर्म (Object) दोनों को सामने रखते हैं। यह वह क्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति या समूह एक-दूसरे को परस्पर रूप से प्रभावित करते हैं। डासन तथा गेटिस (Dawson and Gettys) ने अन्तर्क्रिया को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, “सामाजिक अन्तर्क्रिया प्रक्रिया होती है, जिसके द्वारा मनुष्य एक-दूसरे के मस्तिष्क में अन्तःप्रवेश करते हैं।” इसे हम शतरंज के खेल की स्थिति से समझ सकते हैं। जहाँ शतरंज के मोहरे की प्रत्येक चाल को खेलने वाले खिलाड़ी एक-दूसरे का इरादा समझने का प्रयास करते हैं तथा एक-दूसरे की चाल से प्रभावित होकर अपनी चाल का निर्धारण करते हैं। सामाजिक अन्तर्क्रियाओं के प्रमुख स्तर इस प्रकार है- व्यक्ति की व्यक्ति से अन्तर्क्रिया, व्यक्ति की समूह से अन्तक्रिया, समूह की समूह से अन्तक्रिया तथा समूह की व्यक्ति से अन्तक्रिया ।

निष्कर्ष- प्रमुख विद्वानों द्वारा विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर समाजशास्त्र की जो परिभाषाएँ दी गई हैं, उनसे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि समाजशास्त्र प्रमुख रूप से समाज, सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक जीवन, सामाजिक घटनाओं, व्यक्तियों के व्यवहार एवं कार्यों, सामाजिक समूहों एवं सामाजिक अन्तक्रियाओं का अध्ययन करने वाला विषय है। यह एक आधुनिक विज्ञान है। इसमें मानव व्यवहार के प्रतिमानों तथा नियमितताओं पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इसमें व्यक्तियों, उनके समूहों एवं श्रेणियों के बारे में सामान्य नियम निर्धारित किए जाते हैं। वास्तव में, समाजशास्त्रियों की रुचि उन सभी बातों के अध्ययन में है, जोकि एक-दूसरे के साथ अन्तक्रिया के दौरान घटित होती हैं। उदाहरणार्थ, व्यक्ति किसी विशेष प्रकार का व्यवहार क्यों करते हैं ? वे समूहों का निर्माण क्यों करते हैं? वे युद्ध अथवा संघर्ष क्यों करते हैं ? वे पूजा क्यों करते हैं ? वे विवाह क्यों करते हैं ? वे वोट क्यों डालते हैं ? ऐसे अनगिनत प्रश्नों का उत्तर इसी विषय में खोजने का प्रयास किया जाता है। स्पेलसर (Smelser) के अनुसार, “संक्षेप में, समाजशास्त्र को सामाजिक सम्बन्ध, संस्थाओं तथा समाज के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”

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Anjali Yadav

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