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सम्प्रेषण की प्रमुख बाधाएँ (Main Barriers of Communication)
सम्प्रेषण प्रक्रिया के दौरान कई कारणों से सम्प्रेषण देने वाले तथा प्राप्त करने वाले के मध्य कई प्रकार की बाधाएँ तथा रुकावट आ जाती हैं। जिसका सीधा प्रभाव संस्था के कार्यों पर पड़ता है। जिसके कारण कार्य का सम्पादन उस प्रकार नहीं हो पाता, जिस प्रकार संदेश प्रेषक चाहता है। इस प्रकार आने वाली बाधाएँ कई प्रकार की हो सकती हैं, जिनकी व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती है।
(1) अधिक शब्दों का प्रयोग- कभी-कभी संदेश प्रेषक अपने द्वारा भेजे गये संदेश में जटिल एवं द्विअर्थी शब्दों का अधिक प्रयोग करता है। इसके कारण संदेश प्राप्तकर्ता को उसको समझने में कठिनाई होती है।
(2) सुनने सम्बन्धी बाधाएँ – कभी-कभी संदेश प्रेषक तथा प्राप्तकर्त्ता के मध्य इस प्रकार की बाधा आ जाती है, जब संदेश देने वाला संदेश तो ठीक प्रकार दे रहा हो लेकिन प्राप्तकर्त्ता उस संदेश को उतना नहीं सुन पा रहा हो। इसका कारण संदेश प्राप्तकर्त्ता के आस-पास अधिक शोर होना अथवा संदेश प्राप्तकर्त्ता की सुनने की शक्ति कम होना भी हो सकता है। यदि संदेश प्रेषक यह संदेश फोन पर दे रहा है तो उस दौरान फोन में किसी प्रकार की बाधा भी आ सकती है, जिसके कारण प्राप्तकर्ता को प्रेषक की आवाज स्पष्ट नहीं आती है। अतः संदेश व्यर्थ हो जाता है।
(3) अनुवाद में बाधाएँ – यदि सन्देश प्राप्तकर्त्ता को उस भाषा में संदेश नहीं मिलता है, जो उसकी बोलचाल की भाषा है तो उसे संदेश का अपनी भाषा में अनुवाद करना पड़ता है। जिसके कारण वह उसका उसी अर्थ में अनुवाद नहीं कर पाता, जिस अर्थ में संदेश भेजा गया है। इससे भी संदेश का अर्थ बदल जाता है।
(4) अच्छे मानवीय सम्बन्ध न होना- कभी-कभी संस्था के कर्मचारियों के मध्य अच्छे मानवीय सम्बन्ध नहीं होते, जिसके कारण एक कर्मचारी से दूसरे कर्मचारी तक संदेश पहुँचने में अधिक समय लग जाता है। इससे सम्प्रेषण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो जाती है।
(5) संदेश पर ध्यान न देना- यदि संदेश प्राप्तकर्त्ता आलसी स्वभाव का है तो वह संदेश प्राप्त करते समय उस पर ध्यान नहीं देता। दूसरे शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि प्राप्तकर्त्ता संदेश सुनते समय शारीरिक रूप से उपस्थित रहता है, मानसिक रूप से नहीं। इससे सम्प्रेषण में बाधा उत्पन्न हो जाती है।
(6) गलत समय पर सम्प्रेषण- यदि संदेश प्रेषक ऐसे समय पर संदेश देता है, जब उसके पास समय का अभाव हो या वह किसी अन्य कार्य की जल्दी में हो, तो वह अपनी बात इस बात की परवाह किये बिना ही कि प्राप्तकर्त्ता उसकी बात समझ भी रहा है अथवा नहीं, खत्म कर देता है। ऐसी स्थिति में सम्प्रेषण प्रक्रिया में बाघा आना स्वाभाविक है।
(7) संदेश की अधिकता – यदि कर्मचारियों द्वारा प्राप्त किये जाने वाले संदेश बहुत अधिक मात्रा में होते हैं तो इससे कर्मचारियों के अन्दर आलस्य की भावना उत्पन्न हो जाती है, जिससे सम्ोषण प्रक्रिया में बाधा आने का खतरा बना रहता है।
(8) दूरी सम्बन्धी बाधाएँ- यदि संदेश प्रेषक एवं प्राप्तकर्त्ता के मध्य बहुत अधिक दूरी है तो कभी-कभी संदेश प्राप्तकर्त्ता संदेश को सही समय पर नहीं प्राप्त कर पाता, जिसके कारण सम्प्रेषण प्रक्रिया में बाधा आ जाती है ।
(9) शोर- शोर मौखिक सम्प्रेषण की सबसे बड़ी बाधा है। संस्था के कारखाने में मशीनों की बहुत अधिक आवाज के कारण कर्मचारियों, उनके सुपरवाइजर अथवा उच्च अधिकारियों द्वारा प्राप्त संदेश सही प्रकार से सुनाई नहीं पड़ता, जिसका सीधा प्रभाव उनके द्वारा किये गये कार्यों पर पड़ता है।
(10) भय – अधीनस्थ कर्मचारी अपने अफसरों को नीचे से ऊपर की ओर आने वाले सम्प्रेषण की स्थिति में बुरी सूचनाएँ भेजते हुए डरते हैं, अपने अफसरों से बुरी सूचना से पैदा होने वाले परिणामों के भय से वे जानबूझकर ऐसी सूचनाएँ न बताकर उल्टे गुमराह करते हैं। बहुत से कर्मचारी संस्था से सम्बन्धित अपनी सही भावनाओं को अफसरों को बताने में खतरनाक समझते हैं। कर्मचारियों की यह धारणा होती है कि जब अच्छे सुझावों को देने से कोई लाभ नहीं होगा तो वह कोई सुझाव क्यों दें?
(11) मार्ग में होने वाली हानि – यदि संरचना में अनेक स्तर हैं तो मौखिक सन्देश प्रत्येक स्तर पर घटता जाता है या उसमें कुछ परिवर्तन अवश्य आ जाता है। एक अधिकृत अनुमान के अनुसार, मौखिक सम्प्रेषण में प्रत्येक स्तर पर लगभग 30 प्रतिशत सन्देश समाप्त हो जाते हैं। इसलिये यह मुश्किल हो जाता है कि विभिन्न स्तरों से होकर के प्राप्त सूचना पर भरोसा किया जाये ।
(12) लक्ष्यों का विवाद – संगठनात्मक संरचना में अनेक प्रकार के विभागों तथा उप-विभागों के अपने आन्तरिक लक्ष्य होते हैं जिनके कारण उद्देश्य विवादों का जन्म होता है। फिर भी सम्प्रेषण विवादों को कुछ कम करने वाला मुख्य प्रबन्धकीय तन्त्र है लेकिन विवाद सम्प्रेषण को घटाते हैं। अगर दो पक्षों के मध्य विवाद है तो सम्प्रेषण बहुत कम होगा। इसी तरह शिकायतें, सन्देश, परिवेदनाएँ, अनावश्यक सूचनायें सम्प्रेषित होने लगते हैं जबकि अधीनस्थों को पर्याप्त समय दिया जाये ।
(13) अधीनस्थों पर विश्वास में कमी- उच्चाधिकारियों में सामान्य धारणा यह होती है कि अधीनस्थ कम कौशल एवं क्षमता वाले होते हैं। वे उच्चाधिकारियों को रचनात्मक सुझाव या वांछित जानकारी का सम्प्रेषण नहीं कर सकते हैं।
(14) उचित प्रेरणा का अभाव – प्रेरणा का अभाव भी अधीनस्थों को सम्प्रेषण के प्रति उदासीन बनाता है। संस्था की पुरस्कार एवं दण्ड नीति भी इसके लिये जिम्मेदार है। वे महसूस करते हैं कि उनकी शिकायत, सुझाव आदि से स्थितियाँ कोई परिवर्तित नहीं होंगी।
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