Contents
सामान्य कक्षा-कक्ष (GENERAL CLASS-ROOM)
सामान्य कक्षा-कक्षों का आकार व माप छात्रों की संख्या पर अथवा सरकारी अनुदान प्राप्त विद्यालयों के लिए शिक्षा विभाग के इस विषय में दिये गये आदेशों पर आधारित है। परन्तु शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार एक सामान्य कक्षा-कक्ष में कम से कम 40 छात्रों के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए। स्वास्थ्य की दृष्टि से एक छात्र को 8 या 10 वर्ग फुट स्थान प्राप्त होना उचित समझा गया। कक्षा-कक्ष की संख्या का निर्धारण कक्षाओं एवं उनके खण्डों के ऊपर निर्भर है। एक सामान्य कक्षा-कक्ष में 40 छात्रों के लिए मेजें, कुर्सियों या डैस्कों की व्यवस्था हो, परन्तु उनकी व्यवस्था ऐसे ढंग से की जाय, जिससे शिक्षक प्रत्येक छात्र के पास सरलता से आ-जा सके और शिक्षक की मेज तथा कुर्सी के लिए भी स्थान तंग न हो, प्रत्येक कक्षा कक्ष में दीवारी श्यामपट, शैक्षिक सामग्री को रखने के लिए अल्मारियाँ, मैप-स्टैण्ड, आदि को रखने के लिए भी समुचित व्यवस्था हो। इसके अतिरिक्त कक्षा-कक्षों में प्रकाश एवं वायु-प्रसरण के लिए उपयुक्त व्यवस्था की जाय।
विशेष कक्षा-कक्ष (SPECIAL CLASS-ROOMS)
समाज-विज्ञानों के कक्ष- आधुनिक शैक्षिक प्रवृत्तियों ने इस बात पर बल दिया है कि प्रत्येक विषय के लिए एक विशेष कक्ष होना चाहिए, जिसमें उस विषय का वातावरण निर्मित किया जा सके तथा उस विषय से सम्बन्धित समस्त शैक्षिक सामग्री उसमें ढंग से सजाई जा सके, जिससे शिक्षक एवं छात्र उसका सरलता से सदुपयोग कर सकें। किसी विशेष कक्ष की लम्बाई-चौड़ाई उस विषय की विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए। इतिहास व भूगोल के कक्षों के माप का निर्धारण छात्रों की संख्या से, जो इनमें एक साथ बैठकर शिक्षा प्राप्त करेंगे, होता है। इन कक्षों में छात्रों व शिक्षक के लिए मेज-कुर्सी के अतिरिक्त इन विषयों से सम्बन्धित शिक्षण सामग्री को सुव्यवस्थित रूप से रखने के लिए अल्मारियों, आदि के लिए भी स्थान रहता है। वस्तुतः ये कक्ष सामान्य कक्षा-कक्षों से बड़े होते हैं, क्योंकि सामान्य कक्ष की मेज-कुर्सियों के साथ इनमें शिक्षण-सामग्री और व्यावहारिक कार्य के लिए उपयुक्त मेज-स्टूल, आदि के लिए भी अतिरिक्त स्थान चाहिए। इस बात पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि शिक्षण सामग्री को इस प्रकार से रखा जाय कि उसकी सुरक्षा के साथ-साथ वह सफलतापूर्वक प्रयोग में भी लाई जा सके। बहुधा देखा गया है कि अल्मारियों व शो-केसों, आदि के अभाव में बहुत से कीमती उपकरण विद्यालय में एक-दूसरे के ऊपर व नीचे बैँस-हँसकर एक ही अलमारी में भर दिये जाते हैं। वर्षों उनका प्रयोग नहीं हो पाता। न शिक्षक को पता रहता है कि विद्यालय में कौन-कौन-सी वस्तुएँ उसकी सहायता के लिए प्राप्त हैं, न बेचारे बालकों को कई बार यहाँ तक देखा गया कि कीमती मानचित्रों, चाटों, आदि के कमरे के कोनों में ढेर लगे रहते हैं। विशेष कक्षाओं का आयोजन करते समय शिक्षण सामग्री व उपकरणों के लिए यथोचित व्यवस्था करना परमावश्यक है। रेडियो, प्रोजेक्टर, फिल्में, स्क्रीन, प्रतिमूर्तियों, ग्लोब, चार्ट, सिक्के, मुहरें, मानचित्र, आदि को रखने के लिए अल्मारियों, शो-केसों, आदि के लिए उपयुक्त स्थान का निर्णय इतिहास एवं भूगोल के विशेष कक्षों के निर्माण से पहले ही ले लिया जाय तो शिक्षक को उस कक्ष की सुव्यवस्था करने में कठिनाई नहीं होगी।
गृह-विज्ञान कक्ष- माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के लिए गृह विज्ञान अनिवार्य विषय है। यह विषय अति व्यापक तथा व्यावहारिक है। गृह-संचालन, पाक-विद्या, कपड़ों की धुलाई, सिलाई व कढ़ाई तथा प्राथमिक चिकित्सा एवं गृह-परिचर्या, आदि सभी इस विषय के अन्तर्गत सिखाये जाते हैं। स्पष्ट है कि एक ही कक्षा में इन सबका शिक्षण नहीं हो सकता, क्योंकि प्रत्येक की साज-सज्जा एवं उपकरण भिन्न होंगे। इन कक्षों में व्यावहारिक व प्रायोगिक कार्यों के लिए मेज व कुर्सियों का प्रबन्ध भी भिन्न होगा। कुछ कमरों में चिलमची (Sink) •EACE की भी आवश्यकता होगी। गृह-विज्ञान विभाग में जब तक रसोई-कक्ष, लॉण्डरी (Laundry) कक्ष, सिलाई-कक्ष तथा गृह-परिचर्या व प्राथमिक चिकित्सा, आदि के कक्ष पृथक्-पृथक् न होंगे, तब तक इन विषयों का उचित शिक्षण नहीं हो सकता है।
रसोई-कक्ष में विभिन्न कार्यों के लिए मेजों, आदि के अतिरिक्त सभी आवश्यक सामान व उपकरणों की व्यवस्था के लिए स्थान नियत होना चाहिए। खाना पकाने के बर्तन व रसद, आदि को रखने के लिए भी योजना के अन्तर्गत स्थान देने की आवश्यकता है। इस कक्ष में धुआँ व खाना पकाने की भाप, आदि के निकलने के लिए भी चिमनी व कृत्रिम वायु-प्रसरण का प्रबन्ध हो तो रसोईघर ठण्डा, स्वच्छ व सुविधाजनक रहेगा।
सिलाई कक्ष में प्रकाश की व्यवस्था के साथ सिलाई की मशीनों के लिए उचित स्थान व मेज-कुर्सी हों तो कार्य सफलतापूर्वक हो सकता है। सिले व कढ़े हुए वस्त्रों को रखने व प्रदर्शन के लिए शीशेयुक्त अल्मारियों, आदि का भी आयोजन होने से बहुत सुविधा रहेगी।
इसी प्रकार कपड़ों की धुलाई के कक्ष में कपड़े धोने के लिए सिंक लगाना आवश्यक है। वर्षा ऋतु में कपड़े सुखाने के लिए भी समुचित प्रबन्ध हो तो बहुत सुविधा रहेगी। कपड़े धोने जितनी सामग्री हैं उसके लिए यथोचित साज-सज्जा, अल्मारी, आदि के रहने से कक्षा में सुव्यवस्था रहती है तथा कार्य सुगमता से होता है।
प्राथमिक चिकित्सा तथा गृह-परिचर्या के लिए भी पृथक् कक्ष होने से सुचारु ढंग से शिक्षा दी जा सकती है। इसमें बीमार के लिए पलंग, आरामकुर्सी, मेज, आदि के अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा का अन्य सामान, जैसे-बैडपेन (Bedpen), पट्टियाँ, थर्मामीटर, आदि को रखने के लिए भी स्थान का प्रबन्ध रहना चाहिए।
गृह प्रबन्ध व गृह संचालन की शिक्षा को व्यावहारिक रूप देने के लिए यदि हो सके तो पृथक् कक्ष अवश्य नियत किया जाय। इस कक्ष को गृह के विभिन्न कमरों का रूप देकर अध्यापिका छात्राओं को इस विषय के व्यावहारिक ज्ञान से अवगत करायेगी तथा इसकी शिक्षा को कृत्रिमता से यथार्थता की ओर ले जायेगी।
इन कक्षों के अतिरिक्त एक कक्ष गृह विज्ञान की सैद्धान्तिक शिक्षा के लिए भी होना चाहिए जो कि सामान्य कक्षा-कक्ष की भाँति व्यवस्थित किया जायेगा। इसमें गृह विज्ञान के अन्तर्गत आने वाले सभी विषयों की कक्षाएँ लग सकती हैं।
प्रयोगशालाएँ एवं वर्कशापों की स्थिति (LABORATORIES AND WORKSHOPS)
आज के वैज्ञानिक युग में व्यावहारिक ज्ञान, कौशल एवं दृष्टिकोण को प्राप्त करने पर बल दिया जाता है। विद्यालय के विभिन्न स्तरों के पाठ्यक्रम में विभिन्न वैज्ञानिक विषयों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अतः उनके शिक्षण को व्यावहारिक रूप देने के लिए सुव्यवस्थित एवं सुसज्जित प्रयोगशालाओं की आवश्यकता है। इनके माध्यम से वैज्ञानिक विषयों के शिक्षण को रोचक भी बनाया जाता है और इन विषयों को यथार्थता प्रदान की जाती है। बालक स्वयं क्रिया करके या अन्वेषण करके ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होता है तथा अन्वेषणकर्ता का दृष्टिकोण अपनाता है। विभिन्न वैज्ञानिक विषयों की प्रयोगशालाओं और वर्कशॉपों की आवश्यक सामग्री एवं उनकी व्यवस्था का विस्तृत विवेचन आगे किया जायेगा।
पुस्तकालय की स्थिति (POSITION OF LIBRARY)
पुस्तकालय की स्थिति विद्यालय भवन के मध्य में हो तो सुविधा रहती है। पुस्तकालय की व्यवस्था एवं उसकी आवश्यक साज-सज्जा के सम्बन्ध में आगे विस्तार से वर्णन किया गया है। पुस्तकालय सदैव ही बढ़ता रहेगा। इसलिए इसके विस्तार को ध्यान में रखकर इसको नियोजित करना चाहिए। यदि अध्ययन कक्ष पृथक् नहीं है तो इसमें बालक व शिक्षक एक साथ अधिक संख्या में अध्ययन भी करेंगे। इसलिए इसमें प्राकृतिक वायु प्रसरण व प्रकाश की व्यवस्था के अतिरिक्त बिजली के पंखों व रोशनी का भी प्रबन्ध हो ।
असेम्बली हॉल की स्थिति (POSITION OF ASSEMBLY HALL)
सामान्यतः प्रत्येक विद्यालय में एक बड़ा हॉल होना आवश्यक है। शहरी क्षेत्रों के विद्यालय में तो इसका होना परमावश्यक है। इसकी लम्बाई व चौड़ाई का निर्धारण उन छात्रों की संख्या पर आधारित है, जिनको विद्यालय में स्थान प्रदान करना है, परन्तु उसके निर्माण में भावी आवश्यकताओं का भी ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि यह अवश्यम्भावी है कि अगले कुछ वर्षों में छात्रों की संख्या में वृद्धि हो जाय। इस बात का ध्यान रखा तो आगे चलकर उसका विस्तार करना सम्भव न हो सकेगा। इसमें एक ओर प्लेटफार्म बना हो जिसका प्रयोग नाटक व फिल्म दिखाने तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों असेम्बली, आदि के लिए किया जा सके।
कार्यालय (Office) – सामान्य कक्षों, विशेष कक्षों, हॉल, आदि के अतिरिक्त विद्यालय भवन में प्रधानाचार्य के दफ्तर या कार्यालय की स्थिति व व्यवस्था का पूर्ण ध्यान दिया जाय जिससे विद्यालय संचालन का कार्य सुचारु रूप से हो सके। इसमें क्रमिक फाइलिंग के लिए फाइल कैबिनेट होने से कार्यालय में सुव्यवस्था ही नहीं, अपितु बहुत सुविधा रहेगी। इससे समय की बचत भी हो सकेगी।
शिक्षक-कक्ष (Staff-Room)- शिक्षकों के लिए स्टाफ रूम होना चाहिए जिसमें उनके आराम करने व खाने-पीने के लिए उचित व्यवस्था हो। यदि विद्यालय में सह-शिक्षा की व्यवस्था रखने का विचार हो तो छात्रों व छात्राओं के लिए बैठने, खाने-पीने, आदि के लिए भी पृथक्-पृथक् कक्षों की व्यवस्था की जाय।
जिमनेजियम एवं कैण्टीन (GYMNASIUM AND CANTEEN)
यदि हो सके तो जिमनेजियम, कैण्टीन, आदि के लिए भी व्यवस्था की जाय तो सभी को सुविधा रहेगी। जिमनेजियम विशेषकर वर्षा ऋतु में तथा जिन विद्यालयों के पास खेल के मैदानों की कमी है, बहुत ही आवश्यक है। कैण्टीन में बिना लाभ प्राप्त किये बालकों को दोपहर के भोजन या जलपान का प्रबन्ध किया जा सकता है। इससे बालक बाजारों में गन्दी चीजें नहीं खायेंगे तथा उनका स्वास्थ्य उत्तम बना रहेगा।
साईकिल स्टैण्ड व शौचालय (CYCLESTAND AND LAVATORIES)
छात्रों की साइकिलों को रखने के लिए टिनशेड होना आवश्यक है। इसकी व्यवस्था से साइकिलें सुरक्षित रहेंगी। इसके अतिरिक्त मूत्रालय एवं शौचालय में फ्लश विधि की व्यवस्था की जाय तो स्वच्छता रहेगी। शिक्षकों, छात्रों तथा बालिकाओं के लिए इनकी व्यवस्था पृथक्-पृथक् होनी चाहिए।
पानी की व्यवस्था (WATER’S ARRANGEMENT)
पीने के पानी की उचित व्यवस्था को भवन निर्माण के समय भूलना नहीं चाहिए। जो भी प्रबन्ध किया जाय, वह व्यवस्था रक्षा के नियमों के अनुकूल हो। इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण विद्यालय में प्रकाश तथा वायु प्रसरण की कृत्रिम व प्राकृतिक ढंग की पूर्ण व्यवस्था भली प्रकार रहे। इससे बालकों का स्वास्थ्य ही नहीं, अपितु उनके कार्य में भी उत्तमता आयेगी।
IMPORTANT LINK
- हिन्दी भाषा का शिक्षण सिद्धान्त एवं शिक्षण सूत्र
- त्रि-भाषा सूत्र किसे कहते हैं? What is called the three-language formula?
- माध्यमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम में हिन्दी का क्या स्थान होना चाहिए ?
- मातृभाषा का पाठ्यक्रम में क्या स्थान है ? What is the place of mother tongue in the curriculum?
- मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्य | विद्यालयों के विभिन्न स्तरों के अनुसार उद्देश्य | उद्देश्यों की प्राप्ति के माध्यम
- माध्यमिक कक्षाओं के लिए हिन्दी शिक्षण का उद्देश्य एवं आवश्यकता
- विभिन्न स्तरों पर हिन्दी शिक्षण (मातृभाषा शिक्षण) के उद्देश्य
- मातृभाषा का अर्थ | हिन्दी शिक्षण के सामान्य उद्देश्य | उद्देश्यों का वर्गीकरण | सद्वृत्तियों का विकास करने के अर्थ
- हिन्दी शिक्षक के गुण, विशेषताएँ एवं व्यक्तित्व
- भाषा का अर्थ एवं परिभाषा | भाषा की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- भाषा अथवा भाषाविज्ञान का अन्य विषयों से सह-सम्बन्ध
- मातृभाषा का उद्भव एवं विकास | हिन्दी- भाषा के इतिहास का काल-विभाजन
- भाषा के विविध रूप क्या हैं ?
- भाषा विकास की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता | Unity in Diversity of Indian Culture in Hindi
Disclaimer