Contents
सामूहिक चर्चा (Group Discussion)
सामूहिक चर्चा में बौद्धिक मनोरंजन किया जाता है। इसका आधुनिक अर्थ यह है कि वह सभा जिसमें एक प्रकरण पर वक्तागण अपने विचार प्रस्तुत करते हैं। इसके अन्तर्गत एक क्रम में प्रकरण सम्बन्धी विचारों को प्रस्तुत करने का आयोजन किया जाता है। किसी विशिष्ट प्रकरण पर कोई भी व्यक्ति अपने विचारों को प्रस्तुत कर सकता है।
‘सामूहिक चर्चा समिति का एक ऐसा समूह है जिसमें श्रोताओं को उत्तर के प्रकार के विचारों से अवगत कराया जाता है। श्रोतागण प्रकरण सम्बन्धी सामान्य तैयारी में अपने कुशल हुए विचारों को सम्मिलित करते हैं और नीति, मूल्यों एवं बोधगम्यता के सम्बन्ध में निर्णय लेते हैं।’
सामूहिक चर्चा की प्रक्रिया में समस्या के विभिन्न पक्षों को समझना होता है। सामूहिक चर्चा किसी निर्णय पर नहीं पहुँचती है। श्रोतागण अपने निर्णय लेने में स्वतन्त्र होते हैं। सामूहिक चर्चा के अन्त में भी प्रकरण सम्बन्धी वाद-विवाद खुला रहता है। वक्ताओं एवं श्रोताओं में अन्तःप्रक्रिया नहीं होती है। इसमें अप्रत्यक्ष रूप में अन्तःप्रक्रिया होती है।
सामूहिक चर्चा की विशेषताएँ (Characteristics of Group Discussion)
सामूहिक चर्चा की विशेषताएँ निम्न हैं-
- किसी प्रकरण एवं समस्या के विभिन्न पक्षों का व्यापक रूप में बोध होता है।
- श्रोतागणों को निर्णय लेने की स्वतन्त्रता होती है तथा वक्ताओं को प्रकरण सम्बन्धी अपने विचारों को प्रस्तुत करने की स्वतन्त्रता दी जाती है।
- उच्च कक्षाओं में विशिष्ट प्रकरणों तथा समस्याओं के सम्बन्ध में व्यापक जानकारी दी जाती है।
- समायोजन तथा सहयोग की भावनाओं का विकास किया जाता है।
- मूल्यांकन तथा संश्लेषण की क्षमताओं का विकास किया जाता है।
- प्रकरण या समस्या सम्बन्धी दोनों प्रकार के विरोधी तथा पक्षीय विचारों को सुनने तथा जानने का अवसर मिलता है।
सामूहिक चर्चा के उद्देश्य (Objectives of Group Discussion)
सामूहिक चर्चा का आयोजन निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है-
- किसी तत्कालीन समस्या के विभिन्न पक्षों की जानकारी तथा उन्हें पहचानने की क्षमताओं का विकास करना ।
- किसी प्रकरण के विभिन्न पहलुओं को पहचानना और उन्हें बोधगम्य बनाना ।
- प्रकरण एवं समस्या सम्बन्धी निर्णय लेने की क्षमताओं का विकास करना।
- विद्यार्थियों एवं भागीदारों में व्यापक दृष्टिकोण का विकास करना।
- प्रकरण एवं समस्या सम्बन्धी शंकाओं एवं कठिनाइयों के समाधान एवं स्पष्टीकरण का अवसर देना।
- सामूहिक चर्चा का प्रमुख उद्देश्य ज्ञानात्मक पक्ष के उच्च पक्षों का विकास करना है।
सामूहिक चर्चा की प्रक्रिया (Process of Group Discussion)
सामूहिक चर्चा की व्यवस्था किसी विभाग, संस्था या संगठन द्वारा की जाती है। अनुदेश या व्यवस्थापक सामूहिक चर्चा प्रकरण या समस्या का निर्धारण करना, वक्ताओं को आमन्त्रित करने का आयोजन करती हैं। सामूहिक चर्चा का स्थान एवं तिथियों व समय का निर्धारण करता है। समस्या के विभिन्न पक्षों की पहचान करके वक्तागण उन पर प्रपत्र तैयार करते हैं। प्रत्येक वक्ता के लिए समय भी निश्चित कर दिया जाता है।
सभी वक्ताओं के प्रस्तुतीकरण के पश्चात् अध्यक्ष एक समीक्षा प्रस्तुत करता है। समस्त प्रस्तुती का आलेख तैयार किया जाता है। लिखित रूप से भी आख्या प्रस्तुत की जाती है। प्रपत्र के रूप में सभी श्रोताओं एवं वक्ताओं को वितरित कर दी जाती हैं। सामूहिक चर्चा में अन्तःप्रक्रिया का अवसर नहीं होता है अपितु वक्ताओं के प्रवचनों एवं विचारों को ध्यानपूर्वक सुनते हैं। जो वक्ता प्रकरण एवं समस्या के पक्ष में बोलता है, वह अध्यक्ष के एक ओर तथा विरोधी विचार वाला दूसरी ओर खड़ा होता है।
सामूहिक चर्चा के उपयोग (Uses of Group Discussion)
सामूहिक चर्चा का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में उच्च कक्षाओं के शिक्षण तथा अनुदेशन के लिए किया जा सकता है। कुछ प्रमुख उपयोग इस प्रकार हैं-
- परीक्षा में वस्तुनिष्ठ एवं निबन्धात्मक प्रश्नों का उपयोग,
- शिक्षा में सत्र प्रणाली एवं वार्षिक प्रणाली,
- विद्यार्थियों में अनुदेशनहीनता के कारण,
- शोध कार्यों में गुणवत्ता के विकास हेतु,
- अध्यापक-शिक्षा में विद्यार्थियों की शिक्षण की उपादेयता,
- कक्षा-शिक्षण एवं अनुदेशन में शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग,
- विद्यार्थियों के लिए दूरदर्शन की उपादेयता,
- कक्षा शिक्षण में क्रियात्मक अनुसन्धान का उपयोग,
- सूक्ष्म-शिक्षण का प्रशिक्षण संस्थानों में प्रयोग तथा
- टोली-शिक्षण का विद्यालयों में प्रयोग ।
सामूहिक चर्चा के समय ध्यान देने योग्य बातें (Points to be Considered while Group Discussion)
सामूहिक चर्चा की व्यवस्था में तीन प्रकार की बातों को ध्यान रखना चाहिए-
1) अनुदेशक / व्यवस्थापक को प्रथम सावधानी यह कियह रखनी चाहिए कि वक्ताओं ने अपने प्रवचनों को अच्छी प्रकार तैयार कर लिया है। वे सामूहिक चर्चा की प्रक्रिया व प्रस्तुतीकरण के नियमों से भी भली-भाँति परिचित हैं। अन्य वक्ताओं के विचारों की उन्हें पुनरावृत्ति नहीं करनी चाहिए।
2) द्वितीय सावधानी यह रखनी चाहिए कि अध्यक्ष या अनुदेशक कार्य की एक रूपरेखा तैयार कर लें। वक्ताओं के प्रवचनों को एक क्रम में व्यवस्थित करना होता है। प्रकरण सम्बन्धी किसी महत्वपूर्ण विरोधी विचार को छोड़ना नहीं चाहिए।
3) तृतीय सावधानी प्रश्नों की परिस्थितियों की अवस्था का सावधानी से आयोजन करना चाहिए। साधारणतः सभी वक्ताओं को अन्त में प्रश्नों एवं स्पष्टीकरण के लिए अवसर देना चाहिए। कभी-कभी वातावरण में परिवर्तन लाने के लिए प्रश्नों के लिए अध्यक्ष अवसर देता है।
Important Link…
- अधिकार से आप क्या समझते हैं? अधिकार के सिद्धान्त (स्रोत)
- अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi
- भारार्पण के तत्व अथवा प्रक्रिया | Elements or Process of Delegation in Hindi
- संगठन संरचना से आप क्या समझते है ? संगठन संरचना के तत्व एंव इसके सिद्धान्त
- संगठन प्रक्रिया के आवश्यक कदम | Essential steps of an organization process in Hindi
- रेखा और कर्मचारी तथा क्रियात्मक संगठन में अन्तर | Difference between Line & Staff and Working Organization in Hindi
- संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले संयोगिक घटक | contingency factors affecting organization structure in Hindi
- रेखा व कर्मचारी संगठन से आपका क्या आशय है? इसके गुण-दोष
- क्रियात्मक संगठन से आप क्या समझते हैं? What do you mean by Functional Organization?