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सूर्य नमस्कार | SURYA NAMASKAR
सूर्य नमस्कार सभी प्रकार के आसनों में अधिक प्रचलित है और अधिक लाभकारी भी है। इस आसन से सम्पूर्ण शारीरिक विकास शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक सम्भव है। चित्त की एकाग्रता और आध्यात्मिक दृष्टि से भी यह अत्यन्त उपयोगी है। इस आसन में कई आसन स्वत: ही आ जाते हैं। यह आसन सूर्योदय के समय सूर्य की ओर मुख करके किया जाना चाहिए। इसके लिए खुला और शान्त वातावरण होना चाहिए। थकावट होने पर, रोग की स्थिति में, स्त्रियों में मासिक धर्म तथा गर्भावस्था में इस आसन का अभ्यास नहीं किया जाना चाहिए।
सूर्य नमस्कार सात स्थितियों में किया जाता है…
(1) प्रथम स्थिति— सूर्य की ओर मुख करके दोनों हाथ व पैर जोड़कर हाथों को प्रणाम की मुद्रा में छाती के पास रखते हैं। शरीर और मन को शान्त और शिथिल रखकर धीरे-धीरे रेचक (वायु बाहर निकालना) किया जाता है। इस स्थिति को प्रणामासन भी कहते हैं।
(2) द्वितीय स्थिति— इसमें दोनों हाथों को लम्बा करके पूरक (साँस अन्दर लेना) किया जाता है और हाथों को पीछे की ओर ताना जाता है। इस स्थिति में हाथ और पीठ अधिकतम मात्रा में पीछे की ओर झुकने चाहिए। इस प्रकार शरीर अर्द्धवृत्ताकार स्थिति में हो जाता है। इस स्थिति को हस्तपादासन भी कहते हैं।
(3) तृतीय स्थिति- इस स्थिति में दोनों हाथों को तानकर रेचक (श्वास बाहर निकालना) किया जाता है और दोनों पैरों के बाजू में हथेलियों को टिकाया जाता है। हथेलियाँ भूमि की ओर खुली होती हैं और यह प्रयास होना चाहिए कि नासिका घुटनों से मिले इसका अभ्यास धीरे-धीरे क्रमशः किया जाना चाहिए। इस स्थिति को हलासन कहा जा सकता है।
(4) चौथी स्थिति- इस स्थिति में सिर को ऊपर करके पूरक (साँस को अन्दर खींचना) किया जाता है और दाहिने पैर को पीछे की ओर फैलाया जाता है। किन्तु घुटना और अंगूठा भूमि को स्पर्श करते हुए रहते हैं। बायाँ पैर और हाथों की स्थिति पूर्ववत् रहती है। सिर को पूर्णतया ऊपर उठाया जाता है और मेरुदण्ड को अधिक-से-अधिक मोड़ते हुए शरीर को अर्द्धवृत्ताकार स्थिति में लाया जाता है। इस अवस्था में मुँह ऊपर उठता जाता है। इसमें गर्दन और पृष्ठ भाग की स्थिति घोड़े की नाल के समान हो जाती है। इसे अश्वसंचालन भी कहा जाता है।
(5) पंचम स्थिति- इस स्थिति में दीर्घ रेचक (साँस छोड़ते हुए) हाथों और दाहिने पैर को पूर्व स्थिति में रखा जाता है और सिर को नीचे झुकाकर बायें पैर को पीछे सीधा फैलाकर दाहिने पैर के बराबर किया जाता है। इस प्रकार दोनों पैरों की स्थिति समान हो जाती है। इसमें नितम्ब भाग को ऊपर उठाकर सिर को दोनों बाँहों के बीच में रखकर शरीर को लम्बवत् तानकर कानों को भुजाओं की सीध में रखा जाता है और दृष्टि नाभि पर रखी जाती है तथा दोनों एड़ियों को भूमि पर स्थिर रखा जाता है। इस स्थिति को पर्वतासन भी कहा जाता है।
(6) छठी स्थिति- इस स्थिति में बाह्य कुम्भक (बाहर साँस निकालना) में हाथ-पैरों को पूर्व अवस्था में रखकर दोनों घुटनों को भूमि पर टिकाकर हाथों का सहारा देते हुए छाती और ठोड़ी को भूमि से स्पर्श कराते हैं किन्तु नितम्ब और उदर भाग कुछ ऊपर उठे रहते हैं। इस स्थिति को अष्टांग नमस्कार भी कहते हैं।
(7) सप्तम स्थिति- यह दीर्घ पूरक की स्थिति है। इस स्थिति में कमर के भाग को भूमि पर स्पर्श कराते हैं और हाथों तथा पैरों को पूर्व की अवस्था में रखते हैं। सिर को ऊपर उठाकर हाथों को तथा धड़ भाग को सीधा किया जाता है। सिर और मेरुदण्ड को यथा शक्ति पीछे की ओर मोड़ते हुए अर्द्धवृत्ताकार स्थिति बनाई जाती है। इस स्थिति को पूर्ण भुजंगासन भी कहा जाता है।
सूर्य नमस्कार और शिथिलीकरण (शवासन)- सूर्य नमस्कार की प्रत्येक स्थिति में पूरक और रेचक श्वास पर विशेष ध्यान दिया जाता है। सूर्य नमस्कार के पश्चात् शरीर को पूर्व अवस्था में लाने और माँसपेशियों के तनाव को कम करने के लिए शवासन किया जाता है। इस आसन को करके व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से तनावरहित हो जाता है।
अतः आसन (Posture) और यौगिक अभ्यास (Yogic Exercise) का स्वास्थ्य की दृष्टि से विशेष महत्त्व है। योग पद्धति में शारीरिक पुष्टता और सबलता को महत्त्व दिया जाता है। इसका प्रभाव व्यक्ति के शरीर के साथ-साथ मन पर भी पड़ता है।
योग-प्रशिक्षण (YOGA-TRAINING)
आजकल योग एक कैरियर बन गया है। इसके लिए व्यक्तियों को तैयार करने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था आवश्यक है। अतः विभिन्न निजी संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों ने इसके लिए व्यवस्था की है। इनमें से प्रमुख संस्थान एवं विश्वविद्यालय निम्नांकित हैं—
1. भारतीय योग संस्थान, शालीमार बाग, नई दिल्ली।
2. केन्द्रीय योग अनुसन्धान संस्थान, अशोक रोड, नई दिल्ली।
3. केन्द्रीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा अनुसन्धान परिषद्, ग्रेट कैलाश-II, नई दिल्ली।
4. शिवानन्द मठ व योगाश्रम, कलकत्ता।
5. योग साधना केन्द्र, भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली।
6. योग प्रचार समिति, मन्दिर मार्ग, नई दिल्ली।
7. स्वामी दयानन्द योगाश्रम और चिकित्सा केन्द्र, ग्रेटर कैलाश-I, नई दिल्ली।
निम्नांकित संस्थाओं में भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त कोर्स चल रहे हैं-
1. सागर विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.),
2. पूना विश्वविद्यालय, पूना,
3. नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर,
4. पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़, 5. उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद,
6. गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार,
7. काशी विद्यापीठ, वाराणसी,
8. कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़,
9. योग व प्राकृतिक चिकित्सा विश्वविद्यालय, मैसूर।
योग में डिप्लोमा कोर्स भी चलाये जा रहे हैं। इसमें प्रवेश की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और अधिकतम 30 वर्ष है। न्यूनतम योग्यता 12वीं पास है। इस कोर्स में योग व प्राकृतिक चिकित्सा के सभी पहलुओं में शिक्षा प्रदान की जाती है। उदाहरणार्थ- आयुर्वेद, जैव रसायन, पौष्टिकता, पौष्टिक व्यंजन, स्वास्थ्य, शरीर रचना विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान, अस्पताल का रख-रखाव, आदि। इस कोर्स में आसन, प्राणायाम, ध्यान और मुद्रा के चार प्रैक्टिकल भी शामिल हैं।
अन्त में, हम कह सकते हैं कि योग का कैरियर प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए उपयुक्त है जिसे स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन चाहिए।
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