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स्टाफ के प्रयोग में व्यवहारिक कठिनाइयाँ
व्यवहार में, स्टाफ के प्रयोग करने में निम्नलिखित कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं।
(1) स्टाफ के अधिकार और कर्त्तव्यों के स्पष्टीकरण का अभाव:
प्रायः संगठनों में स्टाफ के अधिकार और कर्तव्य स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं होते जिससे उनकी भूमिका के सम्बन्ध में भ्रान्तियां और झगड़े उत्पन्न हो जाते हैं। स्टाफ का प्रयोग मात्र परामर्श के लिए हो सकता है, या उसे संयुक्त या क्रियात्मक अधिकार भी मिले हो सकते हैं, अथवा स्टाफ-परामर्श की अनिवार्यता हो सकती है। किन्तु यदि स्टाफ के स्वाभाव को रेखाधिकारियों और स्टाफ कर्मचारियों के समक्ष प्रतिनिधायक ने स्पष्ट नहीं किया है, तो विवाद और भ्रान्तियां उत्पन्न होना स्वाभाविक है। अतः स्टाफ के अधिकार और कर्तव्यों को स्पष्ट परिभाषित किया जाना चाहिए, जिससे रेखा और स्टाफ अधिकारियों में कोई अनावश्यक विवाद उत्पन्न न हो।
(2) कुशल एवं निष्ठावान स्टाफ अधिकारियों का अभाव:
कभी-कभी स्टाफ का कार्य करने वाले अधिकारी कुशल या निष्ठावान नहीं होते, जिससे उनका अच्छा उपयोग सम्भव नहीं हो पाता। अतः स्टाफ कर्मचारियों की नियुक्ति के समय यह सुनिश्चित कर लिया जाना चाहिए कि उनमें पर्याप्त तकनीकी ज्ञान, अनुभव और कुशलता है। यह भी आवश्यक है कि उसका व्यवहार अपने बॉस एवं अन्य अधिकारियों से मैत्रीपूर्ण, विनम्र एवं निष्ठावान हो और वह अपने प्रस्तावों पर स्वैच्छिक स्वीकृति प्राप्त करने का ही प्रयास करे। उसे अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और प्रशंसा के स्थान पर संगठन की सामूहिक सफलता में संतोष का अनुभव करना चाहिए। लेकिन प्रायः यह देखा जाता है कि स्टाफ विशेषज्ञ अपनी व्यक्तिगत प्रशंसा के भूखे होते हैं। रेखाधिकारियों की सहायता के स्थान पर वे उनके अधिकार और पद को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं। उन्हें परामर्श देने के स्थान पर उनके कार्यों पर नियंत्रण एवं उनमें हस्तक्षेप करने का प्रयत्न करते हैं। अपने प्रस्तावों में विश्वास उत्पन्न करके उनके लिए स्वैच्छिक स्वीकृति प्राप्त करने के स्थान पर उन्हें रेखाधिकारियों पर बलात् थोपने की कोशिश करते हैं। अतः उनके दृष्टिकोण को सही रखने की बड़ी आवश्यकता होती है। कभी-कभी वरिष्ठ अधिकारी अयोग्य और अनुभवहीन स्टाफ अधिकारियों की नियुक्ति कर देते हैं, जिनका परामर्श मानना और भी परेशानी का विषय बन जाता है। अतः कुशल एवं निष्ठावान् स्टाफ अधिकारियों का चुनाव सावधानी से किया जाना चाहिए।
(3) स्टाफ और रेखाधिकारियों के कार्यों का सम्मिश्रण
कभी-कभी अधिकारी को स्टाफ और संचालन दोनों अधिकार दे दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, सेविवर्गीय प्रबन्धक को कर्मचारी चयन और प्रशिक्षण के संचालन का कार्य एक रेखाधिकारी के रूप में, और उनकी पदोन्नति, कल्याण और सुरक्षा के सम्बन्ध में विभागाध्यक्षों को परामर्श देने का कार्य स्टाफ अधिकारी के रूप में, प्रायः दे दिया जाता है। छोटे प्रतिष्ठानों में भी अधिकारियों की उपलब्धता के अभाव में ऐसा सम्मिश्रण प्रायः कर दिया जाता है। इस प्रकार के अधिकार सम्मिश्रण में एक व्यावहारिक कठिनाई यह उत्पन्न होती है कि एक ही व्यक्ति के स्टाफ और रेखीय व्यक्ति को अलग-अलग बनाए रखना कठिन हो जाता है। अधिकारी स्वयं के लिए भी यह कठिन हो जाता है कि कभी वह कठोर आदेशात्मक रेखाधिकारी का रूप धारण कर ले और कभी मैत्रीपूर्ण स्टाफ परामर्शदाता का। यदि अधिकारी अपने दोहरे व्यक्तित्व के बारे में स्पष्ट भी है, तो भी अन्य लोगों को हर समय इस अन्तर को समझा पाना, उसके लिए एक अत्यन्त ही कठिन कार्य हो जाता है।
(4) प्रतिनिधायक अधिकारी द्वारा स्टाफ की स्वयं अवहेलना:
स्टाफ के प्रयोग में कभी-कभी यह भी समस्या उत्पन्न हो जाती है कि वरिष्ठ रेखाधिकारी, जिसने स्टाफ को अपने कार्यभार से मुक्ति पाने और विशिष्ट परामर्श प्राप्त करने के लिए नियुक्त किया है, स्वयं ही उसकी और उसके परामर्शों की अवहेलना करने लगता हैं। उदहारण के लिए, एक प्रमुख प्रबन्धक, बजट निर्माण और पूंजीगत व्ययों के नियंत्रण के लिए एक बजट-निदेशक की नियुक्ति करता है, जिससे तत्सम्बन्धी परामर्श उसे मिल सके। लेकिन बाद में जब कोई विभागाध्यक्ष उसके ऊपर किसी गैर-बजट-प्रावधान के बड़े पूंजीगत व्यय की अनुमति के लिए दबाव डालता है, तो वह बिना बजट- निदेशक से विचार-विमर्श किए उसकी अनुमति दे देता है। ऐसी स्थति में स्टाफ अधिकारी प्रभावहीन हो जाता है और रेखाधिकारी सीधे वरिष्ठ अधिकारी के पास अनुमति के लिए पहुंचने लगते हैं। अगर प्रमुख अधिकारी ने उक्त विभागाध्यक्ष को पहले बजट-निदेशक की अनुमति के लिए उसके पास भेजा होता, तो उस विभागाध्यक्ष की स्टाफ की अवहेलना करने की प्रवृत्ति को सहारा न मिलता। अतः यदि स्टाफ अधिकारी, का आदेश श्रृंखला में, प्रभाव बनाए रखना है, तो वरिष्ठ अधिकारी को स्वयं भी स्टाफ की प्रतिष्ठा बनाए रखनी चाहिए।
संगठन में स्टाफ की भूमिका बड़ी संवेदनशील होती है, अतः वरिष्ठ अधिकारी को उसके प्रयोग में बहुत सावधानी से काम लेना चाहिए। उसे स्टाफ के कार्यों का निरन्तर समन्वय और मार्गदर्शन करते रहना चाहिये। उसे बहुत सूक्ष्मग्राही, सतर्क और व्यवहार-कुशल होना चाहिए। उसे इस बात का पता लगाते रहना चाहिए कि कहीं स्टाफ अधिकारियों में तानाशाही या आलस्य की प्रवृत्ति तो नहीं पनप रही है, या उनकी सहायता रचनात्मक होने के स्थान पर हानिकारक तो नहीं हो रही है, या कहीं वे आवश्यकता से अधिक उदार या स्वतन्त्रता की नीति तो नहीं अपना रहे हैं। चूंकि संगठन में स्टाफ के निर्माण से नई समस्याओं और सम्बन्धों की उत्पत्ति होती है, इसलिए वरिष्ठ अधिकारी के ऊपर स्टाफ एवं रेखाधिकारियों के सम्बन्धों पर निरन्तर दृष्टि रखने का बड़ा भार रहता है। इस उत्तरदायित्व के कुशल निर्वाह द्वारा ही स्टाफ का अच्छा उपयोग सम्भव है।
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