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19वीं शताब्दी के धर्म सुधार आन्दोलनों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?

19वीं शताब्दी के धर्म सुधार आन्दोलनों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
19वीं शताब्दी के धर्म सुधार आन्दोलनों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?

19वीं शताब्दी के धर्म सुधार आन्दोलनों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?

19वीं शताब्दी में भारत में जो सामाजिक आन्दोलन हुए उसका प्रभाव भारत की राजनीति के सभी क्षेत्रों में पड़ा जो निम्नलिखित है-

(1) सती प्रथा निषेध- सती प्रथा की समाप्ति का आन्दोलन राजा राम मोहन राय ने चलाया। उसके सफल प्रयत्नों के कारण विलियम बैंटिक ने 1826 ई0 में एक कानून पास कराया। सती प्रथा को कानूनन अवैध घोषित किया गया। स्त्री को सती कराना एक कत्ल के बराबर समझा जाने लगा। ब्राह्मणों ने इसका विरोध किया, किन्तु राजा राममोहन राय ने इस विरोध की जरा भी परवाह नहीं की।

(2) शिशु हत्या का निषेध – शिशुओं की हत्या गंगा में फेंककर की जाती थी। कन्या की ओर उचित ध्यान न देकर उसे मार डाला जाता था। इस प्रकार की हत्या 1765 ई0 में तथा 1802 ई. में गैर कानूनी घोषित की गयी क्योंकि राजपूत लोग अपनी कन्याओं को मार डालते थे ।

(3) बाल विवाह तथा बहु विवाह पर रोक- बहु विवाह का विरोध सर्व प्रथम राजा राम मोहन राय ने किया। आर्य समाज के केशवचन्द्र सेन के प्रयत्न से 1872 ई0 में मैरिज एक्ट पास हुआ जिसमें बहु विवाह को दण्डित माना गया। बाल विवाह का भी अन्त किया गया। सन् 1864 ई. में मालावरी नामक पारसी ने बाल विवाह के विरुद्ध महत्वपूर्ण कार्य किया। 1901 ई. में बडोदा राज्य के बनाये गये कानून के अनुसार वर की न्यूनतम आयु 16 वर्ष तथा कन्या की 12 वर्ष कर दी गयी थी। शारदा एक्ट के अनुसार कन्या की न्यूनतम आयु 14 वर्ष तथा लड़के की 18 वर्ष कर दी गयी।

(4) विधवा विवाह का प्रसार- 18वीं शताब्दी में विधवा विवाह के लिए आन्दोलन किये गये। ईश्वर चन्द्र विद्या सागर के प्रयत्नों के फलस्वरूप 1856 ई. में एक कानून पास किया गया, जिसके द्वारा विधवा विवाह को वैध घोषित किया गया। ब्रह्म समाज व आर्य समाज ने इस दिशा में प्रयत्न किये। शशिपद बनर्जी ने 1887 ई0 में कलकत्तें में विधवा सहायता हेतु एक संस्था बनायी। उसी प्रकार रामबापू ने बम्बई में ‘शारदा सदन’, श्री कर्वे ने विधवा आश्रम तथा सर गंगाराम ने लाहौर में विधवा विवाह सहायक सभा बनाई। अखिल भारतीय महिला संघ के द्वारा भी विधवा समस्या के समाधान का प्रयास किया गया।

(5) नारी शिक्षा और स्त्रियों की प्रवृत्ति- सन् 1889 ई0 में कलकत्ता में हिन्दू बालिका विद्यालय बना, धीरे-धीरे उस क्षेत्र में लगातार उन्नति होती गयी। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, थियोसोफिकल सोसाइटी, सर्वेन्ट्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी और दक्षिण शिक्षा समिति ने इस दिशा में अनवरत प्रयास किये। सन् 1907 ई0 में इण्डियन मेडिकल कॉलेज बना और भारतीय रेडक्रॉस सोसाइटी ने महिलाओं को लाभ पहुँचाया। इनके अतिरिक्त महिलाओं के लिए अनेक विद्यालय खोले गये। स्त्रियों की उन्नति के साथ उन्हें कार्यों में भी मौका मिला। पुरुषों की भाँति महिलायें भी शासन के उच्च पदों पर पहुँचने लगीं।

(6) महिला मताधिकार – सन् 1917 ई. के बाद मुस्लिल मताधिकार आन्दोलन को सफलता मिली। स्त्रियाँ कौंसिलों, नगरपालिकाओं तथा अन्य स्थानीय संस्थाओं में चुनी गयीं।

(7) पर्दा प्रथा- मुस्लिम युग में पर्दा प्रथा के पश्चात् से स्त्रियों की दशा खराब होती गयी। शिक्षा के विकास के कारण पद प्रथा का अन्त होने लगा।

(8) दास प्रथा का अन्त- मुस्लिम युग में दास प्रथा का प्रचलन जोरों पर था। सन् 1911 ई0 में अंग्रेजी सरकार ने दासों के आयात पर प्रतिबन्ध लगाया। दासों का विक्रय अपराध घोषित किया गया। सन् 1833 ई0 के चार्टर के द्वारा भारत में दास प्रथा के अन्त का प्रयास किया गया।

(9) जाति प्रथा में ढील- जाति प्रथा में समाज को लाभ कम और हानि अधिक हुई। समाज के वर्गीकरण से वैमनस्य बढ़ा और संकुचित विचार फैले। निम्न वर्ग सदैव से मानवीय अधिकारों से वंचित रहा। सुधार आन्दोलनों के परिणामस्वरूप इस प्रथा की कठोरता समाप्त हुई। खान-पान के बन्धन ढीले हुए। उत्सवों और शिक्षा आदि क्षेत्रों में इस प्रकार के भेदभाव कम होने लगे।

(10) दलित वर्ग का उत्थान- जाति प्रथा के कारण समाज के उच्च तथा निम्न वर्गों के बीच एक खाई बन गयी थी। हिन्दुओं में यह प्रथा कलंक सी बनी रही। ईसाई प्रचारकों तथा हिन्दू धर्म सुधारकों का ध्यान इस ओर गया। ब्रह्म समाज, आर्य समाज तथा थियोसोफिकल सोसाइटी आदि संस्थाओं ने इस दोष को दूर करने का प्रयास भी किया।

(11) धार्मिक परिशोधन- धार्मिक आन्दोलनों के फलस्वरूप हिन्दू धर्म की अनेक बुराइयाँ दूर हुई। शनैः-शनैः अन्धविश्वासों का अन्त होने लगा और एकेश्वरवाद का प्रचार हुआ। मूर्तिपूजा का भी विरोध प्रारम्भ हुआ। धर्म के नाम पर किये जाने वाले कृत्यों की समाप्ति हुई और धर्म के उज्वल रूप सामने आने लगे ।

(12) भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का पुनर्जागरण- धार्मिक आन्दोलनों के फलस्वरूप भारतीय सभ्यता और संस्कृति का पुनर्जागरण हुआ। भारतवासी अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करने लगे और उनमें आत्म गौरव की भावना उत्पन्न हुई।

(13) नव जागरण का सूत्रपात- 19वीं शताब्दी के आन्दोलनों के फलस्वरूप देश में नवजागरण की लहर उठी और भारतीयों में नवजीवन का संचार हुआ। भारतीय निराशा और अन्धकार से निकलकर आशा के प्रकाश में आये और उन्होंने बड़ी तेजी से उत्थान में योगदान देना प्रारम्भ किया।

(14) राष्ट्रीयता की भावना का विकास- यद्यपि 19वीं शताब्दी के आन्दोलनों का उद्देश्य धर्म और समाज को सुधारना था परन्तु राष्ट्रीय जीवन पर भी इन आन्दोलनों का प्रभाव पड़ा। उस युग के अनेक सुधारक भारतीय सभ्यता और संस्कृति के महान उपासक थे उनमें और देश प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी। उनके भाषणों, व्यवहारों और उद्देश्यों के द्वारा भारतीय जनता में भी देश-प्रेम की भावना का जन्म हुआ। भारतीय परतन्त्रता की बेड़ियाँ काटने के लिए कटिबद्ध हो गये।

( 15 ) शिक्षा का प्रसार- 19वीं शताब्दी के धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों के फलस्वरूप भारत में शिक्षा का प्रसार भी तेजी से हुआ। ज्यों-ज्यों भारतीयों में चेतना उत्पन्न होती. गयी वे अन्धविश्वासों का परित्याग करते गये, उनमें शिक्षा के प्रति लगन दृढ़ होती गयी। शिक्षा के प्रसार क्षेत्र में आर्य समाज और राधास्वामी मत ने महान योगदान दिया।

(16) साहित्य की नयी दिशा- 19वीं शताब्दी के आन्दोलनों ने भारतीय साहित्य को एक नवीन दिशा प्रदान की। इसके पूर्व भारतीय साहित्य रंगरेलियों का साहित्य था। इन आन्दोलनों ने साहित्यकारों में भी देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना फूंकी। हिन्दी-साहित्य में भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत ग्रन्थ ‘भारत दुर्दशाः’ लिखा। बंगाल में अनेक अंग्रेजी ग्रन्थों के अनुवाद हुए, फलस्वरूप जनता में चेतना उत्पन्न हुई। बंकिम चन्द्र ने ‘आनन्द मठ’ नामक उपन्यास की रचना करके साहित्य में देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना को स्थान दिया। उनके ‘वन्देमातरम्’ नामक गीत को राष्ट्रगीत बनाया गया। इस युग में साहित्य गगन के कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ टैगोर का भी प्रादुर्भाव हुआ, जिसने अपनी ‘गीताञ्जलि’ से भारतीयों का मस्तिष्क सदैव के लिए ऊपर उठा दिया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि 19वीं शताब्दी के धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने केवल भारतीय समाज के ढाँचे में ही परिवर्तन नहीं किये बल्कि देश के आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन को भी प्रभावित किया। देश में राष्ट्रीय आन्दोलनों को इन आन्दोलनों से बहुत अधिक बल मिला और भारतवासियों का एक बार पुनः अपने धर्म के प्रति अभिमान जाग उठा ।

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Anjali Yadav

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