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“73वें संविधान अधिनियम ने ग्रामीण स्थानीय प्रशासन क्रान्ति ला दी है।”

"73वें संविधान अधिनियम ने ग्रामीण स्थानीय प्रशासन क्रान्ति ला दी है।"
“73वें संविधान अधिनियम ने ग्रामीण स्थानीय प्रशासन क्रान्ति ला दी है।”

“73वें संविधान अधिनियम ने ग्रामीण स्थानीय प्रशासन क्रान्ति ला दी है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।

भारतीय संविधान का 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियिम, जो कि अप्रैल 1993 से प्रभावी हुआ, ने ग्रामीण स्थानीय प्रशासन को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। इस अधिनियम ने संविधान में एक नया अध्याय 9 जोड़ा है। अध्याय 9 द्वारा संविधान में 16 अनुच्छेद और एक अनुसूची- ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गयी है। 24 अप्रैल 1993 से 73वां संविधान अधिनियम 1993 पूरे देश में प्रभावी हुआ।

संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के पारित होने से देश के संघीय लोकतांत्रिक ढांचे में एक नए युग का सूत्रपात हुआ है और पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ है। इस अधिनियम के लागू होने के परिणामस्वरूप, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर लगभग सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों ने अपने कानून बना लिए हैं। बिहार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, पांडिचेरी और गोवा (जिला परिषद) को छोड़कर राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों ने चुनाव सम्पन्न करवा लिए हैं। इसके परिणामस्वरूप देश में ग्राम स्तूर पर 2,26,108 पंचायतों, मध्य स्तर पर 5,736 पंचायतों और जिला स्तर पर पंचायतों के चुनाव करवा लिए हैं। ये पंचायतें लगभग 34 लाख चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा संचालित की जा रही है जिनमें ग्राम स्तर पर 31,98,554 व्यक्ति, मध्य स्तर पर 1,51,412 व्यक्ति और जिला स्तर पर 15,935 व्यक्ति शामिल हैं। इस प्रकार यह एक अत्यधिक व्यापक प्रतिनिधि आधार है जो विश्व के किसी विकसित अथवा विकासशील देश में विद्यमान है। इस अधिनियम की मुख्य विशेषता यह है कि यह अन्य बातों के साथ-साथ इसमें सभी स्तरों पर पंचायतों के नियमित चुनाव, अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं (33 प्रतिशत) के लिए सीटों का आरक्षण और स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाने के उपायों की व्यवस्था है। राज्य वित्त आयोग निधियों का प्रावधान किया गया है।

यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 243-छ में पंचायतों की स्व-शासन की संस्थाओं का प्रावधान है, लेकिन शक्तियों और कार्य सौपने का कार्य राज्य विधानमण्डल की इच्छा के अधीन रखा गया है।

इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

(i) ग्रामसभा – ग्राम सभा गांव के स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगी और ऐसे कार्यों को करेगी जो राज्य विधानमण्डल विधि बनाकर उपबन्ध करें।

(ii) पंचायतों का गठन- अनुच्छेद 243 ख त्रिस्तरीय पंचायती राज का प्रावधान करता है। प्रत्येक राज्य में ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर और जिलास्तर पर पंचायती राज संस्थाओं का गठन किया जाएगा। किन्तु उस राज्य में जिसकी जनसंख्या 20 लाख से अधिक नहीं है वहां मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन करना आवश्यक नहीं होगा।

(iii) पंचायतों की संरचना- राज्य विधानमण्डलों को विधि द्वारा पंचायतों की संरचना के लिए उपबन्ध करने की शक्ति प्रदान की गई है। परन्तु किसी भी स्तर पर पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र की जनसंख्या और ऐसी पंचायत में निर्वाचन द्वारा भी जाने वाले स्थानों की संख्या के बीच अनुपात समस्त राज्य में यथासम्भव एक ही होगा।

पंचायतों के सभी स्थान पंचायत राज्य क्षेत्र के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए व्यक्तियों से भरे जाएंगे। इस प्रयोजन के लिए प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को ऐसी रीति से निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या और उससे आवंटित स्थानो की संख्या के बीच अनुपात समस्त पंचायत क्षेत्र में एक समान रखा गया है।

किन्तु राज्य विधानमण्डल विधि बनाकर ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए: (i) ग्राम स्तर पर पंचायतों के अध्यक्षो का मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों में या जिस राज्य में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतें नहीं हैं, जिला स्तर पर पंचायतों में; (ii) मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों के अध्यक्षों का जिला स्तर पर पंचायतों में; (iii) लोकसभा के या विधानसभा के ऐसे सदस्यों जो ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनका ग्राम स्तर पर कोई पंचायत क्षेत्र पूर्णतः या भागतः समाविष्ट है, ऐसी पंचायत में; (iv) राज्यसभा और राज्य विधान परिषद् के सदस्यों को जिनका नाम मध्य स्तर या जिला स्तर के पंचायत क्षेत्र में मतदाता के रूप में दर्ज है, जिला स्तर पर पंचायतों में प्रतिनिधित्व के लिए उपबन्ध कर सकता है।

ग्राम स्तर पर पंचायत का अध्यक्ष ऐसी रीति से चुना जाएगा जो राज्य विधानमण्डल विधि द्वारा विहित करें। मध्यवर्ती और जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन उसके सदस्यों द्वारा अपने में से ही किये जाने का प्रावधान है।

पंचायतों में आरक्षण- प्रत्येक पंचायत में क्षेत्र की जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे। ऐसे स्थानों को प्रत्येक पंचायत में चक्रानुक्रम (Rotation) से आवंटित किया जाएगा। आरक्षित स्थानों में से 1/3 स्थान अनुसूचित जातियों और जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे।

प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे गए स्थानों की कुल संख्या 1/3 स्थान (जिनके अन्तर्गत अनुसूचित जातियों और जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या सम्मिलित है), महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे और चक्रानुक्रम से पंचायत के विभिन्न क्षेत्रों को आवंटित किए जाएंगे।

(iv) पंचायतों का कार्यकाल- पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष होगा। किसी पंचायत के गठन के लिए निर्वाचन 5 वर्ष की अवधि के पूर्व और विघटन की तिथि से 6 माह की अवधि के अवसान के पूर्व करा लिया जाएगा।

(v) वित्त आयोग- राज्य का राज्यपाल 73वें संशोधन के प्रारम्भ से एक वर्ष के भीतर और उसके बाद प्रत्येक 5 वर्ष के अवसान पर पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्निरीक्षण करने के लिए एक वित्त आयोग का गठन करेगा।

संविधान में केन्द्रीय वित्त आयोग से राज्य वित्त आयोगों की सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों/नगरपालिकाओं के संसाधनों की अनुपूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि में वृद्धि करने के लिए आवश्यक उपायों की सिफारिश करने की अपेक्षा की गई है।

(vi) पंचायतों के निर्वाचन- पंचायतों के निर्वाचन कराने के लिए राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान है। राज्य निर्वाचन आयुक्त को केवल उसी रीति और उसी आधार पर उसके पद से हटाया जा सकता है जैसे कि उच्च न्यायालय के न्यायधीश को पंचायतों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार करने का और पंचायतों के सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियन्त्रण निर्वाचन आयोग में निहित होगा।

(vii) पंचायतों के कार्य- 11वीं अनुसूची में 29 विषय हैं जिन पर पंचायते विधि बनाकर उन कार्यों को कर सकेंगी। ये राज्यों की प्रकृति पर निर्भर करेगा। ये हैं-

1. कृषि जिसके अन्तर्गत कृषि विस्तार का भी प्रावधान है। 2. भूमि सुधार, भूमि सुधार कार्यान्वयन, चकबन्दी और भूमि संरक्षण; 3. लघु सिंचाई, जल प्रबन्ध और जल आच्छादन विकास; 4. पशुपालन, दुग्ध; 5. मत्स्यन उद्योग; 6. सामाजिक वनोद्योग और फार्म वनोद्योग; 7. लघु उत्पादन; 8. लघु उद्योग, जिसके अन्तर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी सम्मिलित है। 9. खादी, ग्राम और कुटीर उद्योग; 10. ग्रामीण आवास, 11. पेयजल; 12. ईधन और चारा, 13. सड़के, पुलियां, पुल, नौघाट, जलमार्ग तथा संचार के अन्य साधनों का विकास; 14. ग्रामीण विद्युतीकरण, 15. गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्रोत; 16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, 17. शिक्षा, जिसके अन्तर्गत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय भी शामिल हैं। 18. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा, 19. प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा; 20. पुस्तकालय, 21. सांस्कृतिक क्रियाकलाप, 22. बाजार और मेले; 23. स्वास्थ्य और स्वच्छता, जिसके अन्तर्गत अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और औषधालय भी हैं। 24. परिवार कल्याण; 25. स्त्री और बाल विकास; 26. समाज कल्याण, जिसके अन्तर्गत विकलांगों और मानसिक रूप से अविकसित व्यक्तियों का कल्याण भी है। 27. जनता के कमजोर वर्गो का और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और जनुसूचित जनजातियों का कल्याण; 28. लोक वितरण प्रणाली, 29. सामुदायिक आस्तियों का अनुकरण,

नयी पंचायत राज व्यवस्था की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता इसमें समाज के कमजोर वर्गों एवं महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित किए जाने की है। दूसरी विशेषता पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल सुनिश्चित किया जाना है। तीसरी विशेषता पंचायती राज संस्थाओं को व्यापक शक्तियां प्रदान किया जाना है। संविधान में ग्यारहवीं अनुसूची जोड़कर पंचायती राज संस्थाओं के अधिकार एवं शक्तियां सुनिश्चित कर दी गई है।

वर्तमान में पंचायती राज संस्थाओं की सबसे बड़ी समस्या संसाधन का अभाव, जरूरत इस बात की है कि इन्हें वित्तीय स्वयत्तता की गारंटी दिया जाए।

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Anjali Yadav

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