सामाजिक विघटन के प्रकार या स्वरूप का वर्णन कीजिए। सामाजिक विघटन के प्रमुख प्रभाव या परिणामों को संक्षेप में समझाइये।
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सामाजिक विघटन के प्रकार अथवा स्वरूप
सामाजिक विघटन के निम्न प्रकार या स्वरूप होते हैं-
1. पारिवारिक विघटन- जब पति-पत्नी और परिवार के अन्य लोगों के सम्बन्धों में तनाव चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो पारिवारिक विघटन आरम्भ हो जाता है। पारिवारिक विघटन में तलाक, अनुशासनहीनता, गृहकलह, पृथक्करण, आदि समस्याओं का समावेश होता है। ये समस्याएँ परिवार के स्वरूप एवं विघटन को ही बल देती हैं।
2. अन्तर्राष्ट्रीय विघटन- जब अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध राष्ट्र आचरण करने लगते हैं तो अन्तर्राष्ट्रीय विघटन प्रारम्भ हो जाता है। बड़े एवं शक्तिशाली राष्ट्र छोटे एवं कमजोर राष्ट्रों को हड़पने का प्रयास करने लगते हैं। साम्राज्यवाद, क्रान्ति, आक्रमण, युद्ध तथा सर्वाधिकारवाद इसके उदाहरण हैं।
3. वैयक्तिक विघटन– वैयक्तिक विघटन में व्यक्ति विशेष का विघटन होता है। इसके अन्तर्गत बाल अपराध, युवा अपराध, पागलपन, मद्यपान, वेश्यावृत्ति, आत्महत्या आदि की समस्याओं को सम्मिलित किया जाता है। यदि किसी समाज में वैयक्तिक विघटन की दर बढ़ जाती है तो वह समाज भी विघटित होने लगता है।
4. सामुदायिक विघटन – जब सम्पूर्ण समुदाय में विघटन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है तो वह सामुदायिक विघटन कहलाता है। सामुदायिक विघटन में बेकारी, निर्धनता, राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा अत्याचार जैसी समस्याओं का समावेश रहता है।
सामाजिक विघटन के प्रमुख प्रभाव या परिणाम
सामाजिक विघटन सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों को प्रभावित करता है। इससे प्रभावित होने वाले प्रमुख पक्ष इस प्रकार से हैं-
1. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव-सामाजिक विघटन का सबसे अधिक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। समाज का आर्थिक संगठन व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति की व्यवस्था करता है, किन्तु जब इस क्षेत्र में विघटन होता है तो लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति होना मुश्किल हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में या तो सम्पूर्ण समाज निर्धनता से पीड़ित होता है या पूँजीवादी व्यवस्था का विकास होने लगता है, जिसके परिणामस्वरूप अमीर और अधिक अमीर होने लगते हैं। यह स्थिति ही संघर्ष और क्रान्ति को जन्म देती है। पूँजीपतियों द्वारा श्रमिक वर्ग का शोषण ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों अपराध, भुखमरी, निर्धनता, बेकारी, चोरी तथा अपहरण आदि में वृद्धि होती जाती है।
2. धार्मिक व्यवस्था पर प्रभाव- धर्म समाज में व्यक्तियों को एक सूत्र में बाँधने का काम करता हैं, परन्तु धार्मिक परिवर्तनों ने व्यक्तियों के परस्पर सम्बन्धों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। गिलिन तथा गिलिन के अनुसार, “धर्म के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन व्यक्ति और धार्मिक समस्याओं में पाए जाने वाले मान्यता प्राप्त सम्बन्ध को प्रभावित करते हैं।”
3. मनुष्य के आचरण पर प्रभाव- सामाजिक विघटन मनुष्य के आचरण पर पर्याप्त प्रभाव डालता है। विघटन के समय व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व को नहीं निभाते और अपने दायित्वों को दूसरे पर डालने लगते हैं तथा इसके विपरीत अपने अधिकारों की अधिक से अधिक माँग करते हैं। सहयोग और सद्भावना के स्थान पर कलह का बोलबाला हो जाता है। व्यभिचार, आत्महत्या, अपराध, मद्यपान आदि सामाजिक विघटन के व्यक्तिगत परिणाम हैं।
4. राजनीतिक संस्थाओं पर प्रभाव-राजनीतिक संस्थाओं के विघटित हो जाने पर व्यक्तियों को अपने अधिकार प्राप्त नहीं होते और उनका जीवन सुरक्षित नहीं रह पाता। राजनीतिक संस्थाओं के अधिकार रखने वाले व्यक्ति (सत्ताधारी) समाज-हित की उपेक्षा कर अपने लाभ के कार्यों में लग जाते हैं। प्रत्येक राजनीतिक संस्था में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाता है और जनसाधारण की स्वतन्त्रता नष्ट हो जाती है। सामाजिक विघटन के परिणामस्वरूप राजनीतिक अस्थिरता भी आ जाती है।
5. नैतिक स्तर पर प्रभाव – सामाजिक विघटन का समाज के नैतिक स्तर पर भी प्रभाव पड़ता है। जिस समाज में विघटन प्रारम्भ हो जाता है, उसके सदस्य अपने स्वार्थ के लिए नैतिकता की बलि दे डालते हैं। समाज में रिश्वत लेना, चोरी करना, अपहरण तथा डकैती आम बात हो जाती है, समाज के प्राचीन प्रतिष्ठित रीति-रिवाज भी लुप्त होने लगते हैं, व्यक्ति को उचित व अनुचित का ध्यान नहीं रहता और उनकी वृत्ति पापमयी हो जाती है।
6. शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव – सामाजिक विघटन की दशा में शिक्षा व्यवस्था भी भ्रष्ट हो जाती है और उसका स्वरूप उद्देश्यहीन हो जाता है। अध्यापक अपने पवित्र कर्त्तव्य को भूल जाते हैं और अध्ययन की अपेक्षा व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्व देने लग जाते हैं। छात्र भी अध्ययन में रुचि न लेकर कर्त्तव्यहीन हो जाते हैं तथा हर ओर अनुशासनहीनता का वातावरण जाता हैं।
7. राजनीतिक व्यवस्था पर प्रभाव – सामाजिक विघटन जब चरम सीमा तक पहुँच जाता है तो इसका परिणाम क्रान्ति होता है। सरकार द्वारा जब जनता के अधिकारों की उपेक्षा की जाने लगती है, उनकी सुविधाओं का ख्याल न कर उन पर आवश्यकता से अधिक कर लगा दिए जाते हैं तब जनता सरकार के विरुद्ध आन्दोलन या क्रान्ति करती है।
8. पारिवारिक व्यवस्था पर प्रभाव – परिवार का सामाजिक जीवन में विशेष महत्व है। सामाजिक संगठन की दिशा में परिवार अपने उत्तरदायित्व का पालन ठीक प्रकार से करता है तथा वह राष्ट्र के लिए उत्तम नागरिकों का निर्माण करता है, किन्तु जब समाज में विघटन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है तो उसका पारिवारिक व्यवस्था पर घातक प्रभाव पड़ता है। परिवार के सदस्यों में परस्पर सहयोग, मतैक्य तथा सद्भावना नहीं रहती तथा प्रत्येक सदस्य परिवार के लाभ की अपेक्षा अपने लाभ को अधिक महत्व देने लग जाता है। संयुक्त परिवार में विघटन की प्रक्रिया आजकल तीव्रता से चल रही है, पति-पत्नी तथा पिता-पुत्र के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती और तलाक तथा विवाह पूर्व यौन सम्बन्धों की संख्या में वृद्धि हो जाती है।
9. बेकारी का प्रसार – सामाजिक विघटन के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में विकार आ जाता है, जिसके कारण समाज में बेकारी का प्रसार होता है, व्यक्तियों में असन्तोष बढ़ता है तथा अलगावपूर्ण प्रवृत्तियाँ विकसित होने लगती हैं।
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