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“अधिकार का भारार्पण किया जा सकता हैं, किन्तु उत्तरदायित्व का नहीं।”

"अधिकार का भारार्पण किया जा सकता हैं, किन्तु उत्तरदायित्व का नहीं।"
“अधिकार का भारार्पण किया जा सकता हैं, किन्तु उत्तरदायित्व का नहीं।”

“अधिकार का भारार्पण किया जा सकता है, किन्तु उत्तरदायित्व का नहीं।” समझाइये। “Authority can be delegated but not responsibility.” Explain.

“अधिकार का भारार्पण किया जा सकता हैं, किन्तु उत्तरदायित्व का नहीं।”

कोई भी प्रबन्धक या प्रशासनिक अधिकारी किसी व्यावसायिक उपक्रम के समस्त कार्य केवल स्वयं के प्रयत्नों से ही पूर्ण नहीं कर सकता, इसके लिए उसे अधिकारों का अन्तरण या हस्तान्तरण का सहारा लेना पड़ता है। भारार्पण एक साधन है, जिसके माध्यम से एक उच्च अधिकारी दूसरे अधीनस्थ अधिकारियों के साथ अपने प्रबन्धकीय अधिकारों में हिस्सा बँटाता है। अधीनस्थ अधिकारी निर्धारित सीमाओं के दायरे में ही काम करते हैं। जिस प्रकार अधिकार प्रबन्ध के कार्य की कुंजी है, उसी प्रकार भारार्पण संगठन की कुंजी है। अतः प्रबन्धक अपने अधिकारों का तो हस्तान्तरण कर सकता है लेकिन प्रबन्धक के कुछ उत्तरदायित्व भी होते हैं, जिनका वह अपने अधीनस्थों या अन्य कर्मचारियों के मध्य बँटवारा नहीं कर सकता है। यहाँ दो भागों में इसे समझा जा सकता है-

(अ) अधिकारों का भारार्पण किया जा सकता है – कोई भी व्यवसायी या प्रबन्धकर्त्ता अपने अधिकारों का भारार्पण करके कार्य को आसान बना सकता है, जिसके बारे में पूर्व में भी कहा जा चुका है। अधिकारों का अन्तरण करके प्रबन्धक अपनी कार्यप्रणाली से और कई लोगों को जोड़ लेता है, जिसके निम्न लाभ होते हैं-

(1) प्रशासनिक भार में कमी – भारार्पण के माध्यम से एक प्रशासनिक अधिकारी ऐसे कार्यों के भार से मुक्त हो जाता है, जो छोटी किस्म के हैं; अर्थात् विशेष महत्व के नहीं हैं; किन्तु उनके करने में पर्याप्त समय व्यतीत होता है। ऐसे कार्यों को अपने अधीनस्थों को सौंपकर वह अपनी सारी शक्ति महत्वपूर्ण उत्तरदायित्वों के निभाने में लगा सकता है। भारार्पण की अयोग्यता के कारण अधिकारीगण छोटे-छोटे कार्यों को करने में तो अपनी शक्ति का अपव्यय करते ही हैं, साथ ही महत्वपूर्ण कार्यों की ओर भी समुचित ध्यान नहीं देते, जिसके कारण उपक्रम को क्षति पहुँचती है।

(2) समन्वय का साधन – चूँकि भारार्पण का प्रमुख उद्देश्य संगठन में रचनात्मक सम्बन्धों की स्थापना करना है, अत: यह लोगों में समन्वय तथा एकता स्थापित करने में सफल हुआ है। रेखा कर्मचारी तथा क्रियात्मक अधिकारी के सम्बन्ध ऊँचे तथा नीचे कर्मचारियों के सम्बन्ध में भारार्पण के माध्यम से एक-दूसरे के साथ बंधे रहते हैं। यदि भारार्पण समुचित ढंग से नहीं किया जाए, तो इसके संगठन में समन्वय की समस्या उत्पन्न हो जाएगी।

(3) अधीनस्थों के नैतिक स्तर में सुधार – जिन अधीनस्थ कर्मचारियों को कार्यभार सौपा जाता है, उन्हें अपनी योग्यता तथा कार्य-कुशलता का प्रदर्शन करने का सुअवसर प्राप्त होता है। भारार्पण के परिणामस्वरूप अधीनस्थों के पदों का महत्व बढ़ता है तथा उन्हें अपने कार्य से अधिक सन्तोष मिलता है। फलतः उनका नैतिक स्तर एवं मनोबल ऊँचा उठता हैं।

(4) व्यवसाय के विस्तार में सुविधा – जब उच्च अधिकारी भारार्पण के माध्यम से ऐसे कार्यों के करने से मुक्त हो जाते हैं, जो कि छोटी किस्म के हैं, किन्तु उनको करने में अधिक समय लगता है, तो वे अपना सारा ध्यान व्यवसाय के विस्तार की ओर केन्द्रित कर सकते हैं। यह भारार्पण की कला की ही देन है, जो कि आज व्यावसायिक जगत में बड़े-बड़े उपक्रमों का निर्माण सम्भव हो सका है।

(5) अधीनस्थों का विकास – भारार्पण अधीनस्थों को इस बात का सुअवसर प्रदान करता है कि वे अपने पदों का क्षेत्र समझने की शक्ति तथा क्षमता का विकास करें। जब अधीनस्थ कर्मचारी अधिक उत्तरदायित्व वहन करने तथा महत्वपूर्ण निर्णय लेने लगते हैं, तो उच्च अधिकारी उनकी योग्यता का और अधिक विकास होने के लिए अवसर प्रदान करते हैं। ऐसा होने से पदोन्नति सरल हो जाती है।

(6) अन्य लाभ – भारार्पण के और भी कई लाभ होते हैं, जैसे- (i) भारार्पण प्रभावी संगठन की आधारशिला है; (ii) भारार्पण के होने से निर्णयन का कार्य निम्न स्तर तक सम्पन्न होता है। इससे निर्णयन के क्षेत्र में हिस्सेदारी बढ़ती है तथा पारस्परिक सहयोग भी बढ़ता है; (iii) इससे स्थानापन्न की समस्या हल हो जाती है। (iv) भारार्पण अधीनस्थों को प्रशिक्षण प्रदान करने का कार्य करता है। (v) भारार्पण प्रबन्धकीय पर्यवेक्षण को प्रभावी बनाता है।

(ख) उत्तरदायित्व का भारार्पण नहीं किया जा सकता – कोई भी प्रबन्धक यदि अपने अधिकारों का भारार्पण अन्य कर्मचारियों या अधिकारियों को करता है, तो यह उसकी कार्यशैली में निखार ला देता है तथा अन्य व्यक्तियों से काम कराना सरल कर देता है, लेकिन प्रबन्धक या शीर्ष नेतृत्व के कुछ उत्तरदायित्व भी होते हैं, जिन्हें वह स्वयं ही पूरे कर सकता है, अन्य व्यक्ति नहीं। उत्तरदायित्व या कर्त्तव्यपालन व्यक्तिगत होता है जिसे अन्यों पर नहीं डाला जा सकता है। उत्तरदायित्व का निर्वाह अधिकारी या प्रबन्धक का स्वयं होना चाहिए उसकी जवाबदेही भी स्वयं की होती है अर्थात् वह अपने दायित्व की जिम्मेदारी अन्य पर हस्तान्तरित करके बेच नहीं सकता है। इसीलिए कहा जाता है कि उत्तरदायित्व का भारार्पण नहीं किया जा सकता है। उत्तरदायित्व के हस्तान्तरण के निम्न दोष या हानियाँ है-

(1) जवाबदेही का निर्धारण – प्रबन्धक यदि अपने उत्तरदायित्व को भी अन्य कर्मचारियों को भारार्पण कर देता है, तब उस निश्चित कार्य की पूर्णता की जवाबदेही किसकी हो यह निर्धारण करना मुश्किल हो जाता है। उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए या कार्य अपूर्ण या गलत हो जाने पर कौन जिम्मेदार हो, यह तय करना मुश्किल हो जाता है।

(2) उपयोगिता में ह्रास – प्रबन्ध या प्रशासन अपने अधिकारों के साथ दायित्वों का भी हस्तान्तरण कर दें, तो उनकी स्वयं की क्या उपयोगिता होगी ? इस हस्तान्तरण से प्रबन्धक की उपयोगिता में कमी आती है।

(3) प्रेरणा का अभाव – यदि श्रेष्ठी वर्ग ने अपने दायित्वों को अन्य व्यक्तियों पर हस्तांतरित कर दिया है. तो उन व्यक्तियों को दायित्वबोध हमेशा सताता रहेगा एवं वे सहज होकर काम नहीं कर पाएँगे, इस तरह उन्हें कार्य करने की प्रेरणा नहीं मिल सकेगी।

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Anjali Yadav

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