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विकेन्द्रीकरण की प्रकृति एवं तत्व (औचित्य) | Nature and Elements of Decentralization in Hindi

विकेन्द्रीकरण की प्रकृति एवं तत्व (औचित्य) | Nature and Elements of Decentralization in Hindi
विकेन्द्रीकरण की प्रकृति एवं तत्व (औचित्य) | Nature and Elements of Decentralization in Hindi

विकेन्द्रीकरण की प्रकृति एवं तत्व (औचित्य) (Nature and Elements of Decentralization)

विकेन्द्रीकरण की प्रकृति को निम्न तत्वों द्वारा स्पष्टतः समझा जा सकता है,

(1) विकेन्द्रीकरण अधिकार-सत्ता का आधारभूत पहलू है। यह प्रत्यायोजन का विस्तार है।

(2) विकेन्द्रीकरण एक संगठन संरचना है। यह सम्पूर्ण संगठन में प्रत्येक स्तर पर सत्ता के व्यापक वितरण का परिणाम है।

(3) यह प्रत्यायोजन का एक विकसित स्वरूप है। बैच के अनुसार, “यह प्रत्यायोजन से उत्पन्न होने वाला ढाँचा है। “

(4) यह कार्य-निष्पादन के स्तरों पर व्यवस्थित, स्थायी एवं सतत् रूप से अधिकारों का प्रत्यायोजन है।

(5) यह निर्णयन सत्ता को संगठन के निम्नतम स्तर तक ले जाने का प्रयास है। यह संगठन की छोटी से छोटी इकाइयों को निर्णय सत्ता सौंपने का व्यवस्थित स्वरूप है।

(6) विकेन्द्रीकरण अथवा केन्द्रीकरण निरपेक्ष नहीं अपितु सापेक्ष विचार है। ये ‘ठंडे’ या ‘गर्म की भाँति प्रवृत्तियाँ है। ये दो अति बिन्दु हैं जिनके मध्य सत्ता विवरण का एक सांतत्यक विद्यमान होता है।

(7) विकेन्द्रीकरण अधीनस्थों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाता है। यह अधीनस्थों में प्रत्यायोजन के माध्यम से प्रशासनिक सत्ता का विवरण है।

(8) विकेन्द्रीकरण सत्ता के फैलाव एवं वितरण के प्रति प्रबन्धकों की अभिवृत्ति एवं सत्ता की मात्रा को बतलाता है, सत्ता के प्रकार को नहीं।

(9) प्रत्येक संगठन केन्द्रित एवं विकेन्द्रित दोनों ही होता है। पूर्ण विकेन्द्रीकरण की अवस्था किसी भी संगठन में सम्भव नहीं है क्योंकि इसका अर्थ संगठन पर कोई नियन्त्रण नहीं’ वाली स्थिति होगी जो कि संभव नहीं है।

(10) विकेन्द्रीकरण की स्थिति में संगठन के निचले पदों पर अधिकाधिक मात्रा में निर्णय लिये जाते हैं, जो अत्यन्त महत्व के होते हैं। इनका सम्पूर्ण संगठन पर गहन प्रभाव पड़ता है। इसमें निर्णयों को ‘कार्यवाही’ के केन्द्र’ तक नीचे ले जाने पर जोर दिया जाता है।

(11) एक अवधारणा के रूप में विकेन्द्रीकरण केवल व्यावसायिक संगठनों तक ही सीमित नहीं है। प्रत्येक संगठन में बाह्य वातावरण की माँगों के साथ समायोजन करने, औपचारिक ढाँचे में क्रियाओं को समन्वित करने, विशिष्ट कार्य करने तथा अपने सदस्यों की अभिवृत्तियों व क्षमताओं का प्रबन्धन करने की दृष्टि से उपयुक्त मात्र में विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता होती है।

(12) विकेन्द्रीकरण एक दर्शन है क्योंकि इसके अनुसार उच्च प्रबन्धक यह मानते हैं कि संगठन के प्रत्येक स्तर पर कार्यरत कर्मचारी पहले करने तथा उत्तरदायित्वों को स्वीकार करने की क्षमता एवं इच्छा रखते हैं।

(13) विकेन्द्रीकरण कर्मचारियों को अभिप्रेरणा एवं मान्यता प्रदान करने, ‘कुछ होने का बोध’ जागृत करने तथा पहलापन एवं स्वतन्त्रता की आवश्यकता की पूर्ति का एक साधन है।

(14) यह भौतिक क्रियाओं व सुविधाओं के फैलाव अथवा प्रत्यायोजन या सम्भागीकरण में भिन्न विचार है।

(15) विकेन्द्रीकरण की दशा में उच्च प्रबन्धक अपने अधीनस्थ प्रबन्धकों के निर्णयों का प्रतिदिन मूल्यांकन है । अथवा नियन्त्रण नहीं करते हैं। वे मानते हैं कि निर्णय ठीक ही लिये गये होंगे।

(16) विकेन्द्रीकरण में सत्ता का फैलाव लम्बवत् एवं क्षैतिक दोनों ही रूप में हो सकता है।

(17) विकेन्द्रीकरण ऐसे स्वायत्त इकाइयों (Autonomous units) की संरचना करने की एक तकनीक है जिनकी क्रियायें विकेन्द्रित होती हैं तथा जिन्हें नीति निर्माण तथा नियन्त्रण का केन्द्रित अधिकार होता है।

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Anjali Yadav

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