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संचार या सम्प्रेषण या सन्देशवाहन क्या है ? इसके आवश्यक तत्व एवं महत्व

संचार या सम्प्रेषण या सन्देशवाहन क्या है ? इसके आवश्यक तत्व एवं महत्व
संचार या सम्प्रेषण या सन्देशवाहन क्या है ? इसके आवश्यक तत्व एवं महत्व

संचार या सम्प्रेषण या सन्देशवाहन क्या है ? What is Communication ? 

संचार या सम्प्रेषण (Communication)

आधुनिक युग में प्रभावी सम्प्रेषण ही किसी भी व्यवसाय की सफलता का मूलमन्त्र है। सम्प्रेषण के द्वारा ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। दूसरे शब्दों में, “यह कहा जा सकता है कि आधुनिक युग की सफलता सम्प्रेषण पर ही निर्भर करती है।”

Communication शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के common शब्द से हुयी है। जिसको लैटिन भाषा में communicate कहा जाता है। इसका अर्थ है ‘एक समान’। सम्प्रेषण दो व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, सूचनाओं, विचारों एवं विकल्पों आदि के आदान-प्रदान का एक माध्यम है। यह आदान-प्रदान लिखित, मौखिक तथा सांकेतिक भी हो सकता है।

सम्प्रेषण को परिभाषाओं के रूप में निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है—

डैल एस० बैच के शब्दों में— “सम्प्रेषण एक व्यक्ति के द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति को सूचना अथवा विश्वास का हस्तान्तरण है।”

न्यूमैन तथा समर के शब्दों में- “सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, विचारों, सम्मतियों या भावनाओं का विनिमय है। “

लुईस ए० एलन के शब्दों में- “सन्देशवाहन उन सब बातों का योग है जिनको एक व्यक्ति अपने विचारों को किसी दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में पहुँचाने के लिये अपनाता है। यह एक अर्थ का पुल है जिसमें कहने, सुनने तथा समझने की प्रक्रिया चलती रहती है।’

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सम्प्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत व्यक्तियों के विचारों, भावनाओं तथा तथ्यों का आदान-प्रदान निरन्तर होता रहता है। जिनके आदान-प्रदान के लिये पत्र, चिह्न तथा शब्द आदि माध्यम का कार्य करते हैं।

संचार के आवश्यक तत्व (विशेषताएँ) (Essential Features of Communication)

सम्प्रेषण के आवश्यक तत्व सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाले आवश्यक तत्वों को निम्न प्रकार समझाया जा सकता है-

(1) लगातार जारी रहने वाली प्रक्रिया- सम्प्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जो किसी भी संस्था के कर्मचारियों, ग्राहकों तथा सरकार के मध्य निरन्तर बनी रहती है। इस प्रक्रिया में एक संस्था से जुड़े हुए सभी लोग अपने विचारों, कल्पनाओं, तथ्यों तथा शब्दों का आदान-प्रदान निरन्तर करते रहते हैं। इस प्रक्रिया में निर्देश, सुझाव, चेतावनी, अभिप्रेरणा तथा मनोबल ऊँचा उठाने वाले संदेशों का आदान-प्रदान निरन्तर रूप से चलता रहता है।

(2) विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम- यदि कोई व्यक्ति अपने विचारों, सुझावों या सलाह को किसी अन्य व्यक्ति तक चाहता है तो इसके लिये उसे यह निश्चित करना होगा कि वह किस माध्यम का प्रयोग करे अर्थात् माध्यम दो व्यक्तियों के मध्य विचारों के आदान-प्रदान का एक मुख्य तत्व है। माध्यम निम्न हो सकते हैं-आमने-सामने, टेलीविजन, टेलीफोन, रेडियो, पत्र, तार, फैक्स, ई-मेल, समाचार-पत्र आदि ।

(3) सम्प्रेषण दोतरफा प्रक्रिया – इस प्रक्रिया में कम से कम दो व्यक्तियों का होना अति आवश्यक हैं, एक सन्देश भेजने वाला तथा दूसरा सन्देश प्राप्त करने वाला। जब एक व्यक्ति किसी भी माध्यम के द्वारा अपना सन्देश दूसरे व्यक्ति को भेजता है तो सन्देश प्राप्त करने वाला उस सन्देश को उसी उद्देश्य से समझकर जिस उद्देश्य से सन्देश भेजा गया है, उसकी प्रतिपुष्टि करता है। यदि सन्देश भेजा गया है लेकिन प्राप्त नहीं किया गया है तो सन्देश प्रक्रिया पूरी हुयी नहीं मानी जा सकती है अर्थात् कम कम दो व्यक्तियों के होने पर सन्देश प्रक्रिया पूरी हो पाती है।

(4) सम्प्रेषण एक सतत प्रक्रिया- यदि एक व्यक्ति द्वारा सन्देश भेजने पर दूसरा व्यक्ति उस सन्देश को प्राप्त कर लेता है तो सम्प्रेषण प्रक्रिया को पूर्ण नहीं कहा जा सकता। इसके लिये यह आवश्यक है कि सन्देश प्राप्तकर्ता उसे उसी भाव से समझें जिस भाव से वह भेजा गया है। इसके लिये सन्देश वाहक को सन्देश भेजते समय बहुत ही सतर्क होना चाहिये अर्थात् सन्देश भेजते समय यदि उसमें कोई चिह्न भी गलत हो जाता है तो उसका अर्थ बदल जाता है।

(5) सम्प्रेषण एक प्रबन्धकीय कार्य है- सम्प्रेषण का प्रबन्ध में एक महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी प्रबन्धकीय प्रक्रिया में नियोजन से लेकर नियन्त्रण तक सभी प्रक्रियाओं का आधार सम्प्रेषण ही है। सम्प्रेषण की अनुपस्थिति में प्रबन्ध एक बिना हवा वाले टायर जैसा होता है, जिसको आगे ले जाना बहुत ही कठिन कार्य होता है।

सम्प्रेषण का महत्व (Importance of Communication)

आधुनिक युग में किसी भी व्यवसाय अथवा प्रबन्धक की सफलता सम्प्रेषण पर ही आधारित है। सम्प्रेषण की अनुपस्थिति में किसी भी व्यवसाय अथवा प्रबन्ध का विकास सम्भव नहीं है। कीथ डेविस के शब्दों में, “सम्प्रेषण किसी भी व्यवसाय के लिये उतना ही आवश्यक है जितना कि मानव जीवन में रक्त का होना आवश्यक है।”

प्रबन्धकों के लिये सम्प्रेषण के महत्व की विवेचना इस प्रकार की जा सकती है—

(1) निर्देशन तथा नियन्त्रण का आधार- एक कुशल सम्प्रेषण ही किसी भी निर्देशन अथवा नियन्त्रण को पूर्ण रूप से सफल बना सकता है अर्थात् किसी भी कार्य के कुशल निर्देशन हेतु सूचनाओं की आधुनिक प्रथा एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। एक कुशल सम्प्रेषण द्वारा ही विभाग के कर्मचारी सही समय पर सही निर्देश प्राप्त करते हैं तथा उस कार्य को शत-प्रतिशत सफलता प्राप्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(2) सफल संचालन – किसी भी व्यवसाय में उसके उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये बाहरी व्यवस्थाओं से सम्पर्क बनाये रखना अति आवश्यक है। एक कुशल सम्प्रेषण द्वारा बाजार की बाहरी अवस्थाओं का ज्ञान सही समय पर हो पाता है। जिससे व्यापार सफलता की ओर अग्रसर रहता है। यदि सम्प्रेषण में किसी भी प्रकार की बाधा आ जाती है तो प्रबन्धकों को बाजार की सही स्थिति का ज्ञान नहीं हो पाता है। अतः उन्हें व्यापार में हानि उठानी पड़ती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि व्यवसाय के सफल संचालन के लिये सम्प्रेषण अति आवश्यक है।

(3) व्यक्तियों के समूह में कार्य की एकरूपता के लिये आवश्यकता- कोई भी व्यवसाय विभिन्न प्रकार के समूहों में विभाजित होता है। इन सभी समूहों के कार्य अलग-अलग होने पर भी सभी एक साथ जुड़े हुए होते हैं। इन सभी समूहों का एक-दूसरे से सीधा सम्पर्क होता है। अतः व्यापार की सफलता हेतु इन सभी समूहों के मध्य समन्वय होना अति आवश्यक है। यदि इन सभी समूहों में सही समन्वयन होगा तो व्यावसायिक संगठन अपने उद्देश्यों को सही प्रकार से प्राप्त कर पायेगा। इन सभी समूहों में समन्वय स्थापित करने के लिये सम्प्रेषण अति आवश्यक है। सम्प्रेषण के द्वारा ही यह समूह अपने विचारों का आदान-प्रदान सही प्रकार से कर सकते हैं।

(4) बाहरी जगत से सम्पर्क- वर्तमान युग में किसी भी व्यवसाय के सफल संचालन बाहरी जगत से सम्पर्क होना अति आवश्यक है। कुशल सम्प्रेषण द्वारा ही संस्था बाहरी जगत से सम्पर्क बनाये रख सकती है। बाहरी जगत में सरकार की नीतियों तथा ग्राहकों की रुचियों में निरन्तर बदलाव आते रहते हैं। कुशल सम्प्रेषण द्वारा ही हमें सही समय पर इनका ज्ञान हो पाता है, जिसके द्वारा संस्था अपनी नीतियों में सही समय पर बदलाव कर पाती है।

(5) प्रोत्साहन में सहायक- सम्प्रेषण द्वारा संस्था के कर्मचारियों को निर्देश देने के साथ-साथ प्रोत्साहित भी किया जाता है। कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है। सम्प्रेषण के द्वारा प्रबन्धक कर्मचारियों की परेशानियों को प्रबन्धक अथवा संचालक जान सकते हैं तथा उनकी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, जिसके फलस्वरूप कर्मचारियों का संस्था पर विश्वास बढ़ता है।

(6) नेतृत्व में सहायक- कुशल सम्प्रेषक द्वारा ही प्रबन्धक अपने कर्मचारियों का सही ढंग से नेतृत्व कर पाते हैं। आधुनिक व्यवसाय में निरन्तर नयी समस्याएँ उत्पन्न होती रहती हैं जिनका समाधान प्रबन्धक तथा कर्मचारी आपसी विचारों के आदान-प्रदान द्वारा ही कर पाते हैं। इससे कर्मचारियों को यह अनुभव होता है कि व्यवसाय के प्रबन्ध में उनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है।

उपरोक्त व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी व्यवसाय की सफलता के लिये सम्प्रेषण अति आवश्यक है। सर जान हार्वे जान्स के शब्दों में, “प्रबन्धकों के लिये सम्प्रेषण महत्वपूर्ण आवश्यक योग्यता है। पेशेवर तथा परिणाम वांछित संगठन हमेशा ऐसे सम्प्रेषण की तलाश में रहते हैं जो सम्प्रेषण क्षमता में निपुण हो।”

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Anjali Yadav

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