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सम्प्रेषण की बाधाएँ दूर करने के सुझाव (Suggestions to Remove Barriers)
सम्प्रेषण में आने वाली बाधायें ऐसी नहीं हैं जिन्हें दूर न किया जा सके। आज के मानव के लिये कुछ भी असम्भव नहीं है। अतः मानव द्वारा थोड़े से प्रयास किये जाने पर ही इन्हें दूर किया जा सकता है। सम्प्रेषण में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिये निम्नलिखित तत्वों को ध्यान में रखना चाहिये-
(1) सहयोगी प्रक्रियाएँ – सहभागी प्रक्रियाओं का अधोगामी एवं उर्ध्वगामी दोनों ही सम्प्रेषणों में अधिक से अधिक प्रयोग किया जा सकता है। सहयोग करने वाली प्रतिक्रियाएँ अवैयक्तिक, एकपक्षीय तथा अधिसत्ता अभिप्रेरित सम्प्रेषण की तुलना में कहीं ज्यादा प्रभावी हो सकती हैं।
(2) लोचपूर्ण तन्त्र – सम्प्रेषण तन्त्र को कम से कम इतना लोचपूर्ण जरूर होना चाहिये कि वह सूचनाओं के अतिरिक्त भार को समा सके, सूचना प्रेषण की नवीन तकनीकों को सम्मिलित कर सके तथा परिवर्तित हो रही संगठनात्मक आवश्यकताओं को लागू कर सके ।
(3) उद्देश्यों की स्पष्टता – सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्रेषक को सूचना की विषय-वस्तु, सन्दर्भ तथा मन्तव्य एवं सन्देश प्राप्तकर्त्ता को भी सन्देश के उद्देश्यों को पूर्णतया स्पष्ट कर लेना चाहिये ।
(4) सम्पूर्णता – सम्प्रेषण प्रक्रिया में भेजा जाने वाला सन्देश या सूचनापूर्ण होनी जरूरी है क्योंकि अपूर्ण सन्देश या सूचना प्राप्तकर्त्ता को आकर्षित नहीं कर पाती ।
(5) प्रभावी सुनना – गवेषणात्मक सुनने का चातुर्य सम्प्रेषण को प्रभावी बनाता है। इसमें सम्प्रेषक अपने विचारों को अपने दृष्टिकोण के प्रति प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचाने में सफल हो जाता है।
(6) सरल भाषा – सम्प्रेषण में प्रयोग होने वाली भाषा, समझने योग्य तथा प्राप्तकर्ता के स्तर की होनी चाहिए।
(7) शोर हटाना- सम्प्रेषण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिये शोर को कम तथा उसे वहाँ से हटाने के लिये कोशिश करनी चाहिये।
(8) मान्यताओं की स्पष्टता – सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने के लिये यह आवश्यक है कि प्रेषक सन्देश से सम्बन्धित मान्यताओं को पहले ही स्पष्ट कर दे।
(9) प्रति उत्तर का प्रयोग- प्रति उत्तर का प्रयोग प्रभावी सम्प्रेषण तन्त्र का सबसे अधिक महत्वपूर्ण लक्षण है तथा इसकी व्यवस्था एक द्विचरणीय सम्प्रेषण तन्त्र के द्वारा की जाती है।
(10) संक्षिप्तता – सन्दर्भ की विषय-वस्तु सम्पूर्णता के साथ-साथ संक्षिप्त भी होनी चाहिये। तभी सम्प्रेषण को प्रभावी बनाया जा सकता है।
(11) शारीरिक भाषा का उचित प्रयोग- मौलिक सम्प्रेषण प्रक्रिया में यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि सकारात्मक शारीरिक भाषा प्राप्तकर्ता के अन्दर छिपे हुए अच्छे विचारों को जन्म देती है ।
(12) संगठनात्मक वातावरण – सम्प्रेषण प्रक्रिया में अनेक भागीदारों के मध्य संगठन में विश्वास, साख, सूझ-बूझ तथा पारदर्शिता का एक उचित आन्तरिक संगठनात्मक वातावरण होना चाहिए।
(13) प्राप्तकर्त्ता की आवश्यकता – के अनुरूप सन्देश अथवा सूचनाओं का सम्प्रेषण प्राप्तकर्ता की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए करना चाहिये।
(14) सम्प्रेषण श्रृंखलाएँ – सम्प्रेषण श्रृंखलाएँ सीधी तथा छोटी हों जिससे सूचनाओं में देरी एवं व्यवधानों को कम किया जा सके। संगठन की सभी गतिविधियाँ इकाई सम्प्रेषण श्रृंखलाओं से सम्बद्ध होनी चाहियें।
(15) नियन्त्रित भावनाएँ – भावनाएँ सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा कभी-कभी सम्प्रेषण प्रक्रिया के उद्देश्यों को पूर्ण करने में बाधा पैदा करती है इसलिये सम्प्रेषण प्रक्रिया में भावनाओं पर सम्पूर्ण नियन्त्रण होना चाहिये।
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