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बड़े व्यवसाय की जर्नल क्यों उप-विभाजित की जाती है? चार सहायक पुस्तकों के नाम तथा उनके कार्य

बड़े व्यवसाय की जर्नल क्यों उप-विभाजित की जाती है? चार सहायक पुस्तकों के नाम तथा उनके कार्य
बड़े व्यवसाय की जर्नल क्यों उप-विभाजित की जाती है? चार सहायक पुस्तकों के नाम तथा उनके कार्य

बड़े व्यवसाय की जर्नल क्यों उप-विभाजित की जाती है? चार सहायक पुस्तकों के नाम दीजिए तथा उनके कार्य समझाइए । Why the Journal of a big business is sub-divided? Name four subsidiary books (Special Journals) and explain their functions. 

बड़े व्यवसाय की जर्नल क्यों उप-विभाजित की जाती है?- जब व्यवसाय का क्षेत्र बहुत बड़ा हो तथा हजारों लेनदेन प्रतिदिन होते हो तो सभी लेनदेनों को एक ही जर्नल में एक ही व्यक्ति द्वारा दर्ज करना बहुत ही असुविधाजनक होगा। फिर प्रत्येक लेनदेन की खाताबही में अलग-अलग खातों में खतौनी का कार्य भी दुष्कर होगा। अतः ऐसे व्यवसायें के लिए एक जर्नल के स्थान पर सौदों को दर्ज करने के लिए कई लेखा पुस्तकों की आवश्कयता पड़ती है। व्यवसाय में मुख्यतया लेनदेन रोकड़, उधार क्रय-विक्रय, क्रय-वापसी, विक्रय-वापसी आदि से सम्बन्धित होते हैं। अतः इन लेनदेनों को अलग-अलग प्रारम्भिक लेखा पुस्तकों में दर्ज करने के लिए जर्नल का उपविभाजन करके कई सहायक पुस्तकें रखी जाती है। एक सी प्रकृति के लेनदेनों को एक पुस्तक में दर्ज करने एवं उस पुस्तक के योग की खतौनी खाताबही में करने से लेखापाल का कार्य बहुत आसान हो जाता है। इस प्रकार एक ही स्वभाव के विभिन्न लेनदेनों का लेखा करने के लिए विभिन्न लेखा पुस्तकों के रूप में जर्नल का यह उपविभाजन ही सहायक पुस्तकें (Subsidiary Books) कहलाता है। इन सहायक पुस्तकों को प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकें भी कहा जाता है। क्योंकि खाताबही में विभिन्न खातों में खतौनी इन्हीं लेखा पुस्तकों में दर्ज लेनदेनों से ही की जाती है।

सहायक पुस्तकें रखने के लाभ (Advantages of Maintaining Subsidiary Books)

जर्नल का उपविभाजन या सहायक पुस्तकों को रखने से व्यापारी को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-

(i) कार्य का विभाजन (Division of Work ) — अलग अलग पुस्तकों में प्रविष्टियाँ करने एवं उनकी खतौनी करने के कार्य का विभाजन कई व्यक्तियों में किया जा सकता है जिससे कि समय की बचत होती है। तथा गलती होने की सम्भावना भी कम हो जाती है।

(ii) सूचना की उपलब्धता (Availability of Information ) – एक प्रकार के व्यवहारों की प्रविष्टियाँ ही पुस्तक में होती है जैसे- उधार विक्रय के व्यवहारों का लेखा एक ही विक्रय पुस्तक में किया जाता है। एक जिससे इस प्रकार के व्यवहार से सम्बन्धित सभी सूचनाएँ एक ही स्थान पर उपलब्ध हो जाती हैं।

(iii) विशिष्ट योग्यता एवं कुशलता (Specialisation and Efficiency) — जब एक ही प्रकार का कार्य एक समय में एक ही व्यक्ति को दिया जाता है तो वह उसका पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेता है एवं इसमें विशेष योग्यता हासिल कर लेता है। इससे लेखांकन का कार्य बहुत ही कुशलता से किया जाता है। उदाहरण के लिए, जब एक व्यक्ति को एक ही सहायक पुस्तक में प्रविष्टि करने के लिए नियुक्त किया जाता है तो वह व्यक्ति उसमें पूर्णतया निपुण हो जायेगा।

(iv) उत्तरदायित्व (Responsibility) — जर्नल का विभिन्न सहायक पुस्तकों में उपविभाजन करके प्रत्येक सहायक पुस्तक रखने का भार जब निश्चित व्यक्ति को सौंप दिया जाता है तो प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य को जिम्मेदारी से करता है एवं यदि उस पुस्तक में किसी भी प्रविष्टि में कोई त्रुटि हो जाती है तो वह व्यक्ति ही उत्तरदायी माना जायेगा। अतः यहाँ उत्तरदायित्व का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है।

(v) जाँच में सुविधा (Facility in Checking) – सहायक लेखा पुस्तक रखने से खाताबही में खतौनी की प्रविष्टियों की जांच आसानी से की जा सकती है क्योंकि एक ही प्रकार से समस्त लेनदेन एक ही पुस्तक में लिखे जाते हैं। यदि तलपट नहीं मिलता है तो सहायक पुस्तकें रखने से अशुद्धि का पता लगाने में आसानो रहती है।

सहायक पुस्तकों के प्रकार (Kinds of Subsidiary Books) 

सामान्यतया बड़े व्यवसायों द्वारा जर्नल का उपविभाजन करके उसके स्थान पर निम्नलिखित सहायक पुस्तकें रखी जाती है-

(1) रोकड़ प्राप्तियों एवं भुगतानों का लेखा करने के लिए रोकड़ पुस्तक (Cash Book) |

(2) माल की उधार खरीद का लेखा करने के लिए क्रय पुस्तक (Purchases Books) |

(3) माल के उधार विक्रय का लेखा करने के लिए विक्रय पुस्तक (Sales Book) ।

(4) पूर्व में क्रय किए गए माल की पूर्तिकर्ताओं को लौटाने पर लेखा करने के लिए क्रय वापसी पुस्तक (Purchases Returns Book) ।

(5) ग्राहकों द्वारा लौटाए गए माल का लेखा करने के लिए विक्रय वापसी पुस्तक (Sales Returns Book)।

(6) ग्राहकों से प्राप्त होने वाले सभी विपत्रों, प्रतिज्ञापत्रों तथा हुण्डियों का लेखा रखने के लिए प्राप्य विपत्र पुस्तक (Bills Receivable Book )।

(7) लेनदारों को दिए गए विपत्रों, प्रतिज्ञापत्रों तथा हुण्डियों को लेखा करने के लिए देय विपत्र पुस्तक (Bills Payable Books)

(8) जिन लेनदेनों को उपर्युक्त 7 पुस्तकों में से किसी में भी दर्ज नहीं किया जा सके, उनको दर्ज करने के लिए प्रमुख जर्नल (Journal Proper)।

इन सभी पुस्तकों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

रोकड़ पुस्तक (Cash Book)

रोकड़ पुस्तक में व्यापारी अपने व्यापार से सम्बन्धित सभी रोकड़ प्राप्तियों एवं भुगतानों का लेखा रखता है। किसी भी व्यवसाय में रोकड़ से सम्बन्धित लेनदेनों की संख्या सबसे अधिक एवं बहुत बड़ी मात्रा में होती है। अतः रोकड़ व्यवहारों को दर्ज करने के लिए एक अलग पुस्तक की आवश्यकता होती है। रोकड़ पुस्तक प्रारम्भिक लेखे की पुस्तक एवं खाताबही के रूप में दोहरी भूमिका का निर्वाह करती है। यह एक सहायक पुस्तक है क्योंकि समस्त रोकड़ी लेनदेन सर्वप्रथम रोकड़ पुस्तक में ही दर्ज किये जाते है तत्पश्चात रोकड़ा पुस्तक से खाताबही में विभिन्न खातों में खताये जाते हैं रोकड़ पुस्तक में लेनदेनों को खाताबही के एक खाते के रूप में ही दर्ज किया जाता है। नकद प्राप्तियों को इसके डेबिट पक्ष में एक नकद भुगतानों को इसके क्रेडिट पक्ष में दर्ज किया जाता है। रोकड़ पुस्तक सहायक पुस्तक के साथ-साथ खाताबही के एक खाते के रूप में भी कार्य करती है।

रोकड़ पुस्तक के प्रकार (Types of Cash Book)

व्यापारी अपने व्यापार की आवश्यकता को ध्यान में रखकर विभिन्न प्रकार की रोकड़ पुस्तकों का प्रयोग करते हैं। ये निम्नलिखित प्रकार की होती है-

(i) साधारण रोकड़ पुस्तक (Simple Cash Book) |

(ii) दो खानों वाली या हि-स्तम्भीय रोकड़ पुस्तक (Double or Two Column Cash Book)।

(iii) तीन खानों वाली या त्रि-स्तम्भीय रोकड़ पुस्तक (Three Column Cash Book)।

(iv) खुदरा रोकड़ बही (Petty Cash Book)।

विपरीत प्रविष्टि (Contra Entry)

त्रि-स्तम्भीय रोकड़ बही में कुछ लेनदेन ऐसे लिखे जाते हैं जिनका सम्बन्ध रोकड़ और बैंक दोनों से होता है अर्थात इस लेनदेनों से एक का शेष कम हो जाता है और दूसरे का शेष बढ़ता है। ऐसे लेनदेनों का लेखा रोकड़ पुस्तक में डेबिट और क्रेडिट दोनों पक्षों में किया जाता है। जैसे—बैंक में रुपया जमा कराया तो इस लेनदेन की प्रविष्टि रोकड़ पुस्तक के डेबिट भाग में To Cash लिखकर रकम बैंक खाने में तथा क्रेडिट भाग में By Cash लिखकर रकम बैंक खाने में लिख दी जाएगी। ऐसे लेनदेनों को विपरीत प्रविष्टि या विपरीत लेखे कहा जाता है तथा याददाशत के लिए इन लेनदेनों को विपरीत प्रविष्टि या विपरीत लेखे कहा जाता है तथा याददाशत के लिए इन लेनदेनों के आगे L.F. के खाने में ‘C’ लिख दिया जाता है जो इस बात का प्रतीक है कि ये लेनदेन एक बार रोकड़ पुस्तक के डेबिट भाग व दूसरी बार क्रेडिट भाग में लिखे गए हैं। अतः ऐसे लेनदेनों की खतौनी नहीं की जाती है।

खुदरा रोकड़ पुस्तक (Petty Cash Book)

प्रत्येक व्यापार में छोटे-छोटे बहुत प्रकार के व्यय होते हैं जैसे- गाड़ी-भाड़ा, डाक खर्च, नाश्ता, चाय, स्टेशनरी, छपाई, टेलीफोन आदि। इन सबका लेखा यदि रोकड़ बही में ही किया जाए तो रोकड़ बही का आकार अनावश्यक रूप से बहुत बड़ा हो जाएगा। अतः इन छोटे-छोटे खर्चों को लिखने के लिए एक अलग रोकड़ पुस्तक रखी जाती है जिसे खुदरा रोकड़ पुस्तक या लघु रोकड़ पुस्तक (Petty Cash Book) कहा जाता है। इस पुस्तक में लेनदेनों का लेखा करने के लिए एक अलग कर्मचारी रखा जाता है जिसे लघु रोकड़िया कहा जाता है।

लघु रोकड़िए को महीने के प्रारम्भ में प्रधान रोकड़िए द्वारा महीने भर के फुटकर व्ययों का अनुमान लगाकर एक निश्चित राशि दे दी जाती है और यदि आवश्यकता पड़े तो महीने के बीच में भी कुछ रकम और दी जा सकती है। लघु रोकड़िया इस रकम में से छोटे-छोटे व्यय स्वयं ही करता है और खुदरा रोकड़ बही में उनका लेखा रखता है। महीने के अन्त में प्रधान रोकड़िया उन व्ययों की जाँच करता है और जितनी रकम उसने व्यय की है उतनी रकम उसे पुनः दे देता है। इससे अगले माह के प्रारम्भ में लघु रोकड़िए के पास पुनः उतनी ही रकम हो जाती है जितनी रकम गत माह के प्रारम्भ में थी। इस प्रकार लघु रोकड़िया को रकम खर्च करने से पूर्व ही प्राप्त हो जाती है। अतः इसको खुदरा रोकड़ पुस्तक की अग्रदाय पद्धति ( Imprest System petty Cash Book) कहते हैं। जिन व्ययों की रसीदें प्राप्त की जा सकती हैं उनकी रसीदें प्राप्त की जाती है और जिन व्ययों की रसीदे प्राप्त नहीं की जा सकती उसके प्रमाणक स्वयं लघु रोकड़िया अपने हाथ से बना लेता है। और किसी जिम्मेदार अधिकारी से प्रमाणित करा लेता है। 500 रु० से अधिक के भुगतान के प्रमाणक पर 1 रु० का रेवेन्यू टिकट लगाया जाना आवश्यक है।

लघु रोकड़िए को जब फुटकर खर्चों के लिए रकम मिलती है तो वह लघु रोकड़ पुस्तक में “To Cash” लिखता है एवं समस्त व्ययों के अलग-अलग खाने होते है जिसमें वह By व्यय का नाम लिखकर उस खाने में राशि को लिखता है। महीने के अन्त में व्यय के खानों का योग कर लेता है एवं बची हुई राशि को I By Balance c/d लिखता है।

क्रय पुस्तक (Purchase Book)

व्यापार में माल का क्रय नकद एवं उधार दोनों तरह से ही किया जाता है। व्यापारी द्वारा उधार क्रय किए गए माल का लेखा जिस पुस्तक में किया जाता है उसे क्रय पुस्तक कहते हैं। इस पुस्तक में व्यवसाय जिस वस्तु का क्रय-विक्रय करता है उसी के उधार क्रय का लेखा होगा। यदि कोई सम्पत्ति उधार खरीदी जाती है। तो उसका लेखा इस पुस्तक में नहीं होगा।

विक्रय पुस्तक (Sales Book)

व्यापार में माल का विक्रय नकद एवं उधार दोनों प्रकार से ही किया जाता है। व्यापारी द्वारा उधार बेचे गए माल का लेखा जिस पुस्तक में किया जाता है उसे विक्रय पुस्तक कहते हैं। इस पुस्तक में व्यापारी के व्यापार से सम्बन्धित उधार विक्रय के सौदे ही लिखे जाते हैं। सम्पत्तियों के उधार विक्रय के नहीं। इस पुस्तक का प्रारूप एवं लेखाविधि क्रय पुस्तक की भाँति ही है।

क्रय वापसी पुस्तक (Purchases Returns Books)

कई बार माल के घटिया किस्म का होने के कारण या विक्रेता द्वारा मूल्य अधिक लगाने के कारण टूट-फूट के कारण या आदेश के अनुसार न होने के कारण क्रेता द्वारा माल विक्रेता को वापस करना पड़ता है। इस माल का लेखा क्रेता की पुस्तकों में अलग से एक पुस्तक में किया जाता है। इस पुस्तक में उन व्यवहारों का भी लेखा किया जाता है जिनसे खरीदे हुए माल के मूल्य में कमी हो जाती है जैसे— भूल से माल की दर अधिक लग जाना अथवा बीजक का योग अधिक लग जाना आदि ।

क्रय वापसी पुस्तक का प्रारूप एवं लेखाविधि क्रय पुस्तक की भाँति ही है। इस पुस्तक में लेखा डेबिट-क्रेडिट नोट की सहायता से किया जाता है। जब क्रेता द्वारा माल वापस किया जाता है तो वह विक्रेता को इसकी सूचना डेबिट नोट के साथ देता है। इन नोट से क्रेता विक्रेता को सूचित करता है उसने विक्रेता को इस नाम में लिखित राशि से डेबिट कर दिया है अर्थात उसका शेष कम कर दिया है। क्रेता द्वारा माल वापस करने पर विक्रेता क्रेता को क्रेडिट नोट बनाकर भेजता है। इसमें लिखी गई राशि से विक्रेता क्रेता के खाते को जमा करता है अर्थात् क्रेता का शेष कम कर दिया जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि क्रेता माल वापस करने पर डेबिट नोट बनाकर विक्रेता को भेजता है एवं विक्रेता माल वापस प्राप्त करके क्रेडिट नोट बनाकर क्रेता को भेजता है। अतः क्रय वापसी पुस्तक में एक खाना Debit / Credit Note का भी बनाया जाता है।

विक्रय वापसी पुस्तक (Sales Returns Book)

वह पुस्तक जिसमें क्रेता द्वारा माल वापस करने पर विक्रेता द्वारा लेखा किया जाता है, उसे विक्रय वापसी पुस्तक कहते हैं। इस पुस्तक का प्रारूप एवं लेखाविधि क्रय वापसी पुस्तक की तरह ही होता है।

विक्रय वापसी पुस्तक से खाताबही में खतौनी (Posting from Sales Returns Book into Leger) — जिन व्यक्तियों से माल लौटाकार आया है उन सबके खाते विक्रय वापसी पुस्तक से खाताबही में खोले जाते हैं। इन खातों के क्रेडिट पक्ष में By Sales Returns a/c लिखकर राशि के खाते में शुद्ध रकम लिख दी जाती है। इन खातों के अतिरिक्त खाताबही में विक्रय वापसी खाता भी खोला जाता है जिसमें खतौनी एक निश्चित समय के पश्चात की जाती है। इस खाते के डेबिट पक्ष में To Sundries as per Sales Returns Book लिखकर रकम के खाने में विक्रय वापसी पुस्तक के योग की राशि लिखी जाती है।

मुख्य जर्नल (Journal Proper)

व्यवसाय में विभिन्न प्रकार के कुछ ऐसे लेनदेन भी होते हैं जिनका लेखा उपर्युक्त सहायक पुस्तकों में नहीं किया जा सकता है । अतः उन लेनदेनों का लेखा करने के लिए मुख्य जर्नल तैयार की जाती है। यह पूर्व वर्णित जर्नल की भाँति ही होती है। किन्तु इसमें निम्नलिखित व्यवहारों का भी लेखा किया जाता है-

(i) प्रारम्भिक प्रविष्टि (Opening Entry) – गत वर्ष के चिट्ठे में लिखे गये सम्पत्ति एवं दायित्वों के खातों को नए वर्ष के प्रारम्भ में नई पुस्तकों में लिखने के लिए जो प्रविष्टि की जातो है उसे प्रारम्भिक प्रविष्टि कहते हैं। यह प्रविष्टि मुख्य जर्नल में ही की जाती है।

(ii) अन्तिम प्रवष्टियाँ (Closing Entries ) – वर्ष के अन्त में जिन खातों के शेषों को व्यापार खाता एवं लाभ-हानि खाते में ले जाया जाता है उनको बन्द करने के लिए जो प्रविष्टयाँ कहते हैं जिन्हें मुख्य जर्नल में ही किया जाता है।

(iii) हस्तान्तरण प्रविष्टियाँ (Transfer Entries ) – खाताबही के एक खाते से कोई राशि दूसरे खाते में ले जाने के लिए जो प्रविष्टि की जाती है उसे हस्तान्तरण प्रविष्टि कहते हैं। जैसे आहरण खातें में पूँजी खाते में हस्तान्तरण करना ।

(iv) समायोजन प्रविष्टियाँ (Adjustment Entries) – वर्ष के अन्त में कुछ असमायोजित एवं न दर्ज की गई मदों को अन्तिम खातों में लाने के लिए जो प्रविष्टियाँ की जाती है उन्हें समायोजन प्रविष्टियाँ कहते हैं। जैसे-अदत्त व्यय, अन्तिम स्टॉक, पूर्वदत्त व्यय, उपार्जित आय, पूँजी पर ब्याज, आहरण पर ब्याज डूबत ऋण के लिए आयोजन आदि का अन्तिम खातों में समायोजन करने के लिए दर्ज की गई प्रविष्टियाँ ।

(v) सुधार की प्रविष्टियाँ (Recetifying Entries ) – कभी-कभी हिसाब की पुस्तकों में लेखा करते समय कुछ अशुद्धियाँ हो जाती है। अशुद्धियों के ज्ञात होने पर उनको शुद्ध करने के लिए जो प्रविष्टियाँ की जाती है उन्हें सुधार की प्रविष्टियाँ कहते हैं।

(vi) विविध प्रविष्टियाँ (Miscellaneous Entries ) – ऐसे विविध लेनदेन जिनका लेखा उपर्युक्त किसी भी सहायक पुस्तकों में नहीं किया जाता मुख्य जर्नल में किया जाता है। जैसे—स्थायी सम्पत्ति का उधार क्रय एवं विक्रय, स्वामी के द्वारा निजी प्रयोग के लिए माल लेना, माल दान में देना, डूबत ऋण होना आदि ।

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Anjali Yadav

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