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पूँजीगत तथा आयगत भुगतान (Capital and Revenue Payments)
पूँजीगत भुगतान से आशय (Capital Payment) — पूँजीगत भुगतान वे होते हैं जो पूँजीगत व्ययों के लिए वास्तव में भुगतान किए जाते हैं। प्रायः ऐसे भुगतान व्यवसाय के उपयोगी हेतु स्थायी सम्पत्ति क्रय करने के लिए होते हैं।
आयगत भुगतान से आशय (Revenue Payments) – आयगत भुगतान वे होते हैं जो व्यवसाय की सामान्य क्रियाओं के संचालन में वास्तव में भुगतान किए जाते हैं। ऐसे व्ययों के भुगतान से व्यावसायिक क्रियाएँ सामान्य रूप से चलती रहती है।
पूँजीगत तथा आयगत लाभ (Capital And Revenue Profits)
पूँजीगत लाभ से आशय (Capital Profit) — पूँजीगत लाभ से आशय उन लाभों से है जो केवल किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही प्राप्त होते हैं और इस प्रकार सामान्य व्यवसाय से सम्बन्धित नहीं होते। इस प्रकार के लाभ व्यवसाय की स्थायी सम्पत्तियों के बेचने से होते हैं। ये लाभ अनावार्तक (Non-recurring) प्रकृति के होते हैं। अतएव इनका लेखा-लाभ हानि खाते के बजाय आर्थिक चिट्ठे में किया जाता है। ऐसे लाभ को या तो पूँजी खाते में क्रेडिट करते हैं या पूँजीगत संचय खाते में आन्तरित कर देते हैं ।
आयगत लाभ से आशय ( Revenue Profit) – आयगत लाभ से आशय उस लाभ से है जोकि व्यवसाय के संचालन के कारण होते हैं। ये लाभ आवर्तक (Recurring) प्रकृति के होते हैं, अर्थात बार-बार होते हैं, जैसे—माल को 10% लाभ पर बेचना। ऐसी स्थिति में जब-जब माल का लाभ पर विक्रय होगा, तब-तब आयगत लाभ, लाभ को होगा। इसे लाभ-हानि खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखते हैं।
पूँजीगत लाभ तथा आयगत लाभ में अन्तर (Difference Between Capital Profit and Revenue Profit)
अन्तर का आधार | पूँजीगत लाभ (Capital Profit) | आयगत लाभ (Revenue Profit) |
1. लाभ | पूँजीगत लाभ की प्राप्ति स्थायी सम्पत्ति बेचने पर प्राप्त होती है। | आयगत लाभ की प्राप्ति व्यापारिक क्रय-विक्रय से प्राप्त होती है। |
2. समय | यह लाभ विशिष्ट समयों पर ही होता है। | यह लाभ प्रायः प्रतिदिन प्राप्त होता रहता है। |
3. लेखा | इस लाभ का लेखा पूँजी खाते में चिट्ठे में किया जाता है। | यह लाभ का लेखा लाभ-हानि खाते के क्रेडिट पक्ष में किया जाता है। |
4. प्रभाव | इस प्रकार के लाभों से व्यापार का दायित्व बढ़ता है। | इस प्रकार के लाभों से व्यापार के शुद्ध लाभों में वृद्धि होती है। |
5. प्रकृति | यह अनावर्तक प्रकृति का होता है। | यह आवर्तक प्रकृति का होता है। |
पूँजीगत तथा आयगत हानियाँ (Capital and Revenue Losses)
पूँजीगत हानि से आशय (Meaning of Capital Loss) — पूँजीगत हानि से आशय उस हानि से है जो कि या तो किसी सम्पत्ति को पुस्तक मूल्य से कम पर बेचने से होती है या व्यवसाय के लिए पूँजी एकत्रित करने से होती है। इस प्रकार पूँजीगत हानि व्यवसाय के कार्य से सम्बन्धित नहीं होती है। पूँजीगत हानि को लाभ-हानि खाते में न दिखाकर पूँजीगत लाभ से अपलिखित किया जा सकता है। अधिकतर व्यवसायी इसे सम्पत्ति की भाँति चिट्ठे में दिखाते हैं और उसका कुछ भाग प्रतिवर्ष लाभ-हानि खाते के डेबिट पक्ष में दिखाते रहते हैं। उसका शेष भाग आगामी वर्ष के लिए चिट्ठे में सम्पत्ति के पक्ष में दिखाते हैं। यह कृत्रिम सम्पत्ति (Fictitious Asset) हैं। यदि पूँजीगत हानि की धनराशि कम होती है तो उसे उसी वर्ष के लाभ-हानि खाते के डेबिट पक्ष में दिखाया जा सकता है।
आयगत हानि से आशय (Meaning of Revenue Loss) – आयगत हानि से आशय उस हानि से जो किसी व्यवसाय के सामान्य संचालन के दौरान या कुसंचालन के कारण उत्पन्न हुई हो। इस हानि में माल के क्रय विक्रय से होने वाली हानि सम्मिलित है। व्यापार के वित्तीय वर्ष के अन्त में जो घाटा होता है, वह आयगत हानि होती है। इस हानि को लाभ-हानि खाते के डेबिट पक्ष में दिखाते हैं। चिट्टे में एकाकी व्यापारी तथा साझेदारी की दशा में इस हानि को पूँजी में से घटाकर दिखाते हैं। किन्तु कम्पनी की दशा में इस हानि को सम्पत्ति पक्ष में दिखाते हैं।
पूँजीगत हानि तथा आयगत हानि में अन्तर (Difference Between Capital Loss and Revenue Loss)
पूँजीगत हानि तथा आयगत हानि में अन्तर निम्न तालिका से पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है।
अन्तर का आधार | (Capital Loss) | आयगत हानि (Revenue Loss) |
1. हानि | इस प्रकार की हानि व्यापार की स्थायी सम्पत्ति बेचने के फलस्वरूप होती है। | इस प्रकार की हानि व्यापारिक क्रियाओं के फलस्वरूप होती है। |
2. समय | यह हानि विशेष परिस्थितियों में होती है। | यह हानि माल की कम भावों पर बिक्री होने से होती है। |
3. लेखा | इस प्रकार की हानि का लेखा चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष की ओर किया जाता है। | इस प्रकार ही हानि का लेखा लाभ-हानि खाते के डेबिट पक्ष में किया जाता है। |
4. प्रभाव | इस प्रकार की हानि से सम्पत्ति कम होती है। | इस प्रकार ही हानि से व्यापार का लाभ कम होता है । |
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