लोक प्रशासन के क्षेत्र का विस्तृत वर्णन कीजिए।
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लोक प्रशासन का क्षेत्र
किसी भी विषय के क्षेत्र से तात्पर्य उसकी उस परिधि या पहुँच से है जिसमें वह विषय, उसकी विशेषताएँ तथा कार्य समाहित हो जाते हैं। लोक प्रशासन का क्षेत्र, निस्संदेह सम्पूर्ण मानव समाज है किन्तु मानव समाज के अन्तर्गत होने वाली प्रत्येक गतिविधि लोक प्रशासन के अन्तर्गत नहीं है क्योंकि आधुनिक युग में बढ़ती विशिष्टता तथा सूक्ष्मता ने नए-नए विषयों को जन्म दिया है।
लोक प्रशासन के क्षेत्र के सम्बन्ध में मुख्य रूप से चार दृष्टिकोण प्रचलित हैं-
- व्यापक दृष्टिकोण
- संकुचित दृष्टिकोण
- पोस्डकोर्ब दृष्टिकोण तथा
- लोक कल्याणकारी दृष्टिकोण |
1. व्यापक दृष्टिकोण (Broader View) – कुछ विद्वान जैसे, एल.डी. हाइट, गावर्स, विलोबी, नीग्रो साइमन आदि ने लोक प्रशासन के सम्बन्ध में व्यापक दृष्टिकोण अपनाया। इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन सरकार के तीनों अंगों- कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका से सम्बन्धित है। इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन के क्षेत्र में वे सभी क्रिया-कलाप सम्मिलित हैं जिनका प्रयोजन लोक नीति को पूरा करना या क्रियान्वित करना होता है।
प्रो. ह्वाइट ने लोक प्रशासन की व्यापक दृष्टिकोण से परिभाषा करते हुए लिखा है- “लोक प्रशासन में वे सभी कार्य आते हैं जिनका उद्देश्य सार्वजनिक नीति को पूरा करना अथवा लागू करना होता है।” इसी प्रकार मार्क्स के अनुसार “अपने व्यापकतम क्षेत्र में लोक प्रशासन के अन्तर्गत सार्वजनिक नीति से सम्बन्धित समस्त क्रियाएँ आती हैं। बिलोबी ने भी लिखा है- “अपने व्यापकतम अर्थ में लोक प्रशासन उस कार्य का प्रतीक है जो सरकारी कार्यों के वास्तविक सम्पादन से सम्बद्ध है, चाहे वे कार्य सरकार की किसी भी शाखा से सम्बन्धित क्यों न हों।” लोक प्रशासन के विषय क्षेत्र के बारे में नीग्रो की व्याख्या अधिक व्यापक है क्योंकि उसमें अन्य सभी पक्षों के अलावा लोक प्रशासन तथा राजनीतिक व सामाजिक प्रणाली के आपसी सम्बन्ध को भी सम्मिलित किया गया है। नीग्रो ने लोक प्रशासन की व्याख्या इस प्रकार की है-
(क) लोक प्रशासन लोक समाज में सहयोगी एवं सामूहिक प्रयास है।
(ख) लोक प्रशासन में कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका और इन तीनों के परस्पर सम्बन्ध शामिल हैं।
(ग) लोक प्रशासन की लोक नीति की रचना में प्रमुख भूमिका है और इस प्रकार यह राजनैतिक प्रक्रिया का अंग है।
(घ) लोक प्रशासन समाज की सेवा करने के क्रम में निजी समूहों और व्यक्तियों से धनिष्ठ रूप से जुड़ा है।
नीति निर्धारण आज लोक प्रशासनल का अभिन्न अंग है। प्रशासकों का पहला दायित्व है नीति सम्बन्धी मामलों में मंत्रियों को सलाह दें। दूसरे नीति सम्बन्धी निर्णयों को कार्यान्वित करने के बावजूद विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर सहायक नीतियों का भी निर्धारण करना होता है। तीसरे, सभी प्रकार की राजनीतिक प्रणालियों में आज के युग में नीति और प्रशासन अलग- अलग नहीं है। नीति निर्माण सरकार के केवल राजनीतिक तथा उच्च स्तरों पर ही नहीं होता। जहाँ भी नीति कार्यान्वित करने के लिए अधिकारियों को स्वेच्छा प्रदान की गई है वहाँ ही नीति का निर्माण उच्च स्तरों पर होता है। द्वितीय तथा तृतीय नीतियाँ निचले स्तर पर लगातार बनाई जाती है जब तक कि हम प्रशासन के निम्नतम कर्मचारी तक नहीं पहुँच जाते जिसको कि विशेष आदेशों को ही लागू करने का कर्त्तव्य सौंपा गया है और उसके हाथ में किसी प्रकार की स्वेच्छा नहीं दी गई है। यह भी संदेहपूर्ण है और उसके हाथ में किसी प्रकार की स्वेच्छा नहीं दी गई है। क्योंकि एक टाईपिस्ट की पसंद पर है कि वह किसी दस्तावेज को तुरन्त टाइप कर ले अथवा किसी अन्य कार्य के उपरान्त । अतः नीति-निर्माण और उसके पालन दोनों की पृथक्-पृथक् कल्पना की जा सकती है, किन्तु व्यवहार में ऐसे व्यक्तियों के हाथ में, जिनमें से अधिकतर स्थायी अधिकारी होते हैं, ऐसे मिश्रित होती है कि इनको पृथक् करना कठिन है। अतः विलोबी के अनुसार- व्यापक अर्थों में लोक प्रशासन शासकीय मामलों के वास्तविक संचालन को व्यक्त करता है। अतः शासन की विधायी शाखा के प्रशासन, न्याय या न्यायिक मामलों के प्रशासन या कार्यपालिका व्यक्ति के प्रशासन या सामान्य रूप से शासन के कार्यों के संचालन को लोक प्रशासन के अन्तर्गत मानना सर्वथा उचित है।
अतः लोक प्रशासन का व्यापक अर्थ स्वीकार करने पर इसमें किसी निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए की जा रही सभी प्रकार की क्रियाएँ सम्मिलित होंगी। अतः व्यापक दृष्टिकोण के अधीन प्रशासन विभिन्न प्रकार की क्रियाओं का ढेर बन जाएगा। अतः इसमें उच्च पदासीन व्यक्ति से लेकर एक क्लर्क अथवा टाईपिस्ट तक प्रशासक कहलायेगा।
2. संकुचित दृष्टिकोण (Narrow View) – कतिपय विद्वानों जैसे- साइमन, लूथर, स्मिथबर्ग तथा थॉमसन आदि ने लोक प्रशासन के क्षेत्र में संकुचित दृष्टिकोण अपनाया। उनके अनुसार लोक प्रशासन का सम्बन्ध शासन की केवल कार्यपालिका शाखा से है। साइमन लिखते हैं कि “लोक प्रशासन से अभिप्राय उन क्रियाओं से है जो केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय सरकारों की कार्यपालिका शाखाओं द्वारा सम्पादित की जाती है।” लूथर गुलिक के अनुसार इसका विशेष सम्बन्ध कार्यपालिका से है। सिमोन आदि लेखक लोक प्रशासन के कार्यक्षेत्र को निष्पादक या प्रशासकीय शाखा के क्रियाकलापों के ही अनुरूप मानते हैं। संक्षेप में, लोक प्रशासन में कार्यपालिका के संगठन, उसकी कार्य प्रणाली एवं कार्य-पद्धति का अध्ययन किया जाना चाहिए। इस दृष्टि से लोक प्रशासन के क्षेत्र में निम्न बातें आती हैं-
1. कार्यरत कार्यपालिका का अध्ययन- लोक प्रशासन कार्यरत कार्यपालिका का अध्ययन करती है। कार्यपालिका से यहाँ तात्पर्य है केवल असैनिक कार्यपालिका से है। लोक प्रशासन कार्यपालिका की उन समस्त असैनिक क्रियाओं से सम्बन्धित है जो निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए की जाती है। यथार्थ में राष्ट्रीय, राज्यीय एवं स्थानीय प्रत्येक प्रकार के प्रशासन के लिए कार्यपालिका ही उत्तरदायी है।
2. सामान्य प्रशासन का अध्ययन- लोक प्रशासन, सामान्य प्रशासन की सभी समस्याओं से सम्बन्धित रहता है। इसके क्षेत्र में प्रशासनिक नीतियाँ, लक्ष्य निर्धारण, प्रशासन के ऊपर निर्देशन, निरीक्षण तथा नियंत्रण आदि शामिल हैं।
3. संगठन सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन – लोक प्रशासन यह भी निर्धारित करता है कि विभिन्न प्रशासकीय क्रियाओं को सुचारु रूप से सम्पन्न करने के लिए सेवाएँ किस प्रकार से संगठित की जाए।
लोक प्रशासन के क्षेत्र में असैनिक सेवाओं के विभिन्न सूत्र उसके संगठनों तथा क्षेत्रीय संगठनों का व्यापक अध्ययन करते हैं।
4. सेवि वर्ग की समस्याओं का अध्ययन- लोक प्रशासन के क्षेत्र में पदाधिकारियों की भर्ती, प्रशिक्षण, सेवाओं की दशा, अनुशासन, कर्मचारी संघ आदि समस्याओं का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
5. सामग्री प्रदाय सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन- लोक प्रशासन की परिधि में विविध सामग्री की खरीददारी, उसे स्टोर करना और कार्य करने के यंत्र तथा सज्जा आदि समस्याएँ भी सम्मिलित हैं।
6. वित्त सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन- लोक प्रशासन के अन्तर्गत बजट, कारारोपण और वित्त से सम्बन्धित अन्य प्रश्नों का भी समुचित अध्ययन किया जाता है।
7. प्रशासकीय उत्तरदायित्व का अध्ययन- लोक प्रशासन के अन्तर्गत प्रशासकों के विभिन्न प्रकार के उत्तरदायित्वों का पर्याप्त अध्ययन किया जाता है। प्रशासक स्वच्छन्द आचरण नहीं कर सकते हैं। वे जनता, विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के प्रति किस प्रकार उत्तरदायी हैं इसका अध्ययन भी लोक प्रशासन का महत्वपूर्ण पहलू है।
इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन केवल सरकार की कार्यकारिणी शाखा की क्रियाओं तक ही सीमित है। हम भारतीय लोक प्रशासन की संकीर्ण परिभाषा स्वीकार नहीं कर सकते। कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका इतने अधिक परस्पर निर्भर हैं एवं उनमें तीव्र व्यापक अन्तः लोक प्रशासन का सम्बन्ध शासन की तीनों शाखाओं से है। लोक प्रशासन को केवल सरकार या कार्यपालिका से जोड़ देना संकीर्ण विचार होगा। आज सरकार अपने क्षेत्र में तो काम करती है इसके अलावा वह और क्षेत्रों में भी अपना हित या हाथ रखती है जैसे- सहकारी समितियाँ सरकारी क्षेत्र से बाहर हैं पर इसमें करदाता का पैसा आता है और इसलिए वे लोक प्रशासन के अन्तर्गत आती हैं।
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