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ब्रांड का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, कारण या उद्देश्य, ब्राण्ड के लाभ

ब्रांड का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, कारण या उद्देश्य, ब्राण्ड के लाभ
ब्रांड का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, कारण या उद्देश्य, ब्राण्ड के लाभ

ब्रांड का अर्थ (brand kise kahte hai)

ब्रांड का अर्थ- आज की इस प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में प्रत्येक उत्पादक के सामने यह प्रश्न आता है कि वह अपनी वस्तु को अन्य उत्पादकों की बनाई गई वस्तुओं से किस प्रकार भिन्नता प्रदान करें जिससे कि ग्राहकों को अपनी ही वस्तुओं की ओर आकर्षित किया जा सके। इस समस्या के समाधान के लिए उत्पादक अपने द्वारा बनाई गई वस्तुओं के लिए एक ब्राण्ड का प्रयोग करता है अर्थात् एक चिन्ह या मार्का निश्चित करके उसका पंजीयन करा लेता है तथा अपनी वस्तुओं के लिए उस मार्का का अधिकृत रूप से प्रयोग करता है। वस्तु का ब्राण्ड उत्पादक की ओर से प्रयोग किया जाने वाला एक ऐसा चिन्ह होता है जिसके द्वारा वह अपनी वस्तुओं में अन्य उत्पादकों की वस्तुओं से भिन्नता प्रदान करता है।

ब्रांड की परिभाषा (brand ki paribhasha)

अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन के शब्दों में, “ब्राण्ड एक नाम, पद, प्रतीक या डिजाइन अथवा इसका एक सम्मिश्रण है, जिसके द्वारा एक विक्रेता अथवा विक्रेताओं के समूह के उत्पादों या सेवाओं की पहचान की जाती है तथा उन्हें प्रतिस्पर्धा से भिन्न किया जाता है।”

इस प्रकार इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि ब्राण्ड के अन्तर्गत ब्राण्ड का नाम या ट्रेडमार्क या दोनों को सम्मिलित किया जा सकता है। ब्राण्ड शब्द काफी विस्तृत है तथा इसमें वस्तु के पैकेज तथा आकृति के अतिरिक्त पहचान से सम्बन्धित सभी बातें सम्मिलित की जाती हैं। ब्राण्ड अथवा ट्रेडमार्क को संरक्षण प्राप्त होता है। इसके लिए कोई नाम, चिन्ह या चित्र का प्रयोग किया जा सकता है, जैसे राजीव प्रकाशन का ट्रेडमार्क आर (R) विशेष प्रकार से बनाया गया है।

ब्राण्ड के मुख्य प्रकार (Main Types of Brands )

ब्राण्ड अनेक प्रकार के होते हैं किन्तु इनके प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:-

1. वैयक्तिक ब्राण्ड (Individual Brand)- जो ब्राण्ड किसी उत्पाद विशेष के लिए, ही निश्चित हो, वह वैयक्तिक या एकाकी ब्राण्ड कहलाता है। ऐसे में संस्था अपने प्रत्येक उत्पाद के लिए अलग ब्राण्ड निर्धारित करती है। सर्फ, विम, व्हील, एरियल आदि वैयक्तिक ब्राण्ड ही है।

2. परिवार ब्राण्ड (Family Brand)- जब कोई संस्था अपनी एक उत्पाद श्रृंखला के सभी उत्पादों के लिए एक ही ब्राण्ड का उपयोग करती है तो वह परिवार ब्राण्ड कहलाता है। उदाहरणार्थ – विमल, किसान, धारा, अमूल आदि ऐसे ही ब्राण्ड हैं, जिनका संस्था की सम्पूर्ण उत्पाद श्रृंखला के उत्पादों के लिए उपयोग किया जाता है।

3. कम्पनी या निर्माता ब्राण्ड (Company or manufacture’s Brand)- जब कोई कम्पनी या निर्माता अपने सभी उत्पादों या उत्पादों की सभी श्रृंखलाओं के लिए कम्पनीं या निर्माता के नाम के ही ब्राण्ड के रूप में उपयोग करती है, तो वह कम्पनी या निर्माता ब्राण्ड कहलाता है। लाल इमली, धारीवाल, टाटा, बाटा आदि निर्माता या कम्पनी के नाम को प्रकट करते हैं।

4. संयुक्त ब्राण्ड (Combination Brand) – जब उत्पाद ब्राण्ड एवं निर्माता के नाम दोनों को ही एक साथ उपयोग में लाया जाता है, तो वह संयुक्त ब्राण्ड कहलाता है। उदाहरणार्थ, टाटा का तेल, डाबर का हाजमोला इत्यादि ऐसे ही ब्राण्ड हैं।

एक अच्छे ब्राण्ड की विशेषताएं (Features of Good Brand)

किसी भी कम्पनी द्वारा ब्राण्ड का चुनाव बड़ी ही सावधानी से किया जाना चाहिए क्योंकि भविष्य में यह ब्राण्ड संस्था के लिए वरदान या अभिशाप हो सकता है। ब्राण्ड का चुनाव कम्पनी अपनी इच्छानुसार किसी नाम, चित्र या चिन्ह के रूप में कर सकती है। ब्राण्ड का चुनाव करते समय संस्था को निम्नलिखित बातें विशेष रूप में ध्यान में रखनी चाहिए-

1. ब्राण्ड का नाम (Brand’s Name) – ब्राण्ड का नाम वस्तु के गुणों को प्रकट करने वाला होना चाहिए। जैसे कोका-कोला अर्थात् इसमें कोको की कुछ मात्रा भी प्रयोग की गई है जो ताजगी तथा स्फूर्ति देती है। इसके साथ ही ब्राण्ड का नाम ऐसा होना चाहिए जिसके उच्चारण में कठिनाई न हो अर्थात जो आसानी से बोला जा सके।

2. आसानी से पहचाने जाने योग्य (Easily Recognisable)- ब्राण्ड चिन्ह ऐसा होना चाहिए जिसको आसानी से पहचाना जा सके अर्थात ब्राण्ड चिन्ह की बनावट आँखों में समा जाने योग्य होनी चाहिए।

3. अन्य ब्राण्ड नामों से भिन्न (Different from Other Brand’s Names)- ब्राण्ड का नाम अन्य ब्राण्डों के आधार पर नहीं रखा जाना चाहिए ताकि किसी प्रकार के भ्रम की सम्भावना न रहे। इसमें अपनी विशिष्टता होनी चाहिए।

4. ब्राण्ड का पंजीकरण (Brand’s Registration)- ब्राण्ड का पंजीकरण अवश्य ही कराना चाहिए ताकि उसकी नकल कोई अन्य उत्पादक न कर सके।

5. विज्ञापन में सहायक (Helpful in Advertising)- ब्राण्ड का नाम व चिन्ह ऐसा होना चाहिए जो विज्ञापन को प्रभावशाली बनाने में सहायक हो ।

6. संक्षिप्त (In short) – ब्राण्ड का नाम तथा चिन्ह संक्षिप्त होना चाहिए ताकि उसे याद रखने में सुविधा रहे। वास्तव में आधुनिक समय में संक्षिप्त नाम ही पसन्द किया जाता है जैसे डालडा, बाटा, उषा आदि।

7. अश्लीलता से दूर (For from Obscene)- ब्राण्ड में किसी भी प्रकार की अश्लीलता का प्रदर्शन नहीं होना चाहिए अर्थात् यदि चित्र का प्रयोग किया जाए तो वह सभ्यताओं की सीमाओं से बंधा होना चाहिए।

ब्राण्ड के मुख्य कारण या उद्देश्य (Reasons or Objectives of Brand)

ब्राण्ड के प्रमुख कारण या उद्देश्य निम्नानुसार हैं-

1. उपभोक्ताओं को उत्पाद की पहचान में सुविधा प्रदान करना।

2. स्वयंसेवी भण्डारों (Self Service Store) में खरीददारी में उपभोक्ताओं के समय बचाना।

3. उत्पाद किस्म के प्रति उपभोक्ताओं को आश्वस्त करना।

4. उत्पाद के विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन में योगदान करना।

5. संवर्द्धनात्मक कार्यक्रम में सुविधा प्रदान करना है।

6. अन्य उत्पादकों के उत्पादों से अपने उत्पादों की पृथक पहचान बनाना।

7. उत्पाद के व्यक्तित्व या उसकी छवि या ख्याति का निर्माण करना।

8. मूल्य आधारित प्रतिस्पर्धा को कम करना।

9. अधिक उत्पाद संग्रह करने एवं बेचने के लिए मध्यस्थों को प्रेरित करना ।

10. मध्यस्थों की दुकानों एवं शोरूम पर माल- प्रदर्शन एवं सजावट का स्थान प्राप्त करना।

11. उत्पाद श्रृंखला के विस्तार में सुविधा प्रदान करना।

ब्राण्ड के लाभ (Advantages of Brand)

ब्राण्ड का लाभ समाज के किसी विशेष पक्ष को न होकर सभी को पहुँचता है। ब्राण्ड से होने वाले लाभों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-

(I) उत्पादकों तथा मध्यस्थों को लाभ (Advantages to Producers and Middlemen)

ब्राण्ड के प्रयोग से उत्पादक तथा मध्यस्थ ग्राहकों को अपनी वस्तु की ओर आकर्षित करने में सुविधा अनुभव करते हैं। ब्राण्ड के प्रयोग से उत्पादकों तथा मध्यस्थों को मुख्य रूप से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं –

1. विज्ञापन में सुविधा ( Ease in Advertising)- कम्पनी प्रत्येक वस्तु पर ब्राण्ड का चिन्ह डाल देती है तथा विज्ञापन किसी एक उत्पाद का न करके पूरे ब्राण्ड का करती है। ग्राहक भी ब्राण्ड से प्रभावित होते हैं, तथा एक निश्चित ब्राण्ड की वस्तुओं का प्रयोग पसंद करने लगते हैं।

उदाहरण के लिए टाटा कम्पनी बसों तथा ट्रकों से लेकर दैनिक प्रयोग में आने वाला साबुन क बनाती है तथा एक विशेष चिन्ह का प्रयोग करती है। विज्ञापन में भी उसी चिन्ह की वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता है।

2. वस्तु परिचय (Product Identification)- ब्राण्ड के प्रयोग द्वारा ग्राहकों को वस्तु के सम्बन्ध में आसानी से जानकारी दी जा सकती है तथा उन्हें स्थायी रूप से अपने ब्राण्ड का ग्राहक बनाया जा सकता है।

3. पृथक बाजार का निर्माण (Creation of Separate Market)- उत्पादक अपने ब्राण्ड का प्रयोग करके विज्ञापन द्वारा अपनी वस्तुओं के लिए पृथक बाजार का निर्माण कर सकता है तथा विक्रय को सुरक्षा प्रदान कर सकता है। ब्राण्ड का प्रयोग पुनः विक्रय को भी प्रोत्साहन देता है।

4. अधिक कीमत की प्राप्ति (Receiving More Price)- जब ग्राहक किसी विशेष ब्राण्ड की वस्तु का प्रयोग करने के आदी हो जाते हैं तो फिर वह उसी प्रकार की अन्य ब्राण्ड की कीमत से उसकी तुलना नहीं करते बल्कि अपने ब्राण्ड की महंगी वस्तु को भी क्रय के दृष्टिकोण से प्राथमिकता देते हैं। सिगरेट, डबलरोटी, दवाई आदि के प्रयोग में यहीं बात लागू होती है।

5. उत्पाद मिश्रण के विस्तार में सुविधा (Ease in the Expansion of Product Mix)- यदि किसी कम्पनी का ब्राण्ड बाजार में प्रचलित है अर्थात् ग्राहकों के द्वारा पसन्द किया जाता है तो उत्पाद मिश्रण में अन्य उत्पादों का भी प्रवेश कराया जा सकता है तथा बाजार में उन्हें स्थान ग्रहण कराने में विशेष प्रयत्नों की आवश्यकता नहीं होती।

6. ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क (Personal Contacts with Customers) – ब्राण्ड के बाजार में लोकप्रिय हो जाने पर मध्यस्थों की संख्या में भी कमी की जा सकती है तथा ग्राहकों से सीधा सम्पर्क करके विपणन लागत को घटाया जा सकता है।

(II) उपभोक्ताओं को लाभ (Advantages to Consumers)

ब्राण्ड उपभोक्ताओं को इस बात का विश्वास दिलाता है कि वे ठीक किस्म की वस्तु सही दामों पर खरीद रहे हैं। ब्राण्ड के प्रयोग से ग्राहकों को निम्नलिखित लाभ होते हैं

1. पहिचान में सुविधा ( Easy to Recognise)- ब्राण्ड के प्रयोग से ग्राहक वस्तु को शीघ्र ही पहिचान लेता है क्योंकि एक ब्राण्ड की लगभग सभी वस्तुओं पर एक सा ही रंग तथा डिजाइन का प्रयोग किया जाता है। अतः ग्राहकों को इच्छित वस्तु प्राप्त करने में विशेष प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं होती।

2. वस्तु की किस्म में सुधार (Improvement in the Quality of the Products) अपने ब्राण्ड की साख को बनाये रखने के लिए उत्पादक सदैव वस्तु की किस्म में सुधार के लिए प्रयत्नशील रहता है। वह यह प्रयत्न करता है कि अन्य प्रतिस्पर्धी अपेक्षाकृत उससे अधिक अच्छी वस्तु बाजार में न ला सकें। इसका लाभ ग्राहकों की अच्छी किस्म की वस्तुओं की प्राप्ति के रूप में होता है।

3. कीमत की निश्चितता (Certainty of Price)- एक निश्चित ब्राण्ड की वस्तु की कीमत सभी स्थानों पर एक सी रहती है तथा उसमें किसी प्रकार से भी ठगे जाने की सम्भावना नहीं होती है।

4. बढ़िया पैकेज (Package of Good Quality)- ब्राण्ड का नाम तथा चिन्ह अकसर पैकिंग के ऊपर ही अंकित होता है। अतः पैकिंग को आकर्षक तथा मजबूत बनाने का प्रयास किया जाता है। इसमें वस्तु की सुरक्षा में वृद्धि होती है।

5. किस्म की गारन्टी (Guaranteed Quality) – साधारणतया ब्राण्ड वाली वस्तुओं की किस्म अच्छी होती है। इसके ग्राहकों को उत्तम प्रकार की वस्तु प्रयोग करने के लिए उपलब्ध होती है।

6. मानसिक सन्तुष्टि (Mental Satisfaction)- ब्राण्ड की वस्तु के प्रयोग से ग्राहक को मानसिक सन्तुष्टि रहती है कि वह उचित कीमत पर अच्छी किस्म का प्रयोग कर रहा है।

क्या ब्राण्ड का प्रयोग सामाजिक दृष्टिकोण से वांछनीय है? (Is the Use of Brnad Socially Desirable?)

ब्राण्ड का प्रयोग सामाजिक दृष्टिकोण से उचित है या नहीं यह एक विवादास्पद प्रश्न है। कुछ व्यक्ति ब्राण्ड के प्रयोग को उचित मानते हैं तो कुछ अन्यों की दृष्टि में यह सर्वथा अनुचित तथा अनावश्यक है। ब्राण्ड के प्रयोग को उचित मानने वालों का मत है कि ब्राण्ड के कारण निश्चित कीमत पर अच्छे किस्म की वस्तु बिना किसी धोखे की सम्भावना के चुनाव के लिए कम प्रयत्नों के साथ प्राप्त करके समय तथा धन की बचत के साथ ही मानसिक संतुष्टि भी प्राप्त की जाती है। जबकि इस विचारधारा के विपरीत दृष्टिकोण रखने वालों के विचार में ब्राण्ड का प्रयोग एक ओर तो उत्पादकों की एकाधिकारी प्रवृत्ति को विकसित करता है तथा अपने ग्राहकों को मूर्ख बनाकर उनका शोषण करने का अवसर प्रदान करता है एवं दूसरी ओर यह ग्राहकों को विवेकहीन बनाकर उनके द्वारा दिये गये मूल्यों का उचित प्रतिफल प्राप्त करने की क्षमता समाप्त करता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि दोनों ही प्रकार की विचारधारायें सारपूर्ण हैं अर्थात् किसी को भी गलत नहीं कहा जा सकता लेकिन यदि ब्राण्ड के प्रयोग की बिल्कुल समाप्त करने वाली बात कहीं जाए तो आज के समय में यह कुछ विचित्र सा लगता है क्योंकि आज के व्यावसायिक जगत में न तो विक्रेता ही इतना खाली है कि क्रेता की संतुष्टि के लिए अत्यधिक समय तथा मेहनत लगाए और न ही उपभोक्ता के पास इतना समय है कि वह उचित वस्तु की खोज में बाजार में निश्चिन्तता के साथ घूमता रहे। अतः वर्तमान समय में ब्राण्ड का प्रयोग बिल्कुल वांछनीय है। परन्तु इसके लिए कुछ वैधानिक सुधार करके इसे अधिक समाजोपयोगी बनाया जा सकता है।

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Anjali Yadav

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