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नियोजित अप्रचलन (Planned Obsolescence)
नियोजित अप्रचलन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition) – प्रत्येक उत्पाद का एक जीवन- चक्र होता है। वह कभी न कभी अप्रचलन की स्थिति में अवश्य पहुँचता है। अप्रचलन (Obsolescence) को ह्रास की प्रक्रिया कहा जा सकता है। ऐसे उत्पाद जो पुराने हो जाते हैं और जिनका क्रय नहीं किया जाता, अप्रचलित उत्पाद कहलाते हैं और ऐसी प्रक्रिया को अप्रचलन कहा जाता है। मैसन एवं रथ के अनुसार, “अप्रचलन क्षय की प्रक्रिया है जो पुरानी एवं निष्क्रिय बनी हुई है।” बाजार में नवीन और विकसित उत्पादों के आगमन से पुराने उत्पादों का अप्रचलन हो जाता है।
जहाँ तक नियोजित अप्रचलन (Planned Obsolesceace) का प्रश्न है, विलियम जे० स्टेण्टन के अनुसार, “नियोजित अप्रचलन का उद्देश्य एक उत्पाद को पुराना बनाना है और इस प्रकार प्रतिस्थापित बाजार में वृद्धि करना है।” यह उल्लेखनीय है कि ऐसा अप्रचलन नियोक्ता द्वारा जानबूझकर किया जाता है। वर्तमान उत्पादों को जानबूझकर अप्रचलित करने के उद्देश्य से ही वस्तु सुधार (Product Improvement) किया जाता है। आधुनिक समय में विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में नियोजित अप्रचलन काफी लोकप्रिय हैं। पहले वस्तुओं के टिकाऊपन पर विशेष जोर दिया जाता था तथा विज्ञापन में भी वस्तुओं की मजबूती को महत्व दिया जाता था परन्तु अब दृष्टिकोण बदल चुका है। आधुनिक उपभोक्ता नवीनता पसन्द हो गया है। “दादा ले और पोता बरते” वाली कहावत अब अपना महत्व खो चुकी है। टिकाऊ वस्तुओं के मॉडलों में भी प्रतिवर्ष परिवर्तन आवश्यक हो गया है। अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र में तो कार निर्माता प्रति वर्ष लाखों की संख्या में नये मॉडल बेचने में सफल हो जाते हैं। भारत में नियोजित अप्रचलन अभी इस सीमा तक आगे नहीं बढ़ा है परन्तु कपड़ों के सम्बन्ध में नये डिजाइन और स्टाइल काफी लोकप्रिय होते जा रहे हैं।
नियोजित अप्रचलन का औचित्य (Justification of Planned Obsolescence)
यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या नियोजित अप्रचलन न्यायोचित है ? इस सम्बन्ध में परस्पर विरोधी विचार देखने को मिलते हैं। अनेक विद्वान, जिनमें अमेरिका के विख्यात अर्थशास्त्री जॉन केनेथ भी सम्मिलित हैं, के अनुसार नियोजित अप्रचलन की नीति अनैतिक और अपव्ययपूर्ण है। इसे अपनाने से प्रति वर्ष सैकड़ों पुरानी मशीनें और उत्पाद बेकार हो जाते हैं। इसके विपरीत, अनेक विद्वान अर्थव्यवस्था के निरन्तर विकास के लिए इसे अनिवार्य मानते हैं।
पक्ष में तर्क- नियोजित अप्रचलन के पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं-
(1) उपभोक्ताओं की नवीन वस्तुओं के प्रति रूचि को संतुष्ट किया जा सकता है। सभी उपभोक्ता समान प्रकृति के नहीं होते। अनेक उपभोक्ताओं को नये मॉडलों के क्रय से असीम सुख मिलता है।
(2) नियोजित अप्रचलन की नीति के प्रयोग से समस्त अर्थव्यवस्था में गतिशीलता आती है और विकास एवं अनुसंधान क्रियाओं को प्रोत्साहन मिलता है।
(3) इस नीति के प्रयोग से वितरकों एवं मध्यस्थों तथा विक्रेताओं के उत्साह में वृद्धि होती है। उन्हें उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।
(4) नियोजित अप्रचलन की नीति के पक्ष में यह भी तर्क दिया जाता है कि यदि यह नीति उपभोक्ताओं के हितों के विरूद्ध है तो वे नवीन वस्तुओं का प्रयोग न करके इस नीति को असफल कर सकते हैं।
(5) वस्तुओं में निरन्तर परिवर्तन के फलस्वरूप कीमत-स्पर्द्धा का महत्व कम हो जाता है।
(6) नियोजित अप्रचलन निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए अच्छा है। नवीन मॉडल आ जाने से पुराने मॉडल के दाम कम हो जाते हैं।
(उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि नियोजित अप्रचलन को नैतिकता के स्थान पर व्यावहारिक दृष्टि से देखना चाहिए। यदि इस नीति के प्रयोग से उपभोक्ताओं को अधिक संतुष्टि प्रदान की जा सके, रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सके और अर्थव्यवस्था को गति प्रदान की जा सके तो निःसंदेह यह एक अच्छी नीति है और इसे न्यायसंगत कहा जा सकता है।)
नियोजित अप्रचलन की प्रकृति (Nature of Planned Obsolescence)
विलियम जे० स्टेण्टन ने नियोजित अप्रचलन की निम्न तरीकों से व्याख्या की है-
1. तकनीकी अथवा कार्यात्मक अप्रचलन (Technological or Functional Obsolescence)- इस व्याख्या के अन्तर्गत उत्पाद नवाचार से उत्पन्न अप्रलचन को सम्मिलित किया जाता है। उत्पाद में ऐसे महत्वपूर्ण सुधार किये जाते हैं जिन्हें तकनीकी प्रमापों से मापा जा सके। जब तान्त्रिक दृष्टि से उन्नत वस्तु बाजार में आती है तो पुरानी वस्तुएँ स्वतः ही अप्रचलित हो जाती है। उदाहरणार्थ, स्वचालित मशीनें आ जाने से अनेक पुरानी मशीनें अप्रचलित होती जा रही है।
2. स्थगित अप्रचलन (Postponed Obsolescence)- स्थगित अप्रचलन उस अप्रचलन को कहते हैं जो भविष्य के लिए टाल दिया जाये। प्रायः तान्त्रिक सुधार तब तक प्रचलित नहीं किये जाते जब तक कि वर्तमान मॉडलों की माँग में कमी न हो।
3. जानबूझकर उत्पन्न भौतिक अप्रचलन (Intentially Disigned Physical Obsolescence)- जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, यह अप्रलचन निर्माताओं द्वारा जानबूझकर किया जाता है। वस्तु ऐसी बनायी जाती है जो कुछ ही समय में या तो खराब हो जाने वाली हो अथवा घिस जाने वाली हो। वास्तव में यह बहुत ही खतरनाक नीति है क्योंकि इससे फर्म की ख्याति को धक्का पहुँचने की सम्भावना रहती है। लोग ऐसा सोचने लगते हैं कि अमुक कम्पनी तो सदैव घटिया किस्म की वस्तुओं का ही निर्माण करती है।
4. शैली अप्रचलन (Style Obsolescence)- शैली अप्रचलन का अर्थ किसी उत्पाद की बाहरी विशेषताओं को इस प्रकार से परिवर्तित करना होता है जिससे वह उत्पाद पुराने मॉडल से स्पष्ट रूप से भिन्न दिखाई देने लगे। इसे ‘मनोवैज्ञानिक’ या ‘फैशन’ अप्रचलन के नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्तर्गत ग्राहक को यह महसूस कराने का प्रयत्न किया जाता है कि जिस वस्तु का वह प्रयोग कर रहा है, वह पुरानी हो गयी है। अतः उसे नवीन मॉडल का प्रयोग करना चाहिए।
यह उल्लेखनीय है कि सामान्यतः नियोजित अप्रचलन का अर्थ शैली अप्रचलन से लिया जाता है, जब तक कि किसी अन्य अप्रचलन का स्पष्ट रूप से उल्लेख न हो। जो लोग नियोजित अप्रचलन की आलोचना करते हैं, उनका संकेत भी शैली अप्रचलन की ओर ही होता है।
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