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जीवन चक्र लागत लेखांकन से आप क्या समझते हैं? (Meaning of Life Cycle Costing)
जीवन चक्र लागत लेखांकन को समझने के लिए उत्पाद के जीवन चक्र को समझना आवश्यक है। एक उत्पाद का जीवन चक्र उस समय से प्रारम्भ हो जाता है जिस समय से उत्पाद के विकास के लिए प्रारम्भिक अनुसंधान शुरू किये जाते हैं और तब तक चलता है जब तक कि उस वस्तु की बिक्री और उसका अन्तिम उपभोग समाप्त नहीं हो जाता, जैसे- मोटर गाड़ियों के लिए यह जीवन समय पाँच दस वर्ष का हो सकता है, तो फार्मास्युटिकल वस्तुओं के लिए यह समय 3 से 5 वर्ष हो सकता है और फैशन की वस्तुओं के लिए यह समय एक वर्ष से भी कम होता है।
जीवन चक्र लागत लेखांकन किसी उत्पाद के प्रारम्भिक अनुसंधान एवं विकास से लेकर उत्पाद को बाजार में उतारने तक की प्रत्येक अवस्था की वास्तविक लागत को एकत्र करती है और उसका लेखांकन करती है। अतः यह उत्पाद/योजना के जीवन चक्र से सम्बन्धित सभी क्रियाओं अथवा अवस्थाओं की लागतों के एकत्रीकरण का प्रयास करता है। यह उन कुल लागतों (पूँजीगत लागत+आयगत लागत) पर प्रकाश डालता है, जो उत्पादों के जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं, जैसे – डिजाइन एवं विकास, प्राप्ति, निर्माण, संरक्षण और सेवा आदि से सम्बन्धित होती है। इसमें सेवा लागतों में, विपणन, वितरण, प्रशासनिक और बिक्री के बाद सेवा सभी को सम्मिलित किया जाता है। “Crade to grave” and “womb to tomb” जैसी अन्य शब्दावली भी जीवन-चक्र लागत लेखांकन के सम्बन्ध में प्रयोग की जाती है।
CIMA के अनुसार, “जीवन चक्र लागत लेखांकन से आशय भौतिक सम्पत्तियों का इकाई की निम्नतम लागतों पर श्रेष्ठ उपयोग उनके जीवन समय मेंकरने की तकनीक से है।’
इस प्रकार जीवन चक्र लागत लेखांकन एक उत्पाद के जीवन चक्र की कुल लागतों के लेखांकन पर जोर देती है जिससे प्रत्येक इकाई के निष्पादन के बारे में अनुकूलतम निर्णय किया जा सके।
जीवन चक्र लागत लेखांकन के लाभ (Advantages of Life Cycle Costing)
जीवन चक्र लागत लेखांकन के प्रमुख लाभ निम्न हैं-
(1) मूल्य निर्णयों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देना (Provide the ImportantInformation for Pricing decisions)– जीवन चक्र लेखांकन वस्तु के मूल्यों के निर्धारण के निर्णय के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह जानकारी अति आवश्यक है क्योंकि कुछ उत्पादों की विकास अवस्था काफी लम्बी होती है और कई लागतें निर्माण के पूर्व व पश्चात् आती है।
(2) प्रबन्धकों के लिए सहायक (To Helps the Managers)- यह विधि प्रबन्ध को योजना की बारीकियों को समझाने में मदद करती है ताकि उत्पाद से इतनी आय अर्जित की जा सके जो उत्पाद जीवन चक्र की सभी छः अवस्थाओं (शोध एवं विकास, उत्पाद डिजाइन, निर्माण, विपणन, वितरण एवं उपभोग सेवा) को पूरा कर सके न कि केवल निर्माणी लागत को, जैसे- एक साफ्टवेयर पैकिंग कम्पनी में शोध एवं विकास तथा उत्पाद डिजाइन लागतें कुल लागतों का लगभग 30% होती हैं। ऐसी स्थिति में जीवन चक्र लागत लेखांकन अत्याधिक सहायता करती है।
(3) यह प्रबन्धकों के कार्यक्षेत्र को व्यापक बनाती है ( It Broadens the Perspective of Managers)- जीवन चक्र लेखांकन प्रबन्धकों के कार्यक्षेत्र को व्यापक बनाती है क्योंकि इसमें पूरे जीवन चक्र को ध्यान में रखा जाता है। यहीं कारण है कि अन्य शब्दावली, जैसे – “क्रेडल टू ग्रेव” और “वोम्ब टू टोम्ब” प्रायः प्रयोग की जाती है, जिसके अन्तर्गत उत्पाद के सम्पूर्ण जीवन चक्र को ध्यान में रखा जाता है।
(4) प्रत्येक उत्पाद की सम्पूर्ण लागत को बताना (Full Costs Associated With Each Product)- जीवन चक्र लेखांकन में प्रत्येक उत्पाद में जो सम्पूर्ण लागत लगी है प्रायः उसे दिखाया जाता है। निर्माणी लागतें सभी लेखांकन तकनीकों द्वारा दर्शायी जाती हैं। लेकिन अन्य लागतें और उत्पाद के अन्य पक्ष, जैसे शोध एवं विकास तथा नीचे के क्षेत्र, जैसे उपभोक्ता – सेवा की लागतें आदि प्रायः संगठन के परम्परावादी लागत लेखांकन में कम दिखायी देती है। इस प्रकार की समस्याओं का समाधान जवीन चक्र लागत लेखांकन करती है।
(5) विभिन्न लागतों के अर्न्तसम्बन्धों पर प्रकाश (Highlights the Interrelationships Across Cost)- जीवन चक्र लागत लेखांकन विभिन्न लागतों के वर्गीकरण में उनके अर्न्तसम्बन्धों पर प्रकाश डालती है। बहुत-सी कम्पनियाँ जो शोध व अनुसंधान की लागतें कम करती हैं तथा बाद में आने वाले वर्षों में उपभोक्ता सेवा सम्बन्धी लागतों में वृद्धि करती है, इस प्रकार की कम्पनियों के उत्पाद निर्धारित गुणों को निष्पादित करने में असफल रहते हैं। जीवन चक्र आय और लागत विवरण पत्र उन छिपे हुए क्षेत्रों को उजागर करता है जो समय-सीमा आधारित विवरण पत्र छुपाता है।
(6) पूँजी बजटन के निर्णयों में अति उपयोगी (Immensely Useful in Capital Budgeting Decisions)- जीवन चक्र लागत लेखांकन दीर्घकालीन पूँजीगत विनियोगों के निर्णय में अति उपयोगी है। यह दोनों प्रकार की लागतों अर्थात उत्पाद के जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं से सम्बन्धित पूँजीगत लागतों और आयगत लागतों दोनों को महत्व देती है। यह ऊँची पूँजीगत लागतों तथा निम्न संरक्षण लागतों के मध्य स्पष्ट मिलान करती है।
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