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कोष प्रवाह विवरण क्या है? उद्देश्य महत्व, सीमाएँ, महत्वपूर्ण तथ्य

कोष प्रवाह विवरण क्या है? उद्देश्य महत्व, सीमाएँ, महत्वपूर्ण तथ्य
कोष प्रवाह विवरण क्या है? उद्देश्य महत्व, सीमाएँ, महत्वपूर्ण तथ्य

कोष प्रवाह विवरण क्या है?

कोष प्रवाह विवरण- एक वाणिज्यिक संस्था की लार्भाजन शक्ति, वित्तीय स्थिति की कार्यक्षमता के विषय में लाभ-हानि व आर्थिक चिठ्ठा मौलिक रूप से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान करते हैं, परन्तु इनके मौलिक रूप का निरीक्षण कभी-कभी भ्रमात्मक निष्कर्ष प्रदान कर सकता है। उदाहरण के लिए, लाभ-हानि खाता से तो यह पता चल सकता है कि संस्था की शोधन क्षमता भी सुदृढ़ है। इसके बाद भी संस्था नकद धन के रूप में या लाभांश भुगतान की स्थिति में नहीं है तो ऐसी स्थिति में व्यवसाय का मालिक या प्रबन्धक यदि वह लेखा विधि में पारंगत नहीं है या अनभिज्ञ है, इस तथ्य को अच्छी तरह नहीं समझ पाता है कि अत्यधिक लाभ होने पर पूँजी सम्वर्द्धन करने के बाद भी संस्था के पास नकद धन की कमी क्यों है, किसी वित्तीय वर्ष में किन-किन साधनों से धन प्राप्त हुआ तथा किन- किन मदों पर इसे व्यय किया गया, इस स्थिति का स्पष्टीकरण करने के लिए जिस निर्वचन विधि का प्रयोग किया जाता है, उसे फण्ड के साधन व प्रयोग का विवरण या फण्ड प्रवाह विवरण (Fund Flow Statement) कहते हैं। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि फण्ड के साधन व प्रयोग का विवरण सारांश रूप में तैयार किया गया एक ऐसा विवरण है जो दो तिथियों पर तैयार किये गये आर्थिक चिठ्ठा के वित्तीय मदों में हुए परिवर्तनों को दर्शाता है।

कोष प्रवाह विवरण तैयार करना (Preparation of Fund Flow Statement)

कोष प्रवाह विवरण को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है

(1) कार्यशील पूँजी में परिवर्तन की अनुसूची (Schedule of Changes in Working Capital)

(2) कोषों के स्रोतों एवं उपयोगों का विवरण (Statement of Sources and Application of Fund)

(1) कार्यशील पूँजी में परिवर्तन की अनुसूची (Schedule of Changes in Working Capital)

यह विवरण इस बात को प्रदर्शित करता है कि चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों में परिवर्तन का प्रभाव कार्यशील पूँजी पर क्या पड़ता है। चूँकि कार्यशील पूँजी का तात्पर्य चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों के अन्तर से है, अतः यह विवरण केवल इन्हीं मदों की सहायता से बनाया जाता है। यह विवरण प्रारम्भिक एवं अन्तिम चिठ्ठे में प्रदर्शित चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्व के बीच तुलनात्मक सम्बन्ध स्थापित करता है एवं इसका प्रभाव कार्यशील पूँजी पर प्रदर्शित करता है। परिवर्तन का प्रभाव निम्न प्रकार से पड़ता है-

(अ) चालू सम्पत्तियों में अगर तुलनात्मक वृद्धि है, तो ऐसी स्थिति में कार्यशील पूँजी में भी वृद्धि होगी।

(ब) चालू सम्पत्तियों में अगर तुलनात्मक कमी है, तो ऐसी स्थिति में कार्यशील पूँजी में भी कमी आयेगी।

(स) चालू सम्पत्तियों में अगर तुलनात्मक वृद्धि है, तो ऐसी स्थिति में कार्यशील पूँजी में कमी आयेगी।

(द) चालू दायित्वों में अगर तुलनात्मक कमी है, तो ऐसी परिस्थिति में कार्यशील पूँजी बढ़ जायेगी।

निष्कर्ष – उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि चालू सम्पत्तियों एवं कार्यशील पूँजी के मध्य प्रत्यक्ष सम्बन्ध है, जबकि दायित्वों एवं कार्यशील पूँजी के मध्य विपरीत सम्बन्ध है। यदि शुद्ध कार्यशील पूँजी में वृद्धि होती है, तो इसे कोषों के प्रयोग में प्रदर्शित किया जाता है। दूसरी ओर यदि शुद्ध कार्यशील पूँजी में कमी आती है, तो इसे कोषों के स्रोतों में दिखाया जाता है। कार्यशील पूँजी में प्रभाव को दिखाने वाले विवरण का प्रारूप निम्नलिखित है –

(2) कोषों के स्रोतों एवं उपयोगों का विवरण (Statement of Sources and Applications of Funds)

इस विवरण में यह प्रदर्शित किया जाता है कि किन-किन स्रोतों से व्यवसाय को कोष की प्राप्ति हो रही है एवं किन-किन मदों में उसका प्रयोग हो रहा है। यह विवरण कार्यशील पूँजी में परिवर्तन का विवरण बनाने के बाद एवं संचालन से कोष की गणना करने के बाद बनाया जाता है। जो मदें चालू सम्पत्ति एवं चालू दायित्व के रूप में कार्यशील पूँजी में परिवर्तन के विवरण में शामिल हुई रहती हैं, उन्हें यहाँ शामिल नहीं किया जाता है। इसमें केवल वैसी चालू सम्पत्तियों या चालू दायित्व का सम्बन्ध सम्पत्तियाँ या दीर्घकालीन दायित्व से दिखाया जाता है, जिनसे कार्यशील पूँजी प्रभावित होती है, किन्तु अगर किसी व्यवसायिक लेन-देन से कार्यशील पूँजी प्रभावित ही नहीं होती है, उन्हें यहाँ शामिल नहीं किया जाता है। कोष प्रवाह विवरण को भी दो प्रारूपों में दिखाया जा सकता है –

(क) प्रतिवेदन प्रारूप (Report Form)

(ख) खाता या टी प्रारूप (Account or T From)

(क) प्रतिवेदन प्रारूप (Report Form)- इसमें दो कॉलम होते हैं- पहला विवरण (Particulars) एवं दूसरा रकम ( Amount )। इसमें पहले उन स्रोतों को दिखाया जाता है जहाँ से कोषों की प्राप्ति हुई है। फिर उन मदों का उल्लेख किया जाता है जिनमें इन कोषों का प्रयोग हुआ है। इसका प्रारूप निम्न प्रकार हैं

(ख) टी फार्म में (In T Form) – इसमें कोष प्रवाह विवरण को खाता के रूप में दिखाया जाता है। बायीं ओर कोषों की प्राप्ति के स्रोतों को दिखाते हैं एवं दायीं ओर कोषों के प्रयोग को दर्शाया जाता है। इसका प्रारूप इस प्रकार होगा –

कोष प्रवाह विवरण के उद्देश्य (Objects of Fund Flow Statement)

कोष प्रवाह विवरण का एक प्रमुख उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि किसी एक निश्चित अवधि में कोष सृजन कैसे हुआ है और इनका उपयोग कहाँ किया गया है। इस उद्देश्य के अतिरिक्त कोष प्रवाह विवरण के निम्न उद्देश्य हैं –

(1) बाह्य दृष्टि से यह प्रबन्ध के लिए संवहन का साधन माना जाता है।

(2) एक निश्चित अवधि के अन्दर कार्यशील पूँजी में हुए परिवर्तनों के कारणों पर प्रकाश डालता है।

(3) कोष विवरण संस्था के प्रबन्धक, बैंकर, अल्पकालीन ऋणदाताओं आदि को महत्वपूर्ण सूचनाएँ देता है।

(4) कोष विवरण प्रबन्ध को आन्तरिक एवं बाह्य दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।

(5) कोष विवरण से ऐसे अनेक मूल प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं जो लाभ-हानि खाता एवं चिठ्ठे से प्राप्त नहीं हो पाते हैं।

उदाहरण –

(1) निश्चित अवधि के दौरान अर्जित लाभ कहाँ गया?

(2) अंशों पर लाभांश और अधिक क्यों नहीं रहा?

(3) निश्चित अवधि में लाभ कम होने पर या शुद्ध हानि होने पर भी लाभांश किन कोषों में से बाँटे गये ?

(4) शुद्ध कार्यशील पूँजी कम क्यों है, जबकि लाभ पर्याप्त है?

(5) व्यवसाय में हानि होने के बावजूद भी शुद्ध कार्यशील पूँजी अधिक क्यों है?

(6) स्थायी सम्पत्तियों में वृद्धि की वित्त व्यवस्था हेतु अतिरिक्त राशि का सृजन व्यवसाय में पर्याप्त लाभ होते हुए भी बाह्य साधनों से क्यों किया गया?

(7) निश्चित अवधि में स्थायी सम्पत्तियों में विस्तार का वित्तीय प्रबन्धन किस प्रकार किया गया ?

(8) स्थायी सम्पत्तियों की बिक्री से प्राप्त राशि का क्या किया गया ?

(9) ऋणों के पुर्नभुगतान की किस प्रकार व्यवस्था की गई ?

(10) अंश-पूँजी में वृद्धि से प्राप्त स्थायी सम्पत्तियों का क्या परिणाम रहा ?

(11) दीर्घकालीन ऋणों से कोष प्राप्ति का क्या परिणाम रहा ?

(12) कार्यशील पूँजी में वृद्धि की वित्त व्यवस्था किस प्रकार की गई ?

कोष प्रवाह विवरण का महत्व (Importance of Fund Flow Statement)

(1) वित्तीय विश्लेषण व नियन्त्रण ( Financial Analysis and Control) – इस विवरण के द्वारा प्रबन्ध को यह जानकारी प्राप्त हो जाती हैं कि किन-किन स्रोतों से कोष प्राप्त हुए हैं और किन-किन मदों पर व्यय हुए हैं। इसके आधार पर वह चालू वर्ष में निर्णय ले सकता है। इस विवरण के विश्लेषण के आधार पर एक वित्तीय प्रबन्धक कार्यशील पूँजी के नियोजन और नियन्त्रण को प्रभावपूर्ण बना सकता है।

(2) अन्तिम खातों का अध्ययन करने में सहायक (Helpful in Study of Final Accounts) – किसी व्यवसाय के अन्तिम खातों का अध्ययन करने में कोष प्रवाह का महत्वपूर्ण योगदान है। इस विवरण के द्वारा दो वर्षों में हुए परिवर्तनों का पता लगाया जाता है।

(3) पथ प्रदर्शक का कार्य (As a Guide) – जिन व्यक्तियों को पुस्तपालन तथा लेखाकर्म की जानकारी नहीं होती है उनके लिए फण्ड प्रवाह विवरण पथ प्रदर्शक का कार्य करते हैं।

(4) कार्यशील पूँजी में कमी या वृद्धि का ज्ञान (Knowledge of Increase or Decrease in Working Capital) – विनियोगकर्त्ता तथा बैंकर्स कोष प्रवाह विवरण के द्वारा शुद्ध क्रियाशील पूँजी की कमी या वृद्धि का अनुमान लगा सकते हैं।

(5) व्यावसायिक समस्याओं की जानकारी (Knowledge of Business Prob lems) – इसके द्वारा विभिन्न व्यावसायिक समस्याओं की जानकारी प्राप्त होती है। इसके माध्यम से यह जाना जा सकता है कि किस व्यावसायिक समस्या का वित्त पर कहाँ, कैसा, किस प्रकार तथा कब प्रभाव पड़ेगा? इस प्रकार समस्या से निपटने की तैयारी पहले से ही कर ली जाती है।

(6) जनता को प्रबन्धकों की नीति का ज्ञान (Knowledge to Public about Managers Policies) – इस विवरण से सामान्य जनता को प्रबन्धकों द्वारा अपनायी गयी नीति का ज्ञान हो जाता है। डब्ल्यू0 वी0 मेंकफर्टेण्ड ने सत्य ही लिखा है, निधि विनियोग विवरण वित्तीय प्रबन्धकों द्वारा प्रयुक्त नीतियों के परिणामों को इस प्रकार सूचित किया जाता है जो अध्ययनकर्ता को सम्भवतः अन्य वित्तीय विवरणों की अपेक्षा अधिक समझने योग्य बना देता है।

(7) अर्थशास्त्रीय विश्लेषण (Economic Analysis) – इसका उपयोग वित्तीय विश्लेषण के साथ-साथ अर्थशास्त्रीय विश्लेषण में भी किया जा सकता है। आजकल अर्थव्यवस्था में उदित हुए कोषों के अध्ययन के लिए अर्थशास्त्री इस विवरण का अधिक उपयोग करने लगे हैं।

(8) क्रियाशील पूँजी के नियन्त्रण में सहायक ( Helpful in Controlling Working Capital) – यह विवरण प्रबन्धकों को पिछले अनुभवों के आधार पर क्रियाशील पूँजी के नियन्त्रण में सहायता पहुँचाता है। यह विवरण स्पष्ट करता है कि लाभ की मात्रा में वृद्धि के बाद भी रोक के आधिक्य में कमी क्यों आयी या लाभांशों को अधिक क्यों नहीं बांटा जा सका, आदि।

(9) वित्तीय सुदृढ़ता का अनुमान लगाने में सुविधा ( Easy to estimate Finan cial Soundness) – कोष प्रवाह विवरण के द्वारा प्रबन्धकों को यह ज्ञात हो जाता है कि अर्जन का किस प्रकार उपयोग किया गया है, अर्जन में से कितना लाभांश वितरित किया गया है, कितनी सम्पत्तियों में वृद्धि की गई है तथा कितने ऋणों का भुगतान किया गया है, आदि। इस प्रकार सम्पत्तियों की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है, साथ ही साथ व्यवसाय की वित्तीय सुदृढ़ता का भी अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।

(10) वित्तीय प्रभावों का अध्ययन (Study of Financial Effects) – कोष प्रवाह विवरण से व्यवसाय संचालन के विभिन्न वित्तीय प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है। एक व्यवसाय निरन्तर अच्छा लाभ कमा सकता है, किन्तु यदि वह कोष का उचित उपयोग न करे तो वह तरल स्थिति दिन-प्रतिदिन संदिग्ध एवं चिन्ताजनक हो सकती है। कोष प्रवाह विवरण से कोष का उचित एवं अच्छा प्रयोग किया जा सकता है तथा दुरूपयोग को यथासम्भव कम किया जा सकता है।

(11) ऋण प्राप्त करने में सहायक (Helpful in getting Loan) – यह संस्था को ऋण प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। वर्तमान समय में विभिन्न वित्तीय संस्थायें तथा बैंक ऋण देने से पूर्व ऋण मांगने वाले की व्यावसायिक स्थिति का अध्ययन करना आवश्यक समझती है।

(12) कोषों का सर्वोत्तम उपयोग (Best Utilisation of Funds) – कोष प्रवाह विवरण से वित्तीय स्रोतों के उपयोग की जानकारी प्राप्त होती है जिसके आधार पर व्यवसायी अपने उत्पादन की प्राथमिकता निर्धारित कर सकता है, विस्तार एवं विकास की योजना बना सकता है तथा निधि का सर्वोत्तम प्रयोग कर सकता है।

कोष प्रवाह विवरण की सीमाएँ (Limitations of Funds Flow Statement)

यद्यपि कोष प्रवाह विवरण वित्तीय विश्लेषण का महत्वपूर्ण यन्त्र है तथा इसके अनेक उपयोग हैं लेकिन इसकी कुछ सीमाएँ हैं जो निम्न हैं-

(1) इस विवरण में गैर चालू मदों को सम्मिलित नहीं किया जाता है, यहीं कारण है कि चिठ्ठे व लाभ-हानि खाते से यह कम लोकप्रिय है।

(2) यह सतत् परिवर्तन को प्रकट करने में असफल रहता है।

(3) यह विवरण चिठ्ठे व लाभ-हानि खाते का प्रतिस्थापन नहीं है। यह केवल कुछ अतिरिक्त सूचनाएँ ही प्रदान करता है।

(4) यह ऐतिहासिक प्रकृति का होता है तथा भूतकालीन विश्लेषण से सम्बन्धित होता है।

(5) इस विवरण से व्यवसाय की वित्तीय स्थिति व परिवर्तन की मौलिक जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती है।

(6) कोष प्रवाह विवरण रोकड़ में परिवर्तन सम्बन्धी सूचना नहीं देता है। रोकड़ परिवर्तन की सूचना कार्यशील पूँजी से अधिक महत्वपूर्ण होती है।

कोष प्रवाह विश्लेषण निर्माण सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य (Some Important Factors in Reference to Prepration of Fund Flow Statement)

कोष प्रवाह विश्लेषण बनाते समय कुछ मदें ऐसी हैं, जिनके सम्बन्ध में अलग-अलग विचार हैं। इन मदों के लिए विभिन्न लेखापाल अलग-अलग ढंग से व्यवहार करते हैं। इससे परिणाम में भी अन्तर की स्थिति उत्पन्न होती है। कभी एक ही मद कुछ लोग चालू सम्पत्ति या दायित्व मानते हैं तो कुछ उसे वित्तीय भार (Financial Charge) के रूप में दिखाते हैं। इनमें से कुछ मदों की व्याख्या निम्न प्रकार हैं

(1) करों के लिए प्रावधान (Provision for Tax) – अगर करों के लिए प्रावधान को चालू दायित्व माना गया है, तो ऐसी स्थिति में इसके अन्तर को कार्यशील पूँजी पर प्रभाव डालने वाले विवरण में दिखाते हैं, किन्तु अगर इसके लिए समायोजन दिया गया है, तो सर्वोत्तम तरीका है कि करों के प्रावधान का एक अलग खाता बना लेना चाहिए। अगर ऐसी स्थिति में करों का वार्षिक नियोजन (Appropriation) दिया गया है, तो खाते को सन्तुलन (Balancing) करने वाली राशि कर भुगतान मानी जायेगी। दूसरी ओर अगर कर भुगतान दिया गया है, तो संतुलन राशि वार्षिक नियोजन मानी जायेगी।

कभी-कभी समायोजन न दिया रहने पर इसे चालू दायित्व न मानकर वार्षिक नियोजन ही मानते हैं। ऐसी स्थिति में इसे संचालन से कोष की गणना करते समय शुद्ध लाभ में जोड़ दिया जाता है। अगर समायोजन न हो तो उत्तम तरीका यह होगा कि गत वर्ष की राशि भुगतान मानी जाये अर्थात कोषों का प्रयोग एवं वर्तमान वर्ष की राशि नियोजन मानी जाए और संचालन से कोष में दिखायी जाये।

(2) प्रस्तावित लाभांश (Proposed Dividend) – इसे भी करों के प्रावधान की तरह दिखाया जाता है। अगर किसी प्रकार का समायोजन नहीं है, तो इसे कुछ लोग चालू दायित्व मानते हैं तो कुछ अन्तर को वार्षिक नियोजन । चालू दायित्व की स्थिति में इसे कार्यशील पूँजी में परिवर्तन की तालिका में दिखाया जाता है, जबकि वार्षिक नियोजन की स्थिति में संचालन से कोष में। अगर प्रस्तावित लाभांश पर समायोजन दिया गया है, तो इसका अलग से खाता बना लेना उचित है। अगर वार्षिक नियोजन दिया रहेगा, तो लाभांश के रूप में वितरित राशि ज्ञात हो जायेगी। दूसरी ओर अगर वितरित राशि दी हुई है तो लाभांश का नियोजन ज्ञात होगा। अगर कोई समायोजन नहीं है, तो उत्तम यह होगा कि गत वर्ष की राशि भुगतान मानी जाये एवं वर्तमान वर्ष की राशि नियोजन।

(3) विनियोग (Investment) – अगर सिर्फ विनियोग लिखा गया है तो इसे सामान्यतया स्थायी सम्पत्ति माना जाता है, किन्तु अगर उल्लेखित कर दिया गया है कि विनियोग अल्पकाल के लिए है, इन्हें चालू सम्पत्ति मानते हैं, किन्तु अगर आर्थिक चिठ्ठा में विक्रय योग्य प्रतिभूतियाँ (Marketable Securities) दी गई हैं या व्यापारिक प्रतिभूतियाँ (Trade Invest- ment) लिखा रहता है, तो इन्हें हमेंशा चालू सम्पत्ति माना जाता है। कभी-कभी चालू सम्पत्तियों के बीच विनियोग की राशि दिखायी जाती है और इसकी राशि भी कम रहती है, ऐसी स्थिति में इसे अल्पकालीन सम्पत्ति ही मानना उचित है, किन्तु अगर कुछ भी उल्लेखित न हो अथवा गैर व्यापारिक प्रतिभूतियाँ (Non-Trading Investment) लिखा हुआ है, तो इन्हें दीर्घकालीन सम्पत्ति के रूप में लेना सर्वोत्तम होता है।

(4) अप्राप्य ऋण के लिए संचय (Reserve for Bad Debt) – अगर अप्राप्य ऋण के लिए संचय को आर्थिक चिठ्ठा में देनदारों से घटाकर, देनदारों को दिखाया गया है तो ऐसी परिस्थिति में देनदारों की शुद्ध राशि को कार्यशील पूँजी के अन्तर्गत प्रदर्शित किया जाता है, किन्तु अगर इस संचय को आर्थिक चिठ्ठा के दायित्व में दिखाया गया है, तब ऐसी स्थिति में इसे चालू दायित्व माना जाता है एवं कार्यशील पूँजी पर प्रभाव दिखाने वाले विवरण में दिखाया जाता है।

(5) ह्रास के लिए प्रावधान (Provision for Depreciation) – ह्रास के लिए प्रावधान के प्रारम्भिक एवं अन्तिम शेष के बीच जो अन्तर रहता है, उसे सामान्यतया नियोजन के रूप में लिया जाता है, किन्तु अगर आर्थिक चिठ्ठे के दायित्व पक्ष में ह्रास के लिए प्रावधान दिया गया है एवं इस संदर्भ में कोई समायोजन भी है, तो ऐसी स्थिति में ह्रास के लिए प्रावधान का अलग खाता बनाया जाता है एवं संतुलन की राशि नियोजन के रूप में लिखी जाती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हा के लिए प्रावधान का प्रारम्भिक एवं अन्तिम शेष समायोजन के रूप में आर्थिक चिठ्ठे के बाहर दिया रहता है। ऐसी स्थिति में जो सम्बन्धित सम्पत्ति का खाता बनाया जाता है, तो उसमें प्रारम्भिक शेष को प्रारम्भिक सम्पत्ति के साथ एवं अन्तिम शेष को अन्तिम सम्पत्ति के साथ जोड़कर दिखाया जाता है।

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Anjali Yadav

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