Commerce Notes

आर्थिक चिट्ठा अथवा स्थिति विवरण के मदों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।

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आर्थिक चिट्ठा अथवा स्थिति विवरण के मदों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।

आर्थिक चिट्ठा अथवा स्थिति विवरण के मदों का विवरण प्रस्तुत कीजिए। Present items of Balance Sheet or financial Statement

आर्थिक चिट्ठा अथवा स्थिति विवरण के दायित्व पक्ष के मदो का विवेचन (Explanation of the items of liability side of Balance Sheet)- स्थिति विवरण के दायित्व पक्ष में निम्नलिखित शीर्षक होते हैं-

(1) अंश पूँजी (Share Capital)- स्थिति विवरण के दायित्व पक्ष में प्रथम मद अंश पूँजी होती है। अंश पूँजी ऐसी मद है जो व्यवसाय के स्वामित्व को प्रकट करती है। सामान्यतया स्थिति विवरण के अन्तर्गत अंश पूँजी में निम्न दो मदें सम्मिलित होती है-

1. साधारण अंश पूँजी (Ordinary Share Capital)।

2. पूर्वाधिकार अंश पूँजी (Preference Share Capital)।

साधारण अंशधारी एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसकी स्थिति अन्तिम लाभ व हानि के वहनकर्ता की होती है। दूसरी ओर, पूर्वाधिकार अंशधारी का ऐसा व्यक्ति होता है जिसे निश्चित दर पर लाभांश मिलना निश्चित रहता है, साथ ही समापन की स्थिति में भुगतान पाने में पूर्वाधिकार प्राप्त होता है।

भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की अंश पूँजी को अलग-अलग प्रदर्शित करना आवश्यक होता है। अंश पूँजी के सम्बन्ध में पूर्ण विवरण देना आवश्यक है; जैसे- अधिकृत पूँजी (Authorised Capital), निर्गमित पूँजी (Issued Cpital), प्रार्थित पूँजी (Called -up Capital), परिदत्त पूँजी (Paid-up-Capital) इत्यादि। रोक के अलावा अन्य प्रतिफलों के आधार पर निर्गमित अंश तथा बोनस अंशों को भी अलग-अलग दिखाना आवश्यक है। शोध्य पूर्वाधिकार अंश (Redeemable Preference Shares) के सम्बन्ध में यदि शोधन एवं परिवर्तन के सम्बन्ध में कोई शर्त हो तो शोधन एवं परिवर्तन की तिथि का उल्लेख आश्यक है। दूसरी ओर अनिर्गमित अंशों के सम्बन्ध में कोई विकल्प हो तो उसका उल्लेख आवश्यक है। अदत्त याचना (Calls Unpaid) के सम्बन्ध में विवरण विशेष रूप से संचालक, प्रबंन्ध संचालक, सचिवों या कोषाध्यक्षों के पास के अंशों के सम्बन्ध में पूरा ब्यौरा अपहत अंशों (For feited Shares) की प्राप्ति राशि को परिदत्त पूँजी से पृथक दिखाना चाहिए।

(2) संचय एवं आधिक्य (Reserve and Surplus)- स्थिति विवरण के दायित्व पक्ष में दूरी मद संचय एवं आधिक्य की होती है। प्रत्येक अच्छी ‘कम्पनी’ के संचालक कोषों एवं संचय की व्यवस्था करना आवश्यक समझते हैं, ताकि लाभांश वितरण के पूर्व सम्भाव्य दायित्व के निपटारे के लिए कुछ राशि अलग रखी जा सके।

संचय किसी विशिष्ट उद्देश्य, जैसे- संदिग्ध ऋण (Doubtful Debts), अपहार (Discount), मरम्मत (Repairs) इत्यादि के लिए किये जा सकते है। इसके अतिरिक्त, कुछ सामान्य उद्देश्य, जैसे- व्यापार की कार्यशील पूँजी (Working Capital) बढ़ाने. व्यापार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने या लाभांश (Dividend) की दर को समान (Equal) करने से सम्बन्धित हो सकते है। अध्ययन के ख्याल से संचय को तीन भागों में बाँटा गया है-

(a) मूल्यांकन कोष (Valuation Reserves)- ये कोष चलन एवं प्रयोग के कारण सम्पत्ति के मूल्यों में कमी अथवा सम्भावित हानियों के विरुद्ध व्यवस्था करने के लिए बनाये जाते है जिन्हें लाभालाभ लेखा में दिखया जाता है क्योंकि ये सामान्य व्यय के ही एक भाग होते है। स्थिति विवरण के अन्तर्गत इस कोष की राशि के बराबर सम्बन्धित सम्पत्ति में से घटाया जाता है। इस श्रेणी के ह्रास संचय (Depreciation Reserve), अशोध्य ऋण संचय (Reserve for Bad Debts) तथा मूल्य उच्चावचन संचय (Price Fluctuation Reserve) आदि होते है।

(b) वास्तविक दायित्व कोष (Actual Liability Reserve)- ये कोष ऐसे दायित्वों के लिए निर्मित किये जाते हैं जिनका भुगतान या तो तय रहता है या जिनका अनुमान लगाना सम्भव होता है। भाटक (Rent), कर (Tax), बीमा (Insurance) आदि के दायित्व के सम्बन्धित संचय इस श्रेणी में आते हैं।

(c) अधिक्य संचय (Surplus Reserve) – ऐसे संचय को स्वामित्व कोष्य या अधिशेष कोष भी कहते है। इसका लाभालाभ खाता से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। ये शुद्ध लाभ में से कर के पर्याप्त आयोजन के बाद बनाये जाते है जिसकी राशि लाभलाभ नियोजन लेखा (Profit and Loss Appropriation Account) में लिखी जाती है एवं स्थिति विवरण में दायित्व की ओर दिखाते हैं। ये व्यवसाय की स्थिति की स्थिति को मजबूत बनाने के ख्याल से बनाये जाते हैं एंव से दूरदर्शिता के प्रतीत माने जाते हैं।

(3 ) ऋण (Loans)- स्थिति विवरण के अन्तर्गत ऋण का पद अलग से दिखाया जाता है। ऋणों को सुरक्षित (Secured ) तथा असुरिक्षत (Unsecured ) दो वर्गों में विभाजित किया जता है तथा इन्हें अलग-अलग दिखाना आवश्यक होता है। ऋण की रकम किसी कम्पनी की आवश्यकता पर निर्भर करती है। यदि उसकी आवश्यकता अधिक होती तो उसके ऋण की मात्रा अधिक होगी, दूसरी ओर, कम आवश्यकता होने पर ऋण की मात्रा भी कम होगी।

ऋणों के प्रकार

यें निम्न प्रकार के होते हैं-

(i) सुरक्षित ऋण- सुरक्षित ऋणों के अलावा अन्य सभी प्रकार के ऋण, बैंक से लिये गये ऋण व अग्रिम आतें हैं जिसके लिए कम्पनी की सम्पत्ति प्रतिभूति (Security) के रूप में दी गयी होती है।

(ii) असुरक्षित ऋण- सुरक्षित ऋणों के अलावा अन्य सभी प्रकार के ऋण एवं निक्षेप (Deposit) असुरक्षित ऋण होते हैं। इसमें बैंकों से लिये गये अल्पकालीन ऋण, जनता से प्राप्त स्थायी निक्षेप तथा प्रबन्धकों से लिये गये ऋणों को सम्मिलित किया जाता है।

(4) चालू दायित्व एवं आयोजन (Current Liabilities and Provision)- चालू दायित्व एवं प्रावधान से तात्पर्य एक वर्ष अवधि में देय दायित्वों से होता है। यदि ऐसे दायित्व की रकम निश्चित हो तो उसे चल दायित्व के अन्तर्गत दिखाया जाना चाहिए किन्तु यदि दायित्व की राशि निश्चित नहीं हो तो उसे प्रावधान के अन्तर्गत दशार्या जाना चाहिए। चालू दायित्व के अन्तर्गत- स्वीकृतियों (Acceptances), या देय बिल (Bills Payable), लेनदार (Creditors) बँक-अधिविकर्ष (Bank Overdraft), अदत्त व्यय (Outstanding Expenses), देय लाभांश (Divident Payable) या अयाचित लाभांश (Unclaimed Dividend) इत्यादि आते हैं जबकि प्रावधान के अन्तर्गत कर लिए प्रवाधान (Provision for Taxation), प्रस्तावित लाभांश (Proposed Dividend), आकस्मिकताओं के लिए प्रवधान (Provision for Contingencies), बीमा, पेंशन इत्यादि के लिए किया गया प्रावधान (Provision for Insurance and Pension etc.) एवं अन्य प्रावधान (Other provision) इत्यादि आते हैं।

(5) सम्भावित दायित्व (Contingent Liabilities) – सम्भावित दायित्व से तात्पर्य ऐसे दायित्व से है जो स्थिति विवरण बनाने की तिथि पर वास्तव में कोई दायित्व नहीं है बल्कि दायित्व होने की सम्भावना हैं जो हो भी सकती है और नहीं भी। उदाहरणतः न्यायालय के विचारधीन कोई दावा भुनाये हुये बिलों के लिए दायित्व, ऋणों के लिए दी गयी गारण्टी आदि । यदि ऐसे दायित्व के लिए प्रावधान हो चुका है तो प्रावधान की रकम को आयोजन (Provision) शीर्षक के अन्तर्गत दिखाया जाना चाहिए। हाँ, यदि आयोजन नहीं किया गया तो चिट्ठे के भीतर या उसके नीचे टिप्पणी (Note) के रूप में दिखाना चाहिए।

स्थिति विवरण के सम्पत्ति पक्ष के मदों का विवेचन (Explanation of the Items of Liability side of Balance Sheet)

स्थिति-विवरण के अन्तर्गत आने वाले सम्पत्तियों का वर्गीकरण निम्नलिखित ढंग से किया जा सकता है-

(1) अदृश्य सम्पत्तियाँ (Intangible Assets) – अदृश्य सम्पत्तियाँ है जिन्हें न तो हम छू सकते है, न देख सकते है और न जिनका भौतिक आस्त्वि ही होता है किन्तु ये कम्पनी की लाभार्जन शक्ति बढ़ाने के कार्य हेतु व्यवसाय में स्थिर (Fixed) रूप से रहती है। उदाहरणतः ख्याति (Goodwill), एकस्वाधिकार (Patent Rights), व्यापार चिन्ह (Trade Mark), कॉपीराइट (Copy Right) आदि ऐसी सम्पतियाँ हैं जिन्हें हम आँखों से तो देख नहीं सकते किन्तु व्यवसाय में लार्भाजन के लिए उनके अस्तित्व का अनुभव अवश्यक करते हैं।

(2) स्थायी सम्पत्तियाँ (Fixed Assets)- स्थायी सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ है जो लाभार्जन में उपयोगी होती है, साथ ही जिनका भौतिक अस्तित्व (Physical Existence) भी होता है। ये सम्पत्तियाँ व्यापार में अपेक्षाकृत अधिक दिनों के लिए लगायी जाती है, इसलिए इन्हें स्थिर या स्थायी सम्पत्तियाँ कहते हैं। इन्हें ब्लॉक (Block), दीर्घजीवी सम्पत्तियाँ (Long Lived Assets), पूँजी सम्पत्तियाँ (Capital Asssets) आदि भी कहा जाता है। भूमि (Land), भवन (Building), मशीन (Machinery), संयन्त्र (Plant), पट्टा (Leasehold), उपस्कर (Furniture), पशुधन (Live Stock) तथा वाहन (Vehicles), आदि इसके उदाहरण है।

स्थिर सम्पत्तियों को वास्तविक मूल्य पर स्थिति विवरण में दर्शाया जाना अधिक उपयुक्त माना जाता है किन्तु इसके वास्तविक मूल्य के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के बीच मतभेद है। कुछ लोग सम्पत्ति का वास्तविक मूल्य उसकी उपादेयता (Usefulness) को बताते हैं। उनके अनुसार वास्तविक मूल्य सम्पत्ति की लागत में ह्रास की रकम को घटाकर प्राप्त किया जा सकता है। यह विचारधारा मात्र व्यापार को चालू रखने की स्थिति में ही सही प्रतीत होती है किन्तु सम्पत्ति को बेचने की स्थिति में सम्पत्ति का बाजार मूल्य (Market Price) ही मान्य होता है।

(3) विनियोग (Investment)- विनियोगों में मुख्यतया कम्पनी द्वारा अंशों, बॉण्डों एव ऋणपत्रों, सरकारी प्रतिभूतियों व अन्य अचल सम्पत्तियों में किया गया विनियोग आदि सम्मिलित किये जाते हैं। इन्हें स्थिति विवरण में लागत मूल्य पर दिखाया जाता हैं।

(4) चालू सम्पत्तियाँ (Current Assets) – सामान्यतया चालू सम्पत्तियों का अर्थ ऐसी सम्पत्तियों से है जो कि एक वर्ष के भीतर रोकड़ (Cash) में परिवर्तित हो सकती है। चालू सम्पत्तियों के निम्नलिखित उदाहरण हैं- रोकड (Cash), अधिकोष (Bank), प्राप्य विपत्र (B / R), स्कन्ध (Stock) एवं अधमपर्ण (Debtors) आदि।

(5) अवास्तवकि सम्पत्तियाँ (Fictitious Assets)- कभी कभी कम्पनी द्वारा किये जाने वाले व्यय इस प्रकृति के होते हैं कि उनका लाभ कम्पनी को आगामी कई वर्षों तक प्राप्त होता रहता है। इस प्रकार के व्ययों को स्थगित (Deferred) लाभ प्रदान करने वाली प्रकृति के कारण ही स्स्थिति विवरण के सम्पत्ति पक्ष की ओर अवास्तविक सम्पत्तिती के रूप में प्रदर्शित करते हैं। वस्तुतः ये अवास्तविक सम्पत्तियाँ कोई सम्पत्तियाँ नहीं होतीं, केवल सम्पत्तियों के रूप में इनकी कल्पना कर ली जाती है क्योंकि इन्हें रोकड़ (Cash) में परिवर्तर्तित नहीं किया जा सकता है, साथ ही कम्पनी के समापन के पश्चात् इनके कुछ वसूला भी नहीं जा सकता है। अवास्तविक सम्पत्तियाँ निम्नलिखित हैं- प्रारम्भिक व्यय (Preliminary Expenses), अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन पर व्यय (Expenses on Issue of shares and debentures) अंशों तथा ऋणपत्रों पर दी गयी कटौती (Discount on Issue of shares and Debentures), विकास व्यय जो समायोजित नहीं हुए है (Development Expenditures not Adjusted) एवं लाभ-हानि का नाम शेष (Debit Balance of Profit and Loss A/c ) इत्यादि।

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Anjali Yadav

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