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फीडलर के सांयोगिक नेतृत्व सिद्धांत (FIEDLER’S CONTINGENCY LEADERSHIP THEORY)
फीडलर के सांयोगिक नेतृत्व सिद्धांत- गुण-मूलक नेतृत्व दृष्टिकोण तथा व्यवहारवादी दृष्टिकोण से प्रभावशाली नेतृत्व सम्बन्धी संतोषजनक निष्कर्ष प्राप्त न हो पाने पर अब शोधकर्ता परिस्थित्या (situational) दृष्टिकोण की ओर उन्मुख हुए हैं और विभिन्न अध्ययनों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि नेतृत्व विशिष्ट परिस्थितियों की उपज है तथा प्रभावशाली नेतृत्व के लिए समयानुकूल परिस्थितियों को समझना और उनका अध्ययन करना आवश्यक है। लोगों की यह मान्यता है कि परिस्थितियों के कारण ही जर्मनी में हिटलर, इटली में मुसोलिनी, यू.एस.ए. में रूजवैण्ट, रूस में लेनिन, चीन में माओत्सेतुंग तथा भारत में महात्मा गांधी जैसे व्यक्ति विकसित हुए। व्यावसायिक एवं गैर-व्यावसायिक उपक्रमों में भी प्रभावशाली प्रबन्धकीय नेतृत्व के विकास में परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है।
फीडलर द्वारा प्रतिपादित सांयोगिक नेतृत्व सिद्धांत (Contingency Theory) ने परिस्थित्यात्मक दृष्टिकोण के रूप में काफी मान्यता प्राप्त की है। यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि ऐसी कोई प्रभावपूर्ण नेतृत्व शैली नहीं हो सकती जो हर परिस्थिति में उपयुक्त हो अर्थात् परिस्थिति के अनुसार नेतृत्व शैली में परिवर्तन करने पर ही नेतृत्व प्रभावपूर्ण बन सकता है। फीडलर ने अपने सिद्धांत के प्रतिपादन में निम्न तीन तत्वों को आधार माना है जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि क्या प्रदत्त परिस्थिति प्रभावपूर्ण नेतृत्व के अनुकूल है:
(1) नेता सदस्य सम्बन्ध (Leader-Member Relation)- इसका आशय है कि नेता और अनुयायियों अथवा प्रबन्धक और समूह सदस्यों के सम्बन्ध कैसे हैं अर्थात् अधीनस्थ लोग अपने नेता को कितना पसंद करते हैं। वहां का वातावरण मैत्रीपूर्ण या अमैत्रीपूर्ण, सहयोगात्मक या धमकीपूर्ण हो सकता है। फीडलर की मान्यता है कि यदि समूह सदस्यों के साथ नेता के सम्बन्ध सद्भाव व सम्मानपूर्ण हैं तो वह सदस्यों को अधिक प्रभावित कर सकता है।
(2) कार्य का ढांचा (Task-Structure)- परिस्थितियों की अनुकूलता का पता लगाने का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व कार्य का ढांचा है। फीडलर के अनुसार ऐसे कार्य जो ठीक तरह निर्दिष्ट किए जा सकते हैं तथा जिनका विस्तृत कार्यक्रम तथा रूपरेखा बनायी जा सकती है, वे उच्च ढांचे वाले कार्य (High Structured task) कहलाते हैं। जैसे असेम्बलिंग या उत्पादन का कार्य। इसके विपरीत ऐसे कार्य जिन्हें किन्हीं विशिष्ट सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता वे निम्न ढांचे वाले कार्य (Low structured task) कहलाते है, जैसे शोध कार्य या शिक्षण कार्य। उच्च ढांचे वाले कार्यों की तुलना में निम्न ढांचे वाले कार्यों में नेता का नियंत्रण अधिक हो सकता है।
(3) नेता की अधिकार स्थिति (situations)- इससे आशय है कि नेता को औपचारिक अधिकार कितने हैं। क्या वह अधीनस्थों को पुरस्कार देने या दण्डित करने के लिए पूरी तरह अधिकृत है।
इन तीनों तत्वों के आधार पर फीडलर ने ऐसी आठ स्थितियों (situations) का विकास किया है जिनमें से तीन में प्रभावपूर्ण नेतृत्व के लिए पूर्ण अनुकूल परिस्थिति होती है, एक में पूर्ण प्रतिकूल और शेष में चार में माध्यम स्तर की अनुकूल (moderatly favourable) परिस्थिति होती हैं। जैसा कि निम्न तालिका में प्रदर्शित किया गया है:
फीडलर के सांयोगिक नेतृत्व सिद्धांत की आठ परिस्थितियां
निर्धारक घटक
क्र.सं. | नेता सदस्य सम्बन्ध | कार्य ढांचा | नेता की अधिकार स्थिति | परिस्थिति की अनुकूलता |
1. | अच्छे | उच्च | मजबूत | पूर्ण अनुकूल |
2. | अच्छे | उच्च | कमजोर | पूर्ण अनुकूल |
3. | अच्छे | उच्च | मजबूत | पूर्ण अनुकूल |
4. | अच्छे | निम्न | कमजोर | मध्यम स्तरीय अनुकूल |
5. | खराब | उच्च | मजबूत | मध्यम स्तरीय अनुकूल |
6. | खराब | उच्च | कमजोर | मध्यम स्तरीय अनुकूल |
7. | खराब | निम्न | मजबूत | मध्यम स्तरीय अनुकूल |
8. | खराब | निम्न | कमजोर | पूर्ण अनुकूल |
फीडलर के उपर्युक्त सिद्धांत से निम्न महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त हुए हैं :
(1) प्रभावी और अप्रभावी नेतृत्व का भेद करना असंगत है। वास्तव में, एक ही नेता अनुकूल परिस्थितियों में प्रभावपूर्ण और प्रतिकूल परिस्थितियों में अप्रभावी सिद्ध होता है।
(2) कोई भी व्यक्ति अनुकूल परिस्थितियों का चुनाव करके और उसके अनुसार नेतृत्व शैली अपना कर नेता बन सकता है अर्थात् गुण-मूलक सिद्धांत के अनुसार नेता में बहुत सारे गुणों का पाया जाना आवश्यक नहीं है।
(3) परिस्थिति के अनुसार कार्य ढांचे, नेता की अधिकार स्थिति तथा नेता-सदस्य सम्बन्धों में परिवर्तन करके नेतृत्व को प्रभावी बनाया जा सकता है।
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