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नेतृत्व का पथ लक्ष्य सिद्धांत | Path Goal Theory of Leadership in Hindi

नेतृत्व का पथ लक्ष्य सिद्धांत | Path Goal Theory of Leadership in Hindi
नेतृत्व का पथ लक्ष्य सिद्धांत | Path Goal Theory of Leadership in Hindi

नेतृत्व का पथ लक्ष्य सिद्धांत (PATH-GOAL THEORY OF LEADERSHIP)

नेतृत्व का पथ लक्ष्य सिद्धांत- यह सिद्धांत ब्रूम के अभिप्रेरणा के प्रत्याशा सिद्धांत (Broom’s Expectancy Theory of Motivation) पर आधारित है। इसका प्रतिपादन रॉबर्ट जे. हाउसे ने किया है।

पथ-लक्ष्य सिद्धांत के अन्तर्गत निम्न चार प्रमुख नेतृत्व व्यवहारों को छांटा या इंगित किया गया है जो भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में उपयुक्त सिद्ध होंगे। ये परिस्थितियां (i) अधीनस्थों की वैयक्तिक विशेषताओं, तथा (ii) वातावरण के दबाव और अधीनस्थों से आशाओं के आधार पर परिवर्तित होती रहती हैं :

(1) निर्देशात्मक नेतृत्व (Directive Leadership)

इस नेतृत्व व्यवहार के अन्तर्गत नेता अधीनस्थों की यह बताता है कि उनसे क्या अपेक्षित (expected) है और उन्हें कार्य के सम्बन्ध में मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह नेतृत्व व्यवहार काफी अनिश्चितता और जटिलतापूर्ण स्थितियों (situations) के लिए उपयुक्त माना जाता है क्योंकि अनिश्चिततापूर्ण वातावरण में अधीनस्थों को नेता के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

(2) सहयोगात्मक नेतृत्व (Supportive Leadership)

इस नेतृत्व व्यवहार के अन्तर्गत नेता का दृष्टिकोण सहयोगात्मक तथा मैत्रीपूर्ण होता है। अधीनस्थ अपनी बातें स्वतंत्रतापूर्वक नेता को कह सकते हैं। वह अधीनस्थों के पद (status), कल्याण तथा वैयक्तिक आवश्यकताओं पर भी ध्यान देता है; यह नेतृत्व व्यवहार उस स्थिति के लिए सर्वोपयुक्त समझा जाता है जहां अधीनस्थों के लक्ष्य तथा कार्य पूर्णतया स्पष्ट हैं, क्योंकि लक्ष्य स्पष्ट होने पर वे उस दिशा में स्वयं बढ़ते रह सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर मार्गदर्शन या अन्य आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु नेता से बात कर सकते हैं।

(3) उपलब्धि-उन्मुख नेतृत्व (Achievement-oriented Leadership)

इस नेतृत्व व्यवहार में नेता चुनौतीपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करता है तथा अधीनस्थों से सर्वोत्तम निष्पादन (performance) की अपेक्षा रखता है। यह व्यवहार उस स्थिति (situation) में उपयुक्त माना जाता है जब अधीनस्थों का मनोबल ऊंचा होता है तथा वे उच्य निष्पादन प्रदर्शित करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ होते हैं और उन्हें चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को पूरा कर दिखाने की अपनी योग्यता पर भरोसा होता है।

(4) सहभागितापूर्ण नेतृत्व (Participative Leadership)

इस नेतृत्व व्यवहार के अन्तर्गत नेता अपने अधीनस्थों को निर्णयों में भागीदार बनाता है। निर्णय लेने तथा लक्ष्य निर्धारित करने से पूर्व नेता अपने अधीनस्थों से परामर्श करता है और उन्हें सुझाव देने के लिए कहता है। यह नेतृत्व व्यवहार उस स्थिति (situation) के लिए सर्वोपयुक्त माना गया है जब किसी निर्णय के लेने या कार्य करने से अधीनस्थों की सम्मान भावना तीव्रता से प्रभावित होती हो और अधीनस्थ सम्मान भावना के प्रति अत्यन्त भावपूर्ण हों।

यद्यपि पथ-लक्ष्य सिद्धांत अभी शैशवावस्था में है फिर भी यह नेतृत्व सिद्धांत के रूप में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है। यह सिद्धांत फीडलर की भांति केवल यही नहीं बताता कि किस स्थिति (situation) में कौन-सा नेतृत्व व्यवहार या शैली उपयुक्त रहेगी बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि अमुक नेतृत्व व्यवहार क्यों उपयुक्त रहेगा। इस प्रकार यह सिद्धांत अधिक तर्कपूर्ण है। यह सिद्धांत लोचपूर्ण भी है, क्योंकि यह बताता है कि नेतृत्व व्यवहार हमेशा एक समान ही रहना आवश्यक नहीं बल्कि एक ही नेता स्थिति में परिवर्तन के अनुसार भिन्न नेतृत्व शैली या व्यवहार अपना सकता है।

इन विशेषताओं के साथ-साथ पथ – लक्ष्य सिद्धांत की कुछ सीमाएं भी हैं। कुण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल के अनुसार शोध अध्ययन यह बताते हैं कि यह सिद्धांत उच्च पदीय कर्मचारियों तथा पेशेवर कार्यों के लिए ही उपयुक्त है जहां पर नेतृत्व व्यवहार के निष्पादन के लिए वातावरण विकसित करने में पर्याप्त प्रभाव रहता है। दिन-प्रतिदिन के उत्पादन कार्यों के लिए यह अधिक उपयुक्त नहीं है, क्योंकि शायद प्रबन्धक इन कार्यों को अधिक संतुष्टि प्रदान करने वाला नहीं बना सकते।

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Anjali Yadav

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