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रेखीय संगठन क्या है? (LINE ORGANISATION)
यह संगठन का सरल एवं सर्वाधिक प्राचीन स्वरूप है। इस प्रारूप को अन्य नामों से भी पुकारा जाता है; जैसे सैनिक संगठन (Military Organisation), सोपानवत संगठन (Scalar Organisation), विभागीय संगठन (Departmental Organisation), लम्बवत् संगठन (Vertical Organisation) आदि।
इस संगठन प्रारूप में ऐसे व्यक्तियों को जिनको निर्णय लेने सम्बन्धी अधिकार प्राप्त होते हैं, सर्वोच्च प्रबन्ध (Top management) और जिन्हें निर्णय लेने सम्बन्धी अल्प अधिकार प्राप्त होते हैं, प्रथम श्रेणी प्रबन्ध (lower level management) की संज्ञा दी जाती है और इन दोनों को जोड़ने वाला मध्य प्रबन्ध (middle management) कहलाता है। इसीलिए रेखीय संगठन श्रेणी प्रबन्ध से ऊपर की ओर रेखाबद्ध रूप में होता है।
प्रत्येक स्तर पर प्रबन्ध अपने वरिष्ठ साथी (boss) से मिले अधिकारों के अन्तर्गत निर्णय लेता है और उन निर्णयों को पालन कराने हेतु अपने अधीनस्थ प्रबन्धकों को सम्प्रेषित (communicate) कर देता है और यह क्रम आखिरी स्तर तक इसी प्रकार चलता है। रेखीय संगठन की इस विशेषता के कारण ही प्रत्येक स्तर पर प्रबन्ध अपने कार्यों के लिए अपने निकटतम वरिष्ठ प्रबन्धक, जिससे कि उसे अधिकार और आदेश प्राप्त होते हैं, के प्रति उत्तरदायी रहता है, अन्य किसी के प्रति नहीं; अर्थात् इस संगठन प्रारूप में आदेश की एकात्मकता (unity of command) का सिद्धांत पूरी तरह लागू होता है।
रेखीय संगठन की विशेषताएं (Features)
“संक्षेप में, रेखीय संगठन की निम्न विशेषताएं कही जा सकती हैं:
(1) आदेश ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होता है और उत्तरदायित्व व निवेदन (request) नीचे से ऊपर की ओर चलते हैं।
(2) प्रत्येक व्यक्ति को आदेश अपने निकटतम वरिष्ठ प्रबन्धक से ही प्राप्त होते हैं।
(3) अधिकार एवं दायित्व एक सीधी रेखा में क्रमिक रूप से सम्प्रेषित (communicate) होते हैं।
(4) प्रत्येक प्रबन्धक के नियंत्रण में अधीनस्थों (subordinates) की संख्या सीमित होती है।
रेखीय संगठन के प्रकार (Type of Line Organisation)
औद्योगिक जगत में रेखीय संगठन के दो प्रकार देखने को मिलते हैं:
(1) शुद्ध रेखीय संगठन (Pure Line Organisation)- शुद्ध रेखीय संगठन अति लघुस्तरीय फर्मों के लिए उपयुक्त होता है। इसके अन्तर्गत किसी भी स्तर पर कार्य करने वाले व्यक्ति समान प्रकृति का कार्य करते हैं। इन व्यक्तियों को की सुविधा के लिए संख्यानुसार कई समूहों में बांट दिया जाता है और प्रत्येक समूह पृथक्-पृथक् पर्यवेक्षकों (Supervisor) के नियंत्रण में कार्य करता है। ये पर्यवेक्षक समान पद व अधिकार प्राप्त होते हैं तथा किसी को भी दूसरे के कार्य समूह में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं होती। ये पर्यवेक्षक अधीक्षक के नियंत्रण में, अधीक्षक उत्पादन प्रबन्धक के नियंत्रण में तथा उत्पादन प्रबन्धक मुख्य प्रबन्धक के नियंत्रण में कार्य करते हैं जैसा कि चित्र से स्पष्ट है।
(2) विभागीय रेखीय संगठन (Departmental Line Organisation)- यह संगठन लघु एवं मध्यम स्तरीय फर्मों के लिए उपयुक्त माना जा सकता है। इसके अन्तर्गत उपक्रम की समस् क्रियाओं को प्रकृति के अनुसार कई विभागों में बांट दिया जाता है। इस प्रारूप में सर्वोच्च पदाधिकारी मुख्य प्रबन्धक होता है और उसके अधीन विभिन्न विभागीय प्रबन्धक होते हैं। इन विभागीय प्रबन्धकों के अधीन अधीक्षक superintendent तथा अधीक्षकों के अधीन पर्यवेक्षकों (supervisors) होते हैं जो पृथक्-पृथक् श्रमिक समूह का पर्यवेक्षण कार्य करते हैं (देखिए चित्र)
प्रत्येक विभाग के प्रबन्धक, अधीक्षक और पर्यवेक्षक का फर्म में समान पद माना जाता है। और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे दूसरे विभाग में हस्तक्षेप न करें। प्रत्येक विभागीय प्रबन्धक को आदेश मुख्य प्रबन्धक से प्राप्त होते हैं तथा विभागीय प्रबन्धक केवल अपने विभाग में सीधी रेखा में आदेशों को प्रवाहित कर सकता है।
यहां पर यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि यदि एक विभाग का कोई कर्मचारी जैसे अधीक्षक दूसरे विभाग के अधीक्षक को कोई सूचना या परामर्श प्रदान करना चाहता है तो वह उचित मार्ग द्वारा (through proper channel) ही प्रदान की जाएगी अर्थात् ‘अ’ विभाग का अधीक्षक सूचना या परामर्श को ‘अ’ विभाग के फोरमैन को देगा, ‘अ’ विभाग का फोरमैन, उत्पादन प्रबन्धक को, उत्पादन प्रबन्धक ‘ब’ विभाग के फोरमैन को और फिर ‘ब’ विभाग के फोरमैन ‘ब’ विभाग के अधीक्षक को सूचना सम्प्रेषित (communicate) करेगा। फर्म के कर्मचारियों में अनुशासन बनाए रखने के लिए इस प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक माना जाता है।
रेखीय संगठन के गुण या लाभ (Merits or Advantages)
रेखीय संगठन के निम्न लाभ इंगित किए जाते हैं:
(1) सरलता – यह संगठन प्रारूप इतना सरल है कि पर्यवेक्षक व श्रमिक तक भी इसे आसानी से समझ सकते हैं, परिणामस्वरूप इसका अपनाया जाना आसान हो जाता है।
(2) अधिकार व दायित्वों की स्पष्टता- इसमें अधिकार का अन्तरण (delegation of power) तथा उत्तरदायित्वों का निर्वहन एक सीधी रेखा में चलते हैं। अतः प्रत्येक अधिकारी अपने अधिकारों व दायित्वों को स्पष्ट रूप से समझता है।
(3) शीर्ष निर्णयन – इसमें किसी भी समस्या के उठने पर शीघ्र निर्णय लिया जाना तथा निर्देशों में परिवर्तन करना सम्भव होता है क्योंकि अधिकारों की स्पष्टता के कारण थोड़े से सम्बन्धित लोगों से परामर्श करना होता है।
(4) सम्बन्धों की निकटता – चूंकि संगठन का यह प्रारूप छोटा होता है, अतः कर्मचारियों व प्रबन्ध के पारस्परिक सम्बन्धों में निकटता पायी जाती है तथा प्रत्येक कर्मचारी को यह पता रहता है कि फर्म में क्या हो रहा है।
(5) आदेश की एकात्मकता – इस संगठन में प्रत्येक कर्मचारी या का केवल एक ही बॉस (Boss) होता है जो उसे आदेश दे सकता है। इससे फर्म में कर्मचारियों पर नियंत्रण बनाए रखना आसान हो जाता है।
(6) लोच – इस संगठन प्रारूप में पर्याप्त मात्रा में लोच पायी जाती है। फर्म की आवश्यकतानुसार नया विभाग खोलकर या एक विभाग में अधिकार स्तरों में परिवर्तन करके फर्म की आवश्यकता से सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है।
रेखीय संगठन के दोष या हानियां (Demerits or Disadvantages)
रेखीय संगठन में गुणों के साथ-साथ कुछ दोष भी हैं जो निम्न हैं:
(1) विशिष्टीकरण का अभाव- इस संगठन में प्रत्येक प्रबन्धक को नियोजन तथा अधिशासी तथा अन्य कार्य करने होते हैं, अतः विशिष्टीकरण नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए, उत्पादन प्रबन्ध को कच्चे माल का क्रय, वस्तु का डिजायन, क्वालिटी के अतिरिक्त उत्पादन,, परिचालन कार्य आदि सभी के सम्बन्ध में निर्णय लेने होते हैं, परन्तु एक व्यक्ति इन सभी कार्यों में विशेषज्ञ नहीं हो सकता।
(2) प्रमुख अधिकारियों पर अत्यधिक कार्यभार – चूंकि इस संगठन प्रारूप में मुख्य प्रबन्धक, उत्पादन प्रबन्धक, विपणन प्रबन्धक जैसे प्रमुख अधिकारियों को भी विशेषज्ञ परामर्शदाता उपलब्ध नहीं कराए जाते, अतः उस पर कार्यभार बढ़ जाता है और संगठन की प्रभावशीलता कम हो जाती है। रेखीय संगठन में प्रबन्धक के सिर पर कई टोप पहनने (wear too many hats) की कहावत लागू होती है।
(3) फर्म के आकार में वृद्धि होने पर अनुपयुक्त- यह प्रारूप फर्म के आधार में वृद्धि होने पर अनुपयुक्त हो जाता है। कभी-कभी लोग इसमें प्रबन्ध-स्तरों में वृद्धि करके इसे उपयुक्त बनाने का प्रयास करते हैं, परन्तु इससे आदेश की श्रृंखला (chain of command) इतनी लम्बी हो जाती है कि उससे कार्य की गति मन्द व केन्द्रीय नियंत्रण ढीला हो जाता है।
(4) रचनात्मक क्षमता का ह्रास- संगठन के इस प्रारूप में आदेश ऊपर से नीचे की ओर जाते हैं जिनका पालन किया जाना आवश्यक होता है। निचले स्तर के कर्मचारी सामान्यतया अपने सुझाव प्रबन्धकों तक नहीं पहुंचा पाते परिणामस्वरूप वे आदेशानुसार कार्य करने के अभ्यस्त हो जाते हैं और उनकी रचनात्मक शक्ति नष्ट होने लगती है।
(5) अफसरशाही व पक्षपात- रेखीय संगठन सरकारी विभागों की तरह सीधे मार्ग (through proper channel) पर जोर देता है जिससे अफसरशाही व पक्षपात को बढ़ावा मिलता है। मुख्य प्रबन्धक तथा प्रमुख अधिकारियों के आदेश अन्तिम होते हैं।
इन सभी दोषों के बावजूद भी रेखीय संगठन छोटे उपक्रमों तथा कार्य की पुनरावृत्ति की प्रकृति वाले उपक्रमों के लिए उपयुक्त पाया गया है।
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