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नियोजन प्रक्रिया (THE PLANNING PROCESS) अथवा नियोजन में उठाए जाने वाले कदम (STEPS IN PLANNING)
नियोजन की एक निश्चित प्रक्रिया है जिसमें एक के बाद एक कुछ तर्कसंगत कदम उठाने होते हैं। यह प्रक्रिया वृहत्, मध्यम तथा लघु उपक्रमों सभी के लिए समान है। यह अवश्य है कि उपक्रम के आकार तथा प्रकृति के अनुसार प्रक्रिया को थोड़ा समायोजित किया जा सकता है।
नियोजन प्रक्रिया के अन्तर्गत सर्वप्रथम संस्था के लक्ष्य या उद्देश्य निर्धारित किए जाते हैं, फिर उन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु दीर्घकालिक योजना बनायी जाती है जिसमें भविष्य में लागू की जाने वाली नीतियों का निर्धारण किया जाता है, कार्यविधि व नियम तैयार किए जाते हैं तथा योजना को कार्यरूप देने के लिए बजट व कार्यक्रम आदि तैयार किए जाते हैं; जैसा कि चित्र से स्पष्ट है।
नियोजन प्रक्रिया के क्रमिक कदमों का संक्षिप्त विवेचन अग्र है-
(1) लक्ष्यों या उद्देश्यों का निर्धारण- एक उपक्रम के मूल उद्देश्य ही उपक्रम को दिशा प्रदान करते हैं। अतः नियोजन के अन्तर्गत प्रथम कदम उस उपक्रम के उद्देश्यों का निर्धारण करना होता है। ये उद्देश्य ही प्रबन्धकों व कर्मचारियों को स्पष्ट दृष्टि तथा उद्देश्य प्राप्ति के लिए सामूहिक प्रेरणा प्रदा करते हैं। परन्तु प्रभावी नियोजन के लिए यह आवश्यक है कि उद्देश्य समझे जा सकने योग्य तथा विवेकपूर्ण हों। ये उद्देश्य स्पष्ट शब्दों में परिभाषित हों क्योंकि ये उद्देश्य ही यह निर्देशित करते हैं कि क्या किया जाना है, कब किया जाना है और प्रारम्भिक जोर किस बात पर देना है। नियोजन के अन्तर्गत उद्देश्यों के निर्धारण से पूर्व यह आवश्यक है कि उपक्रम को प्राप्त हो सकने वाले सुअवसरों का आकलन कर लिया जाए। इसके लिए उपक्रम के बाह्य वातावरण (सरकारी नीतियां, सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन, प्रतिस्पर्द्धात्मक स्तर, टेक्नोलॉजी की उपलब्धता आदि) तथा उपक्रम के आन्तरिक वातावरण (संगठनात्मक शक्तियां तथा कमजोरियां) का अध्ययन करना होगा तभी सुअवसरों की तलाश की जा सकेगी और सर्वोपयुक्त उद्देश्य व रणनीतियों का निर्धारण किया जा सकेगा। उदाहरण के लिए, बजाज ऑटो ने सरकार की उदारीकरण नीति तथा विदेशी सहयोग की उपलब्धता का अध्ययन करके ही ‘कार परियोजना’ स्थापित करने का उद्देश्य निर्धारित किया है। इसी प्रकार एक कम्पनी वातावरण का आकलन कर भारत के कम्प्यूटर्स बाजार के 25 प्रतिशत भाग पर अगले तीन वर्षों में आधिपत्य जमा लेने का उद्देश्य निर्धारित कर सकती है।
(2) रणनीति या व्यूह-रचना – नियोजन के अन्तर्गत उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्यूह- रचना (दीर्घकालीन योजना) तैयार की जाती है। व्यूह रचना इस बात को इंगित करती है कि भविष्य में उद्देश्यों के प्राप्त करने के लिए मुख्य उपाय क्या अपनाए जाएंगे। इस दृष्टि से इसके अन्तर्गत निम्न कदम उठाने होते हैं:
(i) विकल्पों का निर्धारण एवं मूल्यांकन- उद्देश्य प्राप्ति के सामान्यतया एक से अधिक विकल्प हो सकते हैं। अतः सर्वप्रथम तो यह पता करना होगा कि सम्भावित विकल्प या मार्ग कौन- कौन से हो सकते हैं। इसके उपरान्त प्रत्येक विकल्प का विभिन्न दृष्टिकोणों से मूल्यांकन किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि एक कम्पनी का भारत के कम्प्यूटर्स बाजार के 25 प्रतिशत पर अधिकार कर लेने का उद्देश्य है तो वह व्यूह रचना या रणनीति तय करने से पूर्व यह पता करेगी कि इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए क्या-क्या विकल्प हो सकते हैं, जैसे उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के लिए एक विकल्प विद्यमान संयंत्र क्षमता में वृद्धि करना हो सकता है, दूसरा विकल्प कम्प्यूटर्स की लघु इकाइयों को क्रय कर लेना हो सकता है, तीसरा विकल्प कम्प्यूटर पार्ट्स अन्य उपक्रमों से क्रय कर अपने संयंत्र में मात्र कम्प्यूटर्स संयोजित ( assemble) करना हो सकता है। इसी प्रकार कम्प्यूटर्स की बिक्री आदि क्षेत्र में भी विकल्पों का पता लगाया जा सकता है।
(ii) सर्वोत्तम विकल्प का चयन- उपयुक्त विकल्पों में से प्रत्येक क्षेत्र में जैसे उत्पादन बिक्री, शोध एवं विकास आदि में एक-एक विकल्प का चयन किया जाता है जो उपक्रम की संगठन संरचना के अनुरूप हो। यह विकल्प का चयन कार्य ही व्यूह रचना कहलाती है।
(3) नीतियों का निर्धारण – उपर्युक्त व्यूह-रचना के अन्दर जो उपाय किए जाते हैं उनके क्रियान्वयन में प्रबन्धकों को अनेक निर्णय लेने होते हैं। निर्णयों में एकरूपता बनाए रखने के लिए कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत तय कर दिए जाते हैं जिन्हें नीतियों के नाम से जाना जाता है; जैसे कम्पनी की यह नीति निर्धारित की जा सकती है कि ‘कम्पनी अपने ग्राहकों को वित्तीय सीमाओं के अन्तर्गत सर्वोत्तम सेवाएं प्रदान करेगी।
(4) कार्यविधियों का निर्धारण- नीतियों के लागू करने के लिए सामान्यतया कार्यविधि निर्धारित कर दी जाती है और सम्बन्धित विभाग से यह अपेक्षा की जाती है कि वह नीति लागू करने में प्रत्येक बार वही कार्यविधि अपनाएगा। नीति एक सिद्धांत के रूप में या वाक्य के रूप में उच्च प्रबन्ध निर्धारित करता है, परन्तु कार्यविधि क्रमिक कदमों के रूप में विभागीय प्रबन्धकों द्वारा ही निर्धारित कर ली जाती है; जैसे कम्प्यूटर में दोष आ जाने पर उसे नए कम्प्यूटर द्वारा प्रतिस्थापित कर देना कम्पनी की एक नीति कही जाएगी, परन्तु प्रतिस्थापित करने से पूर्व क्या-क्या कदम उठाए जायेंगे, नीति को लागू करने की कार्यविधि है।
(5) नियमों की रचना – नियम प्रत्येक कर्मचारी के आचरण को नियंत्रित करते हैं और नीतियों को लागू करने में सहायक होते हैं; जैसे ग्राहकों को एक माह तक की उधार देना एक नियम है। इसी प्रकार कुछ नियम किसी विशिष्ट नीति से सम्बन्धित न होकर सामान्य भी हो सकते हैं; जैसे ‘मशीन पर कार्य करते समय धूम्रपान वर्जित है।
(6) बजट बनाना – बजट अल्पकालीन नियोजन का भाग है। दीर्घकालीन लक्ष्यों के अन्तर्गत ही कुछ अल्पकालीन लक्ष्य निर्धारित कर लिए जाते हैं; जैसे विक्रय या उत्पादन का लक्ष्य। इनको उपयुक्त नीतियों के अन्तर्गत ही कार्यान्वित करने के लिए संख्यात्मक रूप में बजट तैयार किया जाता है ताकि संसाधनों की व्यवस्था समयानुसार की जा सके।
(7) कार्यक्रम बनाना- उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ही कार्यक्रम (prograrnmes) बनाए जाते हैं; जैसे यदि बाजार पर प्रभुत्व प्राप्त करना एक उद्देश्य है तो उसके लिए विज्ञापन कार्यक्रम बनाया जा सकता है। कार्यक्रम तथा परियोजनाएं लगभग समानार्थक हैं।
नियोजन प्रक्रिया में निम्नलिखित में से कौन सा चरण दूसरों को संबोधित करने से पहले पूरा किया जाना चाहिए?
1. योजनाओं को क्रियान्वित करना
2. विकासशील आधारिका जिस पर प्रत्येक विकल्प को आधार बनाया जा सके
3. संगठन के उद्देश्यों को बताना
4. उद्देश्यों को प्राप्त करने के वैकल्पिक तरीकों को सूचीबद्ध करना
Option 3 : संगठन के उद्देश्यों को बताना
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