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प्रबन्ध के हॉथोर्न परीक्षण या प्रयोग (Hawthorne Experiments of management): 1924-32
हाथोर्न प्रयोग सन् 1924 से अमेरिका की वेस्टर्न इलेक्ट्रिक कम्पनी के हाथोर्न प्लाण्ट में प्रारम्भ किए गए। सन् 1927 तक ये प्रयोग नेशनल रिसर्च काउन्सिल की सहायता से किए गए, परन्तु इसके बाद सन् 1932 तक ये प्रयोग हावर्ड बिजिनेस स्कूल के प्रोफेसर एल्टन मायो तथा उसके साथियों के सहयोग से किए गए।
प्रयोग प्रारम्भ करते समय वेस्टर्न इलेक्ट्रिक कम्पनी अमेरिका की अग्रणी कम्पनियों में से थी। कम्पनी इस समय भी अपनी अच्छी सेविवर्गीय नीतियों (Personal Policies) के लिए प्रसिद्ध थी तथा अपने श्रमिकों के कल्याण में विश्वास रखती थी। श्रमिकों को अधिक उत्पादन के लिए वित्तीय प्रेरणाएं भी देती थी।
हार्थोर्न प्रयोगों का संक्षिप्त विवरण (A Brief Description of Hawthorne Experiments)
1924 और 1932 के मध्य हाथोर्न प्लाण्ट में किए गए प्रयोगों को मुख्य रूप से अग्र पांच भागों में बांटा जाता है:
(1) रोशनी प्रयोग (Illumination Experiment) – श्रमिकों की कार्यक्षमता पर रोशनी की मात्रा का प्रभाव देखने के लिए विभिन्न श्रमिकों समूहों पर 1924 और 1927 के बीच तीन पृथक् प्रयोग किए गए। कुछ श्रमिकों को दो भागों में बांटा गया । श्रमिक समूह को समान रोशनी में काम करने दिया गया जबकि दूसरे श्रमिक समूहों को कुछ दिन अधिक रोशनी में तथा कुछ दिन थोड़ी कम रोशनी में तथा कुछ दिन थोड़ी कम रोशनी में काम करने दिया गया और यह पाया कि दूसरे श्रमिक समूह के उत्पादन में दोनों ही दशाओं में वृद्धि हुई है।
निष्कर्ष – इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकाला गया कि कार्यक्षमता पर प्रभाव डालने वाले तत्वों में रोशनी महत्वपूर्ण तत्व नहीं है । महत्वपूर्ण तत्व अन्य हैं जो पता किए जाने चाहिए।
(2) रिले असेम्बली टेस्ट रूम प्रयोग (Relay Assembly Test-Room Experiment)- यह प्रयोग असेम्बली विभाग में किया गया जहां महिला श्रमिक अधिकांशतः अपने हाथों से टेलीफोन रिले यूनिट्स को संयोजित (Assembly) करती थीं। इस प्रयोग का मुख्य उद्देश्य उन तत्वों का पता लगाना था जो रोशनी के अतिरिक्त श्रमिकों की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करते हैं। यह प्रयोग 13 बार भिन्न-भिन्न साप्ताहिक अवधियों में किया गया।
इस प्रयोग के लिए असेम्बली विभाग से 5 लड़कियों को चुना गया और उनके असेम्बली कार्य के लिए एक पृथक् कमरे व उसमें एक बेंच की व्यवस्था भी की गई, शेष कार्य दशाएं असेम्बली विभाग जैसी ही रखी गईं। सामान्य दशाओं में इनका उत्पादन रिकार्ड किया गया। इसके बाद इन पर काम के मध्य कुछ मिनटों के अवकाश, मुफ्त भोजन तथा कार्य के घण्टों में कटौती जैसे प्रयोग करके इनके उत्पादन पर पड़ने वाला प्रभाव रिकार्ड किया गया। इनको छोटे श्रम समूह में प्रेरणात्मक मजदूरी प्रदान की गई। (वैसे असेम्बली विभाग में कार्यरत सभी श्रमिकों को बड़े समूह में प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति लागू थी) कुल प्रयोग के निष्कर्षों की शुद्धता के लिए कुछ समय बाद उपर्युक्त सभी सुविधाओं को वापस ले लिया गया तथा कुछ दिन बाद पुनः लागू किया गया तथा प्रत्येक दशा में उत्पादन रिकार्ड किया गया जिससे यह ज्ञात हुआ कि प्रति व्यक्ति उत्पादन में प्रत्येक दशा में वृद्धि हुई है, विशेषकर उस दशा में जब ये सभी सुविधाएं एक बार लागू करके वापस ले ली गई।
निष्कर्ष – इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकाला गया कि अवकाश (Rest Periods) का सामान्तया उत्पादन क्षमता पर प्रभाव पड़ता है, परन्तु इसके अतिरिक्त लघु समूह, प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति तथा पर्यवेक्षण की अनौपचारिकता (Informality) का भी उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है।
(3) द्वितीय असेम्बली रूम तथा माइका स्प्लिटिंग टेस्ट रूम प्रयोग (Second Relay Assembly Room and Mica Splitting Test-Room Experiment) – प्रथम रिले असेम्बली टेस्ट रूम प्रयोग में अनुसंधानकर्ता इस तथ्य की जांच में पूर्णतः संतुष्ट नहीं थे कि बड़े समूह की अपेक्षा छोटे समूह में प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति अधिक प्रभावशाली होती है। अतः यह दूसरा प्रयोग किया गया जिसके लिए असेम्बली रूम से 5 लड़कियों का दूसरा समूह तथा माइका स्प्लिटिंग रूम से 5 ऑपरेटर चुने गए। प्रथम समूह को सामूहिक प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति और दूसरे समूह को कार्यानुसार मजदूरी (व्यक्तिगत प्रेरणा) पद्धति के अन्तर्गत रखा गया । प्रयोग के दौरान यह पाया गया कि दोनों ही समूहों के उत्पादन में वृद्धि हुई यद्यपि यह वृद्धि दूसरे समूह में बहुत ही सामान्य स्तर की थी।
निष्कर्ष – इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकाला गया कि लघु समूहों में प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति उत्पादन में वृद्धि करती है, परन्तु इस वृद्धि में कुछ अन्य अनियंत्रित तत्व बाधक होते हैं।
(4) साक्षात्कार कार्यक्रम प्रयोग (Interviewing Programme Experiment) – उपर्युक्त टेस्ट रूम अध्ययनों के बाद कार्य, पर्यवेक्षक तथा कार्य की दशाओं के सम्बन्ध में श्रमिकों का दृष्टिकोण जानने के लिए 21,000 से भी अधिक कर्मचारियों से साक्षात्कार किया गया। साक्षात्कार में कर्मचारी को पूछने की अपेक्षा उसे अपनी ओर से बात कहने पर अधिक जोर दिया गया। इस साक्षात्कार के परिणामस्वरूप कम्पनी ने श्रमिकों की कार्य दशाओं में सुधार किया तथा पर्यवेक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान किया ताकि पर्यवेक्षक (Supervisors) अपने अधीन कार्य करने वाले श्रमिकों को यह अनुभव करा सकें कि प्रबन्ध उनके विचारों की कद्र करता है। उससे उनका मनोबल (morale) ऊंचा होता है।
(5) बैंक वाइडिंग आब्जर्वेशन रूम प्रयोग ( Bank Wiring Observation-Room Experiment) – यह हाथोर्न प्रयोगों का अन्तिम चरण था जिसका उद्देश्य अनौपचारिक समूह व्यवहार (Informal group behaviour) के बारे में अध्ययन करना था। इसके लिए प्रारम्भ में 14 ऑपरेटर्स को चुना गया और उन्हें 9, 3 तथा 2 के उपसमूहों में बांटा गया। इन तीनों उपसमूहों द्वारा क्रमानुसार कार्य करने पर ही इकाई उत्पादित होती थी। इनके उत्पादन में वृद्धि के लिए आकर्षक प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति की घोषणा की गई, परन्तु इसके बावजूद भी उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं हुई। इसके उपरान्त इन 14 ऑपरेटर्स के अतिरिक्त बैंक वाइरिंग रूम के अन्य ऑपरेटर्स का भी साक्षात्कार किया गया।
निष्कर्ष – अन्त में, यह निष्कर्ष निकाला गया कि श्रमिक समूहों में अनौपचारिक मानदण्ड या समझौते निर्धारित रहते हैं जो काफी प्रभावपूर्ण होते हैं और प्रत्येक श्रमिक उनका पालन करने में ही अपने को सुरक्षित समझाता है।
हाथोर्न प्रयोगों का प्रभाव (Impact of Hawthorne Experiments)
हाथोर्न प्रयोगों ने श्रमिक और उनके कार्य स्थल की नई तस्वीर पेश की। इन प्रयोगों के बाद प्रबन्धकों द्वारा यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया जाने लगा कि संगठन (Organisation) एक सामाजिक व्यवस्था है तथा मानवीय घटक इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। परिणामस्वरूप प्रबन्ध व्यवहार में तेजी से परिवर्तन होने लगा। अब समय और गति अध्ययन तथा अन्य इंजीनियरी सुधारों के स्थान पर कार्य दशाओं, अभिप्रेरणा (Motivation), समूह सम्बन्ध, नेतृत्व तथा अन्य मानवीय पहलुओं पर जोर दिया जाने लगा।
हॉथोर्न परीक्षण किसके द्वारा किये गये थे?
जॉर्ज एल्टन मेयो
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