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राजा रवि वर्मा का जीवन परिचय (Raja Ravi Varma Biography in Hindi)
राजा रवि वर्मा का जीवन परिचय- आधुनिक समय में देश के कदाचित् सर्वाधिक लोकप्रिय कलाकार माने जाने वाले रवि वर्मा का जन्म केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से कुछ दूर किलिमन्नूर नाम के ग्राम में 29 अप्रैल, 1848 को हुआ था। इनका परिवार तिरुवांकुर के राजघराने से संबंधित था। तदंतर रानी की छोटी बहन से शादी होने के कारण ये एक तरह से राजपरिवार के ही सदस्य बन गए। रवि वर्मा चित्रकला की तरफ अपने चाचा राज वर्मा से प्रोत्साहन पाकर आकर्षित हुए। राज वर्मा खुद भी चित्रकला में दिलचस्पी रखते थे। चौदह वर्ष की उम्र में रवि वर्मा राज चित्रकार रामास्वामी नायडू के सान्निध्य में आए। तिरुवांकुर नरेश के आमंत्रण पर आए अंग्रेज चित्रकार थेड्योर जेनसन से इन्हें तैलरंगों के चित्र बनाने का ज्ञान प्राप्त हुआ। उस कालखंड में यहां तैलरंगों के चित्र नहीं बनाए जाते थे।
राजा रवि वर्मा के चित्र सबसे पहले 1873 में मद्रास फाइन आर्ट प्रदर्शनी में दर्शाए गए और 25 वर्ष की उम्र पाने से पूर्व ही प्रदर्शनी में इन्हें प्रथम पुरस्कार मिला। इन्होंने 1880 में पुणे तथा 1892 में वियना की प्रदर्शनियों में स्पर्धा की। इनके चित्रों की सभी स्थलों पर सराहना हुई। मैसन तथा बड़ौदा नरेशों ने इन्हें राजपरिवार के सदस्यों के चित्र बनाने के लिए निमंत्रित किया। अपने बनाए चित्रों की दिनोदिन बढ़ती मांग को पूर्ण करने के लिए इन्होंने मुंबई में छापाखाना भी खोला। रवि वर्मा ने जिस समय चित्र बनाना शुरू किया था, देश तब आँखें बंद करके पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति का अंधानुकरण करने लगा था। राम व कृष्ण के स्थान पर देशवासी पश्चिम को अपना आदर्श मानने लगे थे। ऐसे समय में रवि वर्मा ने अपने चित्रों के द्वारा देश की प्रजा का ध्यान भारतीय संस्कृति की तरफ आकर्षित किया। इनके धार्मिक चित्रों ने लोगों के दिल में पौराणिक काल व संस्कृति के प्रति विश्वास को मजबूत किया। इन्होंने न सिर्फ राम व कृष्ण के जीवन कथानकों को प्रदर्शित किया, बल्कि राजा हरिश्चंद्र, शकुंतला, नल और दमयंती जैसी कथाओं को भी सजीवता प्रदान करने का कार्य किया।
इनके कुछ विख्यात चित्र — श्रीकृष्ण और बलराम’, ‘राम का अभिमानी समुद्र पर क्रोध’, ‘रावण और जटायु’, ‘मत्स्यगंधी’, ‘शकुंतला’, ‘सत्यवादी हरिशचंद्र’, ‘हंसदूत’, ‘सूर्य भगवान’, ‘गंगावरण’ और ‘सरस्वती’ शीर्षक से रहे हैं। इनके चित्र तिरुवनंतपुरम् के सरकारी चित्रवीथी, बड़ौदा के लक्ष्मी विलास महल, मैसूर के महल, राजस्थान के उदयपुर महल और हैदराबाद के सालारगंज संग्रहालय के साथ ही दिल्ली की राष्ट्रीय कला वीथी में भी मौजूद हैं। इनका नजरिया व्यापक था। पश्चिमी चित्रकला में, जो ग्रहणीय था, उसे भारतीय परिवेश में अपनाने में इन्होंने देरी नहीं की।
संपूर्ण जीवन चित्रकला को समर्पित करने वाले इस राजसी चित्रकार का 2 अक्टूबर, 1906 को किलिमंतूर में 58 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
राजा रवि वर्मा की मुख्य कृतियाँ
- खेड्यातिल कुमारी
- विचारमग्न युवती
- दमयंती-हंसा संभाषण
- संगीत सभा
- अर्जुन व सुभद्रा
- फल लेने जा रही स्त्री
- विरहव्याकुल युवती
- तंतुवाद्यवादक स्त्री
- शकुंतला
- कृष्णशिष्टाई
- रावण द्वारा रामभक्त जटायु का वध
- इंद्रजित-विजय
- भिखारी कुटुंब
- स्त्री तंतुवाद्य वाजवताना
- स्त्री देवळात दान देतांना
- राम की वरुण-विजय
- नायर जाति की स्त्री
- प्रणयरत जोडे
- द्रौपदी किचक-भेटीस घाबरत असताना
- शंतनु व मत्स्यगंधा
- शकुंतला राजा दुष्यंतास प्रेम-पत्र लिहीताना
- कण्व ऋषि के आश्रम की ऋषिकन्या
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