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बालकों में सृजनात्मकता बढ़ाने के उपाय | Measures of Fostering Creativity in Children in Hindi

बालकों में सृजनात्मकता बढ़ाने के उपाय | Measures of Fostering Creativity in Children in Hindi
बालकों में सृजनात्मकता बढ़ाने के उपाय | Measures of Fostering Creativity in Children in Hindi

बालकों में सृजनात्मकता बढ़ाने के उपाय (Measures of Fostering Creativity in Children)

सृजनात्मकता जन्मजात होती है लेकिन टॉरेन्स तथा अन्य मनोवैज्ञानिकों ने सिद्ध किया हैं कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे शिक्षकों द्वारा अन्य विषय की तरह पढ़ाया भी जा सकता है तथा कुछ विशेष प्रविधि के माध्यम से सृजनात्मकता को बढ़ाया भी जा सकता है। निम्न कुछ ऐसे बिन्दु हैं जिनका उपयोग कक्षा में करके बालकों की सृजनात्मकता बढ़ायी जा सकती है-

1) बालको में सृजनात्मकता बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि अध्यापक स्वयं भी सृजनात्मक प्रवृत्ति का हो क्योंकि जब वह नए-नए सृजनात्मक प्रयोग करके दिखाएंगे तो उनमें सृजनात्मकता बढ़ जाएगी।

2) शिक्षक को वाद-विवाद विधि अपनानी चाहिए तथा भिन्न-भिन्न तरह के विवादात्मक प्रश्न पूछ कर उनको (बालकों) उत्तर देने के लिए प्रेरित करना चाहिए तथा नए-नए तथ्यों की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करना चाहिए।

3) जब भी बालक कोई सृजनात्मक कार्य करे तो उसे पुनर्बलन देना चाहिए। ये धनात्मक होना चाहिए अर्थात् पुरस्कार रूप में जिससे बालक की सृजनात्मकता का उत्तरोत्तर विकास होगा।

4) अध्यापक को चाहिए कि वे छात्रों के किए गए नवीन कार्यों की प्रशंसा करें तथा उनका उत्साह व रुचि बनाए रखें तथा उन्हें सृजनात्मक कार्य करने के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करें।

5) शिक्षकों को चाहिए कि वे छात्रों को अभिव्यक्ति के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करें ताकि छात्रों की झिझक खत्म हो सके तथा वे अपने नवीन विचारों तथा नवीन खोजों को सबके समक्ष प्रस्तुत कर सकें।

6) अध्यापकों को चाहिए कि वे छात्रों को प्रोजेक्ट कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करें। इनके सामने कोई समस्यात्मक स्थिति रखकर उनकी प्रतिक्रियाओं के लिए छात्रों को आमंत्रित करना चाहिए तथा उनके द्वारा किए जाने वाले मौलिक कार्यों का मूल्यांकन अवश्य करना चाहिए।

7) शिक्षक को मस्तिष्क उद्वेलीकरण (brain-storming) विधि को बढावा देना चाहिए। इसमें छात्रों के समक्ष एक समस्या दी जाती है। छात्र अपने मन में उत्पन्न विभिन्न प्रकार के समाधान को शिक्षक से पूछ सकता है। इस विधि का प्रतिपादन ओसबर्न (Osborne) ने किया तथा पारनेस नें इस विधि का प्रयोग कक्षा में किया तथा पाया कि बच्चों की सृजनात्मकता बढ़ गई।

8) शिक्षक को चाहिए कि वे छात्रों को समस्या का समाधान परम्परागत विधि से न करने दें बल्कि उन्हें नवीन तरीकों से हल करने के लिए प्रोत्साहित करें।

9) छात्रों को वातावरण के उद्दीपनों के प्रति ध्यानमग्न बनाए रखें तथा उनमें आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित करवाना चाहिए तथा शिक्षक को छात्रों के नए-नए विचारों की जाँच करने वाली प्रविधियों पर प्रकाश तथा बल डालने पर जोर देना चाहिए।

10) शिक्षक को छात्रों के मन में उत्पन्न नकारात्मक अनुभूतियों को हटाना चाहिए क्योंकि जब तक वे आशावादी नहीं होगें वे कुछ भी नया (मौलिक) नहीं सोच पाएंगे।

11) अध्यापक को चाहिए कि वे छात्रों को स्वयं नवीन सूचनाएँ एकत्र करने पर जोर दे कर उनमें ये आदतें विकसित करें व इसके लिए अनुकूल वातावरण भी दें।

12) जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित समस्याओं का भली-भाँति प्रत्यक्षण कर उसके तर्कसंगत तथा भिन्न-भिन्न परिणाम प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ।

शैक्षिक दृष्टि से सृजनात्मकता का अत्यधिक महत्व है इसलिए बालकों की सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करने के लिए है कि उन्हें अनुकूल वातावरण तथा अधिक से अधिक अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।

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Anjali Yadav

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