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व्यक्तित्व के आयाम (Dimensions of Personality)
अंद्रास अंग्याल (Andras Angyal) उन मनोवैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्होंने व्यक्तित्व सिद्धान्त की व्याख्या करते समय आयाम शब्द का प्रयोग किया। व्यक्तित्व के सर्वागिक सिद्धान्त के समर्थकों में अंग्याल का नाम महत्वपूर्ण है। व्यक्तित्व के आयाम की चर्चा करने से पूर्व अंग्याल ने व्यक्तित्व की व्याख्या कैसे की यह जानना आवश्यक है। अंग्याल के अनुसार, “व्यक्तित्व का स्वरूप एकीकृत गत्यात्मक संगठन के रूप में होता है, एवं, गत्यात्मक संगठन से तात्पर्य एक विशेष प्रकार के संगठन, कार्य करने का ढंग, तथा नियोजन से है।” अंग्याल के अनुसार, व्यक्तित्व के निम्नलिखित तीन आयाम होते हैं-
आयाम (Dimension)
- ऊर्ध्वाधर आयाम (Vertical Dimension)
- प्रगति बोधक आयाम (Progressive Dimension)
- अनुप्रस्थ आयाम (Transverse Dimension)
1) ऊर्ध्वाधर आयाम (Vertical Dimension) – अंग्याल महोदय का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व में अनेक स्तर होते हैं। ऊर्ध्वाधर आयाम में सबसे नीचे के स्तर में भौतिक तथा सतही पक्ष होता है। लेकिन जैसे-जैसे हम भौतिक पक्ष अर्थात सतही पक्ष से आगे बढ़ते हैं तब हम उसके नैतिक, आध्यात्मिक, मानसिक तथा संवेगात्मक स्तरों से परिचित होते हैं। व्यक्तित्व के इस आयाम में एक तरफ तो व्यक्ति बहुत स्वार्थी होता है और वह केवल अपने बारे में ही सोचता है। लेकिन जैसे-जैसे व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता जाता है। उसके व्यवहार में उदारता आने लगती है। उदाहरण के लिए, एक 35 वर्षीय युवक जो कि अपने अतीत के अवांछनीय अनुभवों के आधार पर दूसरों के प्रति नकारात्मक भाव भी रखता है, लेकिन जैसे-जैसे वह अन्य लोगों के सम्पर्क में संवेगात्मक रूप में आता है, उसके नैतिक, मानसिक कार्यों से प्रभावित होकर उसके व्यवहार में सुधार आता जाता है तथा उसके मन से दूसरों के प्रति दुर्भावनाएं खत्म होती जाती हैं।
2) प्रगतिबोधक आयाम (Progressive Dimension) – जब व्यक्ति किसी निर्देशित लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य करता है तो उसके व्यक्तित्व में धीरे-धीरे सुधार होता जाता है। इसे ही अंग्याल महोदय ने ‘प्रगति बोधक’ की संज्ञा दी। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति बहुत सीधा-सादा लेकिन अत्यन्त महत्वाकांक्षी होता है। वह रात दिन इस बात में लगा रहता है कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ले। जैसे-जैसे वह अपने लक्ष्य प्राप्ति की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है वैसे-वैसे उसके व्यक्तित्व में भी सुधार होता जाता है। इस तरह के व्यक्तित्व को ही प्रगतिबोधक आयाम की संज्ञा दी जाती है। इस तरह के आयाम में व्यक्ति चाहता है कि वह अपना सर्वांगीण विकास कर सके। उसके सारे कार्य इस दृष्टि से होते हैं कि वह जल्दी से जल्दी लक्ष्य को प्राप्त कर सके। वह कोशिश करता है कि कम समय में कम से कम शक्ति का प्रयोग कर लक्ष्य की प्राप्ति कर सके। जब लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है तो व्यक्ति का प्रगतिबोधक आयाम उभरने लगता है।
3) अनुप्रस्थ आयाम (Transverse Dimension) – यह आयाम उपरोक्त दोनों आयामों से सहसंबंधित है तथा इसकी अभिव्यक्ति इन आयामों के माध्यम से भी देखी जा सकती है। इस प्रकार का आयाम व्यक्ति के दैनिक कार्यों में प्रकट होता है। जब वह समाज के लोगों के सम्पर्क में आता है तथा उसकी अन्तःक्रिया होती है तब अनुप्रस्थ की अभिव्यक्ति होती है। इस समय व्यक्ति के समस्त सामाजिक क्रियाकलाप प्रकट होते हैं। इसके द्वारा ही यह पता चलता है कि व्यक्ति का किसी विशेष व्यक्ति के प्रति कैसा व्यवहार है।
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