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पाठ्यचर्या की अवधारणा | Concept of Curriculum in Hindi

पाठ्यचर्या की अवधारणा | Concept of Curriculum in Hindi
पाठ्यचर्या की अवधारणा | Concept of Curriculum in Hindi

पाठ्यचर्या की अवधारणा (Concept of Curriculum)

शिक्षा एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है जिससे बालक का चहुँमुखी एवं सर्वांगीण विकास होता है तथा उसके ज्ञान का परिमार्जन किया जाता है। शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षण-प्रशिक्षण की क्रियाओं का प्रयोग करके बालक के वर्तमान व्यवहार में उचित परिवर्तन किया जाता है। शिक्षा दो प्रकार की मानी गई है-

1) औपचारिक शिक्षा- इसके अन्तर्गत किसी योजना, किसी विशेष लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु विद्यालयों में पूर्व नियोजित तरीके से शिक्षा प्राप्त की जाती है।

2) अनौपचारिक शिक्षा- अनौपचारिक शिक्षा के अन्तर्गत विद्यालय से बाहर सीखना और जीवनपर्यन्त सीखते रहना है। इसमें शिक्षा का संकुचित स्वरूप, शिक्षा का व्यापक स्वरूप, शिक्षा का विश्लेषणात्मक स्वरूप आता है जिसमें मनुष्य सदैव अन्तःक्रियाएँ करता है और अपने विशेष लक्ष्यों जैसे- नैतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, पारिवारिक तथा सामाजिक आदि को प्राप्त करता है।

प्राचीन काल में शिक्षा द्विध्रुवीय प्रक्रिया के रूप में प्रसिद्ध थी किन्तु वर्तमान में त्रिध्रुवीय प्रक्रिया कहलाती है।

बालक ⇔ शिक्षक ⇔ पाठ्यचर्या

विद्यालय में विद्यार्थी को जो भी शिक्षा प्रदान की जाती है उसका एक निश्चित उद्देश्य होता है। शिक्षा प्रक्रिया में तीन प्रमुख प्रक्रियाएँ हैं, जिन्हें जॉन डीवी ने त्रिआयामी प्रक्रिया कहा है। ये निम्नलिखित हैं-

i) उद्देश्य निर्धारण (Determination of Aims)

ii) शिक्षण पद्धतियाँ (Teaching methods or Techniques)

iii) पाठ्यचर्या (Curriculum)

प्रो. हॉर्न ने शिक्षा प्रक्रिया के चार तत्त्वों को आवश्यक बताया है-

i) शिक्षार्थी (Student)

ii) पाठ्यचर्या (Curriculum)

iii) शैक्षिक वातावरण (Educational Environment)

iv) शिक्षक (Teacher)

यहाँ पर प्रत्येक तत्त्व को एक दूसरे की आवश्यकता है तथा इनका पारस्परिक अन्तःसम्बन्ध है किन्तु पाठ्यचर्या बालक के योग्य हो तो वह उसके लिए उपयोगी मानी जाएगी अन्यथा वह शिक्षा के स्तर को बढ़ाने व बालक के विकास में सहायक न होकर एक पुस्तक के रूप में पृष्ठों का भार बन जाएगी यद्यपि पाठ्यचर्या शिक्षा के औपचारिक स्वरूप के अन्तर्गत ही आती है। प्राचीन काल में पाठ्यचर्या के सांगोपांग, विधिवत निर्माण एवं विकास पर विशेष विचार नहीं किया जाता है किन्तु बीसवीं सदी के आरम्भ से पाठ्यचर्या का विकास हुआ तथा शिक्षा के लक्ष्यों को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा तथा इसी नवीन अवधारणा से शिक्षाशास्त्रियों तथा विशेषज्ञों के भी विचारों में पाठ्यचर्या के महत्त्व को नया स्थान प्राप्त होने लगा। इसी प्रकार पाठ्यचर्या के क्षेत्र की अनुसंधान आदि की वृद्धि हुई है। वर्तमान में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में “पाठ्यचर्या को विषय बनाकर शिक्षा में सम्मिलित किया गया है। इसी सन्दर्भ में महात्मा गांधी ने कहा है कि “उत्तम साध्य के लिए उत्तम साधन होना अनिवार्य है।”

अतः शिक्षा की समस्त प्रक्रिया पाठ्यचर्या पर निर्भर करती है। पाठ्यचर्या के द्वारा ही शिक्षा के उद्देश्य प्राप्त किए जा सकते हैं।

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Anjali Yadav

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